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ध्यान दें:

पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

सितंबर 2023

  • 25 Oct 2023
  • 53 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  • माइक्रोइकोनॉमिक विकास
    • चालू खाता घाटा GDP का 1.1%  पर
  • कानून एवं न्याय
    • महिला आरक्षण विधेयक 2023
    • चुनाव के लिये समिति का गठन 
    • ई-कोर्ट चरण-III को मंज़ूरी
    • POCSO अधिनियम
    • FIR के ऑनलाइन पंजीकरण को सक्षम करना 
  • वित्त
    • वाणिज्यिक बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो पर दिशा-निर्देश
    • व्यक्तिगत ऋणों के पुनर्भुगतान पर संपत्ति दस्तावेज़ जारी 
    • ऐच्छिक और बड़े डिफॉल्टरों के प्रबंधन हेतु मसौदा निर्देश
  • गृह मामले
    • जेलों की स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर और सुधारों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
  • उपभोक्ता मामले
    • ई-कॉमर्स में डार्क पैटर्न को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश
  • परिवहन
    • स्थायी समिति ने राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्ग पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की
    • भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Bharat NCAP) 
    • फिटनेस प्रमाणपत्र की वैधता
  • पर्यटन
    • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की कार्य प्रणाली पर रिपोर्ट 
    • विशिष्ट पर्यटन और संभावित पर्यटन स्थलों के विकास पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
  • ऊर्जा
    • ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु रूपरेखा जारी 
    • कैप्टिव बिजली उत्पादकों और उपयोगकर्त्ता संबंधी नियमों में संशोधन
  • खनन
    • खनन लीज़ और कंपोज़िट लाइसेंस की नीलामी के नियमों में संशोधन
  • पर्यावरण
    • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व नियम अधिसूचित
  • शिक्षा
    • उच्च शिक्षा में NEP के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट
  • श्रम एवं रोज़गार
    • स्थायी समिति द्वारा  कर्मचारी राज्य बीमा निगम पर रिपोर्ट प्रस्तुत

  माइक्रोइकोनॉमिक विकास  

चालू खाता घाटा GDP का 1.1%  पर

  • चालू खाता:
    • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में चालू खाते में 9.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 1.1%) का घाटा दर्ज किया गया, जो कि वर्ष 2022-23 की इसी तिमाही के 17.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 2.1%) के घाटे से काफी कम है।
    • इसी अवधि में व्यापारिक व्यापार घाटा 63.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 56.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में चालू खाता घाटा 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.2%) था। 
  • पूंजी खाता:
    • पूंजी खाते में वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 34.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह दर्ज किया गया, जबकि वर्ष 2022-23 की इसी तिमाही में 22.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह दर्ज किया गया था।
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ने वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 15.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह दर्ज किया, जबकि वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 14.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध बहिर्वाह दर्ज किया गया था।
    • वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में पूंजी खाते में 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह दर्ज किया गया था।
  • विदेशी मुद्रा भंडार:
    • वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में इसमें 24.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई, जो वर्ष 2022 की समान तिमाही में हुई 4.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि से काफी अधिक है।

  कानून एवं न्याय  

महिला आरक्षण विधेयक 2023

  • संसद का विशेष सत्र 18 सितंबर, 2023 से 21 सितंबर, 2023 तक चार बैठकों के साथ आयोजित किया गया था। 
  • इस सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) अधिनियम पारित किया गया।
    • यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • इस विधेयक के लागू होने के बाद आयोजित जनगणना के प्रकाशन के बाद यह आरक्षण प्रभावी होगा।
  • जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा।
  • हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
  •  हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाएगा, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

विचारणीय मुद्दे:

  • विधानमंडलों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण के मुद्दे की जाँच तीन दृष्टिकोणों से की जा सकती है:
    • क्या महिलाओं के लिये आरक्षण की नीति उनके सशक्तीकरण हेतु एक प्रभावी साधन के रूप में कार्य कर सकती है।
    • क्या विधानमंडलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के वैकल्पिक तरीके संभव हैं।
    • क्या विधेयक में आरक्षण की प्रस्तावित पद्धति को लेकर कोई समस्या है।
  • राजनीतिक दलों और दोहरे सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण के पक्ष और विपक्ष:

लाभ

हानि

राजनीतिक दल

  • मतदाताओं को अधिक लोकतांत्रिक विकल्प प्रदान करना।
  • स्थानीय राजनीतिक एवं सामाजिक कारकों के आधार पर पार्टियों को उम्मीदवारों और निर्वाचन क्षेत्रों के चयन में अधिक सक्षम बनाना।
  • जिन क्षेत्रों में इसका चुनावी लाभ होगा वहाँ  अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को नामांकित किया जा सकता है।
  • संसद में महिलाओं की संख्या में लचीलेपन की अनुमति देना।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बड़ी संख्या में महिलाएँ निर्वाचित होंगी।
  • राजनीतिक दल महिला उम्मीदवारों को उन निर्वाचन क्षेत्रों में नियुक्त कर सकते हैं जहाँ वे कमज़ोर हैं।
  • यदि किसी शक्तिशाली पुरुष उम्मीदवार के स्थान पर किसी महिला को विशेष महत्त्व दिया जाएगा तो इस पर नाराज़गी हो सकती है।

दोहरे सदस्य निर्वाचन क्षेत्र

  • मतदाताओं के लिये लोकतांत्रिक विकल्प कम नहीं होते।
  • पुरुष उम्मीदवारों के साथ कोई भेदभाव नहीं करता।
  • सदस्यों के लिये उन निर्वाचन क्षेत्रों का पोषण करना आसान हो सकता है जिनकी औसत आबादी लगभग 2.5 मिलियन है।
  • मौजूदा सदस्यों को अपना राजनीतिक आधार साझा करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • महिलाएँ गौण या सहायक बन सकती हैं।
  • 33% महिलाओं के मानदंड को पूरा करने के लिये आधी सीटों पर दोहरे सदस्य निर्वाचन क्षेत्र होने की आवश्यकता है। इससे संसद सदस्यों (सांसदों) की कुल संख्या में 50% की वृद्धि होगी, जिससे संसद में विचार-विमर्श करना और अधिक कठिन हो सकता है। 
  • संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने के लिये संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2008 में पेश किये गए हैं।
    • पहले के तीन विधेयक संबंधित लोकसभाओं के विघटन के साथ समाप्त हो गए।
    • वर्ष 2008 का विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया तथा पारित हुआ लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह भी समाप्त हो गया।

वर्ष 2008 और वर्ष 2023 में पेश किये गए विधेयक के बीच मुख्य परिवर्तन:

राज्यसभा द्वारा पारित होने के बाद वर्ष 2008 में विधेयक पेश किया गया

वर्ष 2023 में पेश किया गया विधेयक 

लोकसभा में आरक्षण

प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में एक-तिहाई लोकसभा सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित की जाएंगी।

महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी।

सीटों का क्रमिक आवंटन

संसद/विधानसभा के लिये प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों का क्रमिक आवंटन किया जाएगा।

प्रत्येक परिसीमन अभ्यास के बाद आरक्षित सीटों को आवंटित किया जाएगा।

चुनाव के लिये समिति का गठन 

  • परिचय:
    • केंद्र सरकार ने एक साथ चुनाव कराने के संबंध में जाँच तथा सिफारिशें करने के लिये एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया।
      • एक साथ चुनाव से तात्पर्य एक ही समय में होने वाले लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनावों से है।
  • समिति के सदस्य:
    • समिति में अध्यक्ष के रूप में पूर्व राष्ट्रपति और सात सदस्य होंगे। समिति के सदस्यों में शामिल हैं:
  • संदर्भ की शर्तें:
    • समिति लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराने से संबंधित कानूनों एवं विनियमों की समीक्षा करेगी तथा उनमें बदलाव का सुझाव देगी।
    • समिति यह भी जाँच करेगी कि क्या संवैधानिक संशोधनों के लिये राज्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
    • समिति के अन्य कार्य:
      • चुनावों को समकालिक बनाने के लिये एक रूपरेखा का सुझाव देना।
      • एक साथ चुनाव चक्र की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षा उपायों की सिफारिश करना
      • लॉजिस्टिक्स और कर्मचारियों की आवश्यकताओं की समीक्षा करना।
      • विभिन्न चुनावों में मतदाताओं के लिये एक ही मतदाता सूची एवं पहचान पत्र के उपयोग के तौर-तरीकों पर सुझाव देना।

ई-कोर्ट चरण-III को मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2023 से 2027 तक केंद्र प्रायोजित योजनाओं के रूप में ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण को मंज़ूरी दी।

  • ई-कोर्ट परियोजना:
    • भारतीय न्यायपालिका को डिजिटल रूप से सक्षम बनाने  के लिये वर्ष 2007 में ई-कोर्ट परियोजना शुरू की गई थी। इस योजना का चरण-II वर्ष 2023 में समाप्त हुआ।
    • इस योजना के चरण-I में बड़ी संख्या में ज़िला न्यायालयों का कंप्यूटरीकरण किया गया।
    • इसके अलावा इस योजना के दूसरे चरण का उद्देश्य नागरिकों को स्थानीय भाषाओं में सुलभ वेबसाइट जैसी सेवा वितरण प्रदान करना है।
  • चरण-III का उद्देश्य:
    • ई-सेवा (eSewa) केंद्रों के माध्यम से प्रौद्योगिकी पहुँच के बिना नागरिकों को न्यायिक सेवाएँ प्रदान करना।
    • कहीं से भी न्यायालय शुल्क और ज़ुर्माने का भुगतान संभव बनाना।
    • न्यायालय द्वारा पेपर-आधारित फाइलिंग पर निर्भरता को कम करना।
    • बजटीय परिव्यय का लगभग 28% व्यय स्कैनिंग, डिजिटलीकरण और केस रिकॉर्ड के डिजिटल संरक्षण पर , जबकि लगभग 17% व्यय क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने का अनुमान है।

POCSO अधिनियम 

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये सरकार द्वारा बनाए गए महत्त्वपूर्ण कानूनों में से एक है।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना जाता है। यह अधिनियम किसी बच्चे की सहमति के बावजूद उसके साथ यौन संबंधों को अपराध मानता है।

आयोग की मुख्य टिप्पणियाँ और सिफारिशें:

  • सहमति की उम्र: आयोग ने पॉक्सो अधिनियम के तहत सहमति की उम्र  को घटाकर 16 वर्ष करने का विरोध किया।
  • 16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे: आयोग का कहना है कि अपराध के समय बच्चा 16 वर्ष या उससे अधिक का होने पर आरोपी को कम सज़ा दी जा सकती है। इसे पूरा करने के लिये कुछ मानदंडों की आवश्यकता होगी। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
  • विशेष अदालत इस बात से संतुष्ट है कि आरोपी और बच्चे के बीच घनिष्ठ संबंध थे।
  • बच्चे की मौन स्वीकृति ।
  • आरोपी और बच्चे की उम्र में तीन साल से ज़्यादा का अंतर नहीं होना चाहिये।
  • आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं हो।
  • अनुचित प्रभाव, बल या हिंसा जैसे कारक  मौजूद न हों।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC): वर्तमान में IPC के तहत पति और उसकी पत्नी ( 18 वर्ष से कम उम्र) के बीच सहमति से यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है। आयोग ने कहा कि IPC में संशोधन के बिना किशोरों के रोमांटिक रिश्तों (Romantic Relationship) को राहत देने के लिये केवल POCSO अधिनियम में संशोधन करना अर्थहीन होगा। इसलिये आयोग ने IPC में उपयुक्त संशोधन का सुझाव दिया।

FIR के ऑनलाइन पंजीकरण को सक्षम करना 

  • विधि आयोग ने "प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) का ऑनलाइन पंजीकरण सुनिश्चित  करने के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 में संशोधन" पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • आयोग ने कहा कि दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित आठ राज्यों ने ई-FIR के पंजीकरण को लागू किया है।
  • इसके अलावा नागरिक साइबर अपराध के संबंध में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • आयोग ने ई-FIR के चरणबद्ध कार्यान्वयन की सिफारिश की।
  • इसने उन सभी संज्ञेय अपराधों के लिये ई-FIR सुनिश्चित करने की सिफारिश की, जहाँ आरोपी के संबंध जानकारी ज्ञात नहीं है और ज्ञात आरोपी के मामले में संज्ञेय अपराधों में तीन वर्ष तक की कैद की सज़ा हो सकती हैहै।
  • आयोग ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ई-FIR दर्ज करते समय प्रदान किये गए डेटा से समझौता नहीं किया जाना चाहिये।

  वित्त  

वाणिज्यिक बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो पर दिशा-निर्देश

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने RBI (वाणिज्यिक बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो का वर्गीकरण, मूल्यांकन और संचालन) दिशा-निर्देश, 2023 जारी किये।
    • यह फ्रेमवर्क 1 अप्रैल, 2024 से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होगा।
  • इसकी विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • निवेश नीति फ्रेमवर्क: बैंकों को अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित निवेश नीति अपनानी होगी। नीति में निम्नलिखित शामिल होने  चाहिये:
    • निवेश मानदंड और निवेश लेन-देन के माध्यम से प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्य।
    • प्रतिभूतियाँ, जिनमें बैंक निवेश कर सकते हैं।
  • निवेश का वर्गीकरण: बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो को इसमें वर्गीकृत किया जाना चाहिये:
    • परिपक्वता तक धारित (परिपक्वता तक धारण करने के इरादे से अर्जित ) प्रतिभूतियाँ।
    • बिक्री के लिये उपलब्ध (नकदी प्रवाह के साथ-साथ बिक्री हेतु अर्जित) प्रतिभूतियाँ।
    • लाभ और हानि के माध्यम से उचित मूल्य प्रतिभूतियाँ (जो उपरोक्त दो श्रेणियों में नहीं आती हैं)।
  • आंतरिक नियंत्रण प्रणाली: बैंकों के पास निवेश हेतु लेन-देन के लिये एक मज़बूत आंतरिक नियंत्रण तंत्र होना चाहिये। इसमें ये  भी शामिल हैं:
    • निवेश बही का आवधिक मिलान।
    • पोर्टफोलियो का मूल्यांकन।
    • प्रूडेंशियल और जोखिम सीमाओं की निगरानी।

व्यक्तिगत ऋणों के पुनर्भुगतान पर संपत्ति दस्तावेज़ जारी 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने व्यक्तिगत ऋणों के पुनर्भुगतान पर विनियमित संस्थाओं (जैसे बैंक) द्वारा चल/अचल संपत्ति दस्तावेज़ जारी करने के निर्देश जारी किये। 
    • व्यक्तिगत ऋण में शिक्षा ऋण, आवास ऋण और वित्तीय संपत्तियों में निवेश के लिये ऋण शामिल हैं। 
  • हालाँकि RBI द्वारा ऐसे दस्तावेज़ों को जारी करने के लिये अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल किया जाता है। 
    • निर्देशों के अनुसार, विनियमित संस्थाओं को ऋण खाते के पूर्ण पुनर्भुगतान/निपटान के बाद 30 दिनों के भीतर मूल संपत्ति दस्तावेज़ों को जारी करना होगा। विनियमित इकाई के कारण होने वाली किसी भी देरी के मामले में उधारकर्त्ता को प्रत्येक दिन के लिये 5,000 रुपए का मुआवज़ा दिया जाएगा।

ऐच्छिक और बड़े डिफॉल्टरों के प्रबंधन हेतु मसौदा निर्देश

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिये RBI (ऐच्छिक डिफॉल्टरों और बड़े डिफॉल्टरों का प्रबंधन) दिशा-निर्देश, 2023 का मसौदा जारी किया। मसौदा निर्देशों में उधारदाताओं द्वारा किसी उधारकर्त्ता को जान-बूझकर चूक करने वाले के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया प्रदान करने का प्रयास किया गया है। 

प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ऐच्छिक या जान-बूझकर डिफॉल्टर बनना: ऐच्छिक डिफॉल्टर का अर्थ है:
    • एक उधारकर्त्ता या गारंटर जिसने कम-से-कम 25 लाख रुपए का डिफॉल्ट जान-बूझकर किया हो या RBI द्वारा अधिसूचित किया गया हो।
    • डिफॉल्ट के समय जुड़े प्रमोटर और निदेशक, यदि डिफॉल्टर एक कंपनी है।
    • किसी इकाई (कंपनियों के अलावा) के मामलों के प्रबंधन के लिये प्रभारी और ज़िम्मेदार व्यक्ति।
  • ऐच्छिक डिफॉल्टर्स की पहचान: 
    • ऐच्छिक डिफॉल्टर्स के सबूत की जाँच ऋणदाता द्वारा गठित एक पहचान समिति (जिसमें अध्यक्ष के रूप में पूर्णकालिक निदेशक और दो वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे) द्वारा की जाएगी। 
    • यदि समिति इस बात से संतुष्ट है कि चूक जान-बूझकर की गई  है, तो वह उधारकर्त्ता को कारण बताओ नोटिस जारी करेगी।
  • ऐच्छिक डिफॉल्टर्स के खिलाफ उपाय: 
    • आवश्यकता पड़ने पर ऋणदाता जान-बूझकर चूक करने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। जान-बूझकर चूक करने वाले पुनः ऋण सुविधा के लिये पात्र नहीं होंगे।

  गृह मामले  

जेलों की स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर और सुधारों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट

गृह मामलों से संबंधित स्थायी समिति ने ‘जेलों की स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर और सुधार’ पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति के मुख्य निष्कर्षों एवं सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ओवरक्राउडिंग: समिति ने कहा कि जब जेलों में बहुत अधिक कैदी होते हैं तो उसका कैदियों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली पर भी गंभीर परिणाम होता है। भारत भर की जेलों में राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्यूपेंसी की औसत दर 130% है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश सहित छह राज्यों में कैदियों की कुल आबादी का आधे से अधिक हिस्सा है। इन छह राज्यों में से चार में ऑक्यूपेंसी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। समिति ने सुझाव दिया कि समझौता ज्ञापन पर दस्तखत करके कैदियों को ओवरक्राउडेड जेलों से उसी राज्य की या किसी दूसरे राज्य की जेलों में स्थानांतरित किया जाए।
  • किशोर अपराधी:
    • समिति ने कहा कि युवा अपराधी की परिभाषा को लेकर सभी राज्यों में  स्पष्टता का अभाव है।
    • इसने गृह मंत्रालय से सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को एक सामान्य दिशा-निर्देश के साथ किशोर अपराधियों की स्पष्ट परिभाषा प्रदान करने की सिफारिश की ।
  • महिला कैदी:
    • समिति ने गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया, जिसमें जेल के बाहर बच्चे को जन्म देने की क्षमता और उचित प्रसवपूर्व तथा  प्रसवोत्तर देखभाल शामिल है।
    • बच्चों का पालन-पोषण सुनिश्चित करने हेतु समिति ने जेल में पैदा हुए बच्चों को 12 वर्ष की उम्र तक अपनी माँ के साथ रहने की अनुमति देने की सिफारिश की।

  उपभोक्ता मामले  

ई-कॉमर्स में डार्क पैटर्न को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने डार्क पैटर्न की रोकथाम और विनियमन, 2023 के लिये मसौदा दिशा-निर्देशों पर टिप्पणियाँ आमंत्रित की हैं। 

  • डार्क पैटर्न, प्लेटफॉर्मों के यूज़र इंटरफेस (UI) में ऐसी पद्धतियों या भ्रामक डिज़ाइन पैटर्न को कहा जाता है जो उपयोगकर्त्ताओं को अनपेक्षित कार्यों को करने हेतु गुमराह करने या धोखा देने के लिये डिज़ाइन किया गया हो। 
  • ये पैटर्न उपभोक्ता की स्वायत्तता, निर्णय या पसंद को प्रभावित करते हैं और भ्रामक या अनुचित व्यापार पद्धतियों के समान होते हैं। 

मसौदा दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • डार्क पैटर्न में शामिल होने पर प्रतिबंध: 
    • ये मसौदा दिशा-निर्देश भारत में वस्तुओं या सेवाएँ प्रदान करने वाले सभी प्लेटफॉर्म, विज्ञापनदाताओं और विक्रेताओं पर लागू होंगे।
  •  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत स्थापित केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) डार्क पैटर्न की व्याख्या से संबंधित अस्पष्टताओं या विवादों को निपटाने के लिये ज़िम्मेदार होगा। 
    • अधिनियम के तहत CCPA के निर्देशों का पालन न करने पर छह महीने तक की कैद, 20 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना  या दोनों हो सकते हैं।

  परिवहन  

स्थायी समिति द्वारा राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्ग पर रिपोर्ट प्रस्तुत

  • अंतर्देशीय जलमार्ग एक नौगम्य नदी और नहर प्रणाली है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) अंतर्देशीय शिपिंग और नेविगेशन के लिये राष्ट्रीय जलमार्गों को विनियमित तथा विकसित करता है।

समिति के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय जलमार्गों का परिचालन: 
    • देश में 111 अधिसूचित राष्ट्रीय जलमार्ग हैं जिनमें से 23 को चालू कर दिया गया है। 
    • बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय ने कहा है कि वित्तीय एवं कर्मचारियों की कमी के कारण 63 राष्ट्रीय जलमार्गों का विकास नहीं किया जा रहा है। 
    • समिति ने सुझाव दिया कि फिलहाल इन 63 जलमार्गों का विकास न किया जाए क्योंकि ये अव्यावहारिक है।
  • कार्गो के परिवहन  के लिये इंटरमॉडल कनेक्टिविटी: समिति ने कहा कि प्रमुख बंदरगाहों, रेल और सड़कों के साथ जलमार्गों की कनेक्टिविटी से कार्गो के परिवहन का बोझ कम होने के साथ ही  लॉजिस्टिक्स की लागत में कमी आएगी। 
  • समिति ने सुझाव दिया कि नए अधिसूचित जलमार्गों के मामले में रेल, सड़क और बंदरगाहों के साथ कनेक्टिविटी के कार्य को परियोजना के चरण में ही निपटाया जाना चाहिये।
  • जलमार्गों की कम हिस्सेदारी: भारत में माल ढुलाई में जलमार्गों की औसत हिस्सेदारी लगभग 2% है, जबकि USA में यह आँकड़ा 4%, चीन में 14%, वियतनाम में 48% और नीदरलैंड्स में 49% है। 
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र की हिस्सेदारी  को 5% तक बढ़ाना है। 
  • समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय एक कार्य योजना बनाए ताकि  स्थायी पारगमन विकल्प और पर्यटन सेवा  के रूप में जलमार्गों की क्षमता का दोहन किया जा सके।

भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Bharat NCAP) 

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन अधिसूचित किये हैं।  नियम मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत बनाए गए हैं। 
  • संशोधनों में एम1 श्रेणी के तहत वाहनों की सुरक्षा रेटिंग का आकलन करने के लिये भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Bharat NCAP) की शुरुआत की गई है। 
    • M1 श्रेणी में 3.5 टन तक वज़न वाली कारें शामिल हैं जो आठ यात्रियों (ड्राइवर को छोड़कर) को ले जा सकती हैं।
    • ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (AIS) 197 के अनुसार स्टार रेटिंग के लिये वाहनों की जाँच और मूल्यांकन किया जाएगा।
    • ड्राफ्ट AIS 197 (अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया) के अनुसार, समग्र वाहन सुरक्षा मूल्यांकन इस पर आधारित होगा:
      • बालिग यात्रियों की सुरक्षा।
      • नाबालिग यात्रियों की सुरक्षा। 
      • सुरक्षा सहायता प्रौद्योगिकियाँ।

यह कार्यक्रम वाहनों के लिये 1 अक्तूबर, 2023 से लागू होगा।

फिटनेस प्रमाणपत्र की वैधता

  • नियम मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत तैयार किये गए हैं। 1988 का अधिनियम केंद्र सरकार को परिवहन वाहनों के लिये फिटनेस प्रमाणपत्र जारी करने हेतु नियम निर्धारित करने का अधिकार देता है। 
  • फिटनेस प्रमाणपत्र इस बात का प्रमाण है कि वाहन सुरक्षित है और सड़क पर उपयोग के लिये उपयुक्त है।
  • नए नियम अधिसूचित:
    • 1989 के नियमों के तहत पुराने परिवहन वाहनों के लिये फिटनेस प्रमाणपत्र की वैधता एक वर्ष थी। 
    • संशोधनों ने आठ वर्ष तक पुराने वाहनों के लिये वैधता अवधि को दो वर्ष तक बढ़ा दिया है।
    • केवल स्वचालित परीक्षण स्टेशनों को निम्नलिखित के लिये फिटनेस प्रमाणपत्र जारी करना चाहिये।
      • भारी माल वाहन
      • भारी यात्री मोटर वाहन
      • मध्यम माल वाहन
      • हल्के मोटर 
  • नए नियम 1 अक्तूबर, 2024 से लागू होंगे।

  पर्यटन  

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की कार्य प्रणाली पर रिपोर्ट 

  • अंतर्देशीय जलमार्ग एक नौगम्य नदी और नहर प्रणाली है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) अंतर्देशीय शिपिंग एवं नेविगेशन के लिये राष्ट्रीय जलमार्गों को विनियमित तथा विकसित करता है।
  • समिति की प्रमुख टिप्पणियों  और सिफारिशों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • समिति ने सिफारिश की कि इन स्मारकों की सूची को राष्ट्रीय महत्त्व, अद्वितीय वास्तुशिल्प मूल्य और विशिष्ट विरासत सामग्री के आधार पर तर्कसंगत बनाया जाए।
    • इसने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) को उसके द्वारा बनाए गए सभी स्मारकों की भौतिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की सिफारिश की और सुरक्षा सुनिश्चित करने में कर्मियों की कमी को एक प्रमुख बाधामाना।

स्मारकों के आस-पास प्रतिबंधित क्षेत्र:

  • पुरातात्त्विक स्थलों के 300 मीटर के दायरे में निर्माण और खनन सहित विभिन्न गतिविधियाँ कानून के तहत प्रतिबंधित हैं।
  • समिति ने कहा कि इसके कारण सार्वजनिक स्तर पर आलोचना होती है और असुविधा की स्थिति पैदा होती है क्योंकि कुछ मामलों में एक पूरा गाँव इस दायरे में आता है। समिति ने सुझाव दिया कि इन प्रतिबंधों को तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये।

विशिष्ट पर्यटन और संभावित पर्यटन स्थलों के विकास पर स्थायी समिति की रिपोर्ट

  • विशिष्ट पर्यटन समान रुचियों वाले लोगों के छोटे समूहों की ज़रूरतों को पूरा करता है। इसमें ग्रामीण पर्यटन, साहसिक पर्यटन, इको-पर्यटन और चिकित्सा पर्यटन शामिल हैं।
  • ग्रामीण पर्यटन: 
    • समिति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन द्वारा तैयार सर्वोत्तम पर्यटन गाँवों की सूची में कोई भी भारतीय गाँव शामिल नहीं है। 
    • उसने कहा कि ग्रामीण पर्यटन में ग्रामीणों के लिये रोज़गार और आय बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं। 
    • उसने सुझाव दिया कि ग्रामीण पर्यटन संबंधी वेबसाइट को ग्रामीण होमस्टे, यात्रा कनेक्टिविटी और गाँवों में पर्यटन स्थलों का विवरण प्रदान करना चाहिये।
  • साहसिक पर्यटन: 
    • समिति ने कहा कि साहसिक खेलों में दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। 
    • उसने बिना लाइसेंस वाले साहसिक टूर ऑपरेटरों की उपस्थिति का भी उल्लेख किया। 
    • समिति ने कहा कि पर्यटन मंत्रालय को एक कानून बनाना चाहिये ताकि केवल लाइसेंस प्राप्त ऑपरेटर ही साहसिक पर्यटन सेवाएँ प्रदान करें।
  • चिकित्सा पर्यटन: 
    • समिति ने कहा कि चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र में नियमों की कमी है, इसलिये सेवाओं की गुणवत्ता की निगरानी नहीं हो पाती। 
    • उसने सभी चिकित्सा पर्यटन सुविधा प्रदाताओं को अनिवार्य रूप से सरकार के साथ पंजीकरण करने का सुझाव दिया। 
    • उसने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह अस्पतालों को संयुक्त आयोग की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता  प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करे क्योंकि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
  • स्वदेश दर्शन योजना: 
    • योजना के तहत 15 विषयगत सर्किटों की पहचान की गई है। 
    • पर्यटन अवसंरचना के विकास के लिये 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 76 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं। समिति ने कहा कि मंदिर या वन अधिकारियों से मंज़ूरी मिलने में देरी के कारण कई परियोजनाओं को शुरू करने में देरी हो रही है। 
    • इसने परियोजनाओं की वास्तविक समय (रियल टाइम) की निगरानी का सुझाव दिया।

  ऊर्जा  

ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु रूपरेखा जारी 

  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50% संचयी स्थापित क्षमता प्राप्त करना है। इस पैमाने पर अक्षय ऊर्जा क्षमता के एकीकरण के लिये ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ महत्त्वपूर्ण होंगी। 
  • फ्रेमवर्क में निम्नलिखित प्रमुख उपायों का सुझाव दिया गया है:
    • नियामक उपाय: 
      • ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की वित्तीय और वाणिज्यिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये कुछ नियामक उपाय प्रस्तावित किये गए हैं। 
    • इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को प्रोत्साहित करने के लिये बिजली खरीद दिशा-निर्देश तैयार करना, 
      • कार्बन क्रेडिट के साथ ऊर्जा भंडारण प्रणाली प्रदान करना जहाँ वे चार्जिंग के लिये अक्षय ऊर्जा का उपयोग करते हैं। 
      • 5 मेगावाट से अधिक की नई अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता के कम-से-कम 5% के लिये ऊर्जा भंडारण प्रणाली स्थापित करनी होगी।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: 
    • बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिये पूंजीगत लागत का 40% तक वायबिलिटी गैप फंडिंग प्रदान किया जाना चाहिये (बशर्ते कि परियोजना 18-24 महीनों के भीतर चालू हो)। 
    • ऊर्जा भंडारण प्रणालियों और सहायक घटकों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये PLI योजना तैयार की जानी चाहिये। 
  • टेक्नोलॉजी-एगनॉस्टिक नीलामी: 
    • परियोजनाओं के लिये प्रतिस्पर्द्धी बोली दिशा-निर्देशों में कुछ प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिये।
  • पुनर्चक्रण और स्थिरता: 
    • सभी नीलामी दस्तावेज़ों में एंड-टू-लाइफ प्रबंधन योजना लागू नहीं होनी चाहिये। इन योजनाओं को पुरानी बैटरियों को दोबारा इस्तेमाल करने (रीपर्पज़िग या रीयूज़िग) के लिये प्रोत्साहित किया जाना  चाहिये।

कैप्टिव बिजली उत्पादकों और उपयोगकर्त्ता संबंधी नियमों में संशोधन

  • कैप्टिव उत्पादन संयंत्र एक ऐसा बिजली संयंत्र होता है जो खुद के उपयोग के लिये स्थापित किया जाता है। संशोधनों में कुछ कैप्टिव उत्पादन संयंत्रों के सत्यापन के लिये कहा गया है और कैप्टिव उपयोगकर्त्ताओं की परिभाषा में बदलाव किया गया है। संशोधित नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • कैप्टिव उपयोगकर्त्ताओं की परिभाषा में बदलाव: 
    • संशोधन कैप्टिव उपयोगकर्त्ता मानी जाने वाली संस्थाओं के दायरे को विस्तृत करते हैं। पहले, नियमों में निर्दिष्ट किया गया था कि संबद्ध कंपनियों (जिसमें कैप्टिव उपयोगकर्त्ता के पास कम-से-कम 51% स्वामित्व था) को कैप्टिव उपयोगकर्त्ता माना जाएगा।
    • संशोधित नियमों में संबद्ध कंपनी शब्द को होल्डिंग कंपनी से बदल दिया गया है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 में परिभाषित किया गया है।
  • कुछ कैप्टिव उत्पादक संयंत्रों का सत्यापन: 
    • संशोधन में यह कहा गया है कि कुछ उत्पादन संयंत्रों की कैप्टिव स्थिति को केंद्रीय बिजली प्राधिकरण द्वारा सत्यापित किया जाएगा।
    • यह केवल उन उत्पादन संयंत्रों पर लागू होता है जिनमें कैप्टिव उपयोगकर्त्ता और उसके कैप्टिव उत्पादन संयंत्र एक से अधिक राज्यों में स्थित हैं।

  खनन  

खनन लीज़ और कंपोज़िट लाइसेंस की नीलामी के नियमों में संशोधन

  • खान मंत्रालय ने खनिज (नीलामी) नियम, 2015 में संशोधन अधिसूचित किये हैं। नियम खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत तैयार किये गए हैं। 
  • यह अधिनियम भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है। वर्ष 2015 के नियम खानों की नीलामी आयोजित करने की प्रक्रिया निर्धारित करते हैं। 

संशोधित नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के लिये रियायतें:
    • संशोधित नियम महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के लिये रियायतों के संबंध में राज्य सरकार हेतु कुछ शर्तें प्रस्तुत करते हैं। ये खनिज अधिनियम की पहली अनुसूची में निर्दिष्ट हैं और इसमें लिथियम युक्त खनिज और ग्रेफाइट शामिल हैं। 
  • भूमि का वर्गीकरण: 
    • वर्ष 2015 के नियमों के तहत राज्य सरकार स्थापित खनिज सामग्री वाले क्षेत्र में खनन लीज़ देने के लिये नीलामी करा सकती है।  
    • नीलामी से पहले राज्य सरकार को सर्वेक्षण उपकरणों का उपयोग करके क्षेत्र की पहचान और उसे चिह्नित करना होगा। क्षेत्र को इस प्रकार वर्गीकृत किया जाना चाहिये:
      • वन भूमि।
      • राज्य सरकार के स्वामित्व वाली भूमि।
      • ऐसी भूमि जो राज्य सरकार के स्वामित्व वाली नहीं है। 
      • संशोधित नियमों में प्रावधान है कि इस उद्देश्य के लिये राज्य सरकारें निम्नलिखित में उपलब्ध भूमि विवरण का उपयोग कर सकती हैं:
      • प्रधानमंत्री गतिशक्ति पोर्टल।
      • राज्य सरकार का भूमि रिकॉर्ड पोर्टल।
      • किसी अन्य सरकारी प्राधिकरण का रिकॉर्ड।

पर्यावरण

विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व नियम अधिसूचित

  • नियम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत बनाए गए हैं। ये नियम खतरनाक अपशिष्ट उत्पादन को कम करने और पुनर्चक्रण के उपाय करने के लिये बनाए गए थे। 
  • प्रयुक्त तेल के प्रबंधन के लिये संशोधन को विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी (EPR) को जोड़ा गया है, जिसके लिये उत्पादकों को ऐसे प्रयुक्त तेल की रीसाइकिलिंग करनी होगी। 
    • प्रयुक्त तेल का तात्पर्य कच्चे तेल या सिंथेटिक तेल युक्त मिश्रण से प्राप्त तेल और रीप्रोसेसिंग के लिये उपयुक्त तेल से है। 
    • EPR उन उत्पादकों पर लागू होता है जो बेस ऑयल/लुब्रिकेशन ऑयल का निर्माण करते और/या उसे बेचते हैं। 

संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रयुक्त तेल का प्रबंधन: 
    • संशोधित नियमों के अनुसार, प्रयुक्त तेल का प्रबंधन निम्नलिखित के माध्यम से किया जाएगा:
      • री-रिफाइंड बेस ऑयल/लुब्रिकेशन ऑयल का उत्पादन 
      • ऊर्जा रिकवरी यानी प्रयुक्त तेल को ईंधन के रूप में उपयोग करना। 
  • EPR लक्ष्य: 
    • अब यह निर्माता की ज़िम्मेदारी है कि वह प्रयुक्त तेल का पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से प्रयुक्त  तेल को पुनर्चक्रण करे।
    • नियम इन दायित्वों को पूरा करने के लिये बेस ऑयल/लुब्रिकेशन ऑयल की वार्षिक बिक्री/आयात के आधार पर लक्ष्य निर्दिष्ट करते हैं। 
    • लक्ष्य पूरा करने के लिये निर्माता डीलर जैसे तीसरे पक्ष के संगठनों की मदद ले सकते हैं। केवल री-रिफाइनिंग के लिये प्रयुक्त तेल के आयात की अनुमति है। 
  • निर्माता उत्तरदायित्व प्रमाणपत्र: 
    • निर्माता प्रयुक्त तेल के पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं से प्रमाणपत्र खरीदकर अपने EPR को पूरा कर सकते हैं। 
      • पुनर्चक्रण का तात्पर्य प्रयुक्त तेल को पुनः परिष्कृत करना या प्रयुक्त तेल से ऊर्जा पुनर्प्राप्ति करना है। निर्माता की वर्तमान और पिछले वर्षों की देनदारी के आधार पर भी प्रमाणपत्र खरीदे जा सकते हैं।
  • पंजीकरण: 
  • अनुपालन  सुनिश्चित करना: दायित्वों को पूरा न करने की स्थिति में CPCB द्वारा पर्यावरणीय मुआवज़ा लगाया जा सकता है। 
  • झूठी जानकारी प्रस्तुत करने के लिये संस्थाओं पर मुकदमा चलाया जा सकता है। नियम कार्यान्वयन की निगरानी हेतु CPCB अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक संचालन समिति स्थापित करने का प्रावधान करते हैं।

  शिक्षा  

उच्च शिक्षा में NEP के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 भारत की शिक्षा प्रणाली की संरचना और उद्देश्यों में संशोधन की रूपरेखा तैयार करती है। इनमें स्कूल प्रणाली के लिये पाँच-चरणीय डिज़ाइन शुरू करना और बहु-विषयक शिक्षा को प्रोत्साहित करना शामिल है।

समिति के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अंतर्विषयक और व्यक्तिगत शिक्षण: 
    • इसमें जम्मू विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किये गए 'डिज़ाइन योर डिग्री' प्रोग्राम का उल्लेख किया गया है, जो NEP में उल्लिखित च्वाइस-बेस्ड क्रेडिट सिस्टम पर आधारित है। 
    • प्रोग्राम विद्यार्थियों को अंतर्विषयक और व्यक्तिगत शिक्षण का विकल्प प्रदान करता है। समिति ने इस प्रोग्राम को अन्य संस्थानों में शुरू करने का सुझाव दिया।
  • डिजिटल लाइब्रेरी: 
    • समिति ने कहा कि डिजिटल लाइब्रेरी विद्यार्थियों और शिक्षकों को सीखने हेतु संसाधनों की एक विस्तृत शृंखला तक सुविधाजनक पहुँच प्रदान कर सकती है।
    • इसने उच्च शिक्षा विभाग को बेहतर पहुँच और सीखने के परिणामों के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने का सुझाव दिया।
  • हाशिये पर रहने वाले विद्यार्थी: 
    • समिति ने वर्ष 2016-17 से वर्ष 2020-21 के बीच SC और ST समुदायों के विद्यार्थियों के सकल नामांकन अनुपात (GER) और समग्र GER के बीच अंतर पर ध्यान दिया। 
    • समिति ने इन समुदायों के विद्यार्थियों के लिये उच्च शिक्षा पहुँच को और बेहतर बनाने के लिये विशिष्ट उपायों का सुझाव दिया। 

इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • लक्षित जागरूकता अभियान चलाना।
  • दूरदराज़ के क्षेत्रों और शहरी स्लम्स बस्तियों में बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
  • हाशिये पर रहने वाले समुदायों के बीच काम करने वाले शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • हाशिये पर रहने वाले समुदायों की आवश्यकताओं के अनुरूप छात्रवृत्ति प्रदान करना। 
  • इसने शिक्षकों के लिये एक पारदर्शी और कुशल भर्ती प्रक्रिया स्थापित करने का भी सुझाव दिया जो विविधता को प्राथमिकता देती है।

  श्रम एवं रोज़गार  

स्थायी समिति ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम पर रिपोर्ट प्रस्तुत की

  • 'कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 नियोक्ताओं को यह आदेश देता है कि वह बीमित व्यक्तियों की चिकित्सा देखभाल में योगदान करे। 
  • यह कानून न्यूनतम 10 व्यक्तियों को रोज़गार देने वाले कारखानों पर लागू होता है। केंद्र और राज्य सरकारें दुकानों, होटलों, सिनेमाघरों, न्यूज़पेपर इस्टैबलिशमेंट्स और पोर्ट ट्रस्ट्स को भी उसके दायरे में शामिल करता है। 
  • यह कानून कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) और कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI योजना) की स्थापना करता है। 

प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ESI योजना के तहत कवरेज हेतु वेतन सीमा में संशोधन: 
    • समिति ने कहा कि अंशदान का भुगतान करने से छूट वाली वेतन सीमा पिछले सात वर्षों से अपरिवर्तनीय बनी हुई है, इसके बावजूद कि समय के साथ वेतन में बढ़ोतरी हुई है। 
    • वर्तमान में 176 रुपए प्रतिदिन की वेतन सीमा पर छूट लागू है, जो काफी कम है। 
    • समिति ने सुझाव दिया कि श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को कवरेज, अंशदान और वेतन की पात्रता से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करना चाहिये। 
  • योजना के कवरेज का विस्तार: 
    • ESI अधिनियम, 1948 को सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में शामिल किया गया है। समिति ने कहा कि संहिता के कार्यान्वयन के साथ ESI के कवरेज में निम्नलिखित शामिल होंगे:
      • 10 से कम व्यक्तियों वाले प्रतिष्ठानों का स्वैच्छिक कवरेज।
      • खतरनाक व्यवसाय में लगे प्रतिष्ठानों के लिये अनिवार्य कवरेज।
      • असंगठित श्रमिकों, गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिये विशेष योजनाएँ बनाने हेतु प्रावधान। 
      • समिति ने कहा कि मंत्रालय और ESI कवेरज बढ़ाने के लिये तत्पर नहीं हैं। 
      •  बीमा के पात्र व्यक्तियों की पहचान करने के लिये व्यापक सर्वेक्षण, डेटा कलेक्शन और आधार नामांकन का उपयोग किया जाए ताकि संहिता को सुचारु रूप से लागू किया जा सके।
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