-
02 Aug 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
भारत में संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया तीन स्तंभों- संविधान का अनुच्छेद 326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 पर आधारित है। व्याख्या कीजिये । (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• देश में चुनावी प्रक्रिया के बारे में उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
• अनुच्छेद 326 के संवैधानिक प्रावधानों और इसके महत्व का उल्लेख कीजिये।
• जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
• उनके प्रभावों की चर्चा करते हुए आगे की राह बताइए।
परिचय :
- निर्वाचन आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का प्रहरी है और संविधान का अनुच्छेद 324 इसकी स्थापना का प्रावधान करता है।
- चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता का राजनीतिक प्रणाली के स्वस्थ कामकाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव का आयोजन लोकतंत्र का अनिवार्य सिद्धांत है। लेकिन समस्या यह है कि इन चुनावों को किस प्रकार स्वतंत्र, निष्पक्ष और तटस्थ तरीके से आयोजित किया जाए ? इसलिए, संविधान निर्माताओं ने संविधान में भाग XV (Art.324-329) को शामिल किया और चुनावी प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये कानून बनाने हेतु संसद को अधिकार दिया।
संविधान का अनुच्छेद 326
- यह प्रावधान करता है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव वयस्क मताधिकार (18 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को मतदान का अधिकार) के आधार पर आयोजित किए जाने चाहिये।
- संविधान का यह अनुच्छेद मतदाताओं के बीच धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के समानता सुनिश्चित करता है। यह जनता के प्रति संवैधानिक निर्माताओं द्वारा जताए गए विश्वास की भी याद दिलाता है।
- निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को उनके चुनावी वादों को पूरा करने हेतु चेतावनी देते हुए कह चूका है, "यदि वयस्क मताधिकार विफल होगा, तो हिंसा का होना निश्चित है और कोई भी इसे रोक नहीं पाएगा।" निर्वाचन आयोग का यह कथन चुनावी प्रक्रिया में अनुच्छेद 326 के महत्त्व को रेखांकित करता है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रमुख प्रावधान
- यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में सीटों के आवंटन का प्रावधान करता है।
- यह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिये प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है।
- यह मतदाताओं की योग्यता को निर्धारित करता है।
- यह मतदाता सूची तैयार करने और खाली सीटें भरने के तरीके के लिये प्रक्रियाओं का निर्धारण करता है।
महत्त्व
- यह अधिनियम प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिये प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान करता है जिससे निर्वाचक और प्रतिनिधि के बीच प्रत्यक्ष संपर्क सुनिश्चित होता है तथा इससे निर्वाचन प्रक्रिया को अधिक सहभागी बनाने में भी मदद मिलती है।
- यह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान करता है, जो निर्वाचन प्रक्रिया को अधिक जीवंत बनाने के लिये बढ़ती आबादी की बदलती गतिशीलता के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों का समायोजन करता है ।
- यह अधिनियम लोकसभा में सभी राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान कर देश की संघीय राजव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है ।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रमुख प्रावधान
- चुनावों के आयोजन को विनियमित करना
- सदन की सदस्यता हेतु योग्यताओं और निर्योग्यताओं को विनिर्दिष्ट करना
- भ्रष्ट प्रथाओं और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाना
- निर्वाचन संबंधी आशंकाओं और विवादों के समाधान के लिये प्रक्रियाओं का निर्धारण करना
महत्व
- यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारु संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रतिनिधि निकायों में प्रवेश को प्रतिबंधित कर भारतीय राजनीति को अपराध-मुक्त (Decriminalize ) बनाता है ।
- प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी परिसंपत्तियों और देनदारियों को घोषित करने और चुनाव खर्च का ब्यौरा सार्वजनिक करने को अनिवार्य बनाता है। यह प्रावधान सार्वजनिक निधि के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ के लिये शक्ति के दुरुपयोग के संबंध में उम्मीदवारों की जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है ।
- यह बूथ कैप्चरिंग, घूसखोरी या शत्रुता को बढ़ावा देने जैसी भ्रष्ट प्रथाओं को प्रतिबंधित कर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के आयोजन को सुनिश्चित करता है, जो किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिये अनिवार्य शर्त है ।
- इस अधिनियम के अनुसार, केवल वही राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के हक़दार हैं जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं। यह प्रावधान राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को ट्रैक करने और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु एक तंत्र प्रदान करता है।
संविधान का अनुच्छेद 326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 किसी भी चुनावी प्रक्रिया को कुशल और जवाबदेह बनाने के लिये आवश्यक लगभग सभी अनिवार्य प्रावधानों को कवर करता है। इस प्रकार ये तीनों स्तंभ संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और समावेशी बनाकर सहभागी लोकतंत्र के लिये मार्ग प्रशस्त करते हैं।