विविध
नवंबर 2023
- 06 Jan 2024
- 52 min read
PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:
- गृह मामले
- तीन आपराधिक कानूनों को बदलने की मांग
- मॉडल कारागार और सुधार सेवा अधिनियम, 2023
- वित्त
- 16वाँ वित्त आयोग
- सूचना प्रौद्योगिकी प्रशासन और जोखिमों पर दिशा-निर्देश
- सूचकांक प्रदाताओं और सामाजिक स्टॉक एक्सचेंजों हेतु ढाँचे में बदलाव
- खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण
- मुफ्त खाद्यान्न योजना
- मीडिया और प्रसारण
- डिजिटल विज्ञापन नीति, 2023
- शिक्षा
- भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों पर विनियम अधिसूचित
- स्वास्थ्य
- राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक, 2023
- उपभोक्ता मामले
- ई-कॉमर्स में डार्क पैटर्न को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश
- कानून एवं न्याय
- फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों की योजना
- आदिवासी मामले
- प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान
- पर्यावरण
- वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) नियम, 2023
- वन भूमि संबंधी छूट देने हेतु दिशा-निर्देश
- वन भूमि में सर्वेक्षण हेतु शर्तें अधिसूचित
- खनन
- स्टार्टअप और MSME को अनुसंधान एवं विकास में समर्थन पर दिशा-निर्देश
- अन्वेषण लाइसेंस से संबंधित खनन नियमों में संशोधन
गृह मामले
तीन आपराधिक कानूनों को बदलने की मांग
गृह मामलों की स्थायी समिति ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (BSB) पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। विधेयकों को अगस्त 2023 में गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। समिति ने तीन विधेयकों के कुछ प्रावधानों में बदलाव की सिफारिश की है।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023
- BNS द्वारा हटाए गए अपराध:
- BNS व्यभिचार और समलैंगिक यौन गतिविधियों (IPC की धारा 377) से संबंधित अपराधों को हटाती है। समिति ने कहा कि वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यभिचार से संबंधित धारा को रद्द कर दिया था।
- भारतीय समाज में विवाह की पवित्रता को मान्यता देते हुए समिति ने सुझाव दिया कि व्यभिचार की धारा को बरकरार रखा जाए और उसे सभी जेंडर्स पर लागू किया जाए।
- समिति ने यह सुनिश्चित करने के लिये धारा 377 को बरकरार रखने का सुझाव दिया कि पुरुषों, ट्रांसजेंडरों के खिलाफ गैर-सहमति वाले यौन अपराधों और पशुओं के साथ बनाए गए यौन संबंधों में दंडित किया जा सके।
- BNS द्वारा हटाए गए अपराध:
- मानसिक बीमारी:
- IPC के तहत विकृत दिमाग वाले व्यक्ति द्वारा किये गए कृत्य को अपराध नहीं माना जा सकता। BNS इस प्रावधान को बरकरार रखती है, लेकिन ‘अनसाउंड माइंड’ के स्थान पर ‘मेंटल इलनेस’ का प्रयोग करती है।
- समिति ने कहा कि ‘मेंटल इलनेस’ यानी मानसिक बीमारी की परिभाषा ‘अनसाउंड माइंड’ यानी विकृत दिमाग की तुलना में व्यापक है, क्योंकि इसमें मूड स्विंग्स या इच्छा से नशा जैसी स्थितियाँ भी शामिल हैं।
- संगठित अपराध:
- BNS संगठित अपराध को तीन या अधिक व्यक्तियों द्वारा अकेले या संयुक्त रूप में एक अपराध सिंडिकेट के सदस्यों के तौर पर या उसकी ओर से की जाने वाली निरंतर गैरकानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित करती है।
- समिति की राय थी कि अपराध करने और अपराध का प्रयास करने में कोई अंतर नहीं किया गया है।
- उसने स्पष्टता के लिये दोनों को अलग करने का सुझाव दिया। इसके अलावा उसने कहा कि इसका दायरा बढ़ाने हेतु 'तीन या अधिक व्यक्तियों के समूह' के स्थान पर 'दो या अधिक व्यक्तियों' का प्रयोग किया जाए।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
- संज्ञेय मामलों की जाँच करने की शक्ति:
- BNS के तहत पुलिस स्टेशन का कोई भी प्रभारी अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी संज्ञेय मामले की जाँच कर सकता है।
- हालाँकि गंभीर अपराधों के लिये पुलिस अधीक्षक (SP) या पुलिस उपाधीक्षक को अपराध की जाँच करने की आवश्यकता हो सकती है।
- यह मानते हुए कि SP ज़िले का प्रभारी होता है और उसकी पर्यवेक्षी भूमिका है, समिति ने सुझाव दिया कि अधीनस्थ अधिकारियों को ऐसी जाँच संभालनी चाहिये।
- BNS के तहत पुलिस स्टेशन का कोई भी प्रभारी अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी संज्ञेय मामले की जाँच कर सकता है।
- विचाराधीन कैदी:
- CrPC के तहत अगर किसी विचाराधीन कैदी ने किसी अपराध के लिये कारावास की अधिकतम अवधि का आधा हिस्सा हिरासत में बिताया है तो उसे उसके निजी बांड पर रिहा किया जाना चाहिये। यह उन अपराधों पर लागू नहीं होता, जिनमें मौत की सज़ा हो सकती है।
- BNSS के अनुसार, यह प्रावधान इन पर भी लागू नहीं होगा:
- ऐसे अपराध जिनमें आजीवन कारावास की सज़ा मिली है
- ऐसे व्यक्ति जिन पर एक से अधिक अपराधों के लिये कार्यवाही लंबित है।
- समिति ने सुझाव दिया कि उन विचाराधीन कैदियों को ज़मानत दी जानी चाहिये जिन्होंने खुद पर लगाए गए सबसे गंभीर अपराध के लिये अधिकतम सज़ा काट ली है। हालाँकि अगर कई अपराधों हेतु लगातार सज़ा दी गई है तो यह प्रावधान लागू नहीं होगा।
- पुलिस हिरासत:
- CrPC के तहत एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी आरोपी व्यक्ति को 15 दिनों तक हिरासत में रखने के लिये अधिकृत कर सकता है। BNSS के अनुसार, 15 दिन की हिरासत को शुरुआती 40, 60 या 90 दिनों के दौरान भागों में रखा जा सकता है।
- समिति ने कहा कि अधिकारी इस धारा का दुरुपयोग कर सकते हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पहले 15 दिनों में हिरासत में क्यों नहीं लिया गया। समिति ने उचित संशोधन के साथ खंड को स्पष्ट करने का सुझाव दिया।
भारतीय साक्ष्य बिल, 2023
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के साथ छेड़छाड़:
- IEA के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सहायक साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हैं। BSB के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को मुख्य सबूत के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मुख्य साक्ष्य में मूल दस्तावेज़ और उसके हिस्से शामिल होते हैं। सहायक साक्ष्य में ऐसे दस्तावेज़ शामिल होते हैं जो मूल दस्तावेज़ के कॉन्टेंट को साबित कर सकते हैं।
- समिति ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता एवं अखंडता की रक्षा करना ज़रूरी है क्योंकि उनमें छेड़छाड़ की आशंका होती है। समिति ने सुझाव दिया कि इसमें एक प्रावधान जोड़ा जाए और इस प्रावधान के तहत यह अनिवार्य किया जाए कि जाँच के दौरान सबूत के रूप में जमा किये गए सभी इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को उचित तरीके से चेन ऑफ कस्टडी के माध्यम से सुरक्षित रूप से हैंडिल तथा प्रोसेस किया जाएगा। समिति ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सबूतों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के संबंध में भी इसी तरह के संशोधन का सुझाव दिया है, जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 का स्थान लेगी।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता: IEA के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को एक प्रमाणपत्र द्वारा प्रामाणित किया जाना चाहिये। समिति ने कहा कि BSB निर्दिष्ट करता है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना चाहिये, जिसके लिये प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी।
- हालाँकि यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता पर IEA के धारा को भी बरकरार रखता है, जिसके लिये प्रमाणपत्र के माध्यम से प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है। समिति ने वर्तमान प्रमाणपत्र प्रमाणीकरण के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता साबित करने का सुझाव दिया।
मॉडल कारागार और सुधार सेवा अधिनियम, 2023
गृह मंत्रालय ने मॉडल कारागार और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 को अपनायाऔर इसे राज्य सरकारों के लिये जारी किया। 2023 मॉडल कानून का उद्देश्य जेलों के प्रशासन और प्रबंधन को आधुनिक बनाना और इसे जेल सुधारों के साथ जोड़ना है। इसमें जेलों तथा कैदियों के संगठन, उनके वर्गीकरण, प्रबंधन, प्रशासन एवं कल्याण को शामिल किया गया है। मॉडल अधिनियम की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कैदियों का वर्गीकरण:
- मॉडल एक्ट कैदियों के वर्गीकरण और सुरक्षा मूल्यांकन के लिये एक समिति का गठन करता है। कैदियों को व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- दीवानी
- आपराधिक
- दोषी
- विचाराधीन कैदी
- इन श्रेणियों के भीतर, कैदियों को उप-श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है और अलग से रखा जा सकता है। उप-श्रेणियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- नशीली दवाओं के आदी
- पहली बार के अपराधी
- विदेशी कैदी
- मानसिक बीमारी से पीड़ित कैदी
- मौत की सज़ा पाए कैदी
- जेलों में पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये अलग-अलग अनुभाग भी हो सकते हैं।
- मॉडल एक्ट कैदियों के वर्गीकरण और सुरक्षा मूल्यांकन के लिये एक समिति का गठन करता है। कैदियों को व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति:
- मॉडल अधिनियम के तहत प्रत्येक ज़िले में एक विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति की स्थापना की आवश्यकता है। समिति की अध्यक्षता ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश करेगा।
- वह समय-समय पर बैठक कर ज़िले की सभी जेलों में ज़मानत के पात्र कैदियों के मामलों की समीक्षा करेगी। वह प्रत्येक मामले से संबंधित आवश्यक सुझाव देगी।
- विशेष निगरानी उपाय:
- संगठित अपराध और गिरोहों की गतिविधियों को रोकने के लिये जेल और सुधार संस्थान कैदियों को लेकर विशेष निगरानी उपाय सुनिश्चित करेंगे।
- इन जेल और सुधार सेवाओं के तहत कैदियों से खुफिया जानकारी इकट्ठा की जा सकती है और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश पुलिस विभाग की खुफिया विंग के समन्वय से उनकी निगरानी कर सकती हैं।
- राज्य/केंद्रशासित प्रदेश जेलों के प्रभावी ढंग से प्रबंधन, सुरक्षा और पर्यवेक्षण के लिये उपयुक्त तकनीक (CCTV सिस्टम एवं बायोमेट्रिक्स सहित) का इस्तेमाल भी सुनिश्चित करेगा।
- स्वास्थ्य देखभाल:
- सभी कैदियों को निर्धारित पर्याप्त और लिंग-उत्तरदायी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त होगी।
- सरकार मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड की अनुमति से मानसिक बीमारी से पीड़ित किसी भी कैदी को हिरासत के स्थान से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के किसी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में स्थानांतरित कर सकती है।
वित्त
16वाँ वित्त आयोग
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16वें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की शर्तों को मंज़ूरी दे दी है।
- संदर्भ की शर्तों के लिये आयोग को निम्नलिखित मामलों पर सुझाव देना होता है:
- केंद्र सरकार और राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय का वितरण,
- राज्यों के बीच इस आय का आवंटन,
- शासित होने वाले सिद्धांत और राज्यों को अनुदान सहायता के रूप में भुगतान की गई राशि,
- स्थानीय सरकारों के संसाधनों की पूर्ति के लिये राज्य के राजस्व को बढ़ाने हेतु आवश्यक उपाय।
- इसके अतिरिक्त वह आपदा प्रबंधन पहल के वित्तपोषण की व्यवस्था की समीक्षा कर सकता है।
- सुझाव 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होकर पाँच वर्ष की अवधि के लिये लागू होंगे। आयोग 31 अक्तूबर, 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
सूचना प्रौद्योगिकी प्रशासन और जोखिमों पर दिशा-निर्देश
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने RBI (सूचना प्रौद्योगिकी प्रशासन, जोखिम, नियंत्रण और आश्वासन प्रथाएँ) दिशा-निर्देश, 2023 जारी किये हैं।
प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- निर्देश IT प्रशासन, जोखिम, नियंत्रण और व्यवसाय निरंतरता/आपदा पुनर्प्राप्ति प्रबंधन के लिये रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- ये निर्देश बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, क्रेडिट सूचना कंपनियों, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और राष्ट्रीय वित्तपोषण अवसंरचना एवं विकास बैंक जैसी संस्थाओं पर लागू होंगे। विनियमित संस्थाओं को IT विशेषज्ञता वाले स्वतंत्र निदेशक की अध्यक्षता में एक बोर्ड-स्तरीय IT रणनीति समिति (IT Strategy Committee- ITSC) स्थापित करनी होगी।
- साइबर/सूचना सुरक्षा के प्रबंधन के लिये एक सूचना सुरक्षा समिति (ISC) का गठन किया जाना चाहिये। व्यवसाय निरंतरता योजना और आपदा पुनर्प्राप्ति नीति को विघटनकारी घटनाओं की संभावना के साथ-साथ प्रभाव को कम करने हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
सूचकांक प्रदाताओं और सामाजिक स्टॉक एक्सचेंजों हेतु ढाँचे में बदलाव
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपनी बोर्ड बैठक में कुछ फैसले लिये।
प्रमुख निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सोशल स्टॉक एक्सचेंज:
- सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) गैर-लाभकारी और लाभकारी सामाजिक उद्यमों को धन जुटाने की अनुमति देता है। गैर-लाभकारी संगठन, SSE पर शून्य कूपन शून्य प्रिंसिपल (ZCZP) इंस्ट्रूमेंट्स जारी करके धन जुटा सकते हैं।
- ZCZP इंस्ट्रूमेंट में परिपक्वता पर कोई कूपन भुगतान या मूलधन पुनर्भुगतान नहीं होता है। सेबी ने इन इंस्ट्रूमेंट्स के लिये न्यूनतम इश्यू साइज़ को एक करोड़ रुपए से आधा कर 50 लाख रुपए करने का फैसला किया है।
- ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स के सार्वजनिक निर्गम के लिये न्यूनतम आवेदन आकार भी दो लाख रुपए से घटाकर 10,000 रुपए कर दिया जाएगा। संस्थाओं को संबंधित कानून या धारा 8 कंपनी (धर्मार्थ उद्देश्य हेतु कंपनी) के तहत धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत होना चाहिये।
- सेबी ने अधिक गैर-लाभकारी संस्थाओं को SSE पर पंजीकरण के लिये पात्र होने की अनुमति दी है। इनमें शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थान शामिल हैं।
- सूचकांक प्रदाताओं हेतु नियामक ढाँचे का परिचय:
- सेबी ने इंडेक्स प्रोवाइडर्स के लिये एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को मंज़ूरी दी है। एक इंडेक्स प्रतिभूतियों के समूह से बना होता है और उन प्रतिभूतियों के मूल्य में परिवर्तन को मापता है।
- फ्रेमवर्क के तहत महत्त्वपूर्ण सूचकांकों को लाइसेंस देने वाले सूचकांक प्रदाताओं को वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर सेबी द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। अधिसूचित सूचकांक प्रदाताओं को सेबी के साथ पंजीकरण कराना आवश्यक होगा।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण
मुफ्त खाद्यान्न योजना
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ( Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana- PMGKAY) को पाँच वर्ष तक बढ़ाने की मंज़ूरी दी।
प्रमुख विशेषताएँ:
- PMGKAY के तहत लगभग 81 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया जाता है। इनमें चावल, गेहूँ और मोटा अनाज/बाजरा शामिल हैं। योजना की अवधि 1 जनवरी, 2024 से पाँच वर्ष के लिये बढ़ा दी गई है।
- पाँच वर्ष की अवधि में योजना पर केंद्र सरकार का 11.8 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। अप्रैल 2020 से मार्च 2023 के बीच केंद्र सरकार ने PMGKAY के तहत सब्सिडी पर 3.4 लाख करोड़ रुपए खर्च किये।
- PMGKAY को मार्च 2020 में पेश किया गया था, जिसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के लाभार्थियों को उनकी मासिक पात्रता से पाँच किलोग्राम अतिरिक्त खाद्यान्न प्रदान किया जाता है।
- NFSA के तहत लाभार्थियों को सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने जनवरी 2024 तक एक वर्ष के लिये सभी NFSA लाभार्थियों को यह खाद्यान्न मुफ्त प्रदान करने का निर्णय लिया।
मीडिया और प्रसारण
डिजिटल विज्ञापन नीति, 2023
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने डिजिटल विज्ञापन नीति, 2023 जारी की है। यह केंद्रीय संचार ब्यूरो (CBC) को डिजिटल मीडिया पर विज्ञापन अभियान चलाने हेतु रूपरेखा प्रदान करता है। CBC केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, उपक्रमों और स्वायत्त निकायों द्वारा विज्ञापनों के लिये नोडल एजेंसी है।
नीति की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पैनल में शामिल होने हेतु पात्रता: विज्ञापन सेवाएँ प्रदान करने वाली संस्थाओं को CBC के पैनल में शामिल होने के लिये कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा। इनमें कम-से-कम एक वर्ष पुराना होना और निरंतर संचालन में होना (सोशल मीडिया के लिये छह महीने) और वेबसाइट हेतु न्यूनतम यूनीक यूज़र बेस 2.5 लाख प्रति माह और OTT एवं डिजिटल ऑडियो प्लेटफॉर्म के लिये 5 लाख होना शामिल है।
- पैनल में शामिल होने की प्रक्रिया: ऐसी सेवाएँ देने वाली निजी संस्थाओं को नीलामी के माध्यम से तीन वर्ष की अवधि के लिये पैनल में शामिल किया जाएगा। सरकारी संस्थाओं को नीलामी के माध्यम से खोजी गई दर की स्वीकृति के अधीन सीधे सूचीबद्ध किया जा सकता है।
- प्रदर्शन मानदंड: नीति उन प्रदर्शन मेट्रिक्स को भी निर्दिष्ट करती है जिनका उपयोग विज्ञापनों के मूल्यांकन के लिये किया जाएगा। इनमें क्लिक-थ्रू रेट्स, व्यू-थ्रू रेट्स (OTT प्लेटफॉर्मों के लिये) और लिसेन-थ्रू रेट्स शामिल हैं। ये दरें प्रति 1,000 इंप्रेशन पर विज्ञापनों के साथ इंटरैक्शन की संख्या हैं। प्रदर्शन मानदंडों को पूरा न करने पर भुगतान में कमी कर दी जाएगी।
शिक्षा
भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों पर विनियम अधिसूचित
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत में विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023” को अधिसूचित किया। ये नियम उन विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों (HEI) पर लागू होते हैं जो पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये भारत में एक परिसर स्थापित करना चाहते हैं।
विनियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पात्रता: भारत में परिसर स्थापित करने के लिये एक विदेशी HEI का:
- आवेदन के समय शीर्ष 500 वैश्विक रैंकिंग में स्थान होना चाहिये,
- वैश्विक रैंकिंग की विषय-वार श्रेणी में शीर्ष 500 में स्थान होना चाहिये,
- वह किसी विशेष विषय में विशेषज्ञ हो।
- अनुमोदन की प्रक्रिया: भारत में कैंपस शुरू करने के लिये UGC की पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता होगी। इच्छुक संस्थान को आवेदन के साथ निम्नलिखित जानकारी प्रदान करनी होगी:
- भारत में परिसर स्थापित करने के लिये शासी निकाय से अनुमति,
- प्रस्तावित स्थान, ढाँचागत संबंधी सुविधाओं और शुल्क संरचना के बारे में विवरण,
- किसी मान्यता प्राप्त निकाय से नवीनतम मान्यता या गुणवत्ता आश्वासन रिपोर्ट,
- मुख्य परिसर और भारतीय परिसर के बीच शिक्षा की गुणवत्ता और योग्यताओं की स्वीकृति में सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिये दृष्टिकोण।
- UGC प्रत्येक आवेदन का मूल्यांकन करने के लिये एक स्थायी समिति का गठन करेगा।
- समिति आवेदन प्राप्त होने के 60 दिनों के भीतर UGC को सुझाव देगी। सुझाव प्राप्त होने के 60 दिनों के भीतर UGC अपनी मंज़ूरी (शर्तों के साथ या बिना) देगा।
- दाखिला और शुल्क:
- एक विदेशी HEI अपनी फीस संरचना स्वयं तय करेगा, जो पारदर्शी और उचित होनी चाहिये। उन्हें दाखिला शुरू होने से 60 दिन पहले अपना प्रॉस्पेक्टस अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराना होगा। प्रॉस्पेक्टस में शुल्क संरचना, रिफंड नीति, पाठ्यक्रमों में सीटों की संख्या जैसे विवरण शामिल होने चाहिये। विदेशी HEI निम्नलिखित भी प्रस्तुत कर सकते हैं:
- योग्यता-आधारित या आवश्यकता-आधारित छात्रवृत्ति।
- भारतीय विद्यार्थियों को रियायतें।
- संकाय की नियुक्ति:
- एक विदेशी HEI अपने फैकेल्टी और कर्मचारियों के लिये योग्यता, वेतन और सेवा की अन्य शर्तें तय कर सकता है। हालाँकि नियुक्त फैकेल्टी और पाठ्यक्रम की योग्यताएँ मूल देश के मुख्य परिसर के समान होनी चाहिये।
- ऑनलाइन मोड/डिस्टेंस लर्निंग:
- विदेशी HEI ओपन डिस्टेंस लर्निंग मोड के माध्यम से अपने पाठ्यक्रम प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। हालाँकि 10% तक व्याख्यान ऑनलाइन कराए जा सकते हैं।
स्वास्थ्य
राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक, 2023
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिये राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग विधेयक, 2023 का मसौदा जारी किया है। मसौदा विधेयक फार्मेसी शिक्षा को विनियमित और उस तक पहुँच को बेहतर बनाने का प्रयास करता है। यह फार्मेसी अधिनियम, 1948 को निरस्त करने का प्रयास करता है। मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कार्य: राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- फार्मेसी शिक्षा और प्रशिक्षण के प्रशासन के मानकों को विनियमित करना,
- फार्मा संस्थानों और पेशेवरों को विनियमित करना,
- फार्मेसी संस्थानों में दाखिले के लिये एक समान तंत्र प्रदान करना।
- आयोग की देखरेख में इन कार्यों को पूरा करने के लिये तीन बोर्ड स्थापित किये जाएंगे।
- एक सलाहकार परिषद इन मामलों पर आयोग को सलाह भी देगी।
- संरचना:
- आयोग में कुल 28 सदस्य होंगे। चेयरपर्सन फार्मेसी शिक्षाविद् और फार्मेसी के क्षेत्र में कम-से-कम 15 वर्षों के अनुभव वाला एक पंजीकृत फार्मासिस्ट होना चाहिये।
- आयोग के पदेन सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारत का औषधि महानियंत्रक,
- आयोग के तहत तीन बोर्डों के अध्यक्ष,
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक प्रतिनिधि, जो संयुक्त सचिव पद से नीचे का अधिकारी न हो।
- आयोग के अंशकालिक सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राज्य फार्मेसी चैप्टर के छह अध्यक्ष,
- फार्मेसी क्षेत्र के प्रतिष्ठित सदस्य।
- अध्यक्ष और सदस्यों का चयन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक खोज-सह-चयन समिति के सुझावों के आधार पर किया जाएगा।
- बोर्ड:
- आयोग की देख-रेख में तीन बोर्ड गठित किये जाएंगे।
- इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- फार्मेसी की शिक्षा और प्रैक्टिस के मानकों को विनियमित करने के लिये फार्मेसी शिक्षा बोर्ड,
- फार्मेसी संस्थानों का आकलन करने और नए संस्थानों की स्थापना की अनुमति देने के लिये फार्मेसी मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड।
- सभी फार्मेसी पेशेवरों के लिये राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने, पंजीकरण हेतु आवेदनों की समीक्षा करने और फार्मेसी में पेशेवर आचरण को विनियमित करने के लिये फार्मेसी नैतिकता एवं पंजीकरण बोर्ड।
- फार्मेसी परामर्श परिषद:
- परिषद आयोग को फार्मेसी की शिक्षा, सेवाओं, प्रशिक्षण और अनुसंधान तक समान पहुँच बढ़ाने के उपायों पर सलाह देगी।
- यह प्राथमिक मंच भी होगा जिसके माध्यम से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश आयोग के समक्ष अपनी समस्याओं को प्रस्तुत कर सकते हैं। राष्ट्रीय फार्मेसी आयोग का अध्यक्ष परिषद का अध्यक्ष होगा।
उपभोक्ता मामले
ई-कॉमर्स में डार्क पैटर्न को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने डार्क पैटर्न की रोकथाम और विनियमन के लिये दिशा-निर्देश, 2023 को अधिसूचित किया। प्लेटफॉर्म के यूज़र इंटरफेस या यूज़र एक्सपीरियंस (यूआई/यूएक्स) इंटरैक्शन में उन पद्धतियों या भ्रामक डिज़ाइन पैटर्न्स को डार्क पैटर्न कहा जाता है जो अनपेक्षित कार्य करने के लिये यूज़र्स को गुमराह करने या धोखा देने के लिये डिज़ाइन किये जाते हैं। ये पैटर्न उपभोक्ता की स्वायत्तता, निर्णय लेने या पसंद को विकृत करते हैं और भ्रामक विज्ञापन, अनुचित कारोबारी पद्धतियों या उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के समान होते हैं।
दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- डार्क पैटर्न में शामिल होने पर प्रतिबंध:
- दिशा-निर्देश किसी भी डार्क पैटर्न पद्धति में संलग्न होने पर रोक लगाते हैं। ये इन पर लागू होंगे:
- भारत में वस्तु या सेवाएँ प्रदान करने वाले सभी प्लेटफॉर्म,
- विज्ञापनदाता,
- विक्रेता।
- उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 के तहत स्थापित CCPA डार्क पैटर्न की व्याख्या से संबंधित अस्पष्टताओं या विवादों के निपटान के लिये ज़िम्मेदार होगा। अधिनियम के तहत CCPA के निर्देशों का पालन करने में विफलता पर छह महीने तक की कैद, 20 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- डार्क पैटर्न के प्रकार:
- दिशा-निर्देश विभिन्न डार्क पैटर्न को परिभाषित करते हैं। कुछ प्रमुख पैटर्न निम्नलिखित हैं।
- झूठी तात्कालिता:
- किसी उत्पाद/सेवा की अत्यावश्यकता या कमी की स्थिति को गलत तरीके से बताना या लागू करना। उदाहरण के लिये उपयोगकर्त्ताओं के एक सीमित समूह के लिये किसी बिक्री को 'अनन्य' के रूप में गलत तरीके से वर्णित करना।
- शर्मसार करना:
- उपभोक्ता के मन में भय, शर्म, अपराधबोध या उपहास की भावना पैदा करने के लिये किसी वाक्यांश, वीडियो, ऑडियो या किसी अन्य माध्यम का उपयोग करना। उदाहरण के लिये यदि उपयोगकर्त्ता कार्ट में बीमा नहीं जोड़ता है तो उड़ान टिकट बुक करने के लिये एक प्लेटफॉर्म 'मैं असुरक्षित रहूँगा' वाक्यांश का उपयोग करता है।
- पेचीदा सवाल:
- किसी उपयोगकर्त्ता को वांछित कार्रवाई करने से गुमराह करने के लिये जान-बूझकर भ्रमित करने वाली या अस्पष्ट भाषा का उपयोग करना। उदाहरण के लिये किसी अपडेट सेवा को बंद करने के लिये 'हाँ, मैं अपडेट प्राप्त करना चाहूँगा' और 'अभी नहीं' जैसे भ्रमित करने वाले विकल्प प्रदान किये जाते हैं।
कानून एवं न्याय
फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों की योजना
कैबिनेट ने फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) के लिये केंद्र प्रायोजित योजना को मार्च 2026 तक जारी रखने को मंज़ूरी दे दी है। अगले तीन वर्षों में इस योजना का कुल परिव्यय 1,952 करोड़ रुपए होगा, जिसमें केंद्र का हिस्सा 1,207 करोड़ रुपए और राज्य का हिस्सा 745 करोड़ रुपए होगा। केंद्रीय हिस्सेदारी निर्भया फंड से दी जाएगी।
- यौन अपराधों के पीड़ितों को समर्पित कोर्ट मशीनरी देने के लिये FTSC को लागू किया गया था। योजना अक्तूबर 2019 में शुरू हुई और मार्च 2023 तक बढ़ा दी गई। योजना के अपेक्षित परिणामों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- मामलों का बोझ कम होना,
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 के तहत बलात्कार और अपराधों के लंबित मामलों में उल्लेखनीय कमी आना,
- त्वरित सुनवाई के माध्यम से यौन अपराधों के पीड़ितों के लिये त्वरित न्याय तक पहुँच।
आदिवासी मामले
प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान
मंत्रिमंडल ने 24,104 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (PM JANMAN) को मंज़ूरी दी है। इसमें केंद्र का हिस्सा 15,336 करोड़ रुपए होगा, जबकि राज्य का हिस्सा 8,768 करोड़ रुपए होगा।
- पीएम जनमन की मुख्य विशेषताएँ:
- पीएम जनमन का उद्देश्य विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है।
- 2011 की जनगणना के आधार पर भारत में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 10.5 करोड़ है, जिसमें 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 75 समुदायों को PVTG के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- पीएम जनमन का उद्देश्य PVTG के लिये सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, सड़क कनेक्टिविटी और स्थायी आजीविका के अवसर जैसी आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना है।
- पीएम जनमन में 11 महत्त्वपूर्ण पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं
- सड़कों को कनेक्ट करना।
- पक्के घरों का प्रावधान।
- पाइप और सामुदायिक जल आपूर्ति।
- व्यावसायिक शिक्षा।
- छात्रावासों का निर्माण।
पर्यावरण
वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) नियम, 2023
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) नियम, 2023 को अधिसूचित किया है। ये नियम वन (संरक्षण) नियम, 2022 की जगह लेते हैं। नियमों को वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 (यानी वन संरक्षण अधिनियम, 1980) के तहत अधिसूचित किया गया है।
नियमों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
- सैद्धांतिक मंज़ूरी की प्रक्रिया:
- केंद्र सरकार दो चरणों में मंजूज़ूरी प्रदान करेगी:
- सैद्धांतिक मंज़ूरी
- अंतिम मंज़ूरी।
- यह कुछ प्रकार की परियोजनाओं के लिये सैद्धांतिक मंज़ूरी हेतु क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करेगी।
- इनमें शामिल हैं:
- लीनियर परियोजनाएँ,
- कुछ अन्य शर्तों के अधीन 25 मेगावाट क्षमता तक की पनबिजली परियोजनाएँ
- 40 हेक्टेयर तक वन भूमि।
- केंद्र सरकार दो चरणों में मंजूज़ूरी प्रदान करेगी:
- अंतिम मंज़ूरी:
- केंद्र सरकार राज्य सरकार से अनुपालन रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद अंतिम मंज़ूरी प्रदान करेगी।
- रिपोर्ट प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम, 2016 के तहत प्रतिपूरक वनरोपण के लिये प्रतिपूरक लेवी के भुगतान और भूमि प्रदान करना सुनिश्चित करेगी।
- अपराधों के विरुद्ध कार्यवाही:
- न्यायालय में अधिनियम के उल्लंघन की शिकायत दर्ज करने के लिये केंद्र सरकार प्रभागीय वन अधिकारी या राज्य सरकार के उप वन संरक्षक और उससे उच्च स्तर के एक अधिकारी को अधिकृत कर सकती है।
वन भूमि संबंधी छूट देने हेतु दिशा-निर्देश:
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उस भूमि को निर्दिष्ट करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये जिन्हें वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 [यानी वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980] के दायरे से छूट दी जाएगी।
प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सुरक्षा संबंधी छूट:
- एक्ट निर्दिष्ट करता है कि कुछ प्रकार की भूमि को सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर या सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के निर्माण हेतु कानून से छूट दी जा सकती है। दिशा-निर्देश निर्दिष्ट करते हैं कि विशेष रूप से केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित वामपंथी अतिवाद (LWE) प्रभावित ज़िलों के लिये इस छूट पर विचार किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक लीनियर परियोजनाओं के लिये छूट केवल इस प्रकार अधिसूचित क्षेत्रों में ही दी जाती है। केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार/केंद्रशासित प्रदेश के परामर्श से ऐसे क्षेत्रों को रणनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित करेगी।
- वामपंथी अतिवादी क्षेत्रों में परियोजनाओं हेतु छूट:
- अधिनियम वामपंथी अतिवाद प्रभावित क्षेत्रों में सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के निर्माण के लिये निर्दिष्ट वन भूमि को छूट देता है। दिशा-निर्देश सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं को स्कूलों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों जैसी 12 परियोजनाओं तक सीमित करते हैं।
- परियोजना प्रस्तावों की जाँच के लिये शर्तें:
- राज्य सरकार को परियोजना प्रस्तावों की जाँच के लिये निम्नलिखित मानदंडों पर विचार करना चाहिये:
- वन भूमि का उपयोग साइट-विशिष्ट उपयोग हेतु है, न कि कृषि, कार्यालय या आवासीय उद्देश्यों के लिये।
- अन्य सभी विकल्पों पर विचार किया गया है और कोई अन्य विकल्प संभव नहीं है।
- कम-से-कम इतने क्षेत्र की आवश्यकता है।
- वन भूमि को दूसरे उपयोग के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों पर अधिकारियों ने विचार किया है।
- यूज़र एजेंसी ने प्रतिपूरक वनरोपण के लिये भूमि और लागत प्रदान करने का काम किया है।
- राष्ट्रीय वन नीति का अनुपालन।
वन भूमि में सर्वेक्षण हेतु शर्तें अधिसूचित:
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत एक आदेश को अधिसूचित किया।
आदेश की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- गैर-वन उद्देश्यों से सर्वेक्षणों को बाहर करने की शर्तें:
- अधिनियम के तहत गैर-वन उद्देश्य का तात्पर्य पुनर्वनीकरण के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिये वन भूमि के किसी भी हिस्से को तोड़ने या साफ करने से है। आदेश के अनुसार, निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करने वाले पेट्रोलियम खनन सर्वेक्षणों की भूकंपीय, खनन और खोजपूर्ण ड्रिलिंग को गैर-वन उद्देश्यों से बाहर रखा जाएगा।
- सर्वेक्षण के मानदंड:
- सर्वेक्षण गतिविधियाँ अस्थायी रूप से की जानी चाहिये और भूमि उपयोग में स्थायी परिवर्तन निषिद्ध है। सर्वेक्षण पूरा करने के बाद वन भूमि को पुनः प्राप्त किया जाएगा एवं उसे उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाएगा। जंगलों में मशीनरी तथा सामग्री के परिवहन के लिये नई सड़कें बनाना प्रतिबंधित है।
- राष्ट्रीय उद्यानों, बाघ अभयारण्यों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों में खनिज खनन सर्वेक्षण निषिद्ध है। ऐसे क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के सर्वेक्षण के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति या केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
- क्षति के लिये मुआवज़ा:
- सर्वेक्षण से होने वाली क्षति जैसे कि गिरे हुए पेड़ या खोदे गए गड्ढों की भरपाई वनीकरण के माध्यम से की जानी चाहिये। उदाहरण के लिये यूज़र एजेंसियों को खोदे गए प्रत्येक बोर होल के लिये 100 पेड़ और 10 वर्षों तक पौधों की रखरखाव लागत का भुगतान करना होगा।
- यह धनराशि राज्य प्रतिकारात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण को प्रदान की जाएगी।
- सर्वेक्षण पूरा करने की समय-सीमा:
- यूज़र एजेंसियों को दो वर्ष के भीतर सर्वेक्षण शुरू कर उसे पूरा करना होगा। अगर इस अवधि के दौरान कोई कार्य नहीं किया जाता है, तो प्राप्त मंज़ूरी खारिज कर दी जाएगी और वन भूमि का कब्ज़ा स्थानीय वन विभाग द्वारा ले लिया जाएगा।
खनन
स्टार्टअप और MSME को अनुसंधान एवं विकास में समर्थन पर दिशा-निर्देश:
खान मंत्रालय ने 'खनन, खनिज प्रसंस्करण, धातुकर्म और पुनर्चक्रण क्षेत्र में स्टार्टअप एवं MSME में अनुसंधान तथा नवाचार को बढ़ावा' देने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। ये दिशा-निर्देश प्रौद्योगिकी विकास के प्रारंभिक चरणों के लिये खनन और धातु उद्योग में स्टार्टअप एवं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रयोज्यता:
- निर्दिष्ट क्षेत्रों में स्टार्टअप और MSME अनुदान के रूप में दो करोड़ रुपए तक प्राप्त करने के पात्र होंगे। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- दुर्लभ खनिजों की खोज,
- भूमि और गहरे समुद्र में खनिज अन्वेषण के लिये प्रौद्योगिकियाँ,
- सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिये खनन विधियों में सुधार,
- खदान अपशिष्ट और प्लांट टेलिंग से मूल्यवर्द्धित उत्पाद प्राप्त करना,
- पर्यावरणीय स्थिरता और पुनर्नवीनीकरण सामग्रियों का उपयोग।
- अनुसंधान में मदद प्रदान करने के लिये अनुदान उपलब्ध होगा जिसे व्यावहारिक प्रौद्योगिकियों और उत्पादों हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। अनुदान उन परियोजनाओं को प्रदान किया जाएगा जो कम-से-कम फ्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट स्तर तक पहुँच गई हैं।
- अनुदान को अनुसंधान एवं विकास, प्रोटोटाइपिंग, परीक्षण और व्यावसायीकरण पर खर्च किया जा सकता है। निर्दिष्ट क्षेत्रों में स्टार्टअप की मदद करने वाले इन्क्यूबेशन केंद्र 10 करोड़ रुपए तक के अनुदान के लिये पात्र होंगे।
- कार्यान्वयन:
- कार्यान्वयन की निगरानी खान मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा की जाएगी।
- अन्य सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पृथ्वी विज्ञान. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालयों के सचिव,
- भारतीय खान ब्यूरो का महानियंत्रक,
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण का महानिदेशक,
- शिक्षाविदों के प्रतिनिधि।
- लाभार्थियों का चयन और अनुदान जारी करने की सिफारिश के लिये एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में शैक्षणिक संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रतिनिधि और खनन क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे।
अन्वेषण लाइसेंस से संबंधित खनन नियमों में संशोधन:
खान मंत्रालय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत बनाए गए नियमों में संशोधन के मसौदे पर टिप्पणियाँ आमंत्रित कीं। निर्दिष्ट महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के लिये अन्वेषण लाइसेंस शुरू करने हेतु अगस्त 2023 में 1957 के कानून में संशोधन किया गया था। इनमें लिथियम, सोना, चाँदी, निकल और कोबाल्ट शामिल हैं।
- अन्वेषण लाइसेंस निम्नलिखित की अनुमति देता है:
- रीकानसन्स, यानी खनिज संसाधनों को निर्धारित करने के लिये एक प्रारंभिक सर्वेक्षण।
- प्रॉस्पेक्टिंग, जिसमें खनिज भंडार की खोज, पता लगाना या साबित करना शामिल है।
- मसौदा संशोधन की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अन्वेषण के लिये ब्लॉकों की पहचान:
- राज्य सरकार अन्वेषण के लिये ब्लॉकों की पहचान और अनुशंसा करने हेतु एक समिति बनाएगी। राज्य का खनन एवं भूविज्ञान सचिव समिति की अध्यक्षता करेगा। ब्लॉकों को अधिसूचित करने से पहले राज्य सरकार को केंद्र सरकार की मंज़ूरी लेनी होगी।
- नीलामी प्रक्रिया:
- अधिसूचित ब्लॉक के लिये अन्वेषण लाइसेंस प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से प्रदान किया जाएगा। राज्य सरकार एक अधिकतम कीमत निर्दिष्ट करेगी, जो उस ब्लॉक हेतु खनन पट्टे के भावी धारक द्वारा देय नीलामी प्रीमियम में अधिकतम प्रतिशत हिस्सेदारी के संदर्भ में होगी।
- अधिकतम कीमत 25% से कम निर्धारित नहीं की जानी चाहिये। लाइसेंस अधिकतम मूल्य से नीचे उद्धृत न्यूनतम प्रतिशत वाले को प्रदान किया जाएगा।
- लाइसेंसधारी के दायित्व:
- लाइसेंसधारी को लाइसेंस प्राप्त करने के 90 दिनों के भीतर अन्वेषण के लिये एक योजना प्रस्तुत करनी होगी। योजना में यह रेखांकित किया जाना चाहिये कि वे निर्दिष्ट क्षेत्र में अन्वेषण कैसे करना चाहते हैं।
- यदि वे आगे की खोज के लिये कोई क्षेत्र रखते हैं, तो उन्हें तीन वर्ष के बाद एक संशोधित योजना प्रस्तुत करनी होगी। लाइसेंसधारी को अर्द्धवार्षिक प्रगति रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी।
- लाइसेंसधारी को अन्वेषण से संबंधित जानकारी या निष्कर्ष का खुलासा करने से प्रतिबंधित किया जाएगा। नियमों के तहत निर्दिष्ट सरकार और अधिकारियों के अलावा अन्य व्यक्तियों को किसी भी खुलासे के लिये केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।