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सामाजिक न्याय

विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति

  • 13 Dec 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, लोक अदालत, विधि आयोग, NCRB, जेल सुधार।

मेन्स के लिये:

विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति और जेल सुधार।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय राष्ट्रपति ने जेलों में बंद बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया है।

विचाराधीन कैदी

  • विचाराधीन कैदी वह व्यक्ति होता है जिस पर वर्तमान में मुकदमा चल रहा है या जिसे मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए रिमांड पर रखा गया है या एक व्यक्ति जो न्यायालय में विचाराधीन है।
  • विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में 'विचाराधीन कैदी' की परिभाषा में जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में कैद व्यक्ति को भी शामिल किया गया है।

भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति

  • राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (National Crime Report Bureau- NCRB) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में, जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या लगातार बढ़ी है और वर्ष 2021 में चरम पर पहुँच गई है।
  • वर्ष 2020 में देश के सभी जेल कैदियों में से लगभग 76% विचाराधीन थे, जिनमें से लगभग 68% या तो निरक्षर थे या स्कूल छोड़ने वाले थे।
  • दिल्ली एवं जम्मू और कश्मीर में जेलों में विचाराधीन कैदियों का उच्चतम अनुपात 91% पाया गया, इसके बाद बिहार और पंजाब में 85% तथा ओडिशा में 83% था।
  • सभी विचाराधीन कैदियों में से लगभग 27% निरक्षर पाए गए और 41% ने दसवीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ दी थी।

चुनौतियाँ:

  • संसाधनहीन कैदी
    • कई गरीब और संसाधनहीन विचाराधीन कैदी हैं जिन्हें असंगत रूप से गिरफ्तार किया जा रहा है, नियमित रूप से जेलों में न्यायिक हिरासत में भेजा जा रहा है।
    • वे या तो आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण या बाहर सामाजिक कलंक के डर से जमानत लेने और सुरक्षित करने में असमर्थ हैं।
  • जेल में हिंसा और दुर्व्यवहार:
    • जेल अक्सर लोगों के लिये खतरनाक स्थान होते हैं। यहाँ हिंसा भी स्थानिक है और दंगे आम हैं।
    • भारत में आमतौर पर जेल अधिकारियों द्वारा शारीरिक दुर्व्यवहार और न्यायेतर यातनाएँँ देखी जाती हैं।
    • जेल प्राधिकरण के किसी भी आचरण को अपराध नहीं माना जाता है, जिससे प्राधिकरण लापरवाही से कार्य करता है जिसके परिणामस्वरूप कैदियों की मौत हो सकती है।
  • स्वास्थ्य समस्याएँ:
    • अधिकांश जेलों में भीड़भाड़ और कैदियों को सुरक्षित एवं स्वस्थ परिस्थितियों में रखने के लिये पर्याप्त जगह की कमी की समस्या है।
    • अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में लोग एक-दूसरे के साथ तंग हो जाते हैं, संक्रामक और संचारी रोग आसानी से फैल जाते हैं। उदाहरण: तपेदिक (TB) का प्रसार।
  • परिवारों की पीड़ा और सामाजिक कलंक:
    • कई बार कैदी का परिवार गरीबी में मजबूर हो जाता है और बच्चे भटक जाते हैं।
    • परिवार को सामाजिक कलंक और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है, जिससे परिस्थितियाँ परिवार को अपराध और दूसरों द्वारा शोषण की ओर प्रेरित करती हैं।
    • विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अक्सर इस स्थिति का फायदा उठाकर शेष परिवार के सदस्यों का पूरी तरह से शोषण करता है। यह बलात्कार या जबरन वेश्यावृत्ति का रूप ले सकता है।

विचाराधीन कैदियों हेतु संवैधानिक संरक्षण:

  • राज्य का विषय:
    • भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 4 के तहत 'जेल/उसमें हिरासत में लिये गए व्यक्ति' राज्य का विषय है।
    • जेलों का प्रशासन और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
    • हालाँकि गृह मंत्रालय जेलों और कैदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को नियमित मार्गदर्शन तथा सलाह देता है।
  • अनुच्छेद 39A:
    • संविधान का अनुच्छेद 39A राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं द्वारा या किसी अन्य तरीके से निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि अवसरों को सुनिश्चित किया जा सके। आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण कोई भी नागरिक न्याय प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जाए।
    • निःशुल्क कानूनी सहायता या निःशुल्क कानूनी सेवा का अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत आवश्यक मौलिक अधिकार है।
  • अनुच्छेद 21:
    • यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण स्वतंत्रता का आधार है, जिसके अनुसार, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।

जेल सुधार संबंधी सिफारिश:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय समिति ने जेलों में सुधार के लिये निम्नलिखित सिफारिशें की हैं।
  • भीड़-भाड़ संबंधी
    • तीव्र ट्रायल: समिति की सिफारिशों में भीड़भाड़ की अवांछित घटनाओं को कम करने के लिये तीव्र ट्रायल को सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना गया है।
    • वकील व कैदी अनुपात: प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना अनिवार्य है, जबकि वर्तमान में ऐसा नहीं है।
    • विशेष न्यायालय: पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
      • इसके अलावा जिन अभियुक्तों पर छोटे-मोटे अपराधों का आरोप लगाया गया है और जिन्हें ज़मानत दी गई है, लेकिन जो ज़मानत की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, उन्हें व्यक्तिगत पहचान (PR) बाॅॅण्ड पर रिहा किया जाना चाहिये।
    • स्थगन से बचाव: उन मामलों में स्थगन नहीं दिया जाना चाहिये, जहाँ गवाह मौजूद हैं और साथ ही प्ली बारगेनिंग की अवधारणा, जिसमें आरोपी कम सज़ा के बदले अपराध स्वीकार करता है, को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • कैदियों के लिये:
      • उदारता: प्रत्येक नए कैदी को जेल में अपने पहले सप्ताह के दौरान अपने परिवार के सदस्यों को एक दिन निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
      • कानूनी सहायता: कैदियों को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करना और कैदियों को व्यावसायिक कौशल और शिक्षा प्रदान करने हेतु आवश्यक कदम उठाना।
      • ICT का उपयोग: परीक्षण के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग।
      • विकल्प: अपराधियों को जेल भेजने के बजाय अदालतों को उनकी "विवेकाधीन शक्तियों" का उपयोग कर "जुर्माना और चेतावनी" भी दी जा सकती है।
        • इसके अलावा, न्यायालयों को पूर्व-परीक्षण चरण में अथवा परिस्थितियों के अनुरूप अपराधियों को परिवीक्षा (प्रोबेशन) पर रिहा करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • वर्ष 2017 में, भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि जिन विचाराधीन कैदियों ने सात साल तक के कारावास के अपराधों के लिये अपनी अधिकतम सज़ा का एक तिहाई हिस्सा पूरा कर लिया है, उन्हें ज़मानत पर रिहा कर देना चाहिये।

आगे की राह

  • विचाराधीन कैदी कई प्रकार असफलताओं के शिकार होते हैं जिसकी शुरुआत अनुचित अपराधीकरण से शुरू होती हैं, इसके बाद अंधाधुंध गिरफ्तारियाँ, कमज़ोर जमानत संबंधी अधिकार और लोक अदालतों के माध्यम से अपर्याप्त/अस्पष्ट रूप से मामले का निपटान।
  • इस संबंध में एक समग्र विधायी सुधार की आवश्यकता है जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विस्तार करना हो
  • आरोपी विचाराधीन कैदियों के मामले में पुलिस जाँच की समय सीमा के संबंध में CRPC की धारा 167 के प्रावधानों का पुलिस और अदालतों दोनों में सख्ती से पालन किया जाना चाहिये
  • रिमांड की समय सीमा में स्वत: वृद्धि पर नियंत्रण करना होगा जो कि केवल अधिकारियों की सुविधा के लिये दिया जाता है। प्राधिकारियों की सुविधा मात्र हेतु अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक गारंटियों का अधिक्रमण नहीं किया जाना चाहिये।
  • संशोधित वैधानिक प्रावधानों को लागू करके, विचाराधीन कैदियों के अधिकारों के बारे में न्यायिक निर्णयों, गिरफ्तारी और ज़मानत देने और जेल सुधारों पर विभिन्न समितियों की सिफारिशों को लागू करके विचाराधीन कैदियों की संख्या कम करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • दोषियों की तुलना में कैदियों को भोजन, कपड़े, पानी, चिकित्सा सुविधाएँ, स्वच्छता, मनोरंजन और रिश्तेदारों तथा वकीलों के साथ मिलने आदि की बेहतर सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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