जीवंत ग्रामीण भारत की ओर | 21 Jun 2024

यह एडिटोरियल 19/06/2024 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Rural revival- Rise of discretionary spend, a positive for growth” लेख पर आधारित है। इसमें ग्रामीण मांग में वृद्धि पर विचार किया गया है, जैसा कि वर्ष 2022-23 के लिये घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) द्वारा संकेत दिया गया है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष व्यय पैटर्न में महत्त्वपूर्ण बदलाव दर्शाते हैं, जहाँ खाद्य व्यय के हिस्से में कमी आई है जबकि परिवहन और चिकित्सा व्यय जैसे विवेकाधीन व्ययों में वृद्धि हुई है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 40, 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भारतनेट, कॉमन सर्विस सेंटर, ASER रिपोर्ट 2022। 

मेन्स के लिये:

हाल ही में ग्रामीण भारत के विकास के प्रमुख चालक, ग्रामीण भारत से संबंधित वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ।

वर्ष 2022-23 के लिये नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES) के अनुसार भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रगति और आय वृद्धि के आशाजनक संकेत दे रही है। सर्वेक्षण के सबसे उल्लेखनीय निष्कर्षों में से एक यह है कि ग्रामीण परिवारों में खाद्य व्यय का हिस्सा पहली बार मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के 50% से कम हो गया है। महज बुनियादी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति से दूर यह महत्त्वपूर्ण बदलाव ग्रामीण भारतीयों के बीच परिवहन, चिकित्सा व्यय और उपभोक्ता सेवाओं जैसे क्षेत्रों पर व्यय कर सकने की बेहतर वित्तीय क्षमता की ओर इशारा करता है। ग्रामीण और शहरी उपभोग पैटर्न के बीच कम होता अंतराल ग्रामीण इलाकों में अभिसरण और जीवन की बेहतर गुणवत्ता को दर्शाता है।

हालाँकि, इन उत्साहजनक संकेतों के बावजूद गरीबी, अवसंरचनागत कमी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा तक पहुँच से संबंधित लगातार बनी रही चुनौतियाँ ग्रामीण भारत की प्रगति में बाधा बन रही हैं, जिससे इन गहन समस्याओं के समाधान के लिये केंद्रित हस्तक्षेप की आवश्यकता रेखांकित होती है।

“भारत की आत्मा इसके गाँवों में बसती है। जब ‘भारत’ सुदृढ़ होगा, तब ‘इंडिया’ सुदृढ़ होगा।”

भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित प्रावधान 

  • संवैधानिक प्रावधान: राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP) का अनुच्छेद 40 राज्य को ग्राम पंचायतों का संगठन करने और उन्हें स्वशासी इकाइयों के रूप में कार्य करने के लिये आवश्यक शक्तियों से संपन्न करने का निर्देश देता है।
    • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देने तथा ग्रामीण विकास को गति देने के लिये पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्थापना की गई ।
    • संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में पंचायती राज संस्थाओं को 29 कार्य सौंपे गए हैं, जिनमें कृषि विस्तार, भूमि विकास और भूमि सुधार जैसे विषय शामिल हैं।
  • शासन:
    • केंद्र सरकार: केंद्रीय स्तर पर पंचायती राज मंत्रालय भारत में पंचायती राज संस्थाओं के लिये नीतियाँ बनाने और कार्यान्वयन की देखरेख करने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • राज्य सरकार: प्रत्येक राज्य सरकार के पास एक ग्रामीण विकास विभाग होता है जो राज्य में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
    • स्थानीय सरकार: पंचायती राज संस्थाएँ स्थानीय स्तर पर विकास कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।

हाल के समय में ग्रामीण भारत के विकास के प्रमुख चालक क्या रहे हैं?

  • बढ़ती प्रयोज्य आय: HCES से उजागर हुआ है कि ग्रामीण परिवारों में खाद्य व्यय के हिस्से में ऐतिहासिक रूप से गिरावट आई है (कुल व्यय का 46%)। इससे इंगित होता है कि उनके पास बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ विवेकाधीन व्यय के लिये अधिक धन उपलब्ध है।
    • यह वाहन जैसी श्रेणियों पर व्यय में वृद्धि (7.55%) को उजागर करता है, जो वाहन स्वामित्व में वृद्धि और संभावित रूप से ग्रामीण रोज़गार के अवसरों में वृद्धि का संकेत देता है।
  • कृषि सुधार और प्रौद्योगिकीय प्रगति: कृषि सुधारों के कार्यान्वयन और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण ने ग्रामीण उत्पादकता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • ग्रामीण अवसंरचना का विकास: ग्रामीण अवसंरचना के विकास में महत्त्वपूर्ण निवेश किया गया है, जिससे बेहतर कनेक्टिविटी, बाज़ारों तक पहुँच और समग्र आर्थिक गतिविधियाँ सुगम हुई हैं।
  • ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा: ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई पहलों ने ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाया है तथा उन्हें आय सृजन के अवसर प्रदान किये हैं।
  • वित्तीय समावेशन और ऋण तक पहुँच: भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और ऋण एवं बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ठोस प्रयास किये हैं।
    • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) ने बैंकिंग सुविधा से वंचित लाखों लोगों के लिये बैंक खाते खोलने में सहायता की है, जबकि मुद्रा योजना ने लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों (ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय SMEs सहित) को किफायती ऋण उपलब्ध कराया है।
  • ग्रामीण डिजिटल कनेक्टिविटी और ई-गवर्नेंस: भारत सरकार ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच ‘डिजिटल डिवाइड’ को दूर करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • भारतनेट (BharatNet), जिसे पहले ‘राष्ट्रीय ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क’ के रूप में जाना जाता था, जैसी पहलों का उद्देश्य ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना और इस प्रकार ग्रामीण समुदायों के लिये ई-गवर्नेंस सेवाओं, ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल बाज़ारों तक पहुँच को सुविधाजनक बनाना है।
    • सामान्य सेवा केंद्रों (Common Service Centers- CSCs) ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न G2C (Government-to-Citizen) सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • ग्रामीण हस्तशिल्प और कारीगरी उत्पादों को बढ़ावा: भारत सरकार ने विभिन्न पहलों के माध्यम से पारंपरिक ग्रामीण हस्तशिल्प और कारीगरी उत्पादों को बढ़ावा देने तथा संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
    • उदाहरण के लिये, हुनर हाट योजना (Hunar Haat scheme) ने ग्रामीण क्षेत्रों के कारीगरों और शिल्पकारों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने एवं बिक्री करने के लिये एक मंच प्रदान किया है, जबकि भौगोलिक संकेत (GI) टैगिंग ने अनूठे क्षेत्रीय उत्पादों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में मदद की है।
  • ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता पहल: ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता में सुधार ने ग्रामीण समुदायों के समग्र विकास एवं कल्याण में योगदान किया है।
    • आयुष्मान भारत योजना ने लाखों ग्रामीण परिवारों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई है, जबकि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) ने स्वच्छता सुविधाओं में सुधार और खुले में शौच मुक्त (ODF) ग्रामों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे बेहतर स्वास्थ्य परिणाम एवं उत्पादकता प्राप्त हुई है।

वर्तमान में ग्रामीण भारत से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

  • कृषि संकट और किसान ऋणग्रस्तता: भारत में ग्रामीण आबादी का एक महत्त्वपूर्ण भाग अभी भी अपनी आजीविका के लिये कृषि पर अत्यधिक निर्भर है।
    • अनियमित मानसून, सिंचाई सुविधाओं की कमी, ऋण तक अपर्याप्त पहुँच और बाज़ार मूल्यों में उतार-चढ़ाव जैसे कारकों ने कृषि संकट एवं किसान ऋणग्रस्तता में वृद्धि की है।
    • ग्रामीण भारत में कृषक परिवारों और परिवारों की भूमि जोत की स्थिति का आकलन, 2019’ (Situation Assessment of Agricultural Households and Land Holdings of Households in Rural India, 2019) के अनुसार, भारत के आधे से अधिक कृषक परिवार ऋणग्रस्त हैं, जिन पर औसतन 74,121 रुपए बकाया है।
  • पंचायती राज संस्थाओं में FFF की कमी का मुद्दा: वित्त, प्रकार्य एवं कर्मी (Funds, Functions, and Functionaries- FFF) की कमी पंचायती राज संस्थाओं के लिये लंबे समय से बनी रही चुनौती है, जिससे उनके प्रभावी ढंग से कार्य करने और अपने अधिदेश को पूरा करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • धन का अपर्याप्त हस्तांतरण, स्पष्ट कार्यात्मक उत्तरदायित्वों का अभाव और ज़मीनी स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों की कमी के कारण प्रायः ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में अकुशलता तथा कार्यान्वयन में अंतराल की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • अपर्याप्त ग्रामीण अवसंरचना: ग्रामीण अवसंरचना में सुधार के प्रयासों के बावजूद कई गाँवों में अभी भी बारहमासी सड़कें, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच का अभाव है।
    • वर्ष 2023 में एक संसदीय पैनल ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्मित कई सड़कों की ‘खराब गुणवत्ता’ को उजागर किया। 
  • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक अपर्याप्त पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुँच का अभाव पाया जाता है, जिसके कारण बदतर स्वास्थ्य परिणाम उत्पन्न होते हैं और रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
    • यद्यपि 65% भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं, फिर भी इन क्षेत्रों के लिये केवल 25-30% अस्पताल ही पहुँच में हैं।
    • चिकित्साकर्मियों की कमी, अवसंरचना का अभाव और किफायती दवाओं तक सीमित पहुँच कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
  • शैक्षिक चुनौतियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ अपर्याप्त अवसंरचना, शिक्षकों की कमी, उच्च ड्रॉपआउट दर और डिजिटल संसाधनों तक सीमित पहुँच जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं।
    • ASER रिपोर्ट 2022 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के केवल 38.5% बच्चे ही कम से कम ग्रेड II के स्तर पर ‘रीडिंग’ कर सकते हैं, जो अधिगम या ‘लर्निंग’ के अंतराल को उजागर करता है।
  • भूमि स्वामित्व में लैंगिक अंतर: कई ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक मानदंड और कानूनी बाधाएँ महिलाओं को भूमि का उत्तराधिकार या स्वामित्व पाने से वंचित करते हैं।
    • इससे वे आर्थिक रूप से वंचित हो जाती हैं और कृषि संबंधी निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है, जिससे कृषि की समग्र उत्पादकता पर असर पड़ता है।
  • कृषि का नारीकरण (Feminization of Agriculture): रोज़गार के अवसरों की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी केंद्रों की ओर पुरुषों के बढ़ते प्रवास के साथ ‘कृषि के नारीरण’ की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
    • महिलाएँ कृषि गतिविधियों में वृहत भूमिका निभा रही हैं, जहाँ वे प्रायः अकेले ही खेतों और कृषि कार्यों का प्रबंधन करती हैं।

ग्रामीण भारत के विकास में तेज़ी लाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • ग्रामीण औद्योगीकरण और गैर-कृषि रोज़गार को बढ़ावा देना: स्थानीय संसाधनों और कौशल का लाभ उठाते हुए कृषि प्रसंस्करण, हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योगों पर केंद्रित ग्रामीण औद्योगिक पार्कों और संकुलों की स्थापना करना।
    • कर लाभ, सब्सिडी और ऋण तक पहुँच के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
    • ग्रामीण युवाओं के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम विकसित करना, उन्हें स्थानीय बाज़ार की मांगों के अनुरूप व्यावसायिक एवं उद्यमिता कौशल से संपन्न करना।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना और डिजिटल रूपांतरण: निम्न भू कक्षा (LEO) उपग्रह नेटवर्क और समुदाय-संचालित पहलों जैसे नवोन्मेषी समाधानों के माध्यम से ग्रामीण ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करना।
    • पंचायतों में ‘टेक मित्र' (Tech Mitras) के माध्यम से डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना, ताकि ग्रामीण समुदाय शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और उद्यमिता के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठा सके।
  • ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा और निवारक देखभाल को संवृद्ध करना: ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के लिये ‘हब-एंड-स्पोक मॉडल’ को लागू करना, जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को टेलीमेडिसिन और ई-हेल्थकेयर प्रणालियों के माध्यम से बड़े ज़िला अस्पतालों से जोड़ा जाए।
    • दूरदराज के क्षेत्रों में निवारक देखभाल, स्वास्थ्य शिक्षा एवं रोगों का शीघ्र पता लगाने के लिये मोबाइल चिकित्सा इकाइयों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • किफायती और नवोन्मेषी स्वास्थ्य देखभाल समाधानों पर केंद्रित ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल स्टार्टअप और सामाजिक उद्यमों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
  • सतत कृषि और जलवायु-कुशल अभ्यासों को बढ़ावा देना: सुदूर संवेदन, मृदा मानचित्रण और डेटा-संचालित निर्णय समर्थन प्रणालियों जैसी परिशुद्ध कृषि प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
    • कृषि वानिकी, एकीकृत कृषि प्रणालियों और कृषि में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • महिला नेतृत्व वाले कृषक उत्पादक संगठन (FPOs): महिला कृषकों के नेतृत्व में FPOs के गठन को प्रोत्साहित करना।
    • ये संगठन महिलाओं को ऋण, इनपुट और बाज़ार संपर्क तक बेहतर पहुँच प्रदान कर सकते हैं, जिससे उन्हें कृषि संबंधी निर्णय लेने में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने तथा उच्च लाभ प्राप्त करने में सशक्त बनाया जा सकेगा।
  • ग्रामीण पर्यटन का विकास और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: स्थानीय सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और प्राकृतिक आकर्षणों को उजागर करते हुए ग्रामीण पर्यटन सर्किटों की पहचान करना तथा उनका विकास करना
    • ग्रामीण क्षेत्रों में ‘प्लक-कुक-ईट’ रेस्तरां सुविधाओं (Pluck-Cook-Eat Restaurant Facilities) को बढ़ावा देना, जहाँ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है और उन्हें पर्यटन गतिविधियों से लाभान्वित किया जा सकता है।
  • ग्रामीण शासन और विकेंद्रीकरण को सुदृढ़ बनाना: पर्याप्त वित्तीय संसाधन, क्षमता निर्माण और निर्णय लेने का अधिकार प्रदान कर पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाना।
    • नियोजन एवं कार्यान्वयन प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों, स्वयं सहायता समूहों और गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी के माध्यम से भागीदारीपूर्ण ग्रामीण शासन को प्रोत्साहित करना।
    • पारदर्शी और उत्तरदायी ग्रामीण शासन के लिये ई-पंचायत जैसी प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
  • ग्रामीण-शहरी तालमेल और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना: ऐसी क्षेत्रीय विकास योजनायाँ विकसित करना जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को एकीकृत करें, आर्थिक संबंधों और सहजीवी विकास को बढ़ावा दें।
    • शहरी सुविधाओं और ग्रामीण परिवेश को संयुक्त करते हुए स्मार्ट गाँवों और ग्रामीण-शहरी संकुलों (rurban clusters) के विकास को बढ़ावा देना।
    • ग्रामीण विकास और अवसंरचना परियोजनाओं पर केंद्रित सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहलों को प्रोत्साहित करना।
  • ग्रामीण जैव अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत जैव रिफाइनरियों और अपशिष्ट-से-मूल्य सृजन शृंखलाओं (waste-to-value chains) की स्थापना को प्रोत्साहित करना, जहाँ जैव ईंधन, जैव रसायन और जैव उत्पाद के उत्पादन के लिये कृषि अवशेषों एवं अपशिष्टों का उपयोग किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: विभिन्न सरकारी पहलों और योजनाओं के बावजूद ग्रामीण भारत के विकास को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी प्रमुख बाधाओं पर विचार कीजिये और ग्रामीण क्षेत्रों में समावेशी एवं सतत विकास में तेज़ी लाने के लिये नवोन्मेषी उपाय सुझाइये।

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
  2.  राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
  3.  भूमि विकास बैंक

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


प्रश्न. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण क्षेत्रीय निर्धनों के आजीविका विकल्पों को सुधारने का किस प्रकार प्रयास करता है? (2012)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नए विनिर्माण उद्योग तथा कृषि व्यापार केंद्र स्थापित कर।
  2.  'स्व-सहायता समूहों' को सशक्त बनाकर और कौशल विकास की सुविधाएँ प्रदान कर।
  3.  कृषकों को निःशुल्क बीज, उर्वरक, डीज़ल पंपसेट तथा लघु सिंचाई सयंत्र देकर।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)