ग्रामीण समुत्थानशक्ति और विकास | 25 Dec 2024
यह एडिटोरियल 25/11/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Building rural resilience” पर आधारित है। इस लेख में ग्रामीण समुत्थानशक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है, जिसमें बताया गया है कि केरल की कुदुम्बश्री और गुजरात की जल संरक्षण जैसी पहल मानसून व भूजल की कमी जैसी चुनौतियों का किस प्रकार मुकाबला करने के साथ ही भारत के भविष्य एवं सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करती हैं।
प्रिलिम्स के लिये:ग्रामीण भारत, PM ग्राम सड़क योजना, जल जीवन मिशन, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, PM-किसान, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, मुद्रा योजना, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, देखो अपना देश पहल, मनरेगा, WEF ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट मेन्स के लिये:भारत में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक, भारत के ग्रामीण परिदृश्य से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
भारत की 65% से अधिक आबादी गाँवों में निवास करती है, इसलिये ग्रामीण भारत की लचीलापन देश के भविष्य से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। अनियमित मानसून एवं भूजल की कमी से लेकर कृषि बाज़ार में उतार-चढ़ाव और तेज़ी से हो रहे तकनीकी बदलाव तक, भारतीय गाँवों को चुनौतियों के जटिल संजाल का सामना करना पड़ रहा है, जो सदियों पुरानी कृषि परंपराओं को खतरे में डाल रहा है। फिर भी, पूरे देश में केरल के कुदुम्बश्री आंदोलन से लेकर गुजरात की जल संरक्षण क्रांति तक, ग्रामीण समुदाय उल्लेखनीय अनुकूलनशीलता और नवाचार का प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में ग्रामीण समुत्थानशक्ति बनाना केवल कृषि संधारणीयता के संदर्भ में ही नहीं है, बल्कि यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सांस्कृतिक आधारशिला को संरक्षित करने के संदर्भ में भी है।
भारत में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- बुनियादी अवसंरचना का विकास: PM ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और जल जीवन मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना के विस्तार से कनेक्टिविटी एवं आधारभूत सुविधाओं में काफी वृद्धि हुई है।
- उन्नत बुनियादी अवसंरचना से बाज़ार तक अभिगम आसान होता है, स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा मिलता है और क्षेत्रीय असमानताएँ कम होती हैं।
- पिछले 21 वर्षों में PMGSY के तहत 7 लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है। ये पहल ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- डिजिटल समावेशन और फिनटेक पैठ: स्मार्टफोन की बढ़ती सुलभता और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस व आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AEPS) जैसे प्लेटफॉर्म की सफलता वित्तीय समावेशन तथा ई-कॉमर्स को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को बदल रही है।
- BharatNet और कम लागत वाले स्मार्टफोन के माध्यम से सस्ती इंटरनेट अभिगम के कारण वर्ष 2023 में ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी भारत में खुदरा स्टोरों पर एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के लेनदेन में 118% की वृद्धि हुई।
- कृषि सुधार और संबद्ध गतिविधियाँ: PM-किसान और राष्ट्रीय पशुधन मिशन जैसी योजनाओं के तहत कृषि व्यवसाय, बागवानी तथा मात्स्यिकी जैसे संबद्ध क्षेत्रों के लिये समर्थन से ग्रामीण आय में विविधता सुनिश्चित हुई है।
- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) ने किसानों को उनकी उपज के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त करने में सक्षम बनाया, जिससे खेत से बाज़ार तक की दक्षता में वृद्धि हुई।
- जनवरी 2024 तक कृषि को वितरित कुल ऋण राशि ₹22.84 लाख करोड़ थी, जो बढ़े हुए निवेश को दर्शाती है।
- ग्रामीण MSME और स्टार्ट-अप का उदय: स्टार्टअप इंडिया ग्रामीण कार्यक्रम व मुद्रा योजना के माध्यम से नीतिगत समर्थन ने ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के विकास को बढ़ावा दिया है।
- ये पहल ऋण और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, जिससे उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलता है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSS) के 73वें दौर के अनुसार, कुल MSME में से 31% विनिर्माण क्षेत्र में संलग्न हैं, जबकि 50% से अधिक ग्रामीण क्षेत्र में संलग्न हैं, जो स्थायी आजीविका का सृजन करते हैं।
- विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा पहल: PM-कुसुम जैसी योजनाओं के तहत विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने से ग्रामीण ऊर्जा लागत एवं परंपरागत ईंधन पर निर्भरता कम हो गई है।
- भारत की नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो अक्तूबर 2024 तक 24.2 गीगावाट (13.5%) से बढ़कर 203.18 गीगावाट तक पहुँच गई और PM-कुसुम ने सौर पंपों तक पहुँच सुनिश्चित करके, इनपुट लागत को कम करके तथा कृषि स्थिरता को बढ़ाकर 2.46 लाख किसानों को लाभान्वित किया।
- स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण विस्तार: आयुष्मान भारत (हाल ही में 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिये विस्तार) और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य परिणामों एवं सामाजिक सुरक्षा में सुधार किया है।
- गरीबों के लिये किफायती स्वास्थ्य देखभाल और बीमा ने उनकी जेब से होने वाले खर्च को कम कर दिया है, जिससे उनकी प्रयोज्य आय में वृद्धि हुई है।
- मई 2023 में, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY) एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि पर पहुँच गई, इस योजना के तहत कुल 61,501 करोड़ रुपए के व्यय के साथ 5 करोड़ अस्पताल में भर्ती होने का रिकॉर्ड दर्ज किया गया।
- ग्रामीण पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत: ‘देखो अपना देश’ पहल के तहत प्रोत्साहित ग्रामीण पर्यटन से भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाकर और विशेष रूप से ग्रामीण लघु उद्योगों से जुड़े GI टैग के माध्यम से राजस्व के नए स्रोतों का सृजन हो रहा है।
- राजस्थान और केरल जैसे राज्यों ने इको-पर्यटन सर्किट विकसित किये हैं, जो घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं।
- महिला सशक्तीकरण और स्वयं सहायता समूह: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) ने आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर ग्रामीण समाज में बदलाव लाया है।
- अब 8.7 करोड़ से अधिक महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा हैं, तथा स्वयं सहायता समूहों की कुल संख्या 81 लाख से अधिक हो गई है।
- इस सशक्तीकरण से बेहतर निर्णय लेने, बेहतर परिवार कल्याण और ग्रामीण घरेलू आय में वृद्धि होती है।
भारत के ग्रामीण परिदृश्य से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- कृषि संकट और निम्न आय स्तर: भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है, फिर भी इस क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के कारण खंडित भूमि जोत, कम उत्पादकता और अनियमित मौसम पैटर्न जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- सरकारी सहायता योजनाओं के बावजूद किसान घटती आय से जूझ रहे हैं।
- NABARD की रिपोर्ट से पता चला है कि सत्र 2021-22 में सभी स्रोतों से एक कृषक परिवार की औसत मासिक आय सिर्फ ₹13,661 थी।
- इसके अलावा, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान सत्र 1990-91 में 35% की तुलना में वर्ष 2022 में घटकर 15% रह गया।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, प्रशिक्षित पेशेवरों और जागरूकता की गंभीर कमी है, जिसके कारण स्वास्थ्य स्थितियाँ और भी बिगड़ जाती हैं।
- यहाँ तक कि आयुष्मान भारत जैसे प्रमुख कार्यक्रम भी दूरदराज़ के क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना की कमी को पूरा करने में संघर्ष करते हैं।
- एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में केवल 25% अर्द्ध-ग्रामीण व ग्रामीण आबादी को अपने इलाकों में आधुनिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है।
- लगभग 75% स्वास्थ्य अवसंरचना और संसाधन शहरी क्षेत्रों, जहाँ केवल 27% आबादी निवास करती है, में केंद्रित हैं जिससे ग्रामीण आबादी वंचित रह जाती है।
- शैक्षिक असमानता और डिजिटल डिवाइड: यद्यपि समग्र शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं के तहत स्कूल नामांकन में सुधार हुआ है, ग्रामीण शिक्षा अभी भी अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना, शिक्षकों की कमी और अपर्याप्त डिजिटल अभिगम से ग्रस्त है।
- इसके अतिरिक्त, ASER सर्वेक्षण में बताया गया है कि 25% ग्रामीण बच्चों को अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ने में कठिनाई होती है तथा इंटरनेट की निरंतर सुलभता का अभाव ऑनलाइन शिक्षा तक अभिगम को बाधित करता है।
- प्रथम फाउंडेशन की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 14-18 वर्ष की आयु के लगभग 43% बच्चों को अंग्रेज़ी में वाक्य पढ़ने में कठिनाई होती है।
- बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार: मनरेगा जैसी योजनाओं के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से युवाओं में, उच्च बेरोज़गारी और प्रच्छन्न अल्प-रोज़गार की समस्या है।
- मौसमी कृषि कार्य से नियमित आय नहीं हो पाती, जिससे शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन बढ़ जाता है।
- जून 2024 में ग्रामीण बेरोज़गारी दर बढ़कर 9.3% हो गई (CMIE), जबकि ग्रामीण कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा प्रच्छन्न रोज़गार से संघर्षरत है।
- सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता अभिगम का अभाव: जल जीवन मिशन के तहत प्रगति के बावजूद, कई ग्रामीण परिवारों में अभी भी स्वच्छ पेयजल और उचित स्वच्छता सुविधाओं तक निरंतर अभिगम का अभाव है।
- व्यवहारगत और बुनियादी अवसंरचना संबंधी कमियों के कारण कुछ क्षेत्रों में खुले में शौच की प्रथा जारी है।
- सितंबर 2023 तक, 67% से अधिक ग्रामीण परिवारों को नल-जल सुविधा के माध्यम से स्वच्छ पेय जल उपलब्ध हो चूका है। इसके अलावा, 12 भारतीय राज्यों के भूजल में यूरेनियम का स्तर अनुमेय सीमा से अधिक है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण: ग्रामीण आजीविका जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है, जो सूखे, बाढ़ और मृदा अपरदन को बढ़ाता है, तथा कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
- निम्न स्तरीय अपशिष्ट प्रबंधन और निर्वनीकरण पर्यावरण संकट को बढ़ा रहे हैं।
- हाल के वर्षों में मध्य भारत में व्यापक रूप से अतिवृष्टि की घटनाओं में तीन गुना वृद्धि देखी गई है, जिसके कारण विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक-आर्थिक नुकसान के साथ आकस्मिक बाढ़ की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है।
- सामाजिक असमानताएँ और लैंगिक विषमताएँ: जाति आधारित भेदभाव, लैंगिक असमानता और सीमांत समुदायों के लिये अवसरों की कमी ग्रामीण भारत में व्यापक रूप से व्याप्त है।
- महिलाओं को प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार तक सीमित अभिगम का सामना करना पड़ता है।
- WEF ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट- 2017 में कहा गया है कि भारत में औसतन 66% महिलाओं का काम अवैतनिक है, उनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं, जो वित्तीय वंचन को उजागर करता है।
- वित्तीय अपवर्जन और ऋण संबंधी बाधाएँ: औपचारिक ऋण की सुलभता एक चुनौती बनी हुई है, क्योंकि ग्रामीण परिवार प्रायः अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भर रहते हैं जो अत्यधिक ब्याज दर वसूलते हैं।
- MUDRA योजना जैसी पहल के बावजूद, लघु और सीमांत किसानों को पर्याप्त संस्थागत ऋण सहायता नहीं मिल पाती है।
- वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऋण लेने वाले लघु और सीमांत किसानों (SMF) में से 59% (या 36 मिलियन) ने औपचारिक स्रोतों की ओर रुख किया, जबकि 41% अभी भी अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
- कमज़ोर स्थानीय शासन और नौकरशाही अकुशलता: पंचायती राज संस्थाओं (PRI) में प्रायः ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये धन, क्षमता और स्वायत्तता का अभाव होता है।
- भ्रष्टाचार और नौकरशाही की अकुशलता के कारण योजनाओं का लाभ मिलने में विलंब होता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार और अकुशलता के कारण ग्रामीण परिवारों के लिये निर्धारित खाद्यान्न को या तो अन्यत्र भेज दिया जाता है या इनकी कालाबाज़ारी होती है।
- उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश में जाँच में एक घोटाला सामने आया, जिसमें स्थानीय अधिकारियों ने राशन दुकान मालिकों के साथ मिलीभगत करके वांछित लाभार्थियों को उनके हक से वंचित कर दिया।
ग्रामीण विकास और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- जलवायु-स्मार्ट कृषि (CSA) का विस्तार करना: जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये फसल विविधीकरण, कृषि वानिकी और परिशुद्ध खेती जैसी CSA प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- PM-कुसुम जैसी योजनाओं को स्थानीय सिंचाई समाधान और नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, गुजरात के बनासकाँठा ज़िले में किसान सौर ऊर्जा चालित सिंचाई से कृषि कर रहे हैं, जिससे जल की बर्बादी कम हो रही है तथा फसल की उपज में भी सुधार हो रहा है।
- ग्रामीण शासन में प्रौद्योगिकी का एकीकरण: पारदर्शी निधि आवंटन और निगरानी हेतु ई-ग्राम स्वराज जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से ग्रामीण शासन की दक्षता में सुधार करने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाये जाने की आवश्यकता है।
- डिजिटल इंडिया पहल को पंचायती राज के साथ जोड़ने से जवाबदेही और सेवा वितरण में वृद्धि हो सकती है।
- पंचायती राज मंत्रालय पंचायतों को अधिक पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से ई-पंचायत मिशन मोड परियोजना (MMP) का क्रियान्वयन कर रहा है, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को सुदृढ़ करना: ग्रामीण-केंद्रित PPP मॉडल बनाकर कौशल विकास, बुनियादी अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- CSR पहल के तहत कंपनियों के साथ साझेदारी करने से सरकारी योजनाओं का प्रभाव बढ़ सकता है।
- उदाहरण के लिये, ITC की ई-चौपाल किसानों को बाज़ारों से जोड़ती है, जिससे किसानों को ठीक समय पर बाज़ार जानकारी और गुणवत्तापूर्ण इनपुट उपलब्ध कराकर लाभ मिलता है।
- एकीकृत ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना: कृषि प्रसंस्करण, हस्तशिल्प और इको-टूरिज़्म के लिये ग्रामीण केंद्र बनाकर विविध ग्रामीण उद्यमिता को समर्थन दिये जाने की आवश्यकता है।
- मुद्रा ऋणों को क्षमता निर्माण पहलों के साथ जोड़ने से परिणाम बेहतर हो सकते हैं।
- राजस्थान में दस्तकार पहल, जो ग्रामीण कारीगरों को राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़कर उन्हें सशक्त बनाती है, ने उनकी घरेलू आय में वृद्धि की है।
- स्थानीय जल प्रशासन को बढ़ावा देना: जल संरक्षण परियोजनाओं जैसे वाटरशेड प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और विकेंद्रीकृत जल वितरण प्रणाली को लागू करने के लिये ग्राम पंचायतों एवं स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- महाराष्ट्र में जलयुक्त शिवार अभियान जैसी सफल परियोजनाओं को गति देने से 11,000 गाँवों का कायाकल्प हुआ, भूजल स्तर बढ़ा और फसल विफलताओं में कमी आई।
- ग्रामीण विकास में नवीकरणीय ऊर्जा को मुख्यधारा में लाना: बिजली की मांग को स्थायी रूप से पूरा करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में सौर माइक्रो-ग्रिड, बायोगैस संयंत्र और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- PM-कुसुम जैसी योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिये और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
- बिहार में धरनई जैसे गाँव, जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित हैं, आत्मनिर्भरता के मॉडल हैं, जहाँ ऊर्जा विश्वसनीयता उद्यमिता और शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।
- कृषि विपणन प्रणालियों में सुधार: किसानों के लिये डिजिटल साक्षरता बढ़ाकर और भौतिक बाज़ार बुनियादी अवसंरचना का विस्तार करके ई-नाम मंच को सुदृढ़ किये जाने की आवश्यकता है।
- कृषक उत्पादक संगठनों (FPO) के माध्यम से प्रत्यक्ष किसान-से-उपभोक्ता बिक्री मॉडल को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- महाराष्ट्र में सह्याद्रि फार्म्स की सफलता, जिसने बिचौलियों को समाप्त कर दिया और किसानों को उच्च आय प्रदान की, मज़बूत ग्रामीण विपणन सुधारों की क्षमता को दर्शाती है।
- ग्रामीण परिवहन और संपर्क में परिवर्तन: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत ग्रामीण सड़क अवसंरचना का विस्तार तथा बेहतर बाज़ार पहुँच के लिये बहुविध परिवहन प्रणाली को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- निर्बाध ई-कॉमर्स एकीकरण के लिये BharatNet जैसे डिजिटल बुनियादी अवसंरचना के साथ इसे पूरक बनाया जाना चाहिये।
- बिहार में भागलपुर रेशम केंद्र, जो अब उन्नत सड़कों के माध्यम से सुलभ है, के निर्यात में वृद्धि देखी गई है, जो आजीविका पर कनेक्टिविटी के प्रभाव को दर्शाता है।
- संधारणीय ग्रामीण आवास का विकास: प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत आधुनिक तरीकों के साथ स्थानीय सामग्रियों को मिलाकर आपदा-रोधी आवास प्रौद्योगिकियों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- ऊर्जा लागत और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये हरित आवास डिज़ाइन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- वर्ष 2014 की बाढ़ के बाद कश्मीर में पर्यावरण अनुकूल कंक्रीट का उपयोग करके पुनर्निर्मित किये गए गाँव अब भविष्य के जलवायु आपदाओं के प्रति प्रतिरोधी हैं तथा लागत प्रभावी और समुत्थानशील साबित हो रहे हैं।
- ज़मीनी स्तर पर आपदा प्रबंधन प्रणाली का निर्माण: ग्रामीण समुदायों को प्रशिक्षण, पूर्व चेतावनी प्रणाली और स्थानीय कमज़ोरियों के अनुरूप निकासी योजनाओं से सुसज्जित किये जाने की आवश्यकता है।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार किया जाना चाहिये।
- ओडिशा के चक्रवात आश्रय नेटवर्क ने सामुदायिक प्रशिक्षण के साथ मिलकर वर्ष 2019 में चक्रवात फैनी के दौरान हजारों लोगों की जान बचाई, जिससे सक्रिय आपदा प्रबंधन की प्रभावकारिता सिद्ध हुई।
- सहकारी संस्थाओं को पुनर्जीवित करना: ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण, विपणन और खरीद संबंधी कमियों को दूर करने के लिये सहकारी समितियों को सुदृढ़ किये जाने की आवश्यकता है।
- डिजिटल परिचालन और कौशल संवर्द्धन कार्यक्रमों के साथ उनके कामकाज़ को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।
- अमूल मॉडल- सहकारी समितियों ने डेयरी क्षेत्र में आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएँ बनाई हैं, जिससे किसानों की आय में निरंतर वृद्धि सुनिश्चित हुई है।
- ज्ञान आधारित कृषि को बढ़ावा देना: किसानों को हाइड्रोपोनिक्स, जैविक कृषि और डिजिटल उपकरणों जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण देने के लिये गाँवों में ज्ञान केंद्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान-समर्थित समाधानों के लिये ये केंद्र कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) से जोड़े जाने चाहिये।
- उदाहरण के लिये, परिशुद्ध कृषि का प्रयोग करने वाले गाँवों ने उर्वरक का उपयोग कम कर दिया है, जिससे लागत बचत और पर्यावरणीय लाभ सुनिश्चित हुआ है।
- डिजिटल और हरित कौशल के साथ युवाओं को सशक्त बनाना: कौशल भारत मिशन के तहत विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को हरित नौकरियों और डिजिटल अर्थव्यवस्था के अवसरों से परिचित कराये जाने की आवश्यकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा, IT और लॉजिस्टिक्स में प्रमाणन के लिये निजी कंपनियों के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
- समावेशी सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना: व्यापक ग्रामीण कल्याण के लिये POSHAN अभियान और मिशन शक्ति जैसे स्वास्थ्य, पोषण और लिंग-केंद्रित कार्यक्रमों को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है। रियल टाइम मॉनिटरिंग और स्थानीय जवाबदेही के माध्यम से लास्ट-माइल डिलीवरी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
- केरल कुदुम्बश्री मॉडल, जो महिला समूहों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक कल्याण को एकीकृत करता है, ने राज्य में गरीबी एवं कुपोषण की दर को सफलतापूर्वक कम किया है।
- ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को सुदृढ़ करना: स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी अवसंरचना, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों और टेलीमेडिसिन में निवेश से ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार हो सकता है।
- आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (HWC) का विस्तार कर उनमें निदान और विशेषज्ञ परामर्श की सुविधा शामिल करने से यह कमी दूर हो जाएगी।
- कर्नाटक में करुणा ट्रस्ट के टेलीमेडिसिन मॉडल की सफलता दर्शाती है कि प्रौद्योगिकी-संचालित स्वास्थ्य सेवा ग्रामीण समुत्थानशक्ति के लिये एक व्यापक समाधान है।
- ग्रामीण शासन को मज़बूत बनाना: पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को अधिक स्वायत्तता और संसाधनों के साथ सशक्त बनाना योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन को बढ़ावा दे सकता है। PRI सदस्यों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम, पारदर्शिता तंत्र के साथ मिलकर जवाबदेही में सुधार कर सकते हैं।
- पुणे में सहभागी शासन मॉडल ने प्रदर्शित किया है कि समावेशी शासन किस प्रकार ग्रामीण विकास परिणामों को बेहतर करता है।
निष्कर्ष:
भारत में ग्रामीण समुत्थानशक्ति बनाना देश के भविष्य के लिये आवश्यक है। इसके लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो बुनियादी अवसंरचना के विकास, तकनीकी प्रगति और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को एकीकृत करता है। यद्यपि कृषि संकट और स्वास्थ्य बुनियादी अवसंरचना की कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, भारत का ग्रामीण विकास पथ अभिनव समाधानों और नीति समर्थन के माध्यम से आशा प्रदान करता है। सरकारी योजनाओं, निजी क्षेत्र की भागीदारी और समुदाय द्वारा संचालित पहलों के बीच तालमेल से अपार संभावनाएँ खुल सकती हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में ग्रामीण विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा सतत् एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. UNDP के समर्धन से 'ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व' द्वारा विकसित 'बहु-आयामी निर्धनता सूचकांक' में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/है? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2016) |