लघुपक्षवाद से बदलती वैश्विक कूटनीति | 10 Dec 2024

यह एडिटोरियल 08/12/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Grand Strategy | How minilateralism is reshaping global order” पर आधारित है। इस लेख में मिनीलेटरलिज़्म के उदय का उल्लेख किया गया है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि यह क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये लक्षित भागीदारी को किस प्रकार बढ़ावा देता है, जिसमें भारत बहुध्रुवीयता को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। त्वरित समाधान प्रदान करते हुए, मिनीलेटरलिज़्म का सीमित दायरा व्यापक वैश्विक मुद्दों के समाधान में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

लघुपक्षवाद, बहुपक्षवाद, चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, दोहा विकास एजेंडाव्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी समझौता, चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना, कोविड-19 महामारी, ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस (AUKUS) साझेदारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, भारत-यूएई व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता, भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ीकरण पहल  

मेन्स के लिये:

वैश्विक व्यवस्था का बहुपक्षवाद से लघुपक्षवाद की ओर स्थानांतरण, लघुपक्षवाद के उदय में भारत की भूमिका

बहुपक्षवाद की धीमी, प्रायः अप्रभावी प्रक्रियाओं से हटकर, लघुपक्षवाद/मिनीलेटरलिज़्म, विशेष क्षेत्रीय चिंताओं से निपटने के लिये राष्ट्रों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करके वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर रहा है। भारत इस बदलाव में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो बहुध्रुवीयता को आगे बढ़ाने और अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित करने के लिये मिनीलेटरल फ्रेमवर्क का लाभ उठाता है। भरोसेमंद भागीदारी और सुरक्षित व्यापार की इच्छा से प्रेरित, मिनीलेटरलिज़्म देशों को वैश्विक शासन की अनिश्चितताओं का एक विकल्प प्रदान करता है। जबकि वे चुस्त और केंद्रित समाधान प्रदान करते हैं, उनका सीमित दायरा व्यापक वैश्विक मुद्दों के समाधान में बाधा डाल सकता है। 

लघुपक्षवाद/मिनीलेटरलिज़्म क्या है?

  • मिनीलेटरलिज़्म से तात्पर्य विशिष्ट वैश्विक, क्षेत्रीय या मुद्दा-आधारित चुनौतियों से निपटने के लिये सीमित संख्या में देशों को शामिल करते हुए छोटे, अधिक केंद्रित गठबंधनों या गठबंधनों के गठन से है।
    • ये गठबंधन आमतौर पर साझा हितों, लक्ष्यों या चिंताओं वाले देशों के बीच बनाए जाते हैं, जिससे निर्णय लेने में तेज़ी आती है एवं अधिक लक्षित परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • उदाहरण: अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने वाला चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद का एक उदाहरण है, जो एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।

मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद मल्टीलेटरलिज़्म/बहुपक्षवाद से किस प्रकार भिन्न है?

पहलू

मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद

मल्टीलेटरलिज़्म/बहुपक्षवाद

प्रतिभागियों की संख्या

कुछ देश (जैसे, 3-10 सदस्य राष्ट्र) 

व्यापक भागीदारी (प्रायः वैश्विक, जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन) 

केंद्र

विशिष्ट मुद्दे या क्षेत्रीय चुनौतियाँ 

व्यापक, वैश्विक चुनौतियाँ जिनके लिये सार्वभौमिक सहमति की आवश्यकता है।

निर्णय लेना

कम सदस्यों के कारण अधिक तीव्र और अधिक लचीला।

कई राष्ट्रों के बीच आम सहमति की आवश्यकता के कारण धीमी प्रक्रिया 

मुद्दों का दायरा

संकीर्ण, सुपरिभाषित उद्देश्य (जैसे- सुरक्षा, व्यापार) 

व्यापक, वैश्विक चिंताओं को दूर करना (जैसे- जलवायु परिवर्तन) 

समावेशिता

समान विचारधारा वाले या रणनीतिक रूप से संरेखित राष्ट्रों तक सीमित।

विचारधारा की परवाह किये बिना सभी देशों के लिये खुला है।

क्षमता

उच्च, क्योंकि कम सदस्यों के कारण कार्यवाही शीघ्र होती है।

निम्न, क्योंकि विविध हितों के कारण निर्णय में विलंब हो सकता है।

वैश्विक व्यवस्था बहुपक्षवाद से लघुपक्षवाद की ओर क्यों स्थानांतरित हो रही है? 

  • वैश्विक सहमति का विखंडन: बहुपक्षवाद को प्रायः विविध सदस्य राज्यों के अलग-अलग हितों के कारण आम सहमति प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जिसके परिणामस्वरूप अकुशलता और निष्क्रियता उत्पन्न होती है। 
  • शक्ति विषमता और उभरती भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: बहुपक्षीय संस्थाओं में प्रमुख शक्तियों का प्रभुत्व छोटे राष्ट्रों को दरकिनार कर देता है, जिससे असंतोष और अविश्वास बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिये, चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना (BRI) विश्व बैंक जैसे पारंपरिक बहुपक्षीय ढाँचे के बाहर वैश्विक वित्त को नया आयाम दे रही है।
    • इसके अतिरिक्त G-7 जैसे छोटे समूह भी प्रतिसंतुलन के रूप में उभरे हैं तथा G-7 के हालिया वक्तव्यों में चीन के आर्थिक दबाव पर भी ध्यान दिया गया है। 
  • संकट प्रबंधन में दक्षता और गति: बहुपक्षीय व्यवस्थाओं की तुलना में, जिनमें प्रायः नौकरशाही संबंधी विलंब का सामना करना पड़ता है, मिनीलेटरल/लघुपक्षीय फ्रेमवर्क संकटों पर तेज़ी से प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाते हैं। 
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, WHO जैसे बहुपक्षीय निकायों की विलंब से प्रतिक्रिया के लिये आलोचना की गई, जबकि क्वाड देशों ने वैश्विक स्तर पर कोविड टीकों की 1.2 बिलियन से अधिक खुराक उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की।
    • यह आपात स्थितियों से निपटने में लघुपक्षीय व्यवस्था की दक्षता को उजागर करता है।
  • केंद्रित एवं अनुकूलित दृष्टिकोण: मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद देशों को व्यापक बाधाओं के बिना विशिष्ट, कार्यान्वयन योग्य लक्ष्यों पर सहयोग करने की अनुमति देता है। 
  • वैश्विक शक्ति में संरचनात्मक बदलावों की प्रतिक्रिया: चीन और भारत जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने क्षेत्रीय हितों के लिये लघु स्तरीय मंचों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। 
    • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), जिसमें अमेरिका शामिल नहीं है, यह दर्शाती है कि किस प्रकार एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ पश्चिमी प्रभुत्व वाली पारंपरिक बहुपक्षीय प्रणालियों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं। 
  • बहुपक्षीय संस्थाओं में वैधता का संकट: संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण मुद्दों (जैसे- रूस-यूक्रेन युद्ध) का समाधान करने में असमर्थता ने उनकी विश्वसनीयता को समाप्त कर दिया है।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के विरुद्ध मेज़बान देशों का बढ़ता प्रतिरोध, जो सूडान द्वारा UNAMID को अस्वीकार करने, माली द्वारा MINUSMA को जबरन वापस लेने तथा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य द्वारा MONUSCO को बाहर करने के दबाव में देखा जा सकता है, विश्वसनीयता की हानि को दर्शाता है।

मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद के उदय में भारत की क्या भूमिका है? 

  • क्षेत्रीय सुरक्षा में नेतृत्व: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता का प्रतिकार करने के लिये लघु-पक्षीय सुरक्षा फ्रेमवर्क में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है। 
    • क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) के माध्यम से भारत समुद्री सुरक्षा, अवैध मत्स्यन का मुकाबला करने और क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर काम कर रहा है। 
    • इसके साथ ही, भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) में शामिल है तथा क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद निरोध और आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • लक्षित समझौतों के माध्यम से आर्थिक साझेदारी: भारत क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने तथा चीन पर निर्भरता कम करने के लिये लघु-पक्षीय व्यापार और आर्थिक समझौतों में सक्रिय रहा है। 
  • रणनीतिक प्रौद्योगिकी सहयोग: भारत अपनी प्रौद्योगिकी और नवाचार क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिये मिनीलेटरल प्लेटफॉर्मों का लाभ उठा रहा है। 
    • उदाहरण के लिये, क्वाड के तहत जापान और अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी सेमीकंडक्टर विनिर्माण पर केंद्रित है।
      • अमेरिका के साथ समझौते के पश्चात् भारत उत्तर प्रदेश के जेवर में एक मल्टाइ-मटेरियल सेमीकंडक्टर निर्माण इकाई स्थापित करेगा।
  • विशिष्ट गठबंधनों के माध्यम से जलवायु नेतृत्व: भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी लघु-पक्षीय जलवायु कार्रवाई पहलों का नेतृत्व करता है, जो विकासशील देशों के लिये सौर ऊर्जा समाधानों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत की G-20 अध्यक्षता के दौरान शुरू किया गया वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, सतत् ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • यह विशिष्ट वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये जलवायु-केंद्रित लघुपक्षीय फ्रेमवर्क में भारत के नेतृत्व को दर्शाता है।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग का निर्माण: भारत ग्लोबल साउथ में विकास को बढ़ावा देने के लिये लघु-पक्षीय दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने में सबसे आगे है। 
  • आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ीकरण: भारत लचीली और विविधीकृत वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण के लिये लघु-पक्षीय प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बन गया है। 

मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद को आगे बढ़ाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? 

  • सामरिक स्वायत्तता और साझेदारी के बीच संतुलन: भारत की ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष नीति, लघुपक्षीय रूपरेखाओं में अपेक्षित गहन संरेखण के साथ संघर्षरत है। 
    • उदाहरण के लिये, क्वाड गठबंधन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और दीर्घकालिक रक्षा साझेदार रूस के साथ संतुलन बनाने की उसकी क्षमता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करता है। 
    • भारत ने वर्ष 2023 में अपने रक्षा उपकरणों का 36% हिस्सा रूस से खरीदा, साथ ही अमेरिका के साथ क्वाड समुद्री अभ्यास में भी शामिल हुआ। 
    • यह द्वंद्व भारत की किसी भी एकल लघुपक्षीय एजेंडे के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध होने की क्षमता को जटिल बनाता है।
  • साझेदारों के बीच भिन्न हितों का प्रबंधन: मिनीलेटरल फ्रेमवर्क में प्रायः परस्पर विरोधी प्राथमिकताओं वाले देश शामिल होते हैं, जिससे भारत के लिये आम सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • क्वाड में, अमेरिका का कड़ा चीन विरोधी रुख, भारत के सतर्क रुख के विपरीत है, क्योंकि भारत के चीन के साथ आर्थिक संबंध सत्र 2023-24 में उसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। 
    • इस तरह के मतभेद संयुक्त कार्रवाइयों की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकते हैं तथा इन गठबंधनों में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका पर दबाव डाल सकते हैं।
  • प्रमुख मुद्दों पर असमान ध्यान: लघुपक्षीय रूपरेखाएँ प्रायः विशिष्ट लक्ष्यों पर ही केंद्रित रहती हैं तथा भारत के हितों के लिये महत्त्वपूर्ण व्यापक मुद्दों को दरकिनार कर देती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, क्वाड भारत-प्रशांत सुरक्षा पर ज़ोर देता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन या विश्व व्यापार संगठन सुधार पर सीमित सहयोग करता है, जो भारत के लिये प्रमुख क्षेत्र हैं।
    • भारत को अपने सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये पर्याप्त जलवायु वित्त की आवश्यकता है, अनुमान है कि वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन के लिये उसे लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी, जो विविध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • संसाधन एवं क्षमता संबंधी बाधाएँ: भारत की संस्थागत क्षमता और वित्तीय संसाधन सीमित हैं, जिससे विभिन्न मिनीलेटरल/लघुपक्षीय मंचों में नेतृत्व करने या सक्रिय रूप से भाग लेने की इसकी क्षमता सीमित हो गई है। 
    • उदाहरण के लिये, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, क्वाड और BRICS में एक साथ भूमिका निभाने के लिये महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक एवं वित्तीय क्षमता की आवश्यकता होती है। 
    • भारत का रक्षा बजट वर्ष 2023 में 72.6 बिलियन डॉलर रहा, जो पहले से ही तनावपूर्ण है, जिससे अतिरिक्त प्रतिबद्धताओं के लिये सीमित संभावना शेष है।
  • वैश्विक संस्थाओं में हाशिये पर जाने का जोखिम: मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारत को पारंपरिक बहुपक्षीय मंचों पर हाशिये पर जाने का खतरा है, जहाँ बड़े सुधार आवश्यक हैं। 
    • उदाहरण के लिये, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिये भारत का प्रयास रुका हुआ है तथा मिनीलेटरलिज़्म/लघुपक्षवाद में इसकी सक्रिय भूमिका के बावजूद इसमें बहुत कम प्रगति हुई है। 
    • इससे यह चिंता उत्पन्न होती है कि छोटे गठबंधनों पर ध्यान केंद्रित करने से वैश्विक संस्थागत सुधार के दीर्घकालिक लक्ष्य कमज़ोर हो सकते हैं।
  • समेकित घरेलू सहमति का अभाव: संप्रभुता संबंधी चिंताओं और विदेशी गठबंधनों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारत को गहन लघुपक्षीय प्रतिबद्धताओं के प्रति घरेलू विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 
    • उदाहरण के लिये, RCEP में शामिल होने को लेकर चल रही बहसों में घरेलू उद्योगों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की आशंकाएँ उजागर हुईं, जिसके कारण भारत ने वर्ष 2020 में इससे बाहर निकलने का फैसला किया। 
    • यह राष्ट्रीय हितों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करने में आंतरिक चुनौतियों को दर्शाता है।
  • अतिव्यापी रूपरेखा और पुनरावृत्ति: मिनीलेटरल प्लेटफॉर्मों के प्रसार से प्रयासों की पुनरावृत्ति और अकुशलता उत्पन्न होने का खतरा है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत क्वाड और I2U2 दोनों का हिस्सा है, जो प्रौद्योगिकी एवं बुनियादी अवसंरचना के सहयोग जैसे क्षेत्रों में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। 
    • इन फ्रेमवर्क के बीच सामंजस्य बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है, विशेषकर तब जब साझेदार प्रत्येक समूह में अलग-अलग एजेंडों को प्राथमिकता देते हैं।

भारत बहुपक्षवाद के साथ लघुपक्षवाद को संतुलित करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधारों का समर्थन: भारत संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और IMF जैसे बहुपक्षीय मंचों में सुधारों का समर्थन कर सकता है ताकि उन्हें अधिक समावेशी एवं कुशल बनाया जा सके।
    • उसे अपनी बढ़ती वैश्विक स्थिति और ग्लोबल साउथ में गठबंधनों का लाभ उठाते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिये प्रयास करना चाहिये।
    • IBSA जैसे मंचों पर ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे लघुपक्षीय साझेदारों के साथ सहयोग करके भारत इन सुधारों के लिये गति बढ़ा सकता है। 
  • क्षेत्रीय बहुपक्षीय फ्रेमवर्क को सुदृढ़ करना: भारत को विशिष्ट क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिये लघुपक्षवाद का उपयोग करते हुए SAARC और BIMSTEC को पुनर्जीवित व सुदृढ़ करने के लिये काम करना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारत व्यापक क्षेत्रीय सहयोग सुनिश्चित करने के लिये क्वाड की समुद्री पहल को BIMSTEC की ब्लू-इकॉनमी परियोजनाओं के साथ जोड़ने का प्रस्ताव कर सकता है।
  • "हाइब्रिड डिप्लोमेसी" मॉडल विकसित करना: भारत एक संरचित हाइब्रिड दृष्टिकोण अपना सकता है, जहाँ लघुपक्षवाद बहुपक्षवाद का पूरक हो तथा यह सुनिश्चित हो कि कोई भी सदस्य अन्य को कमज़ोर न करे। 
    • उदाहरण के लिये, भारत ग्लोबल साउथ के अधिक देशों को एकीकृत करके अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का विस्तार कर सकता है तथा प्रौद्योगिकी अंतरण में तीव्रता लाने के लिये क्वाड जैसे छोटे गठबंधनों का उपयोग कर सकता है।
  • ग्लोबल साउथ गठबंधन में नेतृत्व स्थापित करना: भारत विशिष्ट चुनौतियों के लिये लक्षित लघुपक्षीय पहलों में संलग्न रहते हुए बहुपक्षीय मंचों पर ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। 
    • वर्ष 2023 में G-20 की अध्यक्षता के आधार पर भारत वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट को एक वार्षिक बहुपक्षीय मंच के रूप में संस्थागत रूप दे सकता है। 
    • विश्व की 60% से अधिक जनसंख्या दक्षिण में रहती है, अतः भारत छोटे गठबंधनों और बड़े बहुपक्षीय निकायों के बीच सेतु का काम कर सकता है।
  • बहुपक्षीय लक्ष्यों के साथ लघुपक्षीय एजेंडा को संरेखित करना: भारत अपने लघुपक्षीय पहलों को संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) जैसे व्यापक बहुपक्षीय लक्ष्यों के साथ संरेखित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत सतत् विकास लक्ष्य 9 (उद्योग, नवाचार और बुनियादी अवसंरचना) को प्राप्त करने के लिये UNDP कार्यक्रमों के साथ क्वाड की प्रौद्योगिकी-साझाकरण पहलों को एकीकृत कर सकता है।
    • भारत के घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट क्षमता हासिल करना है, को भी ISA के वैश्विक सौर लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जा सकता है।
  • बहुपक्षीय प्रभाव के लिये आर्थिक कूटनीति का लाभ उठाना: भारत को बहुपक्षीय व्यापार नीतियों को प्रभावित करने के लिये अपनी लघुपक्षीय आर्थिक साझेदारी का उपयोग करना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये, भारत, भारत-यूएई-इज़रायल त्रिपक्षीय व्यापार पहल को अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) जैसे बड़े व्यापार ब्लॉक के साथ एकीकृत कर सकता है।
    • AfCFTA में 54 देशों को शामिल किये जाने के साथ, यह संबंध भारत के आर्थिक और बहुपक्षीय प्रभाव को बढ़ा सकता है।
  • बहुपक्षीय एकीकरण के लिये क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाना: भारत क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में अपने नेतृत्व का उपयोग करके बहुपक्षीय और लघुपक्षीय पहलों के बीच के अंतर को कम कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत भारत-बांग्लादेश-नेपाल सीमा पार ऊर्जा व्यापार पहल का विस्तार कर सकता है तथा इसमें BIMSTEC देशों को भी शामिल कर सकता है, जो व्यापक बहुपक्षीय ऊर्जा सहयोग के साथ संरेखित होगा।
    • भारत बांग्लादेश को 1,160 मेगावाट विद्युत ऊर्जा का निर्यात कर रहा है, जो एक क्षेत्रीय ऊर्जा केंद्र के रूप में इसकी क्षमता को दर्शाता है।
  • एक सेतुबंधक तंत्र के रूप में बहुपक्षीयता को बढ़ावा देना: भारत बहुपक्षीयता और लघुपक्षीयता के बीच एक मध्यवर्ती कदम के रूप में बहुपक्षीय समझौतों का समर्थन कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत अपनी क्वाड वैक्सीन पहल के आधार पर वैश्विक वैक्सीन निर्माण मानकों पर बहुपक्षीय समझौते के लिये दबाव डाल सकता है।
    • भारत पहले से ही वैश्विक वैक्सीन लीडर है, जो विश्व की 60% से अधिक वैक्सीन का उत्पादन करता है, जिससे उसे ऐसे प्रयासों का नेतृत्व करने की विश्वसनीयता मिलती है।
  • बहुपक्षीय डिजिटल शासन का समर्थन: भारत संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से वैश्विक डिजिटल शासन मानदंडों को आगे बढ़ाने के लिये बहुपक्षीय डिजिटल साझेदारी में अपने नेतृत्व का उपयोग कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत, भारत-यूरोपीय संघ कनेक्टिविटी साझेदारी को डिजिटल पब्लिक गुड्स अलायंस जैसे बहुपक्षीय फ्रेमवर्क के साथ जोड़ने का प्रस्ताव कर सकता है। 
    • भारत की आधार प्रणाली, जो विश्व स्तर पर सबसे बड़ा बायोमेट्रिक डेटाबेस है, व्यापक डिजिटल गवर्नेंस समाधान के लिये एक ब्लूप्रिंट हो सकती है।

निष्कर्ष: 

मिनीलेटरलिज़्म लक्षित भागीदारी के माध्यम से क्षेत्रीय चुनौतियों के लिये त्वरित समाधान प्रदान करके वैश्विक शासन को नया आयाम दे रहा है। इस बदलाव में भारत का नेतृत्व, विशेष रूप से क्वाड जैसे फ्रेमवर्क में, रणनीतिक हितों को सुरक्षित करते हुए अपनी वैश्विक स्थिति को बढ़ाता है। हालाँकि इन गठबंधनों का सीमित दायरा व्यापक वैश्विक मुद्दों का समाधान करने के लिये चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। संतुलन बनाने के लिये, भारत को बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिये, एक हाइब्रिड कूटनीति मॉडल अपनाना चाहिये और मिनीलेटरल एजेंडा को व्यापक वैश्विक लक्ष्यों के साथ जोड़ना चाहिये, ताकि क्षेत्रीय एवं वैश्विक सहयोग दोनों ही विकसित हो सकें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. "वैश्विक शासन में लघुपक्षवाद एक प्रमुख दृष्टिकोण के रूप में उभर रहा है, जो क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों के लिये लचीला व केंद्रित समाधान प्रस्तुत करता है"। मिनीलेटरल फ्रेमवर्क के लाभ और सीमाओं पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) 

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. न्यू डेवलप्मेंट बैंक की स्थापना ए.पी.ई.सी. (APEC) द्वारा की गई है।
  2. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. 'मोतियों के हार' (द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) से आप क्या समझते हैं? यह भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है? इसका सामना करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिये। (2013)