मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड | 20 Feb 2025

यह एडिटोरियल 17/02/2025 को द हिंदू में प्रकाशित Making in India for the world पर आधारित है। यह लेख नीतिगत सुधारों, कुशल कार्यबल और तकनीकी प्रगति द्वारा संचालित औपनिवेशिक अभाव से वैश्विक विनिर्माण केंद्र में भारत के परिवर्तन पर प्रकाश डालता है। 

प्रिलिम्स के लिये:

मेक इन इंडिया, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, भारत-UAE CEPA, गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, PM MITRA मेगा टेक्सटाइल पार्क, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) योजना, चाइना प्लस वन रणनीति, आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23, लाल सागर संकट 

मेन्स के लिये:

भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारक, वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत के उभरने में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। 

औपनिवेशिक अभाव के बाद से वैश्विक विनिर्माण केंद्र तक भारत की यात्रा इसकी आर्थिक समुत्थानशक्ति और नीति-संचालित विकास को दर्शाती है। कुशल कार्यबल, तकनीकी प्रगति और व्यापार-समर्थक सुधारों के साथ देश उद्योगों के लिये एक संपन्न परिवेश प्रदान करता है। राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन जैसी पहल बुनियादी अवसंरचना, कार्यबल विकास और MSME विकास को बढ़ावा दे रही है। जैसे-जैसे भारत अपने विनिर्माण आधार को मज़बूत कर रहा है, यह घरेलू और वैश्विक दोनों बाज़ार को कुशलतापूर्वक सेवा देने के लिये तैयार है मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड !”

भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? 

  • नीतिगत सुधार और व्यापार में आसानी: भारत सरकार ने विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये कई नीतिगत सुधार पेश किये हैं। 
    • 14 क्षेत्रों में उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, कॉर्पोरेट कर दरों में कमी (नई विनिर्माण इकाइयों के लिये 15%) और सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाओं ने व्यापार के अनुकूल वातावरण बनाया है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत-UAE CEPA और भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA जैसे व्यापार समझौतों में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण से बाज़ार अभिगम में सुधार हुआ है।
    • परिणामस्वरूप भारत ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस ( विश्व बैंक की 2020 रिपोर्ट) में 63वें स्थान पर पहुँच गया।
  • बुनियादी अवसंरचना का विकास और रसद उन्नति: भारत औद्योगिक विस्तार और आपूर्ति शृंखला दक्षता का समर्थन करने के लिये अपने बुनियादी अवसंरचना को अति महत्त्वाकांक्षी रूप से उन्नत कर रहा है।
  • प्रौद्योगिकी अंगीकरण और उद्योग 4.0: भारत विनिर्माण को आधुनिक बनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिये स्वचालन, AI, IoT और रोबोटिक्स को अपना रहा है।
    • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और सेमीकंडक्टर निर्माण में निवेश (जैसे: धोलेरा में सेमीकंडक्टर संयंत्र) उच्च तकनीक विनिर्माण की ओर संक्रमण का संकेत देते हैं। 
    • IT हार्डवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये PLI योजना इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सेमीकंडक्टर उद्योग को भी बढ़ावा दे रही है, तथा फॉक्सकॉन एवं माइक्रोन जैसी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर रही है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2026 तक भारत 300 बिलियन डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र बन जाएगा और सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम ने चिप विनिर्माण के विकास के लिये 76,000 करोड़ रुपए (9 बिलियन डॉलर) निर्धारित किये हैं।
  • हरित एवं संधारणीय विनिर्माण का विकास: संधारणीय उत्पादन की बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, भारत स्वयं को हरित विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है। 
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा उद्योगों के लिये प्रोत्साहन निवेश को आकर्षित कर रहे हैं। 
    • इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) योजना एवं सौर ऊर्जा आधारित जीवन-सहायता योजना जैसी नीतियाँ उद्योगों में स्वच्छ ऊर्जा के अंगीकरण को बढ़ावा देती हैं। 
      • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से 50% ऊर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है और वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 MMT हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है, जिससे यह एक आकर्षक निर्यातक बन जाएगा। 
  • भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण और चाइना+1 रणनीति: अमेरिका-चीन तनाव और कोविड-19 व्यवधानों से प्रेरित वैश्विक आपूर्ति शृंखला पुनर्गठन के कारण भारत में निवेश में वृद्धि हुई है। 
    • कंपनियाँ अपने विनिर्माण आधार में विविधता ला रही हैं और भारत को चाइना+1 रणनीति से लाभ मिल रहा है। 
      • एप्पल, टेस्ला और सैमसंग जैसी प्रमुख कंपनियाँ चीन पर निर्भरता कम करने के लिये भारतीय उत्पादन सुविधाओं का विस्तार कर रही हैं।
      • वित्त वर्ष 2023 में भारत से एप्पल के iPhone का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में लगभग चार गुना बढ़कर 5 बिलियन डॉलर (40,000 करोड़ रुपए से अधिक) को पार कर गया।
    • भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने सुझाव दिया है कि भारत रणनीतिक रूप से कुछ आयातों को चीनी निवेशों से प्रतिस्थापित करके विनिर्माण को बढ़ावा दे सकता है, तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण के लिये चाइना+1 रणनीति के साथ तालमेल स्थापित कर सकता है।

भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने में बाधक प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • उच्च रसद और आपूर्ति शृंखला लागत: वैश्विक मानकों की तुलना में भारत की रसद लागत काफी अधिक बनी हुई है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में बताया गया है कि भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के दायरे में रही है, जबकि वैश्विक बेंचमार्क 8% है।
    • परिवहन नेटवर्क में अकुशलता, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ तथा अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी में विलंब के कारण निर्माताओं की परिचालन लागत बढ़ जाती है। 
  • सुव्यवस्थित लॉजिस्टिक्स के बिना, भारत बड़े पैमाने पर विनिर्माण के लिये लागत-प्रभावशीलता में चीन और वियतनाम की बराबरी करने में संघर्ष करता है।
    • कठोर श्रम कानून और कौशल अंतराल: श्रम संहिता सुधारों के बावजूद, प्रशासनिक बाधाएँ और अनुपालन बोझ बने हुए हैं, जो बड़े पैमाने पर श्रम-गहन उद्योगों को हतोत्साहित कर रहे हैं।
    • इसके अतिरिक्त, उन्नत विनिर्माण, AI-संचालित उत्पादन और अर्द्धचालक निर्माण में कौशल अंतराल भारत की उच्च तकनीक उद्योगों में प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को सीमित करता है।
      • वर्ष 2026 तक भारत को डिजिटल कौशल वाले 30 मिलियन श्रमिकों की आवश्यकता होगी तथा इसके वर्तमान कार्यबल के 50% हिस्से को पुनः प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
    • भारत के मुख्यतः असंगठित कार्यबल (90%) से वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी श्रम बल की ओर परिवर्तन धीमा बना हुआ है।
  • कमज़ोर MSME पारिस्थितिकी तंत्र और ऋण संबंधी बाधाएँ: MSME, जो भारतीय विनिर्माण की रीढ़ हैं, गंभीर ऋण की कमी और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच का सामना कर रहे हैं।
    • ऋण प्राप्त करने में विलंब, उच्च ब्याज दरें और संपार्श्विक आवश्यकताएँ उनकी विकास क्षमता को सीमित करती हैं।
    • क्रिसिल के अनुमान के अनुसार, भारत के केवल 20% MSME को औपचारिक ऋण तक अभिगम प्राप्त है।
      • हालाँकि CGTMSE गारंटी में वृद्धि से कुछ राहत मिली है, लेकिन 6.3 करोड़ MSME में से केवल 2.5 करोड़ ने ही औपचारिक ऋण का लाभ उठाया है, जो एक बहुत बड़े अंतर को रेखांकित करता है।
  • बुनियादी अवसंरचना में अंतराल और बिजली विश्वसनीयता के मुद्दे: सुधारों के बावजूद, असंगत बिजली आपूर्ति, अपर्याप्त औद्योगिक भूमि और निम्नस्तरीय शहरी नियोजन विनिर्माण विस्तार में बाधा डालते हैं।
    • औद्योगिक क्षेत्रों में बार-बार बिजली बाधित होने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और विदेशी निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
      • बिजली की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद पर कुल प्रभाव लगभग 1-1.9% की गिरावट होने की उम्मीद है।
    • इसके अतिरिक्त, भूमि अधिग्रहण में विलंब एवं जटिल विनियामक अनुमोदन के कारण नई विनिर्माण इकाइयों की स्थापना में विलंब होता है, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर और EV जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में।
      • प्लग-एंड-प्ले औद्योगिक पारिस्थितिकी का अभाव एक गंभीर बाधा बनी हुई है।
  • महत्त्वपूर्ण घटकों और कच्चे माल के लिये चीन पर निर्भरता: भारत के आत्मनिर्भरता के प्रयासों के बावजूद, कच्चे माल, इलेक्ट्रॉनिक्स और महत्त्वपूर्ण इनपुट के लिये चीन पर इसकी भारी निर्भरता इसकी आपूर्ति शृंखला समुत्थानशक्ति को कमज़ोर करती है।
    • फार्मास्यूटिकल्स (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंडिकेटर का 70%), इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा (सेमीकंडक्टर वेफर्स) जैसे प्रमुख उद्योग चीनी आयात पर निर्भर हैं, जिससे भारत भू-राजनीतिक व्यवधानों के प्रति सुभेद्य हो जाता है। 
    • जबकि PLI योजना जैसी पहल का उद्देश्य उत्पादन को स्थानीय बनाना है, घरेलू सोर्सिंग की ओर संक्रमण धीमा एवं महंगा बना हुआ है।
    • भारत अपनी 70% API (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स) चीन से आयात करता है। भारत द्वारा वर्ष 2023 में आयातित सौर मॉड्यूल के उपयोग पर प्रतिबंध हटाने के बाद, एक वर्ष से भी कम समय में चीनी सौर घटकों का आयात 400% बढ़ गया।
    • उच्च तकनीक विनिर्माण के अंगीकरण में धीमापन और अनुसंधान एवं विकास में कमज़ोरी: भारत उन्नत विनिर्माण क्षमताओं, विशेष रूप से AI, रोबोटिक्स और सेमीकंडक्टर निर्माण में पिछड़ा हुआ है।
    • यद्यपि सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य चिप विनिर्माण संयंत्र स्थापित करना है, लेकिन कार्यान्वयन में विलंब और मज़बूत अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र की कमी चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
    • भारत अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.65% व्यय करता है, जबकि चीन में यह 2.4% और दक्षिण कोरिया में 4.8% है। 
  • वैश्विक व्यापार अनिश्चितताएँ और भू-राजनीतिक जोखिम: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, संरक्षणवादी नीतियों और भू-राजनीतिक तनावों के कारण भारत की व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता चुनौतियों का सामना कर रही है।
    • भारत को अभी यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देना शेष है, जिससे इसकी निर्यात क्षमता सीमित हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान (जैसे: लाल सागर संकट) भारत के कच्चे माल की आपूर्ति एवं निर्यात बाज़ार को प्रभावित करते हैं।
    • मज़बूत व्यापार गठबंधनों के बिना, भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अवसर खोने का खतरा है।
    • कम मांग के कारण जनवरी 2025 में भारत का निर्यात 2.38% घटकर 36.43 बिलियन डॉलर रह गया, जबकि आयात 10.28% बढ़कर 59.42 बिलियन डॉलर हो गया। 

मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड की दिशा में आगे बढ़ने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति शृंखला दक्षता में वृद्धि: भारत को गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान को तेज़ी से आगे बढ़ाकर, मल्टी-मॉडल परिवहन नेटवर्क को अनुकूलित करके और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) को औद्योगिक समूहों के साथ एकीकृत करके लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना चाहिये।
    • बंदरगाह आधुनिकीकरण, भंडारण अवसंरचना और अंतर्देशीय जलमार्गों को मज़बूत करने से पारगमन में विलंब कम होगा जिससे वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा में सुधार होगा।
    • सीमा शुल्क निकासी को सुव्यवस्थित करना, एकल खिड़की मंजूरी तथा आपूर्ति शृंखला पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन का लाभ उठाना दक्षता को बढ़ाएगा।
    • क्षेत्रीय व्यापार केंद्रों और मुक्त व्यापार क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थान मिल सकता है। 
  • श्रम कानून सुधार और कार्यबल कौशल: अनुपालन को आसान बनाने और श्रम-प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये चारों श्रम संहिताओं का पूर्ण कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है।
    • लचीली नियुक्ति नीतियाँ, गिग इकॉनमी एकीकरण और क्षेत्र-विशिष्ट वेतन नीतियाँ लागू करने से रोज़गार सृजन में वृद्धि होगी। 
    • स्किल इंडिया, PMKVY और उद्योग 4.0, AI, रोबोटिक्स एवं सेमीकंडक्टर के साथ जुड़े प्रशिक्षुता कार्यक्रमों का विस्तार करने से भविष्य के लिये तैयार कार्यबल तैयार होगा।
    • उद्योग-अकादमिक संबंधों, व्यावसायिक शिक्षा और STEM शिक्षा को मज़बूत करने से नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। 
    • कार्यस्थल पर सुरक्षा उपायों और प्रोत्साहनों के माध्यम से महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को प्रोत्साहित करने से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
    • MSME पारिस्थितिकी तंत्र और ऋण पहुँच को मज़बूत करना: डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से ऋण संवितरण को सुव्यवस्थित करना, ECLGS (आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना) कवरेज को बढ़ाना और संपार्श्विक आवश्यकताओं को कम करना MSME विकास को बढ़ावा देगा।
    • मुद्रा ऋण, SIDBI सहायता और फैक्टरिंग तंत्र का विस्तार करने से छोटे निर्माताओं के लिये चलनिधि में सुधार होगा।
    • क्लस्टर आधारित विकास, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और निर्यात प्रोत्साहन के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में MSME की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
    • आत्मनिर्भर भारत पहल और एक ज़िला एक उत्पाद पहल के तहत स्थानीय घटक विनिर्माण को समर्थन देने से आयात पर निर्भरता कम होगी।
  • बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण और औद्योगिक गलियारे: DMIC (दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा), CBIC (चेन्नई-बेंगलुरु औद्योगिक गलियारा) और AKIC (अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा) जैसी औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं में तेज़ी लाने से विनिर्माण केंद्रों को बढ़ावा मिलेगा। 
    • तैयार बुनियादी अवसंरचना, निर्बाध बिजली आपूर्ति और कम लागत वाली भूमि अधिग्रहण नीतियों के साथ प्लग-एंड-प्ले औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार निवेश को आकर्षित करेगा।
    • स्मार्ट शहरों, शहरी लॉजिस्टिक्स केंद्रों और हरित ऊर्जा ग्रिडों को सुदृढ़ करने से संधारणीय औद्योगिकीकरण सुनिश्चित होगा।
    • बुनियादी अवसंरचना के वित्तपोषण में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का लाभ उठाने से राजकोषीय बाधाएँ कम होंगी।
    • प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के साथ उच्च गति रेल माल ढुलाई प्रणालियों को एकीकृत करने से आपूर्ति शृंखला की समुत्थानशक्ति में सुधार होगा।
  • आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू विनिर्माण को मज़बूत करना: भारत को सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा विनिर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में स्वदेशीकरण में तेज़ी लानी चाहिये।
    • PLI (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन) योजनाओं का विस्तार करने तथा उच्च मूल्य विनिर्माण के लिये अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहनों को एकीकृत करने से विदेशी निर्भरता कम हो जाएगी। 
    • इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और ऑटो पार्ट्स के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) विकसित करने से आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा मिल सकता है।
    • संयुक्त उद्यमों, प्रौद्योगिकी अंतरण और घरेलू मूल्य शृंखला एकीकरण को प्रोत्साहित करने से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। 
  • उच्च तकनीक विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: भारत को लक्षित अनुसंधान एवं विकास वित्त पोषण के माध्यम से अर्द्धचालक, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रिक वाहन (EV), बायोटेक और डीप-टेक क्षेत्रों में उच्च मूल्य वाले विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिये।
    • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, AI नवाचार केंद्रों और स्टार्टअप इनक्यूबेशन कार्यक्रमों का विस्तार करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी तकनीक-संचालित विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा। 
    • पेटेंट संरक्षण, प्रौद्योगिकी अंतरण नीतियों और विश्वविद्यालय अनुसंधान अनुदानों को मज़बूत करने से नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। 
    • अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देने से स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का तेज़ी से व्यावसायीकरण संभव होगा। 
  • वैश्विक व्यापार साझेदारी और निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को तीव्र करना: भारत को निर्माताओं के लिये बाज़ार अभिगम का विस्तार करने के लिये यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा के साथ लंबित FTA को महत्त्वाकांक्षी तरीके से अंतिम रूप देना चाहिये।
    • घरेलू उद्योगों को बहुराष्ट्रीय आपूर्ति नेटवर्क के साथ एकीकृत करके वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भागीदारी को दृढ़ करने से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
    • निर्यात ऋण सुविधाएँ बढ़ाने, सीमा पार ई-कॉमर्स एकीकरण और वैश्विक विपणन सहायता से व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
    • उभरते बाज़ार (जैसे: अफ्रीका) में द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को मज़बूत करने से निर्यात गंतव्यों में विविधता आएगी।
  • संवहनीय और हरित विनिर्माण की ओर संक्रमण: कार्बन-शून्य औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देना, हरित हाइड्रोजन मिशन का विस्तार करना तथा सौर और पवन ऊर्जा अंगीकरण को प्रोत्साहित करना भारत को संवहनीय विनिर्माण में अग्रणी बनाएगा।
    • वृत्तीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं, पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग और शून्य-अपशिष्ट उत्पादन मॉडल को प्रोत्साहित करने से उद्योगों को वैश्विक ESG मानकों के अनुरूप बनाया जा सकेगा।
    • स्थायित्वपूर्ण निवेश के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करते हुए हरित विनियमन लागू करने से पर्यावरण के प्रति जागरूक विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
    • कार्बन क्रेडिट, ग्रीन बॉण्ड और नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण के लिये प्रमाणन कार्यढाँचे की स्थापना वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करेगी।

निष्कर्ष: 

भारत की विनिर्माण वृद्धि वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये नीतिगत सुधारों, बुनियादी अवसंरचना के उन्नयन एवं तकनीकी प्रगति पर निर्भर करती है। रसद, MSME समर्थन, उच्च तकनीक अनुसंधान एवं विकास और संवहनीय प्रथाओं को सुदृढ़ करके, राष्ट्र वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकता है। ‘वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल’ को अपनाना भारत को विश्व स्तरीय विनिर्माण का केंद्र बनाने की कुंजी होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने में 'मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड' पहल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इसकी सफलता में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं, तथा इसकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये कौन-से रणनीतिक उपाय आवश्यक हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न 1.  विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/ हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'एकल खिड़की मंजूरी' (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न 1.  “ ‘भारत में बनाइये’ कार्यक्रम की सफलता, ‘कौशल भारत’ कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।” तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2019)