विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत की अंतरिक्ष रणनीति
- 08 Mar 2025
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यह एडिटोरियल 27/02/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “ISRO’s space launch foray” पर आधारित है। यह लेख अमेरिका स्थित AST स्पेस मोबाइल सैटेलाइट के प्रक्षेपण के साथ वैश्विक उपग्रह बाज़ार में ISRO की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है, जो अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता और लाभप्रदता की दिशा में इसके वाणिज्यिक विस्तार पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:SpaDeX मिशन, चंद्रयान-3, लैग्रेंज प्वाइंट-1, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, गगनयान, चक्रवात मिचौंग, NISAR मिशन, नई अंतरिक्ष नीति, चीन का Chang’e कार्यक्रम, IN-SPACe, एंटी-सैटेलाइट (ASAT) क्षमता मेन्स के लिये:भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख हालिया घटनाक्रम, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
ISRO द्वारा अमेरिका स्थित AST स्पेस मोबाइल संचार उपग्रह का आगामी प्रक्षेपण उपग्रह प्रक्षेपण उद्योग में वैश्विक अग्रणी के रूप में भारत के उभरने में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। SpaDeX मिशन, चंद्रयान-3 की चंद्र लैंडिंग और क्रायोजेनिक इंजन विकास जैसी उपलब्धियों से पहले से ही प्रतिष्ठित, ISRO अब आकर्षक वाणिज्यिक उपग्रह बाज़ार में प्रवेश कर रहा है। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की स्वतंत्रता और वित्तीय सफलता की दिशा में यह वाणिज्यिक विस्तार एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख हालिया घटनाक्रम क्या हैं?
- सौर अनुसंधान को आगे बढ़ाना: भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-L1, जनवरी, 2024 में लैग्रेंज पॉइंट-1 (L1) पर सफलतापूर्वक अपनी हेलो कक्षा में पहुँच गई।
- आदित्य-L1 से प्राप्त डेटा भारत के अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान को बढ़ाएगा, जो उपग्रह सुरक्षा और संचार प्रणालियों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- यह भारत के गहन अंतरिक्ष अनुसंधान में एक बड़ा कदम है, जो इसे NASA और ESA के समकक्ष खड़ा करता है।
- भारत (ISRO, 2024) अब अमेरिका, यूरोप और चीन के साथ समर्पित सौर मिशन रखने वाले केवल चार देशों में से एक है।
- पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLV) में प्रगति: ISRO ने दो सफल पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLV) लैंडिंग प्रयोग: RLV-LEX-02 (मार्च 2024) और RLV-LEX-03 (जून 2024) आयोजित किये।
- पुन: प्रयोज्यता से प्रक्षेपण लागत में 80% तक की कमी आ सकती है, जिससे वाणिज्यिक और वैज्ञानिक मिशनों के लिये अंतरिक्ष अधिक सुलभ (ISRO, 2024) हो जाएगा।
- डैनों वाले प्रोटोटाइप 'पुष्पक' को स्वचालित लैंडिंग से पहले 4.5 किमी. की ऊँचाई पर चिनूक हेलीकॉप्टर से ड्रॉप किया गया, जिससे भविष्य में पुन: प्रयोज्य रॉकेट प्रौद्योगिकी की व्यवहार्यता सिद्ध हुई।
- RLV परीक्षण ISRO को SpaceX’ के स्टारशिप और NASA के ड्रीम चेज़र के समान पूर्णतः पुन: प्रयोज्य अंतरिक्षयान विकसित करने के समीप ले आया है।
- भारत का पहला अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग (SpaDeX) और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन की योजनाएँ: भारत ने दिसंबर 2024 में SpaDeX (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) मिशन के साथ अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में एक सफलता हासिल की।
- अंतरिक्ष डॉकिंग में निपुणता प्राप्त करना, लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों, कक्षा में ईंधन भरने और अंतरिक्ष आवास निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- यह उपलब्धि गहन अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरग्रहीय लॉजिस्टिक्स में भारत के भविष्य को सुदृढ़ करती है।
- भारत अब विश्व स्तर पर चौथा देश है (अमेरिका, रूस और चीन के बाद) जिसने स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष डॉकिंग हासिल की है।
- ISRO की योजना वर्ष 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS-1) को लॉन्च करने की है, जिसकी शुरुआत एक प्रारंभिक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन सेगमेंट से होगी।
- अंतरिक्ष डॉकिंग में निपुणता प्राप्त करना, लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों, कक्षा में ईंधन भरने और अंतरिक्ष आवास निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन में प्रगति: वर्ष 2025 के लिये निर्धारित भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान मिशन, गगनयान में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
- इस मिशन का उद्देश्य तीन सदस्यीय चालक दल को तीन दिनों के लिये पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में भेजना है, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
- परीक्षण वाहन निरस्तीकरण प्रदर्शन-1 ((TV-D1) ने प्रक्षेपण विफलता की स्थिति में चालक दल की बचाव प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- ISRO ने रूस के गागरिन कॉस्मोनॉट प्रशिक्षण केंद्र में चार भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित किया है और बेंगलुरु में एक चालक दल प्रशिक्षण सुविधा स्थापित कर रहा है।
- भारत की मौसम और आपदा निगरानी क्षमताओं को सुदृढ़ करना: INSAT-3DS के प्रक्षेपण से मौसम पूर्वानुमान, चक्रवात ट्रैकिंग और आपदा प्रबंधन में काफी सुधार हुआ है।
- 10 वर्ष की परिचालन अवधि के लिये डिज़ाइन किया गया यह उपग्रह तापमान, आर्द्रता और वायुमंडलीय स्थितियों सहित वास्तविक काल में मौसम डेटा प्रदान करता है।
- इससे भारत की चरम मौसमी घटनाओं का पूर्वानुमान करने की क्षमता बढ़ती है, तथा चक्रवातों, बाढ़ और गर्म हवाओं से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है।
- INSAT-3DS ने दिसंबर 2023 में चक्रवात मिचौंग की मॉनिटरिंग करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे शीघ्र निकासी संभव हो सकी।
- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग में भारत की बढ़ती भूमिका: ISRO ने ESA के Proba-3 मिशन को लॉन्च किया, जिससे एक विश्वसनीय वैश्विक प्रक्षेपण साझेदार के रूप में इसकी प्रतिष्ठा सुदृढ़ हुई।
- यह मिशन, सटीक उड़ान का उपयोग करके पूर्ण सूर्यग्रहण का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो छोटे उपग्रह प्रक्षेपणों और वैज्ञानिक मिशनों में भारत की विशेषज्ञता को प्रदर्शित करता है।
- भारत जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी के लिये उपग्रह निसार मिशन (वर्ष 2024) के लिये NASA के साथ काम कर रहा है।
- भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र का विस्तार: IN-SPACe और नई अंतरिक्ष नीति (वर्ष 2023) की शुरुआत के साथ, भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप, उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण सेवाओं में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है।
- स्काईरूट एयरोस्पेस, अग्निकुल कॉसमॉस और पिक्सल जैसी कंपनियाँ स्वदेशी प्रक्षेपण वाहन एवं उन्नत पेलोड विकसित कर रही हैं।
- स्काईरूट का विक्रम-एस (नवंबर 2022) भारत का पहला निजी रॉकेट प्रक्षेपण बन गया, जो वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों की ओर संक्रमण का प्रतीक है।
- हरित प्रणोदन और सतत् अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियाँ: ISRO सक्रिय रूप से पर्यावरण अनुकूल प्रणोदन प्रणालियों का विकास कर रहा है, जिसमें गहन अंतरिक्ष मिशनों के लिये तरल मीथेन-LOX इंजन और सोलर-इलेक्ट्रिक थ्रस्टर्स शामिल हैं।
- विक्रम -1 रॉकेट (स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा) और ISRO के भविष्य के मिशनों का उद्देश्य पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये हरित प्रणोदकों का उपयोग करना है।
- चंद्रयान -3 लैंडर में गैर-विषाक्त प्रणोदन का उपयोग किया गया, जो ISRO की हरित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के प्रति प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
- चंद्रयान-4 की स्वीकृति और भारत की आगामी चंद्र महत्त्वाकांक्षाएँ: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद, ISRO ने चंद्रयान-4 के लिये स्वीकृति प्राप्त कर ली है, जो चंद्रमा पर सैंपल रीटर्न मिशन है।
- इस मिशन का उद्देश्य सटीक लैंडिंग और स्व-स्थाने चंद्र अध्ययन में भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठाना है तथा वैश्विक चंद्र-विज्ञान में योगदान देना है।
- चंद्रयान-4 चंद्रमा से सैंपल लाने वाला भारत का पहला रोबोटिक मिशन होगा, जो चीन के Chang’e-5 के समान होगा।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- सीमित बजट आवंटन: ISRO की उपलब्धियों के बावजूद, भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र वैश्विक समकक्षों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे बजट पर संचालित होता है, जिससे गहन अंतरिक्ष मिशनों और प्रौद्योगिकी विकास का दायरा सीमित हो जाता है।
- अधिकांश वित्तपोषण अभी भी सरकार से प्राप्त होता है, जिससे निजी क्षेत्र द्वारा संचालित नवाचार और व्यावसायीकरण पर रोक लगती है।
- सत्र 2024-25 के लिये ISRO का बजट 13,042.75 करोड़ रुपए (लगभग 1.95 बिलियन डॉलर) है। इसके विपरीत, NASA बिना किसी कटौती के लगभग 25 बिलियन डॉलर के बहुत बड़े बजट के साथ काम करता है।
- भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार का केवल 2% है।
- पुन: प्रयोज्य और लागत प्रभावी प्रक्षेपण प्रौद्योगिकियों का मंद विकास: हालाँकि ISRO ने पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLV) प्रयोगों में प्रगति की है, लेकिन परिचालन पुन: प्रयोज्य रॉकेटों के मामले में यह SpaceX (फाल्कन 9) और ब्लू ओरिजिन (न्यू शेपर्ड) जैसी निजी कंपनियों से पीछे है।
- उच्च प्रक्षेपण लागत वैश्विक वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने की भारत की क्षमता को सीमित करती है, जिसके लिये कम लागत वाली, लगातार एवं पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने के लिये पूर्णतः पुन: प्रयोज्य रॉकेटों के विकास में तेज़ी लाना महत्त्वपूर्ण है।
- अंतरिक्ष में बढ़ता मलबा और कक्षीय भीड़भाड़: बढ़ते उपग्रह प्रक्षेपणों के साथ, अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन एक गंभीर चुनौती बन गया है, जिससे परिचालन उपग्रहों और भविष्य के मिशनों के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है।
- भारत के पास स्वतंत्र अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणाली का अभाव है, जिसके कारण उसे मलबे की ट्रैकिंग के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) के विशाल तारामंडलों के लिये हज़ारों उपग्रहों की योजना के कारण, टकराव का खतरा और कक्षीय भीड़भाड़ बढ़ जाएगी, जिसके लिये तत्काल नियामक एवं तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।
- 212 प्रक्षेपणों और कक्षा में विखंडन की घटनाओं से उत्पन्न कुल 3143 वस्तुओं को वर्ष 2023 में अंतरिक्ष वस्तु जनसंख्या में जोड़ा गया, जिससे अंतरिक्ष मलबे के बढ़ते खतरे पर प्रकाश डाला गया।
- अंतरिक्ष नीति और नियामक कार्यढाँचे का विलंबित कार्यान्वयन: भारत की नई अंतरिक्ष नीति- 2023, इस क्षेत्र को निजी भागीदारों के लिये खोलने की दिशा में एक बड़ा कदम था, लेकिन कार्यान्वयन में विलंब और प्रशासनिक बाधाओं ने इसके प्रभाव को धीमा कर दिया है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को विनियमित और सुविधाजनक बनाने के लिये बनाया गया IN-SPACe अभी भी अपना कार्यढाँचा विकसित कर रहा है, जिससे स्टार्टअप्स और निवेशकों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- वैश्विक निवेश को आकर्षित करने के लिये अंतरिक्ष गतिविधियों, उपग्रह लाइसेंसिंग और क्षति के मामले में देयता पर एक स्पष्ट कानूनी कार्यढाँचा आवश्यक है।
- भारत में 150 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप हैं, लेकिन अधिकांश को फंडिंग, विनियामक अनुमोदन और वैश्विक बाज़ार तक पहुँच के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।
- साइबर सुरक्षा खतरे और अंतरिक्ष परिसंपत्ति संरक्षण: संचार, रक्षा और नेविगेशन के लिये उपग्रहों पर बढ़ती निर्भरता के साथ, अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को लक्षित करने वाले साइबर खतरे राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- भारत में सैटेलाइट हैकिंग, GPS स्पूफिंग और अंतरिक्ष आधारित जासूसी से सुरक्षा के लिये स्वतंत्र अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा कमान का अभाव है।
- ISRO के पास वर्तमान में स्वायत्त साइबर सुरक्षा प्रभाग का अभाव है, जिसके कारण इसके उपग्रह शत्रुतापूर्ण साइबर घुसपैठ के लिये संभावित लक्ष्य बन जाते हैं।
- अंतरिक्ष अवसंरचना पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: चरम मौसमी घटनाएँ, बढ़ता तापमान और आर्द्रता का बढ़ता स्तर ISRO के प्रक्षेपण स्थलों एवं ग्राउंड स्टेशनों के लिये खतरा उत्पन्न कर रहे हैं।
- श्रीहरिकोटा (SHAR) और थुम्बा जैसे तटीय प्रक्षेपण स्थल चक्रवातों और समुद्र-स्तर में वृद्धि के प्रति भेद्य हैं, जिससे संभावित रूप से भविष्य के प्रक्षेपण कार्यक्रम एवं बुनियादी अवसंरचना की स्थायित्व प्रभावित हो सकती है।
- इन जोखिमों को कम करने के लिये सख्त प्रक्षेपण परिसरों और वैकल्पिक अंतर्देशीय प्रक्षेपण स्थलों सहित जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है।
- उभरती हुई अंतरिक्ष शक्तियों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा: भारत को चीन, संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो चंद्र अन्वेषण, गहन अंतरिक्ष मिशन एवं निजी क्षेत्र के विकास में आगे बढ़ रहे हैं।
- चीन के Chang’e कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2035 तक चंद्रमा पर कॉलोनी स्थापित करना है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात के मंगल और चंद्रमा मिशन वैश्विक साझेदारियों को आकर्षित कर रहे हैं।
- नेतृत्व बनाए रखने के लिये, भारत को चंद्रयान-4, शुक्र मिशन और अंतर-ग्रहीय अन्वेषण परियोजनाओं में तेज़ी लानी होगी।
- सामरिक सैन्य अंतरिक्ष क्षमताओं में विलंब: समर्पित सैन्य अंतरिक्ष परिसंपत्तियों के विकास में भारत की गति धीमी रही है तथा चीन की अंतरिक्ष सेना और हथियारबंद उपग्रह क्षमताओं से भी पीछे है।
- यद्यपि भारत के पास उपग्रह रोधी (ASAT) क्षमताएँ हैं, लेकिन उसके पास समर्पित अंतरिक्ष आधारित मिसाइल रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपग्रहों का अभाव है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एकीकृत अंतरिक्ष कमान और रक्षा उपग्रह समूह की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।
- चीन के पास 300 से अधिक सैन्य उपग्रह हैं, जबकि भारत रक्षा और निगरानी के लिये इससे कम उपग्रहों से काम चला रहा है।
अंतरिक्ष क्षेत्र को बढ़ाने के लिये भारत क्या रणनीतिक उपाय अपना सकता है?
- बजट आवंटन में वृद्धि और सतत् वित्तपोषण मॉडल: भारत को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा देते हुए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना चाहिये।
- एक समर्पित अंतरिक्ष विकास कोष (SDF) की स्थापना से गहन अंतरिक्ष मिशनों, उपग्रह निर्माण और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों के लिये निरंतर वित्तपोषण सुनिश्चित हो सकता है।
- ISRO की वाणिज्यिक शाखा, NSIL (न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड) का विस्तार, वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण के माध्यम से राजस्व सृजन को बढ़ावा दे सकता है।
- पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLV) और लागत प्रभावी प्रक्षेपण प्रौद्योगिकियों में तेज़ी लाना: भारत को प्रक्षेपण लागत कम करने, आवृत्ति बढ़ाने और SpaceX जैसे निजी भागीदारों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये RLV विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- पुष्पक आरएलवी प्रौद्योगिकी को सुदृढ़ करना, AI-संचालित स्वायत्त लैंडिंग सिस्टम को एकीकृत करना, और मीथेन-LOX प्रणोदन प्रणाली विकसित करना पुन: प्रयोज्यता में सुधार कर सकता है।
- हाइपरसोनिक उड़ान अनुसंधान और स्क्रैमजेट इंजन परीक्षण को बढ़ाने से लागत प्रभावी अंतरिक्ष यात्रा संभव होगी। उच्च गति वायुगतिकीय अनुसंधान के लिये एक समर्पित RLV परीक्षण केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र और स्टार्टअप की भागीदारी का विस्तार: भारत को निजी भागीदारों को प्रक्षेपण वाहनों, उपग्रहों और गहन अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में सक्षम बनाने के लिये नई अंतरिक्ष नीति- 2023 को पूरी तरह से लागू करना चाहिये।
- IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) को सुदृढ़ करने से अनुमोदन सुचारू हो जाएगा और प्रशासनिक विलंब कम हो जाएगा।
- कर प्रोत्साहन, विनियामक सहजता और उद्यम पूंजी समर्थन से अधिक स्टार्टअप्स को अंतरिक्ष विनिर्माण, प्रणोदन प्रणाली एवं AI-संचालित उपग्रह सेवा क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- निजी उपग्रह प्रक्षेपण के लिये लाइसेंसिंग प्रक्रिया में तेज़ी लाने से भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन और अंतरिक्ष मलबे के शमन को मज़बूत करना: भारत को अंतरिक्ष वस्तुओं से होने वाले नुकसान के लिये अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर कन्वेंशन के अनुसार अंतरिक्ष मलबे की निगरानी, ट्रैकिंग और शमन के लिये एक स्वतंत्र अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन (STM) प्रणाली स्थापित करनी चाहिये।
- लेज़र पृथक्करण और रोबोटिक आर्म्स का उपयोग करते हुए एक्टिव डेब्रिस रिमूवल (ADR) उपग्रहों को तैनात करने से कक्षा से निष्क्रिय उपग्रहों को हटाने में मदद मिल सकती है।
- भारत के बढ़ते उपग्रह अंतरिक्ष उड़ान में AI-संचालित टक्कर परिहार प्रणालियों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- UNOOSA और IADC (अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति) के तहत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करने से वैश्विक अंतरिक्ष संवहनीयता में भारत की भूमिका बढ़ेगी।
- मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों के लिये अंतरिक्ष अवसंरचना में तेज़ी लाना: दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिये, भारत को अंतरिक्ष आवास, उन्नत चालक दल मॉड्यूल तथा गहन अंतरिक्ष जीवन समर्थन प्रणालियों का विकास करना होगा।
- एक समर्पित मानव अंतरिक्ष उड़ान अनुसंधान केंद्र (HSRC) की स्थापना से अंतरिक्ष चिकित्सा, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण तथा सूक्ष्मगुरुत्व/माइक्रोग्रेविटी अनुसंधान में नवाचारों को प्रोत्साहन मिलेगा।
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BS-1) की कार्ययोजना को वर्ष 2035 तक संचालन के लिये तैयार करने हेतु तीव्र गति से क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
- साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष परिसंपत्ति संरक्षण में वृद्धि करना: भारत को उपग्रहों, GPS प्रणालियों तथा रक्षा अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को साइबर खतरों से बचाने के लिये ISRO और DRDO के तहत एक समर्पित अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा कमान की स्थापना की जानी चाहिये।
- क्वांटम एन्क्रिप्शन, AI-संचालित विसंगति की पहचान और सैटेलाईट फायरवॉल को मज़बूत करने से महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों के लिये रियल टाइम जोखिम निगरानी प्रणाली को लागू करने से हैकिंग, GPS स्पूफिंग तथा विद्युत चुंबकीय अटैक के प्रति सुभेद्यता कम हो जाएँगी।
- अंतरिक्ष और अंतरग्रहीय अन्वेषण क्षमता को सशक्त करना: भारत को चंद्रमा, मंगल और शुक्र के मिशनों में तेज़ी लानी चाहिये ताकि वैश्विक अंतरिक्ष में उसकी अग्रणी स्थिति में वृद्धि हो सके।
- चंद्रयान-4 (लूनर सैंपल रिटर्न मिशन) और मंगलयान-2 (मार्स ऑर्बिटर मिशन-2) को उन्नत रोबोट रोवर्स, AI-संचालित नेविगेशन और इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइज़ेशन (ISRU) अनुप्रयोगों के साथ प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- अंतरग्रहीय अनुसंधान केंद्र (IRC) की स्थापना से वैज्ञानिक सहयोग और नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
- भारत के उपग्रह-आधारित अनुप्रयोगों और डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार: भारत को आपदा प्रबंधन, कृषि और राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये पृथ्वी अवलोकन, नेविगेशन तथा ब्रॉडबैंड इंटरनेट हेतु अपने उपग्रह बेड़े का विस्तार करना चाहिये।
- अगली पीढ़ी के NavIC उपग्रहों की तैनाती से स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन तथा भू-स्थानिक खुफिया जानकारी बढ़ेगी।
- उपग्रह आधारित क्वांटम संचार को मज़बूत करने से सुरक्षित डेटा ट्रांसमिशन और रक्षा अनुप्रयोगों में वृद्धि होगी।
- जलवायु-अनुकूल अंतरिक्ष अवसंरचना तथा वैकल्पिक प्रक्षेपण स्थल: जलवायु परिवर्तन, समुद्र-स्तर में वृद्धि और चरम मौसम स्थितियों के कारण होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये, भारत को श्रीहरिकोटा से पृथक अन्य अंतर्देशीय प्रक्षेपण स्थलों का विकास करना चाहिये।
- मध्य भारत में दूसरा प्रक्षेपण परिसर स्थापित करने से प्रतिकूल मौसम की स्थिति के दौरान परिचालन की अतिरिक्त सुविधा प्राप्त होगी।
- उन्नत हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग और AI-संचालित जलवायु मॉडलिंग के माध्यम से ISRO के मौसम निगरानी उपग्रहों को सशक्त बनाने से भारत की आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं में उल्लेखनीय सुधार होगा।
- पर्यावरण अनुकूल, गैर विषाक्त हरित प्रणोदन प्रौद्योगिकियों को लागू करने से भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम वैश्विक सतत् लक्ष्यों के साथ संरेखित होगा।
निष्कर्ष:
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जहाँ ISRO वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण, पुनः प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, गहन अंतरिक्ष अन्वेषण और मानव अंतरिक्ष उड़ान में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। निरंतर प्रयासों के साथ, ISRO तकनीकी नवाचार को आगे बढ़ा सकता है, आर्थिक अवसरों में वृद्धि कर सकता है और वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में योगदान दे सकता है, जिससे अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का दीर्घकालिक नेतृत्व सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. पिछले कुछ वर्षों में, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें गहन अंतरिक्ष अन्वेषण से लेकर पुनः प्रयोज्य प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी तक कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ शामिल हैं। विश्लेषण करें कि ये विकास भारत की वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को किस प्रकार सुदृढ़ करते हैं। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न: भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023) प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) प्रश्न: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा करें। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? ( 2016) |