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भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

  • 12 Aug 2024
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 09/08/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Reducing the poor’s health burden” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में गरीबी से प्रेरित स्वास्थ्य आघातों को कम करने और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार के मामले में एक सकारात्मक रुझान पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिये विद्यमान असमानताओं और गैर-संचारी रोगों की वृद्धि को संबोधित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, गैर-संचारी रोग, आयुष्मान भारत, ई-संजीवनी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017, कोविड-19 महामारी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, मिशन इंद्रधनुष। 

मेन्स के लिये:

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे, भारत में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित प्रमुख पहल।

हाल ही में संपन्न आर्थिक सर्वेक्षण (HCES 2022-23) के विश्लेषण से पता चलता है कि गरीबी से प्रेरित स्वास्थ्य आघातों के विरुद्ध देश के संघर्ष में एक सकारात्मक रुझान नज़र आ रहा है। वर्ष 2011-12 से 2022-23 के बीच अस्पताल भर्ती व्यय करने वाले परिवारों के अनुपात में वृद्धि हुई है, जो स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच का संकेत देती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन परिवारों पर अस्पताल में भर्ती होने का वित्तीय बोझ कम हुआ है, जहाँ अस्पताल में भर्ती सुविधा लेने वाले परिवारों के लिये मासिक घरेलू व्यय में स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 10.8% से घटकर 9.4% हो गया है।

हालाँकि, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की राह अभी भी बाधाओं से भरी हुई है। स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, गुणवत्ता और समग्र वहनीयता में असमानताएँ कई भूभागों को अभी भी बाधित कर रही हैं। बढ़ते स्वास्थ्य बोझ के रूप में गैर-संचारी रोगों के उभरने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत को अपनी गति को बनाए रखना चाहिये, ‘आयुष्मान भारत’ जैसी योजनाओं की सफलताओं का लाभ उठाते हुए आगे बढ़ना चाहिये और अपने सभी नागरिकों के लिये एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिये इन स्थायी मुद्दों को संबोधित करना चाहिये।

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबंधित वर्तमान प्रमुख मुद्दे :

  • असंतुलित प्राथमिकताएँ – अवसंरचना और प्रतिफल का अंतराल: हालाँकि भारत ने स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के मामले में प्रगति की है, लेकिन इसके प्रतिफल उसी गति से प्राप्त नहीं हुए हैं।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में वृद्धि की है, लेकिन भारत में लगभग 80% सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएँ न्यूनतम आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करती हैं।
    • CAG रिपोर्ट (2023) से खुलासा हुआ कि आयुष्मान भारत के तहत ‘मृत’ के रूप में चिह्नित रोगियों का भी इलाज चल रहा था और आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के 9.85 लाभार्थी एक ही मोबाइल नंबर से पंजीकृत थे।
    • गुणवत्ता की अपेक्षा मात्रा पर अधिक ध्यान देने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि पहले से अधिक भारतीयों को स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच तो मिल रही है, लेकिन प्रायः उन्हें पर्याप्त देखभाल नहीं मिल पाती।
    • प्राथमिकताओं का यह असंतुलन लगातार बनी रही उच्च मातृ मृत्यु दर से स्पष्ट है, जो संस्थागत प्रसव में वृद्धि के बावजूद 103 के स्तर पर थी (UN MMEIG 2020 रिपोर्ट के अनुसार)।
  • ‘डिजिटल डिवाइड’: कोविड-19 महामारी ने भारत में टेलीमेडिसिन के अंगीकरण को गति प्रदान की और सरकार का ई-संजीवनी प्लेटफॉर्म 2024 की शुरुआत में 200 मिलियन परामर्शों को पार कर गया।
    • हालाँकि, इस डिजिटल छलाँग ने अनजाने में ही स्वास्थ्य सेवा की खाई को और चौड़ा कर दिया है। जबकि शहरी, टेक-सैवी आबादी को लाभ हुआ है, बदतर इंटरनेट कनेक्टिविटी और कम डिजिटल साक्षरता रखने वाले ग्रामीण क्षेत्र पीछे छूट गए हैं।
  • वर्ष 2023 तक लगभग 45% ग्रामीण आबादी के पास इंटरनेट तक पहुँच नहीं थी, जो डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच की स्थिति को उजागर करता है।
    • प्रतिभा पलायन और कौशल असंतुलन: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली योग्य पेशेवरों की गंभीर कमी से जूझ रही है।
      • यद्यपि देश में चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1:834 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1:1000 से बेहतर है, लेकिन यह सभी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में एकसमान नहीं है।
    • उदाहरण के लिये, भारत में विश्व के एक चौथाई वृद्धजनों का वास है, लेकिन यहाँ प्रति वर्ष केवल 20 वृद्धावस्था विशेषज्ञ (geriatricians) ही उपलब्ध होते हैं।
  • इसके अलावा, चिकित्सा शिक्षा और प्राथमिक देखभाल आवश्यकताओं के बीच एक बेमेल संबंध पाया जाता है, जिसके कारण कम संख्या में नए चिकित्सा स्नातक पारिवारिक चिकित्सा या ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में करियर का चयन करते हैं।
  • OOPE व्यय का जाल: आयुष्मान भारत जैसी पहलों (जिसका लक्ष्य 500 मिलियन भारतीयों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है) के बावजूद निजी व्यय या OOPE (Out-of-Pocket Expense) स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में एक बड़ी बाधा बना हुआ है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्च 2022 की रिपोर्ट में पाया गया है कि 17% से अधिक भारतीय परिवारों को प्रति वर्ष भारी स्वास्थ्य व्यय का वहन करना पड़ता है।
  • निवारक स्वास्थ्य देखभाल - उपेक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली काफी हद तक निवारक के बजाय प्रतिक्रियात्मक बनी रही है।
    • जबकि संचारी रोगों में कमी आ रही है, गैर-संचारी रोग (NCDs) बढ़ रहे हैं, जो भारत में होने वाली कुल मृत्यु में 63% का योगदान करते हैं।
    • स्वास्थ्य शिक्षा, जीवनशैली में सुधार और प्रारंभिक जाँच (स्क्रीनिंग) कार्यक्रमों पर बल नहीं दिये जाने के कारण निवारण-योग्य बीमारियों में वृद्धि हुई है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सोशल मीडिया, स्क्रीन टाइम, निष्क्रिय आदतें और अस्वास्थ्यकर आहार संयुक्त रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य, उत्पादकता और भारत की आर्थिक क्षमता के लिये गंभीर खतरे उत्पन्न करते हैं।
  • देखभाल की गुणवत्ता – विश्वसनीयता का संकट: भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में व्यापक भिन्नता पाई जाती है, जहाँ गुणवत्ताहीन देखभाल, चिकित्सा लापरवाही और मानकीकरण की कमी जैसी चिंताएँ मौजूद हैं।
    • अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा पहुँच की तुलना में खराब गुणवत्तापूर्ण देखभाल के कारण अधिक मौतें होती हैं। वर्ष 2016 में खराब गुणवत्तापूर्ण देखभाल के कारण 1.6 मिलियन भारतीयों की मृत्यु हुई, जो स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच की कमी से मृत्यु का शिकार होने वाले लोगों की संख्या से अधिक थी।
    • निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (जो बाह्य रोगी देखभाल के एक बड़े अनुपात में भूमिका रखते हैं) के लिये एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे का अभाव इस समस्या को और बढ़ा देता है।
  • चिकित्सा क्षेत्र के घोटालों, जैसे दिल्ली के एक प्रमुख अस्पताल में वर्ष 2017 में सामने आया अधिक शुल्क वसूली और चिकित्सकीय लापरवाही का मामला, ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में आम लोगों के भरोसे को और कम कर दिया है।
  • मानसिक स्वास्थ्य – एक उपेक्षित संकट: मानसिक स्वास्थ्य भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का एक गंभीर रूप से उपेक्षित पहलू बना हुआ है।
    • भारत में लगभग 60 से 70 मिलियन लोग सामान्य से लेकर गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित हैं।
      • यह तथ्य चिंताजनक है कि भारत को विश्व की आत्महत्या की राजधानी (world's suicide capital) के रूप में जाना जाता है, जहाँ प्रति वर्ष 2.6 लाख से अधिक आत्महत्या के मामले सामने आते हैं।
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 जो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी देता है, के कार्यान्वयन के बावजूद देश में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की गंभीर कमी है।
      • भारत में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं, जबकि वांछनीय अनुपात प्रति 100,000 पर 3 है।
      • कोविड-19 महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ा दिया है, जहाँ विभिन्न अध्ययनों से दुश्चिंता और अवसाद की दर में वृद्धि की पुष्टि हुई है।
  • दवा उद्योग से जुड़े मुद्दे: भारत का दवा उद्योग, जिसे प्रायः ‘विश्व का दवाख़ाना’ कहा जाता है, वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • हालाँकि, इस उद्योग को गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दों, सक्रिय दवा सामग्री (API) के लिये चीन पर भारी निर्भरता और कड़े मूल्य नियंत्रण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2023 में उज्बेकिस्तान में कम से कम 20 बच्चों की मौत से जुड़े दो भारत निर्मित कफ सिरप के उपयोग के विरुद्ध चेतावनी जारी की थी।

भारत में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित प्रमुख पहलें:

  • आयुष्मान भारत: इस प्रमुख कार्यक्रम का उद्देश्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना है और इसमें दो मुख्य घटक शामिल हैं:
    • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना योजना (PM-JAY): यह द्वितीयक और तृतीयक अस्पताल भर्ती देखभाल के लिये प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है।
    • स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र: व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये 150,000 स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन: एक छत्र कार्यक्रम जिसमें शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)
    • राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM)
    • इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना में सुधार करना, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाना और ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM): इसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिये विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान पत्र, डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड और चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की रजिस्ट्री के साथ एक डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
  • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY): यह स्वास्थ्य सेवा में क्षेत्रीय असंतुलन को ठीक करने पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें शामिल है:
    • नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों (AIIMS) की स्थापना करना
    • मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों का उन्नयन करना
  • मिशन इंद्रधनुष: यह एक टीकाकरण कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य आंशिक रूप से टीकाकृत या गैर-टीकाकृत बच्चों और गर्भवती महिलाओं के बीच टीकाकरण कवरेज को बढ़ाना है। 
  • जननी सुरक्षा योजना (JSY): यह NHM के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है, जो नकद सहायता प्रदान कर गरीब गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देता है।
  • प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP): इसका उद्देश्य जन औषधि केंद्र नामक समर्पित खुदरा दुकानों के माध्यम से सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण दवाइयाँ उपलब्ध कराना है। 
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): यह मानसिक विकारों के उपचार एवं रोकथाम के साथ सुलभ और सस्ती मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत अपने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सुधार के लिये कौन-से उपाय कर सकता है?

  • शहरी-ग्रामीण विभाजन को दूर करना: भारत शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल अंतराल को दूर करने के लिये मोबाइल स्वास्थ्य (mHealth) प्रौद्योगिकियों का लाभ उठा सकता है।
    • टेलीमेडिसिन सुविधाओं, नैदानिक उपकरणों और आवश्यक दवाओं से सुसज्जित मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क विकसित करने से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा पहुँच में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
    • इन इकाइयों को आशा (ASHA) कार्यकर्ताओं और सामान्य सेवा केंद्रों द्वारा समर्थित किया जा सकता है ।
    • तमिलनाडु में मोबाइल मेडिकल यूनिट जैसे सफल मॉडल को पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़ करना: भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को पुनर्जीवित करना समग्र स्वास्थ्य सुधार के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार को अपने वादे के अनुसार आयुष्मान भारत योजना के तहत वर्ष 2025 तक सभी 150,000 स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों को उन्नत बनाने और उनमें पूर्ण कार्यबल क्षमता उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • इन केंद्रों को NCD प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और निवारक देखभाल सहित विभिन्न सेवाओं की एक व्यापक शृंखला प्रदान करनी चाहिये।
    • पारिवारिक चिकित्सक मॉडल (family physician model), जहाँ प्रत्येक केंद्र में एक निर्धारित जनसंख्या के लिये ज़िम्मेदार समर्पित चिकित्सक की उपस्थिति होती है, को लागू करने से देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित हो सकती है और द्वितीयक एवं तृतीयक सुविधाओं पर बोझ कम हो सकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी - सफलता के लिये तालमेल: भारत स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की क्षमता का उपयोग कर सकता है।
    • सरकार को स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिये एक सुदृढ़ ढाँचा तैयार करना चाहिये, जिसमें अस्पताल प्रबंधन, नैदानिक सेवा और विशेषज्ञ देखभाल जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • नारायण हेल्थ के साथ राजस्थान सरकार की साझेदारी जैसे सफल मॉडल को सभी राज्यों में दोहराया जा सकता है।
  • डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र – प्रभाव के लिये अंतर-संचालनीयता: स्वास्थ्य सेवा दक्षता और पहुँच में सुधार के लिये एक व्यापक, अंतर-संचालनीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण आवश्यक है।
    • सरकार को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये।
    • मानकीकृत इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (EHRs) विकसित करना और सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा उनका अंगीकरण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य सूचना एक्सचेंज (Health Information Exchange- HIE) को लागू करने से निर्बाध डेटा साझाकरण की सुविधा मिल सकती है, दुहरावपूर्ण परीक्षणों में कमी आ सकती है और देखभाल समन्वय में सुधार हो सकता है।
    • भारत के लिये स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: संदर्भ-विशिष्ट और लागत प्रभावी समाधान विकसित करने के लिये भारत की स्वास्थ्य सेवा अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार को स्वास्थ्य सेवा अनुसंधान एवं विकास पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना चाहिये।
    • सफल सिद्ध हुए ‘मेड-इन-थाईलैंड मेडिकल इनोवेशन’ के समान भारत में भी बायोमेडिकल अनुसंधान पार्कों का एक नेटवर्क स्थापित करने से शिक्षा जगत, उद्योग और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
    • स्वास्थ्य देखभाल और फर्मास्यूटिकल मानकों को बढ़ाना: स्वास्थ्य देखभाल और फर्मास्यूटिकल सुविधाओं के लिये सुदृढ़ गुणवत्ता नियंत्रण उपायों एवं मान्यता प्रणालियों को लागू करना आवश्यक है।
    • इसमें रोगी सुरक्षा, नैदानिक परिणामों और स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन के लिये कड़े मानक निर्धारित करना तथा उन्हें लागू करना शामिल है।
    • नियमित ऑडिट, पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र और पुरस्कार एवं दंड की एक प्रणाली गुणवत्ता में सुधार ला सकती है।
    • मरीजों की प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय लेने में शामिल करना देखभाल की गुणवत्ता को और बेहतर बना सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा पहुँच के बीच अंतराल को दूर करने पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए इन चुनौतियों से निपटने के उपायों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2.  छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना। 
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना। 
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: A


मेन्स:

प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है" विश्लेषण कीजिये। (2021)

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