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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ICJ कार्यवाही: दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल

  • 27 Jan 2024
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 25/01/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The issue of genocide and the world court” लेख पर आधारित है। इसमें गाज़ा युद्ध के संबंध में ICJ में इज़राइल के विरुद्ध दक्षिण अफ्रीका की कानूनी कार्रवाई के बारे में चर्चा की गई है। इस मामले में इज़राइल राज्य पर युद्ध अपराध, मानवाधिकारों के हनन और नरसंहार के कृत्य जैसे आरोप शामिल हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, जेनोसाइड कन्वेंशन, ICJ के साथ भारत का संबंध, द्वितीय विश्व युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर रोम संविधि, गाजा युद्ध, इज़राइल, फिलिस्तीन, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR)

मेन्स के लिये:

नरसंहार और उसके परिणाम, नरसंहार से निपटने के लिये भारत द्वारा अपनाए गए उपाय।

मानवाधिकार हनन, नरसंहार (genocide) और युद्ध अपराध (war crimes) अंतर्राष्ट्रीय कानून के व्यापक ढाँचे के भीतर परस्पर-संबद्ध अवधारणाएँ हैं, जो विशेष रूप से संघर्ष या संकट के समय व्यक्तियों एवं समूहों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करती हैं। मानव अधिकार नरसंहार और युद्ध अपराधों की रोकथाम के लिये आधार के रूप में कार्य करते हैं। ये अधिकार विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों और घोषणाओं में निहित हैं, जैसे कि मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR)

दक्षिण अफ्रीका ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ) में इज़राइल के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही शुरू की है। अपने आवेदन में दक्षिण अफ्रीका ने तर्क दिया कि जिस तरह से इज़राइल गाज़ा में अपने सैन्य अभियान चला रहा था, उसने नरसंहार के अपराध की रोकथाम और दंड पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (International Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide), जिसे ‘जेनोसाइड कन्वेंशनके रूप में भी जाना जाता है, का उल्लंघन किया है।

नरसंहार या ‘जेनोसाइड’ क्या है?

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, नरसंहार किसी विशेष जातीय, नस्लीय, धार्मिक या राष्ट्रीय समूह का मंशापूर्ण और व्यवस्थित तरीके से किया जाने वाला विनाश (destruction) है।
    • यह विनाश विभिन्न तरीकों से हो सकता है, जिसमें सामूहिक हत्या (mass killing), जबरन स्थानांतरण (forced relocation) और कठोर जीवन दशाओं को लागू करना शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक रूप से मृत्यु होती है।
  • शर्तें:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार नरसंहार के अपराध में दो मुख्य तत्व शामिल हैं:
      • मानसिक तत्व (Mental Element): किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्णतः या आंशिक रूप से नष्ट करने की मंशा।
      • भौतिक तत्व (Physical Element): इसमें निम्नलिखित कृत्य शामिल हैं जिनकी विस्तृत गणना की गई है:
        • किसी समूह के सदस्यों की हत्या करना
        • किसी समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति पहुँचाना
        • किसी समूह पर मंशापूर्वक ऐसी जीवन दशाएँ थोपना जिससे उसका संपूर्ण या आंशिक रूप से भौतिक विनाश होता है।

‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ क्या है?

  • परिचय:
    • ‘नरसंहार के अपराध की रोकथाम और दंड पर कन्वेंशन’ अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक साधन है जिसने पहली बार नरसंहार के अपराध को संहिताबद्ध किया।
      • यह 9 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा अंगीकार की गई पहली मानवाधिकार संधि थी।
    • यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए अत्याचारों के बाद ‘नेवर अगेन’ (never again) की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • इसका अंगीकरण अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कानून के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • विशेषताएँ:
    • जेनोसाइड कन्वेंशन के अनुसार, नरसंहार एक अपराध है जो युद्ध और शांति, दोनों स्थितियों में हो सकता है।
    • उल्लेखनीय है कि यह कन्वेंशन राज्य पक्षकारों पर नरसंहार के अपराध की रोकथाम एवं दंड के लिये उपाय करने का दायित्व स्थापित करता है, जिसमें प्रासंगिक कानून बनाना और अपराधियों को दंडित करना शामिल है, “चाहे वे संवैधानिक रूप से उत्तरदायी शासक, सार्वजनिक अधिकारी या निजी व्यक्ति हों” (अनुच्छेद IV)।
      • इस दायित्व को, नरसंहार के कृत्य की रोकथाम करने के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत कानून के मानदंडों के रूप में देखा गया है और इसलिये यह सभी राज्यों पर बाध्यकारी है, चाहे उन्होंने जेनोसाइड कन्वेंशन की पुष्टि की हो या नहीं।
    • भारत ने इस कन्वेंशन की पुष्टि की है।

‘दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल मामला’ क्या है?

  • दक्षिण अफ्रीका के आरोप:
    • गाज़ा में इज़राइली सेनाओं द्वारा बड़ी संख्या में फिलिस्तीनियों, विशेषकर बच्चों की हत्या, उनके घरों का विनाश, उनका निष्कासन एवं विस्थापन।
    • इसमें गाज़ा पट्टी में भोजन, जल एवं चिकित्सा सहायता पर नाकाबंदी लागू करना, गर्भवती महिलाओं एवं शिशुओं की जीविता के लिये महत्त्वपूर्ण आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को नष्ट करने के माध्यम से फिलिस्तीनी जन्म को रोकने के उपाय लागू करना भी शामिल है।
  • दक्षिण अफ़्रीका की तत्काल मांगें:
    • दक्षिण अफ्रीका ने अनुरोध किया है कि ICJ ‘अनंतिम उपायों’ (provisional measures)—यानी अनिवार्य रूप से एक आपातकालीन आदेश जिसे मुख्य मामला/केस शुरू होने से पहले भी लागू किया जा सकता है, का उपयोग कर इज़राइल को गाज़ा पट्टी में आगे और अपराध से रोकने के लिये तत्काल कदम उठाए।
    • उसने तर्क दिया है कि “जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों, जिनका दंडमुक्ति (impunity) के साथ उल्लंघन जारी है, को और अधिक गंभीर एवं अपूरणीय क्षति से बचाने के लिये अनंतिम उपाय आवश्यक हैं।”
  • इज़राइल का रुख:
    • इज़राइल ने ICJ के समक्ष इस मामले को लाने के लिये दक्षिण अफ्रीका को लताड़ लगाते हुए बलपूर्वक कहा है कि वह न्यायालय में अपना बचाव करने के लिये तैयार है। इज़राइली अधिकारियों ने इस मामले/केस को ‘बेतुका’ (preposterous) बताया है और कहा है कि यह ‘ब्लड लाइबेल’ (blood libel) जैसा है।
    • इज़राइल का तर्क है कि गाज़ा में 23,000 से अधिक लोगों की हत्या आत्मरक्षा में की गई है और वह अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के अंतर्गत अपने इस सर्वाधिक अंतर्निहित अधिकार के तहत आत्मरक्षा का उपयोग करने के अपने मामले को गर्व से पेश करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का रुख:
    • कई देशों और संगठनों ने दक्षिण अफ़्रीका के मुक़दमे का समर्थन किया है। इनमें मलेशिया, तुर्की, जॉर्डन, बोलीविया, मालदीव, नामीबिया, पाकिस्तान, कोलंबिया और इस्लामी देशों के संगठन (IOC) के सदस्य देश शामिल हैं।
    • मामले में यूरोपीय संघ (EU) ने मौन साध रखा है, लेकिन इज़राइल को अपने सबसे बड़े समर्थक एवं हथियार आपूर्तिकर्ता संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन मिला है, जिसने कहा है कि “यह आरोप कि इज़राइल नरसंहार कर रहा है, निराधार है, लेकिन इज़राइल को नागरिक क्षति को रोकना चाहिये और मानवीय अपराधों के आरोपों की जाँच करनी चाहिये।”
      • ब्रिटेन और फ्राँस ने इस मुक़दमे का विरोध किया है, यहाँ तक कि फ्राँस ने इज़राइल के विरुद्ध जेनोसाइड के निर्णय जारी किये जाने पर इसके गैर-अनुपालन का भी संकेत दिया है।

‘दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल मामले’ से संबद्ध विभिन्न चिंताएँ क्या हैं?

  • ICJ एक मंच के रूप में:
    • इज़राइल पर एकतरफा फोकस को लेकर सवाल उठते हैं, जबकि हमास जैसे गैर-राज्य अभिकर्ताओं को ICJ के समक्ष नहीं लाया जा सकता है।
    • उल्लेखनीय है कि ICC व्यक्तियों पर सुनवाई करता है और वहाँ इस विषय को अन्वेषण के सुपुर्द किया गया है।
  • वैश्विक विभाजन:
    • राष्ट्रों के बीच विभाजन, जहाँ औपनिवेशिक एवं गैर-औपनिवेशिक इतिहास की एक भूमिका नज़र आती है, से जटिलता बढ़ती है जहाँ बांग्लादेश एवं जॉर्डन दक्षिण अफ्रीका का समर्थन कर रहे हैं, जबकि जर्मनी इज़राइल का समर्थन कर रहा है।
      • जर्मनी, जो पूर्व में जेनोसाइड कन्वेंशन के व्यापक निर्वचन का समर्थन करता रहा है, दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल मामले में इज़राइल के साथ खड़ा है, जो उसके वर्तमान रुख को प्रश्नगत करता है।
    • यह विभाजन अंतर्राष्ट्रीय कानून के निर्माण में ऐतिहासिक शक्ति समीकरण को दर्शाता है।
      • इस कार्यवाही को स्वयं अंतर्राष्ट्रीय कानून की वैधता को चुनौती देने के रूप में देखा जा रहा है। फ्राँस के आक्रामक बयानों से इस धारणा को बल मिला है।

नोट:

नरसंहार के विषय में भारत में कौन-से कानून और विनियमन मौजूद हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन:
    • भारत के पास नरसंहार पर कोई घरेलू कानून मौजूद नहीं है, हालाँकि इसने नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की है।
    • भारत UDHR का हस्ताक्षरकर्ता है और उसने नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant on Civil and Political Rights- ICCPR) और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights- ICESCR) की पुष्टि कर रखी है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC):
    • IPC नरसंहार एवं संबंधित अपराधों के लिये दंड का प्रावधान करती है और अन्वेषण, अभियोजन एवं दंड की प्रक्रियाएँ प्रदान करती है।
    • IPC की धारा 153B के तहत नरसंहार को एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जो दंगे भड़काने या हिंसा के कृत्यों को अंजाम देने के इरादे से धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने वाले कृत्यों को अपराध मानता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 के माध्यम से धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता आदि के अधिकार की गारंटी देता है।
  • सांविधिक प्रावधान:

नरसंहार और युद्ध अपराधों की रोकथाम के कौन-से उपाय हैं?

नरसंहार कोई ऐसी स्थिति नहीं है जो रातोंरात या बिना किसी चेतावनी के घटित हो जाए। नरसंहार के लिये संगठन की आवश्यकता होती है और यह वास्तव में एक सोची-समझी रणनीति होती है। यह रणनीति प्रायः सरकारों या राज्य तंत्र को नियंत्रित करने वाले समूहों द्वारा अपनाई जाती है। वर्ष 2004 में, रवांडा नरसंहार की दसवीं बरसी पर, तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने नरसंहार को रोकने के लिये पाँच सूत्री कार्ययोजना की रूपरेखा तैयार की थी:

  • सशस्त्र संघर्ष को रोकना:
    • चूँकि युद्धकाल में नरसंहार की सबसे अधिक संभावना होती है, इसलिये नरसंहार की संभावनाओं को कम करने के सर्वोत्तम उपायों में से एक है हिंसा और संघर्ष के मूल कारणों को संबोधित करना। इसमें घृणा, असहिष्णुता, नस्लवाद, भेदभाव, अत्याचार और अमानवीय सार्वजनिक आख्यान शामिल हैं जो लोगों के पूरे समूह को उनकी गरिमा एवं अधिकार से वंचित करते हैं।
    • संसाधनों तक अभिगम्यता में असमानताओं को संबोधित करना भी एक महत्त्वपूर्ण रोकथाम रणनीति है।
  • नागरिकों की रक्षा करना:
    • जब संघर्ष को रोकने के प्रयास विफल हो जाएँ तो नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक होनी चाहिये। जहाँ भी नागरिकों को, उनके किसी विशेष समुदाय से संबंधित होने के लिये, जानबूझकर निशाना बनाया जाता है, वहाँ नरसंहार का खतरा उत्पन्न होता है।
    • पिछले दशक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के कार्यक्षेत्र का बार-बार विस्तार किया है ताकि वे हिंसा का खतरा झेल रहे नागरिकों की भौतिक रूप से रक्षा कर सकें।
  • न्यायिक कार्रवाई के माध्यम से दंडमुक्ति को समाप्त करना:
    • नरसंहार के अपराधों के लिये उत्तरदायी लोगों को न्याय के कटघरे में लाने की ज़रूरत है ताकि लोगों में भय उत्पन्न कर उन्हें ऐसे अपराधों से विमुख किया जा सके।
    • दंडमुक्ति (impunity) को चुनौती देना और एक विश्वसनीय अपेक्षा स्थापित करना कि नरसंहार एवं संबंधित अपराधों के अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा, इसके प्रभावी रोकथाम की संस्कृति में योगदान दे सकता है।
  • विशेष सलाहकारों की नियुक्ति:
    • 1990 के दशक में रवांडा और बाल्कन की त्रासदियों ने सबसे खराब अनुभवों के साथ प्रदर्शित किया कि संयुक्त राष्ट्र को नरसंहार को रोकने के लिये और अधिक प्रयास करना होगा।
    • इसे ध्यान में रखते हुए, वर्ष 2004 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने नरसंहार की रोकथाम पर विशेष सलाहकार की नियुक्ति की।
      • विशेष सलाहकार उन स्थितियों के बारे में सूचनाएँ एकत्र करते हैं जहाँ नरसंहार, युद्ध अपराध, जातीय संहार (ethnic cleansing) और मानवता के विरुद्ध अपराध का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • त्वरित कार्रवाई, जिसमें सैन्य कार्रवाई भी शामिल है:
    • नरसंहार या अन्य सामूहिक अत्याचार अपराधों को रोकने या इस पर प्रतिक्रिया देने के लिये घरेलू स्थितियों में कब, कहाँ और कैसे सैन्य हस्तक्षेप करना है, इसका निर्णय संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार सुरक्षा परिषद द्वारा किया जाना चाहिये।
    • वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र विश्व शिखर सम्मेलन में सभी देश औपचारिक रूप से सहमत हुए कि यदि शांतिपूर्ण तरीके अपर्याप्त हैं और यदि राष्ट्रीय सत्ता अपनी आबादी को सामूहिक अत्याचार अपराधों से बचाने में ‘स्पष्ट रूप से विफल’ हो रही है, तो:
      • विश्व के देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार ‘समयबद्ध एवं निर्णायक तरीके से’ सामूहिक रूप से कार्य करना चाहिये।

निष्कर्ष:

ICJ में इज़राइल के विरुद्ध दक्षिण अफ्रीका द्वारा शुरू की गई कानूनी कार्यवाही ने गहन वैश्विक बहस छेड़ दी है। यह मामला गाज़ा में इज़राइल के सैन्य अभियानों में नरसंहार के आरोपों से संबंधित है, जो एक जटिल कानूनी संदर्भ प्रस्तुत करता है। इसका निर्णय न केवल गाज़ा में संकट को कम करने के लिये बल्कि ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ (rules-based international order) के लिये एक अत्यंत आवश्यक परीक्षण के रूप में भी महत्त्वपूर्ण है। आगामी माहों में ICJ के निर्णय अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे की धारणाओं को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

अभ्यास प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय कानून में नरसंहार, युद्ध अपराध एवं मानवाधिकारों के बीच अंतर्संबंध की चर्चा कीजिये। इनके मध्य संबंधों एवं संबंधित कानूनी ढाँचों को बताते हुए इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) जैसी संस्थाओं की भूमिका पर प्रकाश डालिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. मौलिक अधिकारों के अलावा भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा भाग मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के सिद्धांतों और प्रावधानों को दर्शाता है या प्रतिबिंबित करता है? (2020)

  1. प्रस्तावना
  2. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
  3. मौलिक कर्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. यद्धपि  मानवाधिकार अयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों का  सुझाव दीजिये। (2021)

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