अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आर्मेनियाई नरसंहार
- 26 Apr 2023
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प्रिलिम्स के लिये:नरसंहार, नरसंहार अपराध की रोकथाम और सज़ा पर अभिसमय, संयुक्त राष्ट्र महासभा, भारतीय दंड संहिता (IPC), अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 21 मेन्स के लिये:नरसंहार और इसके नतीजे, अंतर्राष्ट्रीय उपाय, नरसंहार से निपटने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
ऐसा माना जाता है कि आर्मेनियाई नरसंहार की शुरुआत 24 अप्रैल, 1915 को हुई, यह वह समय था जब ओटोमन/तुर्क साम्राज्य (वर्तमान में तुर्किये) ने कांस्टेंटिनोपल में आर्मेनियाई बुद्धिजीवियों और नेताओं को हिरासत में लेना शुरू कर दिया था।
नरसंहार:
- उदय:
- 'नरसंहार' शब्द का पहली बार प्रयोग वर्ष 1944 में पोलिश वकील राफेल लेमकिन ने अपनी पुस्तक एक्सिस रूल इन ऑक्युपाइड यूरोप में किया था।
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नरसंहार एक विशेष जातीय, नस्लीय, धार्मिक अथवा राष्ट्रीय समूह का उद्देश्यपूर्ण और व्यवस्थित विध्वंश है।
- इसे विभिन्न तरीकों से अंजाम दिया जा सकता है, जिसमें सामूहिक हत्या, जबरन स्थानांतरण और कठोर परिस्थितियों में जीने के लिये बाध्य करना शामिल है, जिस कारण बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं।
- शर्तें/स्थिति:
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नरसंहार अपराध के दो प्रमुख घटक होते हैं:
- मानसिक घटक: इसके अंतर्गत किसी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक अथवा धार्मिक समूह को आंशिक या फिर पूरी तहत नष्ट करने का प्रयास किया जाता है।
- शारीरिक घटक: इसके अंतर्गत होने वाली निम्नलिखित पाँच प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं:
- किसी समूह के सदस्यों की हत्या करना।
- किसी समूह के सदस्यों को शारीरिक अथवा मानसिक रूप से गंभीर क्षति पहुँचाना।
- बदहाल जीवन जीने के लिये मजबूर करना।
- ऐसे उपाय लागू करना जिससे किसी समूह विशेष की जनसंख्या में वृद्धि अथवा जन्म दर को पूर्ण रूप से बाधित अथवा सीमित किया जा सके।
- एक समूह के बच्चों को किसी दूसरे समूह में जबरन स्थानांतरित करना।
- साथ ही किसी घटना को नरसंहार तभी कहा जा सकता है जब हमले में व्यक्ति के बजाय लक्षित समूह के सदस्यों को निशाना बनाया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नरसंहार अपराध के दो प्रमुख घटक होते हैं:
- नरसंहार अभिसमय:
- नरसंहार अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे नरसंहार की रोकथाम और सज़ा पर अभिसमय के रूप में भी जाना जाता है, इसे UNGA द्वारा 9 दिसंबर, 1948 को अपनाया गया था।
- इसका उद्देश्य नरसंहार के अपराध को रोकना और हस्ताक्षरकर्त्ता राष्ट्रों को नरसंहार को रोकने तथा संबद्ध तत्त्वों को दंडित करने के लिये कार्रवाई हेतु प्रोत्साहित करना है। इसके अंतर्गत नरसंहार को आपराधिक श्रेणी में शामिल करने वाले कानूनों को लागू करना एवं इस कृत्य में शामिल संदिग्ध व्यक्तियों की जाँच तथा अभियोजन कार्य में अन्य देशों को सहयोग करना शामिल है।
- इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस/अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को इस अभिसमय की व्याख्या करने और लागू करने की ज़िम्मेदारी के साथ प्राथमिक न्यायिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है।
- यह 9 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई पहली मानवाधिकार संधि थी।
आर्मेनियाई नरसंहार:
- पृष्ठभूमि: आर्मेनियाई लोगों का इतिहास प्राचीन है जिनकी पारंपरिक मातृभूमि 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक रूसी और तुर्क साम्राज्यों (Ottoman Empires) के बीच विभाजित थी।
- मुसलमानों के प्रभुत्त्व वाले तुर्क साम्राज्य में आर्मेनियाई समृद्ध ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय थे।
- अपने धर्म के कारण उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसका वे विरोध कर रहे थे और सरकार में अधिक प्रतिनिधित्त्व की मांग कर रहे थे। इससे इस समुदाय के खिलाफ काफी नाराज़गी जताई गई और इन पर हमले किये गए थे।
- युवा तुर्कों और प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका: वर्ष 1908 में यंग तुर्क नामक एक समूह ने क्रांति कर संघ और प्रगति समिति (CUP) के लिये सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया, जो साम्राज्य का 'तुर्कीकरण' करना चाहती थी, साथ ही यह अल्पसंख्यकों के प्रति कठोर थी।
- अगस्त 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के परिणामस्वरूप तुर्क साम्राज्य ने रूस, ग्रेट ब्रिटेन और फ्राँस के खिलाफ जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया-हंगरी का साथ दिया।
- इस युद्ध ने आर्मेनियाई लोगों के प्रति शत्रुता बढ़ा दी, विशेष रूप से कुछ आर्मेनियाई, रूस के प्रति सहानुभूति रखते थे और यहाँ तक कि युद्ध में उसकी मदद करने को तैयार थे।
- जल्द ही सभी आर्मेनियाई लोगों को एक खतरे के रूप में देखा जाने लगा।
- 14 अप्रैल, 1915 को कांस्टेंटिनोपल में प्रमुख नागरिकों की गिरफ्तारी के साथ समुदाय पर कार्रवाई शुरू हुई, जिनमें से कई को मार दिया गया था।
- सरकार ने तब आर्मेनियाई लोगों को बलपूर्वक निर्वासित करने का आदेश दिया।
- वर्ष 1915 में तुर्क सरकार ने अपने पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों से आर्मेनियाई आबादी को निर्वासित कर दिया।
- 'नरसंहार' के रूप में मान्यता: आर्मेनियाई नरसंहार को अब तक 32 देशों द्वारा मान्यता दी गई है, जिसमें अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी शामिल हैं।
- भारत और यूके आर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं देते हैं। भारत के रुख का कारण उसकी व्यापक विदेश नीति के फैसले और क्षेत्र में भू-राजनीतिक हितों को माना जा सकता है।
- तुर्की, जो कि आर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं देता है, ने हमेशा दावा किया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मौतें नियोजित और लक्षित थीं।
- आर्मेनिया-तुर्की संबंधों की वर्तमान स्थिति: आर्मेनिया के तुर्की के साथ अतीत में बेहतर संबंध रहे हैं, हालाँकि अब नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में जो कि अज़रबैजान का आर्मेनियाई बहुल हिस्सा एक विवादित क्षेत्र है, को लेकर तुर्की, अज़रबैजान का समर्थन करता है।
नरसंहार पर भारत में कानून और विनियम:
- नरसंहार पर भारत के पास कोई घरेलू कानून नहीं है, भले ही उसने नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि की है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- भारतीय दंड संहिता (IPC) नरसंहार और संबंधित अपराधों की सज़ा का प्रावधान करती है तथा जाँच, अभियोजन एवं सज़ा के लिये प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है।
- IPC की धारा 153B के तहत नरसंहार को एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने वाले कृत्यों को आपराध की श्रेणी में लाती है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 15 इन आधारों पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
- अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
- भारतीय संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
आगे की राह
नरसंहार की रोकथाम और सज़ा एक जटिल मुद्दा है जिसके लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कुछ संभावित तरीकों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कानूनी ढाँचे को सशक्त करना: सभी देशों को नरसंहार तथा संबंधित अपराधों को अपराध ठहराने वाले कानूनों को अपनाना और लागू करना जारी रखना चाहिये। सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि यह कानून अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानकों के अनुरूप हों, जैसे नरसंहार अभिसमय।
- शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाना: शिक्षा और जागरूकता अभियान विभिन्न समूहों के बीच सहिष्णुता एवं समझ को बढ़ावा देने और भेदभाव तथा हिंसा की संभावना को कम करने में सहायता कर सकते हैं। सरकारों, नागरिक समाज संगठनों और अन्य हितधारकों को इन पहलों को बढ़ावा देने के लिये एकमत होकर कार्य करना चाहिये।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: पूर्व चेतावनी प्रणाली के विकास से विभिन्न समूहों के बीच बढ़ते तनाव का पता लगाने और उसे रोकने में सहायता मिल सकती है। इन प्रणालियों में अभद्र भाषा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा संभावित हिंसा के अन्य संकेतकों की निगरानी शामिल हो सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नरसंहार की रोकथाम और दंड में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। नरसंहार के घटनाओं को रोकने और प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये सभी देशों को सूचना, संसाधनों तथा विशेषज्ञता को साझा करने के लिये एकमत होकर कार्य करना चाहिये।
- पीड़ितों को सहायता: उपचार और सुलह को बढ़ावा देने के लिये नरसंहार के पीड़ितों के लिये समर्थन और क्षतिपूर्ति का प्रावधान करना आवश्यक है। सरकारों एवं अन्य हितधारकों को पीड़ितों को सहायता के लिये एक साथ कार्य करना चाहिये, जिसमें न्याय, क्षतिपूर्ति और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच शामिल है।
- मूल कारणों को संबोधित करना: नरसंहार की रोकथाम के लिये भेदभाव और हिंसा के मूल कारणों को संबोधित करना आवश्यक है। इसमें गरीबी, असमानता एवं सामाजिक बहिष्कार को संबोधित करने के साथ-साथ समावेशी शासन तथा लोकतांत्रिक संस्थानों को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।