भारत के समुद्री भविष्य की रूपरेखा | 14 Nov 2024

यह संपादकीय 12/11/2024 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “India needs to build ships” पर आधारित है। व्यापार के लिये विदेशी जहाज़ों पर भारत की भारी निर्भरता, जहाज़ निर्माण में सीमित वित्तपोषण विकल्पों के साथ, आर्थिक और रणनीतिक जोखिम खड़े करती है। प्रमुख जहाज़ निर्माण देशों के बाज़ार को नियंत्रित करने के साथ, भारत को अपने समुद्री क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिये नीतिगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का समुद्री क्षेत्र, जहाज़ निर्माण, SARFAESI अधिनियम, समुद्री भारत विजन 2030, सागरमाला कार्यक्रम, लाल सागर संकट, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR) विज़न, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, हरित सागर पहल, INS विक्रांत, BIMSTEC, IORA, तटीय विनियमन क्षेत्र 

मेन्स के लिये:

भारत के समुद्री क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, समुद्री बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाने में भारत के सामने आने वाली प्रमुख समस्याएँ। 

जैसे-जैसे भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, वैश्विक जहाज़ निर्माण (0.07%) और जहाज़ स्वामित्व (1.2%) में इसकी न्यूनतम हिस्सेदारी सामरिक एवं आर्थिक जोखिमों को उजागर करती है। 95% व्यापार के लिये विदेशी जहाज़ों पर निर्भर रहने से विदेशी मुद्रा का भारी बहिर्वाह हुआ है। सामंजस्यपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की सूची और SARFAESI अधिनियम से जहाज़ों को बाहर करने से प्रतिस्पर्द्धी वित्तपोषण तक पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है। वैश्विक जहाज़ निर्माण में चीन, दक्षिण कोरिया और जापान का 93% वर्चस्व है, इसलिये भारत के समुद्री क्षेत्र को उसकी आर्थिक आकांक्षाओं के साथ जोड़ने के लिये तत्काल नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

भारत के समुद्री क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • स्थिति: भारत विश्व स्तर पर 16वाँ सबसे बड़ा समुद्री देश है।
    • भारतीय समुद्री क्षेत्र मात्रा की दृष्टि से भारत के 95% व्यापार तथा मूल्य की दृष्टि से 70% व्यापार का प्रबंधन करता है।
    • भारत टन भार के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जहाज़ पुनर्चक्रणकर्त्ता है, तथा जहाज़-पुनर्चक्रण (Ship-Breaking) के क्षेत्र में वैश्विक बाज़ार में इसकी 30% हिस्सेदारी है, तथा विश्व की सबसे बड़ी जहाज़-पुनर्चक्रण की सुविधा अलंग में स्थित है।
  • समुद्री विकास के लिये सरकारी पहल
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030: मार्च 2021 में लॉन्च किए गये इस विज़न में भारतीय समुद्री क्षेत्र के व्यापक विकास के लिये 150 से अधिक पहल शामिल हैं।
      • इसका उद्देश्य भारत के समुद्री उद्योग के विभिन्न पहलुओं में त्वरित विकास के लिये एक रूपरेखा तैयार करना है।
    • सागरमाला कार्यक्रम (2015): बंदरगाह आधारित विकास और रसद आधारित औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इसमें चार प्रमुख क्षेत्रों में 123 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ 415 परियोजनाएँ शामिल हैं:
      • बंदरगाह आधुनिकीकरण और नये बंदरगाह का विकास
      • पोर्ट कनेक्टिविटी संवर्द्धन
      • बंदरगाह-संबंधित औद्योगिकीकरण
      • तटीय सामुदायिक विकास
    • लक्ष्यों में मौजूदा परिसंपत्तियों से 2.7 बिलियन डॉलर का वार्षिक राजस्व उत्पन्न करना और वर्ष 2030 तक 2 मिलियन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन करना शामिल है।

भारत के लिये समुद्री बुनियादी अवसंरचना में निवेश क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • आर्थिक सुरक्षा और व्यापार अनुकूलता: हाल ही में लाल सागर संकट, जहाँ हूती हमलों ने वैश्विक शिपिंग मार्गों को बाधित कर दिया, ने भारत की समुद्री कमज़ोरियों को प्रदर्शित किया, जिसके कारण वर्ष 2024 की पहली छमाही में वैश्विक शिपिंग लागत में वृद्धि हुई और जहाज़ों को अफ्रीका के चारों ओर लंबे मार्ग से परिवहन के लिये बाध्य होना पड़ा। 
    • विदेशी जहाज़ों पर भारत की अत्यधिक निर्भरता (अंतर्राष्ट्रीय माल का 95%) के परिणामस्वरूप सत्र 2022-23 में माल ढुलाई लागत बढ़कर 75 बिलियन डॉलर हो गई, तथा अनुमान है कि यह लागत शीघ्र ही 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगी। 
    • चूँकि वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ यूक्रेन युद्ध से लेकर मध्य पूर्व तनाव तक, बढ़ते भू-राजनीतिक दबावों का सामना कर रही हैं, इसलिये भारत की समुद्री आत्मनिर्भरता की कमी (विदेशी व्यापार के लिये केवल 487 जहाज़) एक बहुत बड़ा आर्थिक जोखिम खड़े करती है। 
    • घरेलू समुद्री अवसंरचना के निर्माण से विदेशी मुद्रा के बहिर्गमन से बचा जा सकता है तथा व्यापार मार्गों पर बेहतर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
  • भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति: भारत का समुद्री अवसंरचना विकास भारत-प्रशांत क्षेत्र में इसकी बढ़ती भूमिका के अनुरूप है, विशेष रूप से इसलिये क्योंकि चीन ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्सजैसी पहलों के माध्यम से अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है और 46.6% बाज़ार हिस्सेदारी के साथ वैश्विक जहाज़ निर्माण पर हावी है।
  • रोज़गार सृजन एवं कौशल विकास: भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश समुद्री बुनियादी अवसंरचना में एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से तब जब पारंपरिक जहाज़ निर्माण करने वाले राष्ट्रों की आबादी वृद्ध होती जा रही है। 
    • भारत, नाविक आपूर्ति के मामले में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है (जो वैश्विक समुद्री कार्यबल में 10% का योगदान देता है), इस क्षेत्र में रोजगार की व्यापक संभावनाएँ हैं। 
    • सागरमाला कार्यक्रम जैसी हालिया पहलों से पहले ही बड़ी संख्या में रोज़गारों का सृजन हुआ है, तथा अनुमान है कि बंदरगाह आधारित विकास परियोजनाओं के माध्यम से लाखों और रोज़गारों का सृजन होगा।
  • पर्यावरणीय स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा: समुद्री बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण भारत की COP28 प्रतिबद्धताओं और ग्रीन शिपिंग पहलों के अनुरूप है। 
    • इंटरनेशनल मेरीटाइम आर्गेनाईज़ेशन की रणनीति- 2023, जिसका लक्ष्य वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन है, हरित नौवहन अवसंरचना में निवेश को महत्त्वपूर्ण बनाती है। 
    • भारत की हालिया हरित सागर पहल संधारणीय समुद्री बुनियादी अवसंरचना के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाती है।
    • कोचीन शिपयार्ड की शून्य-उत्सर्जन वाली स्वायत्त जहाज़ों और मुंबई की इलेक्ट्रिक वॉटर टैक्सी प्रणाली जैसी परियोजनाओं की सफलता संधारणीय समुद्री समाधानों की व्यवहार्यता को दर्शाती है।
  • घरेलू विनिर्माण और आत्मनिर्भरता: समुद्री बुनियादी अवसंरचना में निवेश भारत की आत्मनिर्भर भारत पहल और वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के लक्ष्य का समर्थन करता है। 
    • स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत जैसी हाल की सफलताएँ भारत की जहाज़ निर्माण क्षमताओं को प्रदर्शित करती हैं। 
    • समुद्री उत्पादों को शामिल करने के लिये PLI योजना का विस्तार घरेलू विनिर्माण वृद्धि के लिये आधार तैयार करता है। 
  • क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार एकीकरण: समुद्री बुनियादी अवसंरचना का विकास भारत की  BIMSTEC और IORA जैसी क्षेत्रीय संपर्क पहलों को बढ़ाता है।
    • म्याँमार में सित्तवे बंदरगाह का सफल शुभारंभ और इंडोनेशिया में सबंग बंदरगाह का विकास भारत के बढ़ते समुद्री सहयोग को दर्शाता है।
    • राजनीतिक तनाव के बावजूद मालदीव और श्रीलंका के साथ समुद्री संपर्क के लिये हाल के समझौते, सतत् समुद्री बुनियादी अवसंरचना के विकास के महत्त्व को उजागर करते हैं।

समुद्री बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाने में भारत के सामने प्रमुख समस्याएँ क्या हैं? 

  • वित्तपोषण और अवसंरचना स्थिति संबंधी बाधाएँ जहाज़ों को अवसंरचना की समन्वित सूची में शामिल नहीं किये जाने का मुद्दा (उन्हें अवसंरचना के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है) वित्तपोषण विकल्पों को गंभीर रूप से सीमित करता है, बावजूद इसके कि शिपयार्डों को वर्ष 2016 से अवसंरचना का दर्जा प्राप्त है। 
    • SARFAESI अधिनियम, 2002 से अपवर्जित होने के कारण बैंक दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने में अनिच्छुक हो जाते हैं, क्योंकि जहाज़ों को सुरक्षित परिसंपत्तियों के रूप में गिरवी नहीं रखा जा सकता। 
    • इसके अलावा, भारत में वित्तपोषण लागत अधिक है क्योंकि जहाज़ निर्माण महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। 
    • वर्तमान में भारत के पास वैश्विक जहाज़ निर्माण बाज़ार में मात्र 0.06% की हिस्सेदारी है, जो कि वित्तीय बाधाओं के कारण चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे अग्रणी देशों से काफी पीछे है।
  • बंदरगाह अवसंरचना और दक्षता अंतराल: सत्र 2022-23 में 1.4 बिलियन टन से अधिक कार्गो के प्रबंधन के बावजूद, भारतीय बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय मानकों से काफी नीचे दक्षता मेट्रिक्स के साथ संघर्ष करते हैं। 
    • भारतीय बंदरगाहों पर औसत टर्नअराउंड टाइम 2.1 दिन है, जबकि सिंगापुर में यह 0.6 दिन है। 
    • भारत के मौजूदा प्रमुख बंदरगाहों की गहनता सीमित है, जिससे बहुत बड़े कंटेनर जहाज़ों की सुविधा सीमित हो जाती है, जिससे निकटवर्ती देशों में ट्रांसशिपमेंट केंद्रों पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • कुशल कार्यबल और बुनियादी अवसंरचना की कमी: हालाँकि भारत में वैश्विक नाविकों की संख्या का 10-12% हिस्सा है, फिर भी विशेष जहाज़ निर्माण कौशल की कमी है। 
    • इसके अलावा, भारतीय समुद्री क्षेत्र स्मार्ट बंदरगाह प्रौद्योगिकियों और स्वचालन के अंगीकरण में पीछे है।
    • बंदरगाह परिचालन में ब्लॉकचेन, IoT और AI प्रौद्योगिकियों का एकीकरण अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है।
  • विनियामक एवं नीति समन्वय: अनेक विनियामक निकाय और अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र परिचालन अक्षमताएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • बंदरगाह विस्तार और समुद्री बुनियादी अवसंरचना के विकास को भूमि अधिग्रहण और तटीय विनियमन क्षेत्र अनुपालन में बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • समुद्री क्षेत्र में शामिल सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय के कारण परियोजना अनुमोदन में विलंब होता है, प्रमुख बंदरगाह परियोजनाओं के लिये औसतन 2-3 वर्ष का समय लग जाता है।
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030 में घोषणाओं के बावजूद एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली का अभाव विकास में बाधा बन रहा है।
  • प्रतिस्पर्द्धा एवं बाज़ार स्थिति: भारत को स्थापित समुद्री राष्ट्रों और उभरते भागीदारों से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है। 
    • जहाज़ निर्माण (वैश्विक हिस्सेदारी 46.6%) और कंटेनर विनिर्माण में चीन का प्रभुत्व प्रवेश में बहुत-सी बाधाएँ उत्पन्न करता है।
    • भारतीय शिपयार्डों द्वारा 60-70% क्षमता उपयोग पर परिचालन करने के कारण पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं की कमी से प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर और अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • तटीय नौवहन विकास में पिछड़ापन: 7,500 किमी. की तटरेखा के बावजूद, तटीय नौवहन भारत के घरेलू माल यातायात का केवल 6% ही है।
    • वर्तमान में, पूर्वी भारत से दक्षिण और पश्चिमी भारत तक तटीय मार्ग से लगभग 30 मिलियन टन (MT) कोयला का नौवहन किया जाता है; वर्ष 2030 तक संभावित मांग लगभग 100 मीट्रिक टन है।
  • आंतरिक क्षेत्रों में कनेक्टिविटी का अभाव: अंतिम मील तक कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, क्योंकि केवल 30% प्रमुख बंदरगाहों में ही सीधी रेल निकासी प्रणाली है।
    • प्रमुख बंदरगाहों को औद्योगिक समूहों से जोड़ने वाले समर्पित माल ढुलाई गलियारों की अनुपस्थिति से रसद लागत में 15-20% की वृद्धि होती है।
    • तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग अवसंरचना का सीमित विकास बहुविध परिवहन विकल्पों को सीमित करता है।

समुद्री बुनियादी अवसंरचना के विकास में तेज़ी लाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • एकीकृत बंदरगाह विकास फ्रेमवर्क: प्रमुख और लघु बंदरगाहों में विकास को समन्वित करने, अंतर -बंदरगाह प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बंदरगाह ग्रिड प्राधिकरण की स्थापना करने की आवश्यकता है।
    • हब-एंड-स्पोक मॉडल लागू किया जाना चाहिये, जहाँ 3-4 मेगा बंदरगाह (जैसे नया वधावन बंदरगाह) ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में कार्य करें, जबकि अन्य फीडर बंदरगाहों के रूप में कार्य करें। 
    • क्षेत्रीय कार्गो प्रोफाइल और अंतर्देशीय औद्योगिक समूहों के साथ संरेखित बंदरगाह-विशिष्ट मास्टर प्लान विकसित किया जाना चाहिये।
    • कार्गो स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये बंदरगाह विकास को औद्योगिक गलियारों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों से जोड़ा जाना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित बंदरगाह आधुनिकीकरण: पायलट परियोजनाओं के रूप में JNPT  और मुंद्रा से शुरुआत करते हुए सभी प्रमुख बंदरगाहों पर स्मार्ट पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट सिस्टम (SPIMS) की तैनाती की जाएगी। 
    • JNPT के हालिया डिजिटलीकरण की सफलता के आधार पर, पेपरलेस (कागज़ रहित) व्यापार सुविधा के लिये ब्लॉकचेन-आधारित पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम की शुरुआत की जानी चाहिये। 
    • IoT-सक्षम कार्गो ट्रैकिंग और बंदरगाह उपकरण निगरानी प्रणालियाँ स्थापित की जानी चाहिये।
    • यूनाइटेड किंगडम की तरह सीमा शुल्क, आव्रजन और बंदरगाह परिचालन को एकीकृत करते हुए राष्ट्रीय समुद्री एकल खिड़की के विकास में तेज़ी लाना चाहिये।
  • बहुविधीय संपर्कता संवर्द्धन: प्रमुख बंदरगाहों को औद्योगिक केंद्रों से जोड़ने वाले समर्पित माल गलियारा खंडों के लंबित कार्य को तेज़ी से पूरा करने की आवश्यकता है। 
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स पार्कों के साथ तटीय आर्थिक क्षेत्रों का विकास किया जाना चाहिये। गुजरात के सफल GIFT सिटी मॉडल की तरह सभी बंदरगाहों पर मानकीकृत बंदरगाह-रेल-सड़क संपर्क मॉडल लागू किया जाना चाहिये। 
    • अंतिम-मील परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के अंतर्गत एक समर्पित बंदरगाह संपर्क निधि बनाएं। 
  • हरित बंदरगाह पहल: सभी बंदरगाहों के लिये सौर और पवन ऊर्जा एकीकरण को अनिवार्य बनाने तथा नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के एक निश्चित प्रतिशत को लक्ष्य बनाने की आवश्यकता है। 
    • लंगर डाले जहाज़ों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती करने के लिये तट से जहाज़ तक विद्युत आपूर्ति प्रणाली सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • पर्यावरण अनुकूल बंदरगाह परियोजनाओं के लिये ग्रीन चैनल अप्रूवल विकसित किया जाना चाहिये। सभी बंदरगाहों पर स्वचालित पर्यावरण निगरानी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
    • इलेक्ट्रिक वाहन अवसंरचना के साथ मालवाहक जहाज़ों की आवाजाही के लिये समर्पित हरित गलियारे बनाए जाने चाहिये। 
  • कौशल विकास और क्षमता निर्माण: निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में सभी प्रमुख बंदरगाहों पर समुद्री कौशल विकास केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • बंदरगाह स्वचालन और स्मार्ट बंदरगाह संचालन के लिये विशेष पाठ्यक्रम बनाए जाने चाहिये। बंदरगाह कर्मचारियों के लिये वैश्विक मानकों के अनुरूप अनिवार्य प्रमाणन कार्यक्रम लागू किया जाना चाहिये।
    • ज्ञान अंतरण के लिये अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों के साथ आदान-प्रदान कार्यक्रम विकसित किया जाना चाहिये। बंदरगाह प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करते हुए IIT और समुद्री विश्वविद्यालयों में समुद्री नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित की जानी चाहिये।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी मॉडल: अधिक संतुलित जोखिम-साझाकरण तंत्र और स्पष्ट निकास विकल्पों के साथ PPP ढाँचे को पुनः डिज़ाइन करने की आवश्यकता है।
    • सफल राजमार्ग परियोजनाओं के समान बंदरगाह परियोजनाओं के लिये हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल लागू किया जाना चाहिये।
    • राज्यों और निजी क्षेत्र की इक्विटी भागीदारी के साथ बंदरगाह आधारित विकास के लिए विशेष प्रयोजन वाहन निर्मित किये जाने चाहिये।
    • दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित करने के लिये बंदरगाह अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs) की स्थापना की जानी चाहिये।
  • तटीय सामुदायिक एकीकरण: वाणिज्यिक बंदरगाह विकास के साथ-साथ मत्स्यन वाले बंदरगाहों और तटीय पर्यटन बुनियादी अवसंरचना का विकास करने की आवश्यकता है।
    • बंदरगाह से संबंधित गतिविधियों में तटीय समुदायों के लिये विशेष रूप से कौशल विकास कार्यक्रम बनाए जाने चाहिये।
    • परियोजना प्रभावित व्यक्तियों के लिये दीर्घकालिक आजीविका सहायता के साथ व्यापक पुनर्वास पैकेज लागू किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय व्यापार और मत्स्यन जैसी गतिविधियों के लिये समुदाय-प्रबंधित छोटे बंदरगाहों की स्थापना की जानी चाहिये।
  • बंदरगाह दक्षता संवर्द्धन कार्यक्रम: रियल टाइम मॉनिटरिंग और पुरस्कार के साथ बंदरगाह प्रदर्शन बेंचमार्किंग प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता है।
    • बंदरगाह-विशिष्ट कार्गो प्रोफाइल के आधार पर विशेष कार्गो हैंडलिंग सुविधाएँ विकसित की जानी चाहिये।
    • तटीय शिपिंग को बढ़ावा देने के लिये सभी प्रमुख बंदरगाहों पर समर्पित तटीय बर्थ बनाए जाने चाहिये। रसद लागत को कम करने के लिये बंदरगाह आधारित मुक्त व्यापार भंडारण क्षेत्र स्थापित किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत के समुद्री बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करना व्यापार अनुकूलता बढ़ाने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और अपनी आर्थिक आकांक्षाओं के अनुरूप रणनीतिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक है। लक्षित नीति सुधारों और निवेश के माध्यम से, भारत विदेशी जहाज़ों पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, संधारणीय प्रथाओं (SDG 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी अवसंरचना) को बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, एक मज़बूत समुद्री क्षेत्र विकसित करने से न केवल घरेलू विनिर्माण को समर्थन मिलेगा बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये पर्यावरणीय स्थिरता (SDG 13: जलवायु कार्रवाई) भी बढ़ेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के समुद्री बुनियादी अवसंरचना के विकास के सामरिक, आर्थिक और पर्यावरणीय महत्त्व का आकलन कीजिये। इस क्षेत्र को मज़बूत करने से भारत की आत्मनिर्भरता, व्यापार अनुकूलता और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा में किस तरह योगदान हो सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ [इंडियन ओशन रिम एसोसियेशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC)]' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2015)

  1. इसकी स्थापना अत्यंत हाल ही में समुद्री डकैती घटनाओं और तेल अधिप्लाव (ऑयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. ब्लू कार्बन क्या है?

(a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा प्रगृहीत कार्बन
(b) वन जैव मात्रा (बायोमास) और कृषि मृदा में प्रच्छादित कार्बन
(c) पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में अंतर्विष्ट कार्बन
(d) वायुमंडल में विद्यमान कार्बन

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. 'नीली क्रांति' को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये।  (2018)