भारत में कौशल अंतराल और इसकी प्रतिपूर्ति | 07 Mar 2025
यह एडिटोरियल 04/03/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “The employment paradox: Skilling schemes need more realistic streamlining” पर आधारित है। इस लेख में भारत में युवाओं की बढ़ती बेरोज़गारी और कौशल अंतराल, जिसमें वर्ष 2024 में रोज़गार क्षमता घटकर 42.6% रह गई, के विरोधाभास पर प्रकाश डाला गया है। इसकी प्रतिपूर्ति में, सरकार कौशल भारत मिशन को गति देने के साथ ही एक प्रमुख इंटर्नशिप पहल शुरू कर रही है।
प्रिलिम्स के लिये:कौशल भारत मिशन, कौशल भारत डिजिटल हब, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना, SANKALP (आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) मुख्य परीक्षा के लिये:भारत में कौशल विकास से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल, भारत की कौशल पहल से जुड़े प्रमुख मुद्दे |
भारत एक गंभीर विरोधाभास का सामना कर रहा है: कौशल की लगातार कमी के बीच युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ रही है। ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स- 2024 में रोज़गार क्षमता में 42.6% की चिंताजनक गिरावट दर्शाता है। इसकी कार्रवाई में, सरकार ने रणनीतिक हस्तक्षेप, विशेष रूप से स्किल इंडिया मिशन और पाँच वर्षों में 10 मिलियन युवाओं को लक्षित करने वाली एक महत्त्वाकांक्षी इंटर्नशिप पहल, शुरू किये हैं। ये कार्यक्रम शैक्षिक परिणामों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं, हालाँकि, भारत को अगर अपने जनांकिकीय लाभांश को स्थायी आर्थिक समृद्धि में सफलतापूर्वक परिवर्तित करना है, तो पर्याप्त प्रगति अनिवार्य है।
भारत में कौशल विकास से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?
- कौशल भारत मिशन: इसे वर्ष 2015 में औपचारिक रूप दिया गया, यह ITI, पॉलिटेक्निक और व्यावसायिक केंद्रों के माध्यम से व्यापक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये एक व्यापक पहल के रूप में कार्य करता है।
- यह उद्योग-संचालित प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास पर केंद्रित है।
- स्किल इंडिया डिजिटल हब भारत के कौशल विकास, शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता परिदृश्य को समन्वित करने के लिये एक डिजिटल मंच है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): इसे वर्ष 2015 में विभिन्न ट्रेडों में अल्पकालिक प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करने वाली एक प्रमुख योजना के रूप में शुरू किया गया था।
- यह रोज़गार योग्यता को बढ़ावा देने के लिये स्कूल छोड़ने वाले, बेरोज़गार युवाओं और वंचित समूहों को लक्षित करता है।
- वर्ष 2023 का उन्नयन– PMKVY 4.0, उद्योग-संरेखित पाठ्यक्रमों, डिजिटल कौशल और हरित नौकरियों पर ज़ोर देता है।
- राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (NAPS): इसे वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, यह उद्योगों और MSME में प्रशिक्षुता के माध्यम से नौकरी पर प्रशिक्षण को बढ़ावा देती है।
- यह उन नियोक्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है जो प्रशिक्षुओं को नियुक्त करते हैं और प्रशिक्षित करते हैं।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC): वर्ष 2008 में स्थापित यह सार्वजनिक-निजी सहयोग राष्ट्रव्यापी कौशल पहलों को क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के तहत संचालित इसका मिशन विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना है।
- निजी क्षेत्र को शामिल करके, यह समग्र कौशल विकास को बढ़ाने के लिये नवीन प्रयासों को बढ़ावा देता है।
- दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY): यह भारत में ग्रामीण युवाओं के लिये एक कौशल विकास कार्यक्रम है।
- यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- SANKALP (आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता): यह भारत सरकार द्वारा संस्थानों को सुदृढ़ करने, बाज़ार संपर्क बढ़ाने और कौशल विकास पहलों में समाज के सीमांत वर्गों को शामिल करके अल्पकालिक कौशल प्रशिक्षण की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार करने के लिये शुरू किया गया एक कार्यक्रम है।
- STRIVE (औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन के लिये कौशल सुदृढ़ीकरण): इसका उद्देश्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) और प्रशिक्षुता के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले कौशल प्रशिक्षण की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता में सुधार लाना है, जिससे बाज़ार के भीतर औद्योगिक कार्यबल की क्षमताओं व मूल्य में भी वृद्धि हो सके।
- वर्ष 2023 में शुरू की जाने वाली प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना, बढ़ई, बुनकर और लोहार जैसे पारंपरिक कारीगरों एवं शिल्पकारों के कौशल उन्नयन पर केंद्रित है।
- यह विरासत कौशल को संरक्षित करने और बढ़ाने के लिये वित्तीय सहायता, टूलकिट व उद्यमिता प्रशिक्षण प्रदान करता है।
भारत की कौशल पहल से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- कौशल और उद्योग की मांग के बीच असंगतता: भारत के कौशल कार्यक्रम प्रायः उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते हैं, जिसके कारण रोज़गार में बहुत बड़ा अंतर उत्पन्न होता है।
- कौशल भारत मिशन के अंतर्गत कई पाठ्यक्रम पारंपरिक व्यवसायों पर केंद्रित हैं, जबकि स्वचालन और हरित नौकरियों की मांग बढ़ रही है।
- वास्तविक दुनिया के अनुभव का अभाव तथा पुराने पाठ्यक्रम कुशल श्रमिकों की बाज़ार प्रासंगिकता को और कम कर देता है।
- 50% से अधिक स्नातक और 44% स्नातकोत्तर कम कौशल वाली नौकरियों में अल्प-रोज़गार में हैं तथा इस अंतर का कारण अपर्याप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण है।
- भारत के लगभग आधे स्नातक बेरोज़गार हैं, जबकि औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त लोगों की संख्या जनसंख्या का मात्र 4% है।
- कौशल कार्यक्रमों में महिलाओं की कम भागीदारी: सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों, गतिशीलता संबंधी बाधाओं और बाल देखभाल सहायता की कमी के कारण महिलाओं को कौशल कार्यक्रमों तक अभिगम में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- कई पाठ्यक्रम पुरुष-प्रधान बने हुए हैं, जो महिलाओं को प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और डिजिटल क्षेत्रों में उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिये तैयार करने में विफल रह जाते हैं।
- लिंग-संवेदनशील कौशल नीतियों का अभाव कार्यबल विविधता और आर्थिक सशक्तीकरण को सीमित करता है।
- कौशल विकास में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना भारत के वर्ष 2047 तक कार्यबल में महिलाओं की 50% भागीदारी के लक्ष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत में STEM स्नातकों में लगभग 43% महिलाएँ हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है, लेकिन भारत में STEM नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी मात्र 14% है।
- भारत में (PLFS- 2023 के अनुसार) महिला श्रम बल भागीदारी (FLFP) 37% है।
- प्रशिक्षुता और कार्यस्थल पर प्रशिक्षण की असंगत संस्कृति: जर्मनी और जापान जैसे देशों के विपरीत, भारत में सुदृढ़ प्रशिक्षुता और दोहरे शिक्षण मॉडल का अभाव है, जिससे श्रमिकों के लिये व्यावहारिक अनुभव में कमी आती है।
- कई नियोक्ता, कर्मचारियों के नौकरी से चले जाने और उच्च लागत के डर से कौशल प्रशिक्षण में निवेश करने से हिचकिचाते हैं।
- प्रशिक्षुता अधिनियम के बावजूद, उद्योग प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने में अनिच्छुक हैं, जिससे कार्यस्थल पर अधिगम के अवसर सीमित हो रहे हैं।
- कार्य-एकीकृत कौशल का विस्तार सैद्धांतिक शिक्षा और नौकरी के लिये तत्परता के बीच के अंतर को समाप्त कर सकता है।
- राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना के तहत पिछले 5 वर्षों में केवल 27.73 लाख प्रशिक्षुओं को रोज़गार मिला है।
- खंडित एवं अतिव्यापी कौशल कार्यक्रम: विभिन्न मंत्रालयों द्वारा चलाए जा रहे अनेक कौशल कार्यक्रम अकुशलताएँ उत्पन्न करते हैं, जिससे प्रयासों की पुनरावृत्ति होती है और समन्वय बाधित होता है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) और राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना जैसे कार्यक्रम प्रायः प्रभागों में संचालित होते हैं, जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है।
- एकीकृत कौशल डेटाबेस के अभाव में प्रगति पर नज़र रखना और कार्यबल नियोजन कठिन हो जाता है।
- एक केंद्रीकृत, तकनीक-संचालित कौशल पारिस्थितिकी तंत्र संसाधन आवंटन और नीति परिणामों में सुधार कर सकता है।
- विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत अनेक कौशल विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के बावजूद, केवल 16% युवा झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों को ही उनकी योग्यता के अनुसार उपलब्ध नौकरियों के बारे में जानकारी है।
- इसके अलावा, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के तहत 13.7 मिलियन अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन केवल 18% या 2.4 मिलियन को ही सफलतापूर्वक नौकरी मिल सकी है।
- निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी और निवेश: सीमित प्रोत्साहन, प्रशासनिक बाधाओं और उद्योग-अकादमिक संबंधों की कमी के कारण कौशल विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी कमज़ोर बनी हुई है।
- कंपनियाँ बड़े पैमाने पर अपस्किलिंग कार्यक्रमों को वित्तपोषित करने में हिचकिचाती हैं, इसके बजाय वे PMKVY जैसी सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहती हैं।
- उन देशों के विपरीत जहाँ कौशल विकास पहलों में उद्योगों का नेतृत्व होता है, भारत का मॉडल सरकार द्वारा संचालित है, जिससे संधारणीयता प्रभावित होती है।
- स्किल इंडिया डिजिटल हब (SIDH) एक व्यापक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसे भारत में कौशल, शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता परिदृश्य को समन्वित करने तथा बदलने के लिये डिज़ाइन किया गया है, लेकिन इसमें भागीदारी अभी भी कम है।
- ग्रामीण और अनौपचारिक क्षेत्रों में कौशल चुनौतियाँ: भारत का कौशल पारिस्थितिकी तंत्र बहुत हद तक शहर-केंद्रित है, जिससे अनौपचारिक और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अपवर्जित रह जाता है।
- अनेक ग्रामीण श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल संस्थानों तक अभिगम नहीं है तथा प्रवासन की चुनौतियों के कारण लगातार प्रशिक्षण प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
- विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 10% ग्रामीण कार्यबल को औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है।
- अनौपचारिक अर्थव्यवस्था, जो 90% से अधिक कार्यबल को रोज़गार देती है, बड़े पैमाने पर संरचित कौशल कार्यक्रमों से बाहर रहती है।
- अनेक ग्रामीण श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल संस्थानों तक अभिगम नहीं है तथा प्रवासन की चुनौतियों के कारण लगातार प्रशिक्षण प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
- कौशल की कम मान्यता और प्रमाणन: भारत के कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक रूप से कुशल है, लेकिन औपचारिक मान्यता और प्रमाणन का अभाव है, जिससे नौकरी की गतिशीलता सीमित हो जाती है।
- PMKVY के अंतर्गत पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL) का उद्देश्य विद्यमान कौशल को प्रमाणित करना है, लेकिन इसकी पहुँच अभी भी कम है।
- नियोक्ता प्रायः कुशल श्रमिकों की तुलना में डिग्री धारकों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे व्यावसायिक शिक्षा का प्रभाव कम हो जाता है।
- कार्यबल प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये पारंपरिक कौशल और औपचारिक मान्यता के बीच के अंतर को समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है।
- निर्माण क्षेत्र में, अधिकांश श्रमिक अनौपचारिक रूप से कुशल हैं, लेकिन उनके पास प्रमाणीकरण का अभाव है, जिससे मजदूरी और नौकरी की सुरक्षा कम हो जाती है।
भारत अपने कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने और सुधारने के लिये कौन से रणनीतिक उपाय लागू कर सकता है?
- अनौपचारिक और ग्रामीण कार्यबल समावेशन के लिये कौशल: ग्रामीण कौशल और आजीविका मिशन को कृषि-तकनीक, खाद्य प्रसंस्करण और संवहनीय शिल्प पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, ताकि ग्रामीण आबादी को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत किया जा सके।
- मोबाइल कौशल प्रशिक्षण केंद्र, ग्राम स्तरीय कौशल केंद्र और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम दूरदराज़ के क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करना चाहिये।
- FPO (किसान उत्पादक संगठन), SHG (स्वयं सहायता समूह) और कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के साथ सहयोग से जैविक कृषि, सटीक कृषि और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में कृषि-आधारित कौशल प्रदान किया जा सकता है।
- उद्योग-संरेखित और भविष्य-तैयार पाठ्यक्रम विकास: कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को उद्योग 4.0, स्वचालन, हरित नौकरियों और डिजिटल अर्थव्यवस्था कौशल के साथ पाठ्यक्रमों को संरेखित करके आपूर्ति-संचालित दृष्टिकोण से मांग-संचालित मॉडल में बदलनव की आवश्यकता है।
- सेक्टर स्किल काउंसिल (SSC) को कौशल मॉड्यूल को सह-डिज़ाइन करने के लिये प्रौद्योगिकी कंपनियों, MSME और गिग इकॉनमी प्लेटफॉर्मों के साथ सहयोग करना चाहिये।
- उद्योग प्रशिक्षुता और गहन इंटर्नशिप मॉडल के माध्यम से कार्य-एकीकृत शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- प्रशिक्षुता और कार्य-आधारित शिक्षण मॉडल को सुदृढ़ बनाना: कक्षा प्रशिक्षण को व्यावहारिक अनुभव के साथ संयोजित करने वाले दोहरे शिक्षण दृष्टिकोण को सभी कौशल कार्यक्रमों में संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये।
- प्रशिक्षुता अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये ताकि कर छूट और प्रशिक्षुओं के लिये वेतन सहायता के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
- राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (NAPS) का विस्तार किया जाना चाहिये और इसे स्टार्टअप्स, MSME एवं विनिर्माण 4.0 क्षेत्रों के साथ एकीकृत करना कार्यबल की रोज़गार क्षमता को बढ़ा सकता है।
- लचीले कौशल-शिक्षण मार्ग उपलब्ध कराने के लिये गिग इकॉनमी आधारित प्रशिक्षुता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- डिजिटल कौशल और ऑनलाइन शिक्षण अवसंरचना को बढ़ाना: कार्यबल को AI, ब्लॉकचेन, फिनटेक, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा कौशल से लैस करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी डिजिटल कौशल कार्यढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।
- दूरस्थ प्रशिक्षण पहुँच के लिये टियर-2 और टियर-3 शहरों में 5G-सक्षम कौशल केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
- शहरी और ग्रामीण आबादी के लिये बहुभाषी, AI-संचालित अनुकूली शिक्षा प्रदान करने के लिये स्किल इंडिया डिजिटल हब का विस्तार किया जाना चाहिये।
- स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के साथ कौशल को एकीकृत करना: एक राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा कार्यढाँचे को माध्यमिक विद्यालय से ही तकनीकी और सॉफ्ट कौशल के लिये प्रारंभिक संपर्क अनिवार्य करना चाहिये।
- नई शिक्षा नीति (NEP-2020) के तहत मॉड्यूलर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने से शिक्षा और उद्योग के बीच निर्बाध संक्रमण हो सकता है।
- कौशल और डिग्री कार्यक्रमों को राष्ट्रीय ऋण कार्यढाँचा (NCrF) के तहत क्रेडिट-लिंक किया जाना चाहिये, जिससे छात्रों को अकादमिक और कौशल-आधारित शिक्षा को संयोजित करने की अनुमति मिल सके।
- लिंग-समावेशी कौशल और कार्यबल भागीदारी संवर्द्धन: महिलाओं के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम को STEM, गिग इकॉनमी, वित्तीय सेवाओं और डिजिटल उद्यमिता में महिला भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- लिंग-संवेदनशील कौशल केंद्र, लचीले प्रशिक्षण कार्यक्रम, दूरस्थ शिक्षा विकल्प और बाल देखभाल सहायता महिलाओं के लिये अभिगम में सुधार कर सकते हैं।
- कौशल विकास में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन, स्टार्टअप अनुदान और मार्गदर्शन कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये।
- पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL) और कार्यबल गतिशीलता के लिये कौशल उन्नयन: एक राष्ट्रव्यापी RPL कार्यढाँचे को प्रमाणन के माध्यम से अनौपचारिक क्षेत्र के कौशल को औपचारिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिये, जिससे नौकरी की गतिशीलता और वेतन वृद्धि को सक्षम किया जा सके।
- मौजूदा कर्मचारियों को ढेर सारे माइक्रो-प्रमाणपत्रों तक अभिगम होनी चाहिये, जिससे उन्हें क्रमिक रूप से योग्यता प्राप्त करने में मदद मिल सके।
- स्किल इंडिया डिजिटल हब के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं में लचीले अपस्किलिंग मॉड्यूल उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी और PPP मॉडल को सुदृढ़ करना: कॉर्पोरेट CSR पहलों, स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्रों और औद्योगिक समूहों में कौशल कार्यक्रमों को एकीकृत करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का विस्तार किया जाना चाहिये।
- कौशल विकास में निवेश करने वाली कंपनियों को कर प्रोत्साहन और वित्तीय अनुदान प्रदान किया जाना चाहिये।
- सह-प्रमाणन मॉडल, जहाँ उद्योग सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर कौशल पाठ्यक्रमों को प्रमाणित करते हैं, रोज़गार क्षमता को बढ़ा सकते हैं।
- सॉफ्ट स्किल्स, व्यावसायिक नैतिकता और कार्यस्थल तत्परता सुनिश्चित करना: संचार, समस्या समाधान, अनुकूलनशीलता और टीम वर्क में सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण को सभी व्यावसायिक कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये।
- नौकरी की तत्परता, नेतृत्व कौशल और पेशेवर नैतिकता में सुधार के लिये उद्योग-उन्मुख सॉफ्ट स्किल बूट कैंप शुरू किये जाने चाहिये।
- अंग्रेज़ी दक्षता और डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रमों को ITI और पॉलिटेक्निक प्रशिक्षण के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- निगरानी, मूल्यांकन और उत्तरदायित्व तंत्र को सुदृढ़ करना: नामांकन, पूर्णता, रोज़गार दर और उद्योग फीडबैक को ट्रैक करने के लिये एक वास्तविक काल, AI-संचालित कौशल डैशबोर्ड विकसित किया जाना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि कौशल विकास कार्यक्रम वास्तविक रोज़गार अवसरों में तब्दील हो जाएँ, परिणाम-आधारित वित्तपोषण तंत्र को लागू किया जाना चाहिये।
- कौशल केंद्रों को तृतीय पक्ष द्वारा ऑडिट कराया जाना चाहिये तथा उद्योग सलाहकार बोर्डों को समय-समय पर सिफारिशें दी जानी चाहिये।
- कौशल केंद्रों की जियो-टैगिंग और बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली से अकुशलता पर अंकुश लगाया जा सकता है तथा गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
अपने जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिये, भारत को कुशल, उद्योग-संरेखित प्रशिक्षण के माध्यम से कौशल अंतर को समाप्त करना होगा। प्रशिक्षुता, डिजिटल कौशल और ग्रामीण कार्यबल समावेशन को मज़बूत करना आवश्यक है। निजी क्षेत्र के मज़बूत सहयोग के साथ एक एकीकृत, मांग-संचालित कौशल पारिस्थितिकी तंत्र रोज़गार क्षमता को बढ़ा सकता है। तभी भारत अपनी युवा क्षमता को स्थायी आर्थिक विकास में बदल सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. विभिन्न सरकारी पहलों के बावजूद, भारत अपने कार्यबल में कौशल की कमी का सामना कर रहा है। इसके लिये जिम्मेदार कारकों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और कौशल विकास प्रयासों को बढ़ाने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 मेन्सप्रश्न 1. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? |