भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में अंतराल को पाटना | 13 Nov 2024
यह संपादकीय “SDG goals at risk in nations such as India due to declining health spending: Data” पर आधारित है, जो 13/11/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित हुआ था। यह लेख भारत सहित निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय में तीव्र गिरावट का उल्लेख करता है, जिसमें वर्ष 2029 तक लगातार बजट कटौती के बीच सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और SDG स्वास्थ्य लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को खतरे की आशंका जताई गई है।
प्रिलिम्स के लिये:सरकारी स्वास्थ्य व्यय, सतत् विकास लक्ष्य, चरम मौसमी घटनाएँ, वेक्टर जनित रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, केंद्रीय औषधि नियामक, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, जूनोटिक रोग, H3N2 इन्फ्लूएंज़ा, क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट- 2010, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, सक्रिय दवा घटक मेन्स के लिये:भारत के सामने आने वाली प्रमुख उभरती स्वास्थ्य चुनौतियाँ, भारत में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित मुद्दे। |
विश्व बैंक द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, भारत सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सरकारी स्वास्थ्य व्यय घट रहा है, जिससे महामारी से पूर्व की वृद्धि खत्म हो रही है।
63 देशों के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्वास्थ्य व्यय की वृद्धि 2.4% (महामारी से पूर्व) से घटकर 0.9% (2019-2023) हो गई है। भारत और 34 अन्य देशों में, स्वास्थ्य बजट भी राष्ट्रीय व्यय के हिस्से के रूप में गिरकर वर्ष 2023 में 6.5% हो गया है। IMF अनुमान वर्ष 2029 तक स्वास्थ्य सेवा के लिये बजट में कटौती जारी रहने का संकेत देते हैं, जिससे बुनियादी अवसंरचना की बढ़ते अंतर के बीच सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और सतत् विकास लक्ष्य स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
भारत के समक्ष उभरती कौन-सी प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियाँ हैं?
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्वास्थ्य संकट: भारत में बढ़ते तापमान और चरम मौसमी घटनाएँ सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल रही हैं तथा गर्मी से संबंधित बीमारियों, श्वसन संबंधी बीमारियों और वेक्टर जनित बीमारियों में चिंताजनक वृद्धि देखी जा रही है।
- भारत में वर्ष 2022 में गर्मी के कारण 191 बिलियन संभावित वर्क ऑवर में कमी दर्ज की गई जो सत्र 1991-2000 की तुलना में 54% अधिक है।
- इसके अतिरिक्त, जलजनित रोग, जो बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति के कारण और भी बढ़ जाते हैं, भारत में स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न करते हैं।
- बाढ़ से प्रायः जल स्रोत दूषित हो जाते हैं, जिससे हैज़ा, पेचिश और टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।
- भारत में केवल तीन वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में 18% की वृद्धि हुई है तथा डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- भारत में वर्ष 2022 में गर्मी के कारण 191 बिलियन संभावित वर्क ऑवर में कमी दर्ज की गई जो सत्र 1991-2000 की तुलना में 54% अधिक है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) संकट: भारत को रोगाणुरोधी प्रतिरोध की गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो एंटीबायोटिक दवाओं के व्यापक दुरुपयोग, निम्न स्तरीय स्वच्छता और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल प्रयासों से प्रेरित है।
- वर्ष 2022 के लैंसेट अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2019 में भारत के निजी क्षेत्र में उपयोग किये जाने वाले 47% से अधिक एंटीबायोटिक फॉर्मूलेशन को केंद्रीय औषधि नियामक से अनुमोदन नहीं मिला, जिसके कारण व्यापक और प्रायः अनावश्यक उपयोग हुआ।
- इसके अतिरिक्त, अध्ययनों से भारतीय अस्पतालों में बहु-दवा प्रतिरोधी संक्रमणों में वृद्धि का संकेत मिलता है तथा गहन चिकित्सा इकाइयों (ICU) में ई. कोलाई और क्लेबसियेला न्यूमोनिया के प्रतिरोधी उपभेदों के पाए जाने की रिपोर्ट भी सामने आई है।
- मानसिक स्वास्थ्य आपातकाल: महामारी के बाद भारत एक अभूतपूर्व मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, जिसमें बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और कार्यबल है।
- मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा कलंक, गुणवत्तापूर्ण देखभाल तक सीमित पहुँच और अपर्याप्त बीमा कवरेज के कारण उपचार में बहुत बड़ी बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- कोविड-19 महामारी के कारण विश्व भर में चिंता और अवसाद के प्रसार में 25% की वृद्धि (WHO) हुई।
- राष्ट्रीय राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 150 मिलियन भारतीयों को मानसिक स्वास्थ्य इंटरवेंशन की आवश्यकता है, जबकि प्रति 100,000 जनसंख्या पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं।
- गैर-संक्रामक रोगों (NCD) में वृद्धि: भारत के महामारी विज्ञान संक्रमण से पता चलता है कि गैर-संक्रामक रोगों (NCD) में तीव्र वृद्धि हुई है, विशेष रूप से मधुमेह, हृदय रोग व कैंसर, जो युवा लोगों को प्रभावित करते हैं जिसके परिणामस्वरूप बीमारी का बोझ दोगुना हो जाता है।
- गतिहीन जीवनशैली, शहरीकरण और आहार परिवर्तन के संयोजन के कारण यह प्रवृत्ति बढ़ रही है, जबकि स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियाँ संक्रामक रोग प्रबंधन से लेकर दीर्घकालिक देखभाल मॉडल तक के लिये अनुकूलन करने में संघर्ष कर रही हैं।
- NCD एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके कारण विश्व भर में 74% मौतें होती हैं तथा भारत में 63% मौतें इसके कारण होती हैं।
- भारत में अब 101 मिलियन से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जबकि वर्ष 2019 में यह संख्या 70 मिलियन थी।
- रोगों का दोहरा बोझ: भारत को ‘रोगों के दोहरे बोझ’ का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें संक्रामक और गैर-संक्रामक दोनों प्रकार के रोगों (NCD) से एक साथ निपटना पड़ रहा है।
- तपेदिक, डेंगू और मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियाँ, विशेष रूप से ग्रामीण एवं निम्न आय वाले क्षेत्रों में, व्यापक रूप से फैली हुई हैं।
- कोविड-19 महामारी के बाद, भारत को उभरते और पुनः उभरते संक्रामक रोगों से नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही जूनोटिक रोगों और महामारी की तैयारियों के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- भारत में वर्ष 2023 में H3N2 इन्फ्लूएंज़ा के 3,000 से अधिक मामले सामने आए।
- भारत में, WHO की PHEIC घोषणा- वर्ष 2022 के बाद से 30 Mpox मामले सामने आए हैं।
- अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक वार्षिक तौर पर कैंसर के मामलों की संख्या में 12.8% की वृद्धि होगी, जो लगभग 1.57 मिलियन होगी।
- इस बीच, जीवनशैली में बदलाव, शहरीकरण और आहार शैली में बदलाव के कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर व हृदय संबंधी बीमारियों जैसे गैर-संक्रामक रोगों में वृद्धि तेज़ी से हो रही है।
- यह दोहरी चुनौती स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों पर दबाव डालती है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवा संस्थानों को संक्रामक रोगों और दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता वाली दीर्घकालिक स्थितियों, दोनों का समाधान करना होता है।
अनेक पहलों के बावजूद भारत प्रभावी स्वास्थ्य सेवा को बनाए रखने में क्यों संघर्ष कर रहा है?
- खंडित शासन: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर खंडित शासन से ग्रस्त है, जिसके कारण नीति कार्यान्वयन तथा संसाधन आवंटन में असंगतता होती है।
- केरल जैसे राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य संकेतकों के साथ सुदृढ़ स्वास्थ्य देखभाल तंत्र है, जबकि बिहार जैसे अन्य राज्य पीछे हैं।
- क्लिनिकल क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 का उद्देश्य पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को मानकीकृत करना है।
- हालाँकि इसका कार्यान्वयन राज्यवार अलग-अलग होता है, जिसके कारण स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और विनियमन प्रवर्तन में अंतर होता है।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण: महत्त्वाकांक्षी स्वास्थ्य देखभाल पहलों के बावजूद, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय अभि भी गंभीर रूप से कम बना हुआ है तथा निजी क्षेत्र की आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय पर भारी निर्भरता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत में सरकारी स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 1.9% है।
- भारत में, कुल स्वास्थ्य व्यय में जेब से किये जाने वाले स्वास्थ्य व्यय (OOP) का हिस्सा लगभग 62.6% है, जो विश्व में सबसे अधिक है।
- बुनियादी अवसंरचना और संसाधन असमानताएँ: स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी अवसंरचना में शहरी-ग्रामीण विभाजन बढ़ता जा रहा है, चिकित्सा सुविधाओं, उपकरणों और बुनियादी अवसंरचना के वितरण में महत्त्वपूर्ण असमानताएँ हैं।
- केवल 11% उप-केंद्र, 13% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 16% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ही भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों को पूरा करते हैं।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगभग 65% अस्पताल बेड लगभग 50% आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
- कार्यबल चुनौतियाँ और प्रतिभा पलायन: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को योग्य पेशेवरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो निरंतर प्रतिभा पलायन एवं असमान वितरण के कारण और भी अधिक गंभीर हो गया है।
- चिकित्सा शिक्षा क्षमता, हालाँकि बढ़ रही है, लेकिन गुणवत्ता के मुद्दों से जूझ रही है और स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं के साथ संरेखित नहीं है। प्रोत्साहन के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्तियाँ आकर्षक नहीं हैं।
- ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट से पता चलता है कि देश भर में 6,064 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में आवश्यक सर्जनों और बाल रोग विशेषज्ञों की 80% से अधिक कमी है।
- डेटा प्रबंधन और निगरानी में अंतराल: डिजिटल पहलों के बावजूद, स्वास्थ्य देखभाल डेटा का एकीकरण ठीक से नहीं हो पा रहा है, जिससे साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण और संसाधन आवंटन में बाधा आ रही है।
- रियल टाइम हेल्थ मॉनिटरिंग प्रणालियों की कमी से रोग निगरानी और अनुक्रिया क्षमता प्रभावित होती है।
- गोपनीयता संबंधी चिंताएँ और बुनियादी अवसंरचना की सीमाएँ डिजिटल स्वास्थ्य के अंगीकरण की गति को धीमा कर देती हैं।
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के अंगीकरण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बावजूद, 70% बाज़ार हिस्सेदारी रखने वाले निजी क्षेत्र से कुल स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री का केवल 30% ही आया है।
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान का अभाव: निवारक स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के बजाय मुख्य रूप से उपचारात्मक देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- स्वास्थ्य शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रमों पर अपर्याप्त संसाधन और ध्यान दिये जाते हैं। पर्यावरणीय स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर नीतिगत ध्यान सीमित होता है।
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर भारत सरकार का व्यय वर्तमान स्वास्थ्य व्यय (CHE) का केवल 13.55% है।
- आपूर्ति शृंखला और औषधि संबंधी मुद्दे: आवश्यक दवाओं और उपकरणों के लगातार स्टॉक खत्म होने के कारण स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति शृंखलाएँ अकुशल बनी हुई हैं।
- आयातित सक्रिय दवा सामग्री पर निर्भरता दवा सुरक्षा और लागत को प्रभावित करती है।
- जेनेरिक दवा कार्यक्रमों को कार्यान्वयन और गुणवत्ता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- भारत अपनी सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक आवश्यकताओं का लगभग 70% हिस्सा, विशेष रूप से विटामिन और एंटीबायोटिक्स, चीन से आयात करता है।
- आयातित सक्रिय दवा सामग्री पर निर्भरता दवा सुरक्षा और लागत को प्रभावित करती है।
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र: भारत को एक एकीकृत स्वास्थ्य डेटा अवसंरचना स्थापित करके आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तृतीयक अस्पतालों तक सभी हितधारकों को जोड़े।
- इसमें मानकीकृत इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (EHR), टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म और रोग की रियल टाइम निगरानी प्रणाली शामिल हो सकती है, साथ ही सुदृढ़ डेटा गोपनीयता व सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
- इस प्रणाली को सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच निर्बाध सूचना आदान-प्रदान की अनुमति देनी चाहिये तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अंतिम छोर तक संपर्क सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार किया जा सकता है और तमिलनाडु से प्रेरित होकर उन्हें सुदृढ़ किया जा सकता है, जो वर्ष 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ई-संजीवनी OPD परामर्श में शीर्ष पर रहा है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुदृढ़ीकरण: स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (HWC) को व्यापक प्राथमिक देखभाल केंद्रों में परिवर्तित किया जाना चाहिये, जो आवश्यक निदान, टेलीमेडिसिन सुविधाओं और प्रशिक्षित कर्मियों से लैस हों।
- नियमित स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण कार्यक्रम और सामुदायिक स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से निवारक देखभाल एवं शीघ्र रोग पहचान पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- एक सुदृढ़ रेफरल प्रणाली को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक देखभाल सुविधाओं को जोड़ना चाहिये, जबकि आशा और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से स्थानीय समुदायों को बेहतर स्वास्थ्य जागरूकता एवं निवारक देखभाल के लिये शामिल किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन से सेवा की गुणवत्ता और प्रतिधारण में भी सुधार होगा।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी सुधार: उच्च गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए समान स्वास्थ्य सेवा पहुँच सुनिश्चित करने के लिये नए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल विकसित किये जाने चाहिये।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये प्रदर्शन मीट्रिक, गुणवत्ता मानक और मूल्य निर्धारण नियंत्रण के साथ स्पष्ट नियामक संरचना को लागू किया जाना चाहिये।
- PPP परिणामों का आकलन करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र निगरानी प्रणालियाँ स्थापित की जानी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, प्रौद्योगिकी अंतरण और क्षमता निर्माण इन साझेदारियों का केंद्र बिंदु होना चाहिये।
- स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण सुधार: एक मिश्रित वित्तपोषण मॉडल अपनाया जाना चाहिये, जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज के साथ बढ़े हुए सार्वजनिक व्यय को शामिल किया जाना चाहिये।
- समर्पित स्वास्थ्य उपकर और अनुकूलित संसाधन आवंटन के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को धीरे-धीरे सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- कवरेज का विस्तार करके और मेडिक्लेम प्रक्रिया को सरल बनाकर आयुष्मान भारत योजना को सुदृढ़ करना आवश्यक है।
- आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य कवरेज का हाल ही में विस्तार कर 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को इसमें शामिल करना एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- चिकित्सा शिक्षा और कार्यबल विकास: व्यावहारिक कौशल, डिजिटल स्वास्थ्य और उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चिकित्सा शिक्षा का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिये।
- आकर्षक प्रोत्साहन और कॅरियर में प्रगति के अवसरों के साथ एक अनिवार्य ग्रामीण पोस्टिंग प्रणाली शुरू की जानी चाहिये।
- छत्तीसगढ़ का मितानिन कार्यक्रम, जो ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है, एक आदर्श के रूप में काम कर सकता है।
- नियमित कौशल अद्यतन के साथ एक मानकीकृत सतत् चिकित्सा शिक्षा प्रणाली बनाई जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त, स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वंचित क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
- आकर्षक प्रोत्साहन और कॅरियर में प्रगति के अवसरों के साथ एक अनिवार्य ग्रामीण पोस्टिंग प्रणाली शुरू की जानी चाहिये।
- औषधि और चिकित्सा उपकरण विनिर्माण: भारत को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से आवश्यक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिये घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को और भी विकसित करना चाहिये।
- आयात पर निर्भरता कम करने के लिये साझा बुनियादी अवसंरचना वाले API पार्क विकसित किये जाने चाहिये।
- घरेलू उत्पादों में जन-विश्वास को बढ़ाने हेतु जेनेरिक दवाओं के लिये गुणवत्ता नियंत्रण उपायों और मानकीकरण को लागू किया जाना चाहिये।
- बेहतर आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के साथ जन औषधि नेटवर्क को भी सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- आपातकालीन तैयारी प्रणाली: क्षेत्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया केंद्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें पर्याप्त आपातकालीन क्षमता और आवश्यक आपूर्ति हो।
- वास्तविक समय निगरानी क्षमताओं के साथ रोग प्रकोप के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू की जानी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, आवश्यक दवाओं और उपकरणों के रणनीतिक भंडार स्थापित किये जाने चाहिये तथा उनका नियमित रूप से उपयोग किया जाना चाहिये।
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान: स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में सभी आयु समूहों के लिये व्यापक स्वास्थ्य जाँच कार्यक्रम लागू किये जाने चाहिये।
- पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों (AYUSH) को आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकृत करने से स्वास्थ्य देखभाल के लिये एक समग्र उपागम उपलब्ध हो सकता है।
- कार्यस्थल और स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से जीवनशैली संबंधी बीमारियों के लिये लक्षित इंटरवेंशन शुरू किया जाना चाहिये।
- स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करने के लिये ‘ईट राइट इंडिया’ और ‘फिट इंडिया’ जैसे अभियानों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- नियामक फ्रेमवर्क का आधुनिकीकरण: गुणवत्ता नियंत्रण और मानक निर्धारण के लिये स्पष्ट अधिदेश के साथ एक एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल नियामक प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।
- सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के लिये अनिवार्य मान्यता प्रणाली लागू की जानी चाहिये तथा नियमित ऑडिट भी होना चाहिये।
- चिकित्सा सेवाओं और प्रक्रियाओं के लिये पारदर्शी मूल्य निर्धारण तंत्र विकसित किया जाना चाहिये।
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण: भारत को एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये, जो जूनोटिक रोगों की रोकथाम के लिये मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को जोड़ता है।
- मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर निगरानी और प्रारंभिक पहचान प्रणालियों को सुदृढ़ करने से प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
- स्वास्थ्य देखभाल, पशु चिकित्सा और पर्यावरण क्षेत्रों के बीच सहयोग आवश्यक है।
निष्कर्ष:
भारत की बढ़ती स्वास्थ्य सेवा चुनौतियों से निपटने के लिये डिजिटल एकीकरण, निवारक देखभाल और सुदृढ़ सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। प्राथमिक देखभाल सुविधा को सुदृढ़ करने और निवारक स्वास्थ्य पर बल देने से तृतीयक प्रणालियों पर बोझ कम होगा। समन्वित सुधारों के साथ, भारत स्वास्थ्य संकटों को बेहतर ढंग से नेविगेट कर सकता है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज तथा सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा समाज के सभी वर्गों के लिये इसकी प्रभावशीलता और पहुँच को सुगम करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:Q. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021) |