प्रणालीगत परिवर्तन के माध्यम से वायु प्रदूषण संकट का समाधान | 08 Nov 2024

यह संपादकीय 04/11/2024 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित "Tackling NCR's air pollution needs sustainable focus, not quick fixes" पर आधारित है। लेख में चर्चा की गई है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण संकट के लिये उत्सर्जन में कमी और कार्बन कैप्चर पर ध्यान केंद्रित करने वाले व्यवस्थित, दीर्घकालिक समाधानों की आवश्यकता है। इसके लिये सरकारों और विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग तथा संयुक्त प्रयास अनिवार्य हैं, ताकि स्थायी एवं प्रभावी बदलाव संभव हो सके।

प्रिलिम्स के लिये:

वायु प्रदूषण, पराली जलाना, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान-सफर , इलेक्ट्रिक वाहन (EV), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), NCAP, GRAP, बीएस-VI मानक, फेम-II योजना, सतत् योजना, बायोगैस, लाभकारी मूल्य, कृषि बाज़ार, नवीकरणीय ऊर्जा, फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) 

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण का मुद्दा और वायु गुणवत्ता सुधार के लिये प्रमुख नीतिगत हस्तक्षेप। 

सर्दियों की शुरुआत के साथ ही, दिल्ली और गंगा के मैदान में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुँच जाता है, जो पराली जलाना, वाहनों से निकलने वाले धुएँ और औद्योगिक प्रदूषण के कारण होता है। सरकारी प्रयासों के बावजूद, पराली जलाना PM2.5 के स्तर में वृद्धि का एक प्रमुख कारण बना हुआ है, खासकर फसल कटाई के समय। यह प्रदूषण नियंत्रण के लिये एक चुनौती बनी हुई है और इसके समाधान के लिये अधिक प्रभावी कदमों की आवश्यकता है।

सेंटर  विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) का कहना है कि स्थानीय स्रोतों, मुखत: वाहनों से होने वाले प्रदूषण में निरंतर वृद्धि हो रही है, जबकि CNG कार्यक्रम और पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने जैसी पहल की गई हैं। भीड़भाड़, बोझिल सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और स्वच्छ ऊर्जा में अपर्याप्त निवेश के कारण, इस क्षेत्र की वायु गुणवत्ता का संकट वार्षिक प्रदूषण चक्र को तोड़ने और स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिये साहसिक, व्यवस्थित बदलावों की मांग करता है।

दिल्ली और गंगा के मैदान में वायु प्रदूषण के क्या कारण हैं?

  • उत्तर भारत में पराली जलाना: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष फसल अवशेषों को जलाया जाता है, जो मौसमी वायु प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारण है।
    • वर्ष 2024 में छह राज्यों में कुल 400,461 पराली जलाने के मामलों में से 74% (296,670 मामले) पंजाब में हुए, इसके बाद मध्य प्रदेश में 50,242 मामले दर्ज किये गए। यह आँकड़े प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों के बावजूद पराली जलाने की समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।
    • वर्ष 2024 में ऐसी घटनाओं में कमी आएगी, लेकिन आर्थिक बाधाएँ और सीमित विकल्प अभी भी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तर प्रदेश में वर्ष 2023 की इसी अवधि की तुलना में सितंबर-अक्तूबर में पराली जलाने की घटनाओं में लगभग 38% की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • अक्तूबर और नवंबर के महीनों में दिल्ली में वायु प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान 25-30% के बीच होता है, जो प्रदूषण स्तर को बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

  • वाहन उत्सर्जन: विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) के आँकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में स्थानीय प्रदूषण स्रोत शहर के वायु प्रदूषण में 30.34% का योगदान करते हैं, जिसमें परिवहन 50.1% के लिये ज़िम्मेदार है।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, ऊर्जा अनुसंधान संस्थान और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान-सफर द्वारा किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में PM 2.5 उत्सर्जन में 40% तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) में 81% का योगदान वाहनों का है।
    • भारत ने वित्त वर्ष 2023 में 25.9 मिलियन वाहनों का उत्पादन किया, जिसमें सबसे बड़ा ट्रैक्टर और तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक उत्पादन शामिल है। धीमी गति से इलेक्ट्रिक वाहन (EV) को अपनाना और सीमित सार्वजनिक परिवहन उच्च उत्सर्जन को बनाए रखते हैं।
  • औद्योगिक उत्सर्जन: दिल्ली NCR क्षेत्र के बिजली संयंत्र, विशेष रूप से कोयला आधारित संयंत्र, SO2 और NOx उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, भारत के केवल 5% कोयला संयंत्र सल्फर उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली से सुसज्जित हैं।
    • दिल्ली-NCR में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा चिह्नित गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक समूहों को प्रदूषण मानदंडों में बार-बार छूट का सामना करना पड़ता है, जिससे ++वायु गुणवत्ता और अधिक प्रभावित होती है।
    • औद्योगिक उत्सर्जन एवं शिथिल प्रवर्तन के कारण क्षेत्रीय प्रदूषण में बड़ी भूमिका बन रही है, जो विशेष रूप से सर्दियों में धुंध तथा वायु गुणवत्ता को और अधिक खराब कर रहा है।
  • निर्माण और शहरी विकास: वर्ष 2019 लंदन वायुमंडलीय उत्सर्जन सूची के अनुसार, शहरी निर्माण, जो दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में साल भर चलने वाली गतिविधि है, PM10 के 30% एवं PM 2.5 उत्सर्जन में 8% का योगदान देता है
    • धूल प्रबंधन में कमी और निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन का अपर्याप्त उपयोग दिल्ली-NCR में कणों के स्तर को बढ़ा रहे हैं, मुख्यतः सर्दियों में जब मौसम प्रदूषकों के फैलाव को रोकता है। यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, जिससे वायु गुणवत्ता में गिरावट आती है और धुंध बढ़ती है।
  • जलवायु संबंधी कारक: जलवायु परिवर्तन ने सर्दियों में वायुमंडलीय स्थिरता को बढ़ा दिया है तथा अक्तूबर में असामान्य वर्षा के कारण प्रदूषक तत्त्वों के फँसने से वायु की गुणवत्ता और खराब हो गई है।
    • जैसे-जैसे तापमान गिरता है, एक व्युत्क्रम परत बनती है, जो प्रदूषकों को फैलने से रोकती है, जबकि सिंधु-गंगा के मैदान में शांत हवाएँ प्रदूषकों की गति को ओर अधिक प्रतिबंधित करती हैं।
  • कार्यान्वयन संबंधी अंतराल: पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण को दी गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण अंतरालों को उजागर किया गया है, विशेष रूप से दिल्ली में, जहाँ आवंटित धनराशि का 68% अप्रयुक्त रह गया है। 
    • NCR शहरों में, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और नोएडा में फंड उपयोग दर अलग-अलग रही, जिसमें नोएडा में यह दर 11% रही
  • उच्च AQI स्तर: उत्तर प्रदेश में नोएडा, गाज़ियाबाद, मुरादाबाद और लखनऊ जैसे शहरों में अक्सर खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तर दर्ज किया जाता है, जिसमें PM2.5 सांद्रता राष्ट्रीय मानकों से अधिक होती है।
    • साथ ही, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वर्ष 2023 के आँकड़ों से ज्ञातव्य है कि पटना का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 332 रहा, इसके अतिरिक्त वर्ष 2023 में बिहार के 7 शहर भारत के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में शामिल थे।

 

वायु प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: वायु प्रदूषण संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। 
    • खराब वायु गुणवत्ता नागरिकों को स्वस्थ पर्यावरण के उनके अधिकार से वंचित करती है, जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य, खुशहाली और जीवन की समग्र गुणवत्ता पर पड़ता है।
    • यह SDG 3 (अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण) का भी उल्लंघन करता है तथा सतत् विकास की दिशा में वैश्विक प्रयासों को कमज़ोर करता है।
  • गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव: दिल्ली NCR और गंगा के मैदान में सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण के कारण PM 2.5 का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिससे श्वसन एवं हृदय संबंधी बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं। 
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार, केवल दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 10,000 लोगों की असामयिक मृत्यु होती है।
    • इसके अतिरिक्त, शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) की नवीनतम वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक 2024 रिपोर्ट के अनुसार, उच्च पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण दिल्लीवासियों की जीवन प्रत्याशा में 11.9 वर्ष की कमी आ सकती है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से अधिक है।
  • जोखिम में कमज़ोर समूह: बुज़ुर्ग, बच्चे और पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोग सर्दियों में प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि इन लोगों में अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है, क्योंकि सर्दियों में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है तथा यह उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।
  • दृश्यता में कमी और यातायात दुर्घटनाएँ: अत्यधिक धुंध के कारण दृश्यता 50 मीटर से भी कम हो जाती है, जिससे परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है और सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
  • आर्थिक बोझ: वायु प्रदूषण की आर्थिक लागत, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल लागत और उत्पादकता की हानि भी शामिल है, जिसके बहुत अधिक होने का अनुमान है।
    • स्वच्छ वायु कोष (CAF) के एक अनुमान के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण भारतीय व्यवसायों को हर साल 95 बिलियन अमेरिकी डॉलर या भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 3% का नुकसान होता है।
  • शिक्षा और उत्पादकता की हानि: खराब वायु गुणवत्ता के कारण स्कूलों को बंद करना और बच्चों की अनुपस्थिति बढ़ना शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता है। यह न केवल बच्चों की सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि उनकी शिक्षा पर भी नकारात्मक असर डालता है, जिससे लंबी अवधि में भविष्य पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
    • प्रत्येक शीतकाल में दिल्ली सरकार को क्षेत्र के उच्च प्रदूषण स्तर के कारण कई दिनों तक स्कूल बंद करने के लिये बाध्य होना पड़ता है।
    • इसके अतिरिक्त, EPIC द्वारा किये गए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ कि वायु प्रदूषण छात्रों के संज्ञानात्मक प्रदर्शन को कम कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सीखने के परिणामों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।

वायु प्रदूषण को रोकने के लिये क्या उपाय किये गए हैं?

  • नीतिगत हस्तक्षेप और विनियमन: 
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): वर्ष 2019 में शुरू किये गए NCAP का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक 131 शहरों में PM10 के स्तर में 40% की कमी लाना है, जिसके कारण वित्त वर्ष 2023 तक 88 शहरों में सुधार दिखा।
    • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP): CPCB द्वारा कार्यान्वित GRAP विशेष रूप से दिल्ली-NCR में AQI स्तरों के आधार पर सख्त प्रदूषण नियंत्रण लागू करता है।
      • वर्ष 2022 में संशोधित GRAP में अब उद्योगों को स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिये विशिष्ट निर्देश शामिल हैं तथा धूल नियंत्रण प्रोटोकॉल लागू किये गए हैं।
    • व्यापक कार्य योजना (CAP): दिल्ली सरकार द्वारा विभिन्न विभागों के समन्वय से कार्यान्वित की जाने वाली CAP का लक्ष्य, सख्त वाहन उत्सर्जन नियंत्रण, बेहतर औद्योगिक नियमन, पराली जलाने पर रोक, बेहतर निर्माण स्थल प्रबंधन और जन जागरूकता जैसे उपायों के माध्यम से वायु प्रदूषण को कम करना है।
    • CAAQMS: CAAQMS (निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन) स्वचालित प्रणालियाँ हैं जिनका उपयोग देश भर में वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता को मापने और निगरानी करने के लिये किया जाता है।
      • ये स्टेशन PM2.5, PM10, NOx, SO2 और CO जैसे प्रदूषकों पर डेटा एकत्र करते हैं, जो वायु गुणवत्ता का आकलन करने, नीतिगत निर्णय लेने तथा प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों में प्रगति को ट्रैक करने में मदद करता है।
    • ज़ुर्माना: बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिये, नवंबर 2024 में, केंद्र सरकार ने कई उत्तरी राज्यों में फसल अवशेष जलाने वाले किसानों पर ज़ुर्माना दोगुना कर दिया।
    • वाहन उत्सर्जन नियंत्रण: 
      • भारत स्टेज उत्सर्जन मानक 6: अप्रैल 2020 में लागू किये गए बीएस-VI मानक ईंधन की गुणवत्ता और वाहन उत्सर्जन दोनों को विनियमित करते हैं, जिसका लक्ष्य वाहन प्रदूषण में कमी लाना है
      • वैकल्पिक ईंधन: FAME-II योजना इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने का समर्थन करती है, जबकि SATAT योजना वैकल्पिक ईंधन के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये संपीड़ित बायोगैस (CBG) उत्पादन को बढ़ावा देती है।
      • एक्सप्रेस-वे और राजमार्ग परियोजनाएँ: नए राजमार्गों को प्रमुख शहरों से यातायात को हटाने के लिये डिज़ाइन किया गया है, ताकि शहरी क्षेत्रों में ट्रैफिक जाम और प्रदूषण को कम किया जा सके। इसका उद्देश्य सड़क उपयोग में सुधार और पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करना है, जिससे बेहतर यातायात प्रबंधन तथा नागरिकों की जीवन गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।
  • औद्योगिक उत्सर्जन मानक:
    • ताप विद्युत संयंत्रों के लिये नई SO2 और NOx उत्सर्जन सीमाएँ लागू की गईं; 56 औद्योगिक क्षेत्रों में उत्सर्जन मानक अधिक कड़े हैं
    • ऑनलाइन सतत् उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (OCEMS) को उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों के लिये अनिवार्य किया गया है, हालाँकि इसका आंशिक अनुपालन ही हो पाया है।
    • कोयले से संबंधित उत्सर्जन से निपटने के लिये NCR राज्यों में पेट कोक और फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • पराली जलाने पर रोक लगाने के उपाय:
    • फसल अवशेष प्रबंधन के लिये सब्सिडी: सरकार फसल अवशेषों को जलाए बिना प्रबंधित करने के लिये मशीनरी के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है, लेकिन सीमित प्रोत्साहन के कारण इसे अपनाने की गति धीमी है।
    • फसल विविधीकरण: पराली जलाने के मूल कारण को दूर करने के लिये पंजाब और हरियाणा में धान की खेती को कम करने के प्रयासों को बढ़ावा दिया गया है।
    • पेलेटीकरण और बायोमास उपयोग: पराली से पेलेट बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की गई है, जो एक नवीकरणीय ईंधन विकल्प है, जिसका उपयोग ताप विद्युत संयंत्र कोयले के स्थान पर कर सकते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2020 से, दिल्ली सरकार शहर में पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिये पूसा बायो-डीकंपोजर का उपयोग कर रही है, जो एक माइक्रोबियल घोल है जो 15-20 दिनों के भीतर धान के अवशेषों को नष्ट कर देता है।
  • इनडोर वायु गुणवत्ता सुधार प्रयास:
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY): ठोस ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिये LPG कनेक्शन प्रदान करती है, हालाँकि 53% परिवार अभी भी "ईंधन स्टैकिंग" का अभ्यास करते हैं, जिसमें LPG के साथ ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है।
      • पुराने वाहनों में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरण लगाने का परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन लागत संबंधी बाधाओं के कारण इसे व्यापक रूप से अपनाना अभी लंबित है।

आगे की राह 

  • व्यापक फसल अवशेष प्रबंधन:
    • प्रत्यक्ष सरकारी हस्तक्षेप: सरकार को किसानों से लाभकारी मूल्य पर फसल अवशेष खरीदने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये। 
      • यह सुनिश्चित करने से कि सभी फसल अपशिष्टों को एकत्र किया जाए, साथ ही उन्हें ऊर्जा उत्पादन के लिये कणों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा। इससे न केवल अपशिष्ट निपटान की समस्या का समाधान होगा, बल्कि इससे ऊर्जा उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे पर्यावरण और ऊर्जा दोनों के दृष्टिकोण से लाभ होगा।
    • स्थानीयकृत पेलेट उत्पादन: कृषि बाज़ारों (मंडियों) के पास पेलेट रूपांतरण संयंत्र स्थापित करने से परिवहन लागत कम हो जाएगी, जिससे बायोमास ऊर्जा उत्पादन आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य हो जाएगा। 
      • ये संयंत्र फसल अवशेषों को गोलियों में बदल देंगे, जिससे एक स्थायी ऊर्जा स्रोत उपलब्ध होगा तथा खुले मैदान में फसल जलाने के पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी।
  • स्वच्छ ऊर्जा की ओर त्वरित परिवर्तन: 
    • नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में वृद्धि: वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता प्राप्त करने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को रूफटॉप सौर और हरित हाइड्रोजन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार करके और अधिक समर्थन दिया जाना चाहिये।
  • उन्नत औद्योगिक उत्सर्जन मानक और प्रवर्तन:
    • अनिवार्य फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD): कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन को कम करने के लिये, सभी कोयला संयंत्रों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणालियों की स्थापना अनिवार्य कर दी जानी चाहिये।
      • उदाहरण के लिये, चीन ने ऐसे उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और भारत औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये इस दृष्टिकोण का अनुसरण कर सकता है।
  • आधुनिक शहरी बुनियादी ढाँचा:
    • शहरी हरित आवरण और ऊर्ध्वाधर वन: दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहरों को शहरी हरित परियोजनाओं को अपनाना चाहिये, जैसे कि ऊर्ध्वाधर वन, छतों पर उद्यान विस्तारित हरित स्थान, ताकि शहरी ताप द्वीपों की समस्या को नियंत्रित किया जा सके और वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। इन उपायों से न केवल पर्यावरण को सुधारने में मदद मिलेगी, बल्कि नागरिकों की जीवन गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
      • मुंबई में आरे कॉलोनी और मियावाकी वनरोपण जैसी परियोजनाएँ, जहाँ शहरी वनों को शहर की योजना में एकीकृत किया गया है, सफल मॉडल के रूप में काम करती हैं।
    • हरित भवन अधिदेश: हरित वास्तुकला और टिकाऊ भवन प्रथाओं को एकीकृत करना, जैसा कि सिंगापुर के स्काईराइज़ ग्रीनरी इंसेंटिव में देखा गया है, नए शहरी विकास के कार्बन पदचिह्न को कम करने में मदद कर सकता है। 
  • सुदृढ़ वाहन उत्सर्जन नियंत्रण:
    • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) अपनाने में वृद्धि: EV बुनियादी ढाँचे का विस्तार और EV मालिकों के लिये कर लाभ प्रदान करने से पूरे भारत में स्वच्छ परिवहन विकल्पों को अपनाने में तेज़ी आएगी।
    • भीड़भाड़ मूल्य निर्धारण और गैर-मोटर चालित परिवहन: लंदन के अल्ट्रा लो एमिशन ज़ोन के समान भीड़भाड़ मूल्य निर्धारण लागू करने से उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में यातायात कम हो सकता है, जिससे स्वच्छ परिवहन विकल्पों को बढ़ावा मिलेगा। 
  • तकनीकी और डेटा-संचालित वायु गुणवत्ता प्रबंधन:
    • उन्नत वायु गुणवत्ता निगरानी और डेटा पहुँच: वास्तविक समय, विस्तृत डेटा के लिये  वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विस्तार करने से अधिकारियों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
    • AI-आधारित समाधान: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित प्रदूषण पूर्वानुमान और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) -सक्षम प्रदूषण सेंसर जैसे समाधान सटीक पूर्वानुमान तथा निरंतर निगरानी प्रदान कर सकते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता के मुद्दों पर अधिक सक्रिय एवं लक्षित प्रतिक्रियाएँ संभव हो सकेंगी। 

निष्कर्ष

दिल्ली और भारत के अन्य भागों में बार-बार होने वाले वायु प्रदूषण संकट के समाधान हेतु एक व्यवस्थित दृष्टिकोण आवश्यक है। सरकार को फसल अपशिष्ट खरीदने और उसे थर्मल प्लांट के लिये बायोमास पेलेट में बदलने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये, जिससे पराली जलाने की दर में कमी आए। इस रणनीति के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति, समन्वय और स्वच्छ ऊर्जा तथा सार्वजनिक परिवहन में दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता है। एक सतत्, एकीकृत प्रयास भारत के लिये स्वच्छ हवा, बेहतर स्वास्थ्य और एक हरित, अधिक टिकाऊ भविष्य प्रदान कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: दिल्ली और गंगा के मैदान में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिये। पराली जलाने, वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन और औद्योगिक प्रदूषण की भूमिका पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)

  1. कार्बन डाइऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोक्साइड
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मेथैन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता देश के तीन विराट नगर हैं, परंतु दिल्ली में वायु प्रदूषण, अन्य दो नगरों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर समस्या है। इसका क्या कारण है? (2015)