भारत में शहरी परिवहन | 08 Apr 2025

प्रिलिम्स के लिये:

स्मार्ट सिटीज़ मिशन, पारगमन-उन्मुख विकास, पार्टिकुलेट मैटर, शहरी स्थानीय निकाय

मेन्स के लिये:

शहरी परिवहन सुधार और समावेशी गतिशीलता, सतत् शहरी गतिशीलता में सार्वजनिक नीति की भूमिका, सार्वजनिक परिवहन में वहनीयता बनाम पहुँच

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

फरवरी 2025 में किराए में अत्यधिक वृद्धि के बाद बंगलूरू की नम्मा मेट्रो भारत की सबसे महँगी मेट्रो सेवा बन गई है। इस कदम से शहरी परिवहन की सामर्थ्य को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। उचित मूल्य निर्धारण के बिना, सार्वजनिक परिवहन में यात्रियों का विश्वास खोने का जोखिम है।

शहरी परिवहन प्रणालियों के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • वहनीयता: मेट्रो (बंगलूरू में 30 किमी से अधिक दूरी के लिये 90 रुपए किराया) और बस सेवाओं में बढ़ते किराए के कारण निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिये दैनिक यात्रा महँगी होती जा रही है।
    • इसके अतिरिक्त, पीक आवर्स या खराब मौसम के दौरान मोबिलिटी ऐप्स द्वारा मूल्य निर्धारण में बढ़ोतरी से यात्रा महँगी हो जाती है, जिससे राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (NUTP) 2006 और स्मार्ट सिटीज़ मिशन कमज़ोर हो जाता है, जो सभी के लिये लागत प्रभावी और सुलभ गतिशीलता पर ज़ोर देता है।
  • कमज़ोर गैर-मोटर चालित परिवहन (NMT) बुनियादी ढाँचा: अधिकांश भारतीय शहरों में NMT के लिये सुरक्षित और सुलभ बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जैसे पैदल यात्री क्षेत्र (दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरू में पैदल यात्री मृत्यु दर >40%) और साइकिल ट्रैक।
    • जहाँ ऐसे रास्ते मौजूद हैं, वहाँ प्रायः अतिक्रमण है, उनका डिज़ाइन निम्नस्तरीय है, या उनका रखरखाव ठीक से नहीं किया गया है, जिसके कारण वे असुरक्षित और अनुपयोगी हैं।
    • भूमि उपयोग और परिवहन नियोजन का एकीकरण ठीक से नहीं किया गया है, तथा पारगमन-उन्मुख विकास (TOD) का कार्यान्वयन भी कमज़ोर है।
  • भीड़भाड़: भारतीय शहरों में यातायात की गंभीर समस्या है, निजी वाहन, 20% से भी कम यात्रियों को सेवा प्रदान करने के बावजूद, सड़क पर 90% स्थान घेरते हैं। यह असंतुलन, तथा स्थिर सड़क अवसंरचना, लंबी यात्रा तथा कम उत्पादकता का कारण बनते हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: वर्ष 2020 में, भारत के परिवहन क्षेत्र का कुल ऊर्जा-संबंधित CO₂ उत्सर्जन में 14% योगदान था। दिल्ली जैसे शहरों में वाहन पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) और NOx उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत बने हुए हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ और पर्यावरणीय क्षति हो रही है, जिससे वर्ष 2070 तक भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयास कमज़ोर हो रहे हैं।
    • स्वच्छ ईंधन नीतियों की कमी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को धीमी गति से अपनाने से संकट और गहरा गया है।
  • अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन प्रणाली: 1 लाख से अधिक आबादी वाले 458 शहरों में से केवल 63 में औपचारिक बस सेवा है। भारत में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 1.2 बसें हैं, जबकि वैश्विक मानक 5-8 हैं (नीति आयोग, 2018)।
    • अधिकांश शहरों में भली प्रकार से संयोजित परिवहन नेटवर्क का अभाव है जहाँ मेट्रो सेवाओं का नगरीय क्षेत्रों तक विस्तार नहीं है, जबकि ऑटो और ई-रिक्शा जैसे अनियमित अनौपचारिक साधन को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ हैं।
  • वित्तीय एवं क्षमता संबंधी बाधाएँ: नगरीय स्थानीय निकायों (ULB) में वित्तीय स्वायत्तता का अभाव है तथा वे राज्य या केंद्रीय वित्तपोषण पर बहुत अधिक निर्भर हैं। 
    • भूमि मूल्य अधिग्रहण, संकुलता मूल्य निर्धारण अथवा ग्रीन बॉण्ड जैसे साधनों के माध्यम से संसाधन जुटाने की उनकी सीमित क्षमता से संवहनीय और संधारणीय परिवहन परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न होती है।

नगरीय क्षेत्रों में संधारणीय और समावेशी आवागमन हेतु क्या किया जा सकता है?

  • NMT में निवेश: आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार, भारत के नगरों में की जाने वाली यात्राओं में से लगभग 50% 5 किमी. से कम की होती हैं, जो उन्हें NMT के लिये आदर्श बनाती हैं।
    • पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिये समर्पित लेन और सुरक्षित बुनियादी ढाँचे से संवहनीय और संधारणीय नगरीय आवागमन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं का अंगीकरण: कोच्चि (सबसे अधिक संधारणीय परिवहन प्रणाली), भुवनेश्वर (सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक परिवहन) और श्रीनगर (सर्वश्रेष्ठ गैर-मोटर चालित परिवहन) जैसे शहरों का मॉडल अनुकरणीय है। इन प्रथाओं को पहचानना और उनका विस्तार करने से अधिक तेज़ी से परिवर्तन होगा।
  • संवहनीय सार्वजनिक परिवहन अभिगम: यात्रियों पर वित्तीय बोझ कम करने के लिये रियायती किराया संरचनाओं (जैसे, मासिक पास) को बढ़ावा देने और गैर-किराया राजस्व स्रोतों (जैसे स्टेशनों पर विज्ञापन और खुदरा पट्टे) को उपयोग में लाए जाने की आवश्यकता है।
  • स्वच्छ परिवहन: FAME II, PM ई-बस सेवा के माध्यम से स्वच्छ आवागमन को बढ़ावा देने, तथा इलेक्ट्रिक बसों और हरित आवागमन को अपनाने में तेज़ी लाने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी अथवा कर कटौती प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • नगरीय स्थानीय निकायों का सशक्तीकरण: नगरीय स्थानीय निकायों को वित्तपोषण चुनौतियों का समाधान करने और संधारणीय आवागमन सेवाओं का समर्थन करने के लिये आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय की मूल्य अधिग्रहण वित्त (VCF) नीति 2017 के अंतर्गत भूमि मूल्य अधिग्रहण, संकुलता मूल्य निर्धारण, ग्रीन बॉण्ड और पार्किंग शुल्क का समुपयोजन करने में सक्षम बनाया जाना चाहिये।
  • एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली: वाहनों के बजाय लोगों के आवागमन पर केंद्रित एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों हेतु निधि का आवंटन किया जाना चाहिये। निजी वाहनों के उपयोग को कम करने के लिये पारगमन-उन्मुख विकास नीति, 2017 के तहत मल्टीमॉडल परिवहन, निर्बाध टिकटिंग, रियल-टाइम ट्रैकिंग और TOD को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • स्मार्ट शहरों और AMRUT लक्ष्यों के साथ समन्वित आवागमन नियोजन के लिये एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरणों (UMTA) को अधिक सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

पारगमन-उन्मुख विकास क्या है?

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: पारगमन-उन्मुख विकास

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में नगरीय क्षेत्रों के परिवहन के समक्ष बहुआयामी चुनौतियाँ हैं, इसे संधारणीय और समावेशी बनाने के लिये एक व्यापक रणनीति का सुझाव दीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. गति शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2022)