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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूक्रेन

  • 18 Jun 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संघर्ष, डोनेट्स्क और लुहांस्क क्षेत्र, काला सागर, शीत युद्ध, NATO, मिंस्क प्रोटोकॉल, वारसा पैक्ट

मेन्स के लिये:

यूक्रेन-रूस संघर्ष तथा यूक्रेन एवं रूस में भारत के हित, इस संघर्ष का भारत पर प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्विट्जरलैंड में यूक्रेन के लिये हुआ दो दिवसीय शांति शिखर सम्मेलन 16 जून 2024 को “पाथ टू पीस” नामक दस्तावेज़ के साथ समाप्त हुआ

  • इस शिखर सम्मेलन के माध्यम से प्रतिभागियों द्वारा रूस तथा यूक्रेन के बीच संघर्ष की समाप्ति की आशा व्यक्त की गई।

शिखर सम्मेलन के मुख्य बिंदु:

  • यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का आह्वान:
    • 80 देशों ने रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिये किसी भी शांति समझौते के क्रम में यूक्रेन की "क्षेत्रीय अखंडता" को आधार बनाने का आह्वान किया।
    • इसके भागीदार देशों द्वारा अंतिम संयुक्त दस्तावेज़ ("पाथ टू पीस") का समर्थन करने के साथ 3 एजेंडों पर ध्यान केंद्रित किया गया: परमाणु सुरक्षा, वैश्विक खाद्य सुरक्षा एवं मानवीय मुद्दे।
  • युद्धबंदियों की रिहाई:
    • इस घोषणा में सभी युद्धबंदियों की रिहाई के साथ सभी निर्वासित एवं अवैध रूप से विस्थापित यूक्रेनी बच्चों एवं नागरिकों की पुनर्वापसी पर बल दिया गया।
  • शांति शिखर सम्मेलन से रूस की अनुपस्थिति:
    • राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोग के कारण मेजबान देश (स्विट्जरलैंड) द्वारा इस संघर्ष में शामिल प्रमुख पक्ष (रूस) को आमंत्रित नहीं किया गया था।
  • भारत द्वारा यूक्रेन बैठक के अंतिम संयुक्त दस्तावेज़ का समर्थन न किया जाना:
    • भारत के साथ सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात ने शांति शिखर सम्मेलन के समापन पर जारी अंतिम संयुक्त दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
    • भारत ने इस बात पर बल दिया कि रूस और यूक्रेन, दोनों द्वारा स्वीकार्य प्रस्ताव के माध्यम से ही इस क्षेत्र में शांति स्थापित की जा सकती है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण:

  • गुटनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता:
    • भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति (जिसकी शुरुआत वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन में हुई थी), अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रति इसके दृष्टिकोण का एक केंद्रीय सिद्धांत रही है।
    • भारत ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों से तटस्थ रहने का विकल्प चुना है। यह प्रमुख शक्तियों के बीच विवादों के संदर्भ में भारत की तटस्थता नीति के अनुरूप है
  • रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखना:
    • सैन्य हार्डवेयर और ऊर्जा संसाधनों के संबंध में रूस भारत के लिये महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता है और भारत रूस को एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है। 
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के आँकड़ों के अनुसार, 2017-2021 के अवधि में भारत के कुल आयुध आयात में रूस का योगदान लगभग 46% था।
  • मानवतावादी सहायता और कूटनीतिक प्रयास:
    • भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के मानवीय पहलुओं को संबोधित करने के अपने प्रयासो के तहत यूक्रेन को चिकित्सा आपूर्ति और राहत सामग्री सहित मानवतावादी सहायता प्रदान की है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत ने संघर्ष के समाधान के लिये कूटनीतिक समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और रूस व यूक्रेन दोनों से विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वार्ता में शामिल होने का आग्रह किया, जो संकट के दौरान शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों को दर्शाता है।
  • पश्चिम के साथ संबंधों को संतुलित करना:
    • रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखते हुए, भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने का भी प्रयास किया, जो भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं।
    • इसका उद्देश्य उभरते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में भारत के आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों की रक्षा करना है।

भारत और रूस के बीच सहयोग के क्षेत्र क्या हैं?

  • व्यापार और आर्थिक सहयोग:
    • वर्ष 2000 में "भारत-रूस सामरिक भागीदारी पर घोषणा" (Declaration on the India-Russia Strategic Partnership) पर हस्ताक्षर किये जाने और उसके पश्चात् वर्ष 2010 में इसे "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक भागीदारी" (Special and Privileged Strategic Partnership) के रूप में उन्नत किये जाने के बाद से ही भारत-रूस संबंध भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है
    • वर्ष 2021 में, दोनों देशों ने अपनी पहली 2+2 वार्ता (दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री शामिल) आयोजित की, जो घनिष्ठ सहयोग को रेखांकित करती है
    • भारत ने रूस के सुदूर पूर्व के विकास के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता की घोषणा की है।
  • रक्षा एवं सुरक्षा:
    • यह दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम पर समझौते (Agreement on the Programme for Military Technical Cooperation) द्वारा मार्गदर्शित है।
    • दिसंबर 2021 में दिल्ली में आयोजित भारत-रूस 2+2 वार्ता की प्रथम बैठक के दौरान 2021-2031 के लिये सैन्य-तकनीकी सहयोग कार्यक्रम पर समझौते (Agreement on Program of Military-Technical Cooperation from 2021-2031) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • रूस के सैन्य उपकरणों की सबसे अधिक खरीद भारत द्वारा की जाती है, जिसमें S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम, कामोव 226 हेलीकॉप्टर और T-90S टैंक शामिल हैं।
    • दोनों देश ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल जैसी रक्षा तकनीक विकसित करने और INDRA और AviaIndra जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित करने पर भी सहयोग कर रहे हैं।
  • ऊर्जा सहयोग:
    • रूस में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं तथा भारत प्राकृतिक गैस के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए रूस के सुदूर पूर्व से अतिरिक्त प्राकृतिक गैस का सक्रियतापूर्वक आयात कर रहा है।
    • भारत तथा रूस ने वर्ष 1963 में अपने पहले परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। परिणामस्वरूप वर्ष 2016 में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रिएक्टरों का निर्माण शुरू हुआ।
    • दोनों बांग्लादेश में रूपपुर परमाणु ऊर्जा परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।
    • वर्ष 2018 में, वे संयुक्त रूप से स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) विकसित करने पर सहमत हुए, जो छोटे एवं दक्ष परमाणु रिएक्टर हैं जिनका उपयोग विद्युत उत्पादन या औद्योगिक उत्पादन में ऊर्जा के लिये किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
  • साइबर सिक्योरिटी:
    • भारत और रूस ने साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में मिलकर कार्य करने के लिये "अंतर्राष्ट्रीय सूचना सुरक्षा पर सहयोग समझौता" किया है।
    • वे कट्टरपंथ और साइबर आतंकवाद का सामना करने में भी सहयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, भारत विभिन्न क्षेत्रों में सूचना सुरक्षा बढ़ाने हेतु क्वांटम क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करने के लिये रूसी क्वांटम सेंटर के साथ मिलकर कार्य करने की योजना बना रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के वैश्विक प्रभाव क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक निहितार्थ: युद्ध के कारण देशों को या तो गुटनिरपेक्ष बने रहने या रूस अथवा यूक्रेन के साथ गठबंधन हेतु प्रेरित किया गया है। उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन यूक्रेन का समर्थन करता है। कई विकासशील देश गुटनिरपेक्ष रहते हुए व्यावहारिक संबंधों को प्राथमिकता देते हैं।
    • युद्ध ने यूरोपीय रक्षा बजट में वृद्धि की है, नाटो जैसी साझेदारियों को मज़बूत किया है और साथ ही शक्ति के वैश्विक संतुलन को भी परिवर्तित कर दिया है।
    • तुर्किये, नाटो के सभी प्रस्तावों, विशेषकर आर्थिक प्रतिबंधों के मामले में पूरी तरह सहमत नहीं है।
  • तनावग्रस्त वैश्विक संस्थान: इस युद्ध ने बड़े संघर्षों को रोकने में संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सीमाओं को उजागर कर दिया है। देश इन निकायों की प्रभावशीलता पर प्रश्न उठा सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के तरीकों में परिवर्तन आ सकता है।
  • बड़े पैमाने पर विस्थापन: संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 11 मिलियन से अधिक यूक्रेनवासी अपने आवास से विस्थापित हुए हैं, परिणामस्वरूप यूरोप में एक बड़ा शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ है और साथ ही यूक्रेन के भीतर भी आबादी आंतरिक रूप से विस्थापित हो गई है। इससे पड़ोसी देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा है।
    • UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध के कारण दो-तिहाई यूक्रेनी बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, उन्हें विस्थापन, मनोवैज्ञानिक आघात और शिक्षा में व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है।
  • खाद्य सुरक्षा पर संकट: यूक्रेन एक प्रमुख कृषि उत्पादक है, जो विश्व के गेहूँ, मक्का और सूरजमुखी तेल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की आपूर्ति करता है। युद्ध ने रोपण, कटाई और निर्यात को बाधित कर दिया है, जिससे खाद्य असुरक्षा से संबंधित मामलों में वृद्धि हुई है तथा संवेदनशील क्षेत्रों में खाद्यान्न की कमी संभावित है।
  • वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में व्यवधान: एक प्रमुख ऊर्जा निर्यातक के रूप में रूस की भूमिका ने वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में व्यवधान पैदा किया है। प्रतिबंधों और बहिष्कारों के कारण तेल तथा गैस की कीमतों में वृद्धि हुई है, जिससे विश्व भर में ऊर्जा सुरक्षा एवं मुद्रास्फीति प्रभावित हुई है।

रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय प्रयास क्या हैं?

  • यूक्रेन की 10 सूत्री शांति योजना: इसे वर्ष 2023 G-20 शिखर सम्मेलन के बाद से यूक्रेन के राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत किया गया और प्रमुख मांगों को रेखांकित किया गया।
    • यूक्रेनी क्षेत्र से रूसी सैनिकों की वापसी।
    • वर्ष 1991 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के अनुसार, यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की बहाली।
    • रूस द्वारा किये गए युद्ध अपराधों का अभियोजन।
  • मिन्स्क समझौते, 2015:
  • मिन्स्क समझौते पर वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • फ्राँस, जर्मनी और यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (Organization for Security and Co-operation in Europe- OSCE) की भागीदारी और समर्थन से मिन्स्क समझौतों पर चर्चा की गई और इन पर सहमति बनी। इन समझौतों पर यूक्रेन, रूस और OSCE के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किये। इसका उद्देश्य पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष को शुरुआती चरण में ही समाप्त करना था। इसमें निम्नलिखित शामिल थे:
      • यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक अलगाववादियों के बीच युद्ध विराम।
      • संघर्ष क्षेत्र से भारी हथियारों की वापसी।
      • पूर्वी डोनबास क्षेत्र पर यूक्रेनी सरकार का पूर्ण नियंत्रण।
      • संयुक्त राष्ट्र के प्रयास: संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने लगातार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप शांति स्थापित करने के लिये तीव्र प्रयासों का आह्वान किया है। इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा उल्लिखित यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: रूस-यूक्रेन संघर्ष के भू-राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। इस जटिल परिदृश्य में अपनाए जाने वाले उचित दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये।

   UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. बुल्गारिया
  2. चेक रिपब्लिक
  3. हंगरी
  4. लातविया
  5. लिथुआनिया
  6. रोमानिया

उपर्युक्त में से कितने देशों की सीमाएँ यूक्रेन सीमा के साथ साझी हैं?

(a)केवल दो
(b)केवल तीन
(c)केवल चार
(d)केवल पाँच

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