वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना | 17 Feb 2024
प्रिलिम्स के लिये:वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना, नवीकरणीय ऊर्जा, पक्षकारों का सम्मेलन(COP) 28, वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में थिंक टैंक क्लाइमेट एनालिटिक्स द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘ट्रिप्लिंग रिनेवेबल्स बाय 2030: इंटरप्रेटिंग द ग्लोबल गोल ऐट द रीज़नल लेवल’ है, में 1.5o सेल्सियस के लक्ष्य के साथ संरेखित करने के लिये क्षेत्रीय स्तर पर वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता निर्माण एवं संबद्ध निवेश आवश्यकताओं को रेखांकित किया गया है।
- पक्षकारों का सम्मेलन (COP) 28 में विभिन्न देश की सरकारों ने वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना करने पर सहमति व्यक्त की। यह ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में संभवतः प्रमुखतम कार्रवाई है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- 1.5o सेल्सियस के लक्ष्य के साथ संरेखित करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना:
- पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5°C लक्ष्य के साथ संरेखित करने के लिये वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2022 के स्तर से 3.4 गुना अधिक, यानी वर्ष 2030 तक 11.5 टेरावाट(TW) तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
- इसे प्राप्त करने के लिये विभिन्न देशों ने इस संबंध में अपनी वर्तमान नवीकरणीय क्षमता के सापेक्ष अलग-अलग संभावनाएँ जताई हैं, मुख्यतः जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दर एवं भविष्य में विद्युत की मांग पर आधारित है।
- क्षेत्रीय सहयोग:
- एशियाई क्षेत्र: वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर आवश्यक 8.1 TW अतिरिक्त नवीकरणीय क्षमता का लगभग आधा (47%) एशिया से आने के साथ इस क्षेत्र का समग्र योगदान सर्वाधिक है।
- एशिया एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो आमतौर पर वर्ष 2030 तक 1.5ºC के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में अग्रसर है।
- इसका प्रमुख कारण चीन और भारत में हो रहा विकास है, जो दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों, जहाँ नवीकरणीय क्षमता का विकास संपूर्ण क्षेत्र की तुलना में आधी दर से बढ़ने की उम्मीद है, को संतुलित करता है, ।
- एशिया एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो आमतौर पर वर्ष 2030 तक 1.5ºC के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में अग्रसर है।
- हालाँकि, चीन और भारत में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के निर्माण की होड़ एक बड़ी चिंता का विषय है। यदि यह जारी रहा, तो यह 1.5ºC संरेखित विद्युत क्षेत्र संक्रमण को खतरे में डाल सकता है।
- OECD: OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) लगभग एक तिहाई (36%) वैश्विक क्षमता वृद्धि का अगला सबसे बड़ा हिस्सा प्रदान करता है।
- बिजली की मांग में कम वृद्धि और 2022 में स्थापित मौजूदा नवीकरणीय क्षमता के उच्च स्तर के कारण क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा 3.1x की धीमी दर पर है।
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD): वैश्विक क्षमता वृद्धि में लगभग एक तिहाई (36%) के योगदान के साथ अगली सबसे बड़ी हिस्सेदारी OECD की है।
- विद्युत की मांग में अपर्याप्त वृद्धि और वर्ष 2022 में संस्थापित मौजूदा नवीकरणीय क्षमता के उच्च स्तर के कारण इस क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता निर्माण की दर धीमी (3.1x) है।
- उप-सहारा अफ्रीका: मौजूदा नवीकरणीय क्षमता के निम्न स्तर और उच्च ऊर्जा आवश्यकताओं के कारण उप-सहारा अफ्रीका को नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 6.6 गुना तेज़ गति से बढ़ाने की आवश्यकता है।
- उप-सहारा अफ्रीका में इतनी तेज़ी से नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिये काफी उन्नत अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त की आवश्यकता होगी।
- इस क्षेत्र में वर्ष 2020-2030 के बीच विद्युत की मांग प्रति-व्यक्ति 66% तक बढ़ने का अनुमान है, जिसके परिणामस्वरूप नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता निर्माण दर वैश्विक औसत से दोगुनी हो जाएगी।
- उप-सहारा अफ्रीका में इतनी तेज़ी से नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिये काफी उन्नत अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त की आवश्यकता होगी।
- एशियाई क्षेत्र: वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर आवश्यक 8.1 TW अतिरिक्त नवीकरणीय क्षमता का लगभग आधा (47%) एशिया से आने के साथ इस क्षेत्र का समग्र योगदान सर्वाधिक है।
- निवेश आवश्यकताएँ:
- 1.5°C तापमान के अनुरूप लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2030 तक विद्युत प्रणाली में 12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है अर्थात् वर्ष 2024 से प्रतिवर्ष औसतन 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आवश्यक होगा।
- इस निवेश का दो-तिहाई हिस्सा नवीकरणीय प्रतिष्ठानों के लिये आवंटित किया जाएगा, जबकि शेष ग्रिड और भंडारण संबंधी बुनियादी ढाँचे के लिये आवश्यक होगा।
- निवेश अंतराल और संभावित समाधान:
- निवेश में काफी अंतराल विद्यमान है, विश्व 2024-2030 तक आवश्यक निवेश से 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर कम निवेश कर पाएगा।
- जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय और ग्रिड में निवेश को स्थानांतरित कर इस अंतराल को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है, जिससे विद्युत क्षेत्र 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के साथ संरेखित करने में सहायता मिलेगी।
- चुनौतियाँ और तात्कालिकता:
- उप-सहारा अफ्रीका को निवेश और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की कमी के कारण महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे लाखों लोगों को नवीकरणीय ऊर्जा के लाभों से वंचित होने का जोखिम है।
- COP28 प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये वित्त जुटाने और अल्प समृद्ध क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के परिनियोजन का समर्थन करने के लिये तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- नीति संबंधी सिफारिशें:
- नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने के अतिरिक्त, सरकारों को उत्सर्जन को प्रभावी ढंग से कम करने के लिये जीवाश्म ईंधन हेतु सार्वजनिक समर्थन और सब्सिडी को समाप्त करना चाहिये।
- लक्ष्य की दिशा में प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिये, सरकारों को निवेश और जलवायु वित्त आवश्यकताओं पर एक स्पष्ट मार्ग निर्देश व जानकारी की आवश्यकता होती है, जबकि नागरिक समाज को सरकारों को ध्यान में रखने के लिये मानदंड की आवश्यकता होती है।
स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में भारतीय पहल क्या हैं?
- भारत ने वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता वृद्धि और 43% नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व सहित 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ स्वच्छ ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत दिया है।
- इन लक्ष्यों को पूरक नीति और विधायी शासनादेशों (ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम), मिशन (राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन), वित्तीय प्रोत्साहन (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) और बाज़ार तंत्र (आगामी राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार) के माध्यम से समर्थित किया जाता है।
- इन लक्ष्यों को पूरक नीति और विधायी शासनादेशों (ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम), मिशन (राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन), वित्तीय प्रोत्साहन (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) और बाज़ार तंत्र (आगामी राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार) के माध्यम से समर्थित किया जाता है।
- नेट ज़ीरो लक्ष्य:
- भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुँचने का महत्त्वाकांक्षी दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किया है।
- अगस्त 2022 में, भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से 50% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करने के अपने लक्ष्य को प्रतिबिंबित करने के लिये पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) का अद्यतन किया।
- ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022:
- अगस्त 2022 में, लोकसभा ने ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया, जिसका उद्देश्य उद्योगों में ऊर्जा और फीडस्टॉक के लिये हरित हाइड्रोजन, हरित अमोनिया, जैवईंधन एवं इथेनॉल सहित गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करना है।
- यह विधेयक केंद्र सरकार को कार्बन बाज़ार स्थापित करने का अधिकार भी देता है।
भारत के जलवायु लक्ष्य : पहले से विद्यमान और नए | |||
लक्ष्य (वर्ष 2030 के लिये) | पहले से मौजूद: प्रथम NDC (2015) | नया: अद्यतन NDC (2022) | प्रगति |
उत्सर्जन प्रबलता में कमी |
वर्ष 2005 के स्तर से 33-35 प्रतिशत | 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत |
वर्ष 2016 में ही 24 प्रतिशत की कमी हासिल की गई। 30 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान |
स्थापित विद्युत क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी |
40 प्रतिशत | 50 प्रतिशत |
विगत वर्ष जून के अंत तक 41.5 |
कार्बन सिंक | वनीकरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन अतिरिक्त सिंक का निर्माण | पूर्व की भाँति | स्पष्ट नहीं |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उतर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर:(b) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26 वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |