स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड, 2024 | 29 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), मानव विकास रिपोर्ट 2021-22, वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक MPI 2022, SOFI  2024, खाद्य सुरक्षा, अल्पपोषण, एनीमिया 

मेन्स के लिये:

कल्याणकारी योजनाएँ, गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में FAO, IFAD, UNICEF, WFP एवं WHO द्वारा प्रकाशित "स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2024" (SOFI 2024) रिपोर्ट, वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा पोषण प्रवृत्तियों का एक महत्त्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत करती है। 

  • इस वर्ष की रिपोर्ट भूख, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को उसके सभी रूपों में समाप्त करने के लिये वित्तपोषण में वृद्धि की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है। 

SOFI 2024 रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कुपोषण का वैश्विक प्रसार: वर्ष 2023 में 713 से 757 मिलियन लोगों को भूख का सामना करना पड़ा, जिसमें विश्व में ग्यारह में से एक व्यक्ति और अफ्रीका में हर पाँच में से एक व्यक्ति भूख का सामना कर रहा है। 
    • एशिया, कम प्रतिशत होने के बावजूद, अभी भी सबसे बड़ी संख्या में कुपोषित लोगों (384.5 मिलियन) को आश्रय देता है।

  • खाद्य असुरक्षा: वर्ष 2023 में लगभग 2.33 बिलियन लोगों को मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। गंभीर खाद्य असुरक्षा ने वैश्विक स्तर पर 864 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित किया।

  • पोषित आहार की लागत: पोषित आहार की वैश्विक औसत लागत 2022 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन क्रय शक्ति समता (PPP) के संदर्भ में बढ़कर 3.96 अमेरिकी डॉलर हो गई। इस वृद्धि के बावजूद, पोषित आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ लोगों की संख्या वर्ष 2022 में घटकर 2.83 बिलियन हो गई। 
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: पोषित आहार की लागत लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में सबसे अधिक तथा ओशिनिया में सबसे कम है। वहनीयता में सुधार असमान रहा है, जिसमें अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है। 
  • स्टंटिंग और वेस्टिंग: पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग और वेस्टिंग के प्रचलन को कम करने में सुधार हुआ है। हालाँकि वर्ष 2030 (SDG) लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्रगति अपर्याप्त है। 
    • छह महीने से कम उम्र के शिशुओं में केवल स्तनपान की दर में वृद्धि हुई है, लेकिन यह अभी भी वर्ष 2030 के लक्ष्य से कम है। 
  • मोटापा और एनीमिया: मोटापे की दर वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है और 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया बढ़ रहा है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। 
  • वर्तमान स्तर और अंतराल: खाद्य सुरक्षा और पोषण पर सार्वजनिक व्यय अपर्याप्त बना हुआ है, खासकर कम आय वाले देशों में। निजी वित्तपोषण प्रवाह को ट्रैक करना भी मुश्किल है, जिससे वित्तपोषण अंतराल और भी बढ़ जाता है।

रिपोर्ट में भारत से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?

  • भारत में 194.6 मिलियन कुपोषित व्यक्ति हैं, जो विश्व  में सबसे ज़्यादा है।
    • कुपोषित लोगों की संख्या वर्ष 2004-06 की अवधि में 240 मिलियन से घटकर वर्तमान आँकड़ा हो गया है।
  • 55.6% भारतीय, यानी 790 मिलियन लोग, पोषित आहार का खर्च नहीं उठा सकते।
    • वर्ष 2022 की तुलना में इस अनुपात में लगभग 3% अंकों का सुधार हुआ है।
  • भारत की 13% जनसंख्या दीर्घकालिक कुपोषण से पीड़ित है, जो दीर्घकालिक खाद्य असुरक्षा का संकेत है।
    • ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index- GHI) 2023 में भारत 111वें स्थान पर है, जो खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है।
  • दक्षिण एशिया में भारत में सबसे अधिक कुपोषण (18.7%) है, तथा पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग (31.7%) का दर भी उच्च है।
    • भारत में जन्म लेने वाले 27.4% शिशुओं का वजन कम होता है, जो विश्व में सबसे अधिक है, जो मातृ कुपोषण को दर्शाता है।
  • भारत में 53% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का वैश्विक प्रसार बढ़ने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण दक्षिण एशिया है।
  • पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मोटापे की व्यापकता 2.8% है और वयस्कों में यह बढ़कर 7.3% हो गई है। भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा शारीरिक रूप से निष्क्रिय है, जो मोटापे में वृद्धि करता है।
  • रिपोर्ट में एक ही जनसंख्या में कुपोषण और मोटापे की बढ़ती समस्या पर प्रकाश डाला गया है, जो अल्प आहार गुणवत्ता जैसे सामान्य कारकों से प्रेरित है।
  • अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत सहित प्रमुख देशों में शीर्ष वैश्विक निर्माताओं द्वारा बनाए गए अधिकांश खाद्य उत्पादों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार अस्वास्थ्यकर माना जाता है।
  • खाद्य सुरक्षा और पोषण पर भारत के सार्वजनिक व्यय में कुछ वृद्धि देखी गई है, लेकिन रिपोर्ट में बताया गया है कि खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण के मूल कारणों को दूर करने के लिये संसाधनों के अधिक प्रभावी आवंटन एवं उपयोग की अभी भी आवश्यकता है।
    • कोविड-19 महामारी ने भारत में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की समस्याओं को और बढ़ा दिया है। आर्थिक मंदी, आजीविका का नुकसान और खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान ने भोजन की पहुँच तथा सामर्थ्य पर स्थायी प्रभाव डाला है।

रिपोर्ट में प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • सार्वजनिक निवेश में वृद्धि: रिपोर्ट में भूखमरी और कुपोषण को कम करने वाले कार्यक्रमों के लिये बजट बढ़ाकर तथा प्रभावशीलता एवं स्थिरता में सुधार हेतु उनकी योजना व कार्यान्वयन में स्थानीय समुदायों को शामिल करके खाद्य सुरक्षा और पोषण पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना: सामाजिक बॉण्ड, हरित बॉण्ड और स्थिरता से जुड़े बॉण्ड जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्रों के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से खाद्य सुरक्षा पहलों के लिये अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं।
    • वैश्विक साझेदारी को मज़बूत करना और राष्ट्रीय नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे के साथ संरेखित करना, अधिक प्रभाव के लिये ज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा संसाधनों के आदान-प्रदान को बढ़ा सकता है।
  • जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना: जलवायु परिवर्तन के खाद्य उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिये जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों का विकास और क्रियान्वयन बहुत ज़रूरी है। इसमें सूखा-प्रतिरोधी फसलों तथा सतत् कृषि पद्धतियों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना शामिल है।
  • कृषि खाद्य प्रणालियों में सुधार: बेहतर अवसंरचना, रसद और बाज़ार अभिगम के माध्यम से कृषि खाद्य प्रणालियों की दक्षता एवं स्थिरता को बढ़ाने से खाद्य हानि तथा इसकी बर्बादी को कम करने में मदद मिल सकती है। 
  • व्यापक पोषण कार्यक्रम: रिपोर्ट में एकीकृत पोषण कार्यक्रमों की मांग की गई है जो कुपोषण और अति-पोषण दोनों को रेखांकित करते हैं। इसमें बढ़ती मोटापे की दरों से निपटने के लिये संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देने की पहल शामिल है।
  • कमज़ोर आबादी पर ध्यान: नीतियों को गर्भवती महिलाओं व छोटे बच्चों के लिये पोषण में सुधार करके, आवश्यक विटामिन एवं खनिज प्रदान करके छोटे किसानों, महिलाओं तथा बच्चों जैसे कमज़ोर समूहों का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • डेटा संग्रह, निगरानी और रिपोर्टिंग का सुदृढ़ीकरण: खाद्य सुरक्षा और पोषण की निगरानी, बेहतर नीति-निर्माण को सक्षम करने, सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये राष्ट्रीय डेटाबेस के साथ डेटा संग्रह एवं एकीकरण में सुधार करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों में योगदान देने वाले अंतर्निहित कारकों पर चर्चा कर उनसे निपटने के लिये प्रभावी उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है?  (2016)

  1. अल्प-पोषण
  2. शिशु वृद्धिरोधन
  3. शिशु मृत्यु-दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. ज़िला ग्रामीण विकास अभिकरण (DRDA) भारत में ग्रामीण निर्धनता को कम करने में कैसे मदद करते हैं? (2012)

  1. DRDA देश के कुछ विनिर्दिष्ट पिछड़े क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं के रूप में कार्य करते हैं।
  2. DRDA विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में निर्धनता और कुपोषण के कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं तथा उनके समाधान के विस्तृत उपाय तैयार करते हैं।
  3. DRDA निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु अंतर-क्षेत्रीय (इंटर-सेक्टोरल) तथा अंतर-विभागीय समन्वयन और सहयोग सुरक्षित करते हैं।
  4. DRDA निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों के लिये मिले कोष पर निगरानी रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका प्रभावी उपयोग हो।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/ हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 3. और 4
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3. और 4

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021)

प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2019)