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शासन व्यवस्था

राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति रिपोर्ट, 2024

  • 17 Feb 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs), अनुच्छेद 243G, 11वीं अनुसूची, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, राज्य वित्त आयोग (SFCs), GST, ग्राम सभा, MGNREGA, NHM, PMAY, वित्त आयोग।  

मेन्स के लिये:

पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की कार्यप्रणाली में प्रगति और संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

पंचायती राज मंत्रालय ने “राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति – एक सांकेतिक साक्ष्य आधारित रैंकिंग” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पूरे भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को सशक्त बनाने की प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।

राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति, 2024 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • परिचय: इसे पंचायत अंतरण सूचकांक 2024 के रूप में भी जाना जाता है जिसके तहत भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शक्तियों तथा संसाधनों के अंतरण का आकलन करके पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्वायत्तता एवं सशक्तीकरण का मूल्यांकन किया जाता है।
    • यह संविधान के अनुच्छेद 243G को प्रतिबिंबित करते हुए निर्णय लेने एवं कार्यान्वयन में पंचायतों की स्वायत्तता का आकलन करने पर केंद्रित है।
  • आयाम: इसके तहत छह प्रमुख आयामों अर्थात पंचायतों की रूपरेखा, कार्य, वित्त, पदाधिकारी, क्षमता निर्माण और जवाबदेही का आकलन किया जाता है। 
  • मुख्य निष्कर्ष: 
    • समग्र अंतरण: ग्रामीण स्थानीय निकायों को समग्र अंतरण वर्ष 2013-14 के 39.9% से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 43.9% हो गया।
    • राज्य रैंकिंग: इस संदर्भ में शीर्ष 5 राज्य कर्नाटक (प्रथम ), केरल (द्वितीय ), तमिलनाडु (तृतीय ), महाराष्ट्र (चौथा) और उत्तर प्रदेश (5वाँ) हैं।
      • सबसे निचले स्थान वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन और दीव (13.62), पुदुचेरी (16.16) और लद्दाख (16.18) शामिल हैं।
    • बुनियादी ढाँचे में सुधार: सरकारी प्रयासों के क्रम में बुनियादी ढाँचे, स्टाफिंग एवं डिजिटलीकरण के माध्यम से PRIs को मज़बूत किया गया है, जिससे पदाधिकारियों से संबंधित सूचकांक 39.6% से बढ़कर 50.9% हो गया है।
  • 6 आयामों में प्रदर्शन:

आयाम

राज्य

मुख्य बिंदु

ढाँचा

केरल

पंचायतों के लिये मज़बूत विधिक और संस्थागत ढाँचा

कार्य

तमिलनाडु

पंचायतों को कार्यात्मक ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गईं

वित्त

कर्नाटक

सर्वोत्तम वित्तीय प्रबंधन पद्धतियाँ

पदाधिकारी

गुजरात

कार्मिक प्रबंधन और क्षमता निर्माण प्रयास

क्षमता वृद्धि

तेलंगाना

संस्थागत सुदृढ़ीकरण के प्रयास

जवाबदेही

कर्नाटक

पारदर्शिता और वित्तीय जवाबदेही

  • चुनौतियाँ:
    • संस्थागत खामियाँ: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का क्रम नेतृत्व की निरंतरता को प्रभावित करता है,क्योंकि नए नेता समान लक्ष्यों को प्राथमिकता नहीं दे सकते हैं अर्थात् उनके दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं।
      • ज़िला योजना समितियाँ (DPC) तो मौज़ूद हैं, लेकिन इनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।
    • कार्यों का असंगत हस्तांतरण: 29 विषयों (11वीं अनुसूची) को असंगत रूप से हस्तांतरित किया गया है, क्योंकि राज्य सरकारों को ज़मीनी स्तर पर नियंत्रण या प्रभाव खोने का भय है, जिससे पंचायतों के निर्णय लेने के अधिकार सीमित हो रहे हैं।
    • कमज़ोर वित्तीय स्वायत्तता: राज्य वित्त आयोग (SFC) की सिफारिशों का गैर-कार्यान्वयन, केंद्रीकृत GST और वित्तीय स्वायत्तता की कमी पंचायतों के वित्तीय नियंत्रण को प्रतिबंधित करती है।
    • संसाधन क्षमता का अभाव: निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास शासन, बजट और योजना बनाने में उचित प्रशिक्षण का अभाव होता है।
    • न्यूनतम जवाबदेही: कम सामाजिक अंकेक्षण और ग्रामसभा में न्यूनतम भागीदारी निगरानी को कमज़ोर करती है और अपर्याप्त वित्तीय प्रकटीकरण पारदर्शिता को बाधित करता है।
  • अनुशंसाएँ: 
    • निधि का उपयोग: दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने के लिये निधियों की सख्त निगरानी पर बल देना।
    • पंचायत भवनों को सुदृढ़ बनाना: इनका लोक सेवाओं के केंद्र के रूप में कार्य करना तथा सरकारी योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत तक पहुँच में सुधार करना।
    • पंचायतों को सशक्त बनाना: राज्यों से पंचायतों को पूर्ण रूप से शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ सौंपने का आग्रह करना।
    • राज्य वित्त आयोगों को सुदृढ़ बनाना: समय पर निधि आवंटन सुनिश्चित करना।
    • पंचायतों को निर्णय लेने में स्वायत्तता देना, विशेषकर मनरेगा, NHM और PMAY जैसी प्रमुख योजनाओं में।
    • डिजिटल अवसंरचना: बेहतर प्रशासन और पारदर्शिता के लिये पंचायतों में डिजिटल अवसंरचना को बढ़ावा देना।

PRI फंडिंग की स्थिति क्या है?

  • राजस्व संरचना: पंचायती राज संस्थाएँ (PRI) करों के माध्यम से केवल 1% राजस्व उत्पन्न करती हैं, जिससे उनकी सीमित स्व-वित्त पोषण क्षमता प्रदर्शित होती है।
    • पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के 80% राजस्व का स्रोत केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान हैं, जबकि 15% राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान से आता है।
  • प्रति पंचायत राजस्व: प्रत्येक पंचायत अपने करों से 21,000 रुपए और गैर-कर स्रोतों से 73,000 रुपए अर्जित करती है।
    • केंद्रीय अनुदान औसतन 17 लाख रुपए है, तथा राज्य अनुदान प्रति पंचायत लगभग 3.25 लाख रुपए है, जो बाह्य सहायता पर अत्यधिक निर्भरता को दर्शाता है।
  • न्यूनतम राजस्व व्यय: सभी राज्यों में पंचायतों के राजस्व व्यय का अंकित GSDP से अनुपात 0.6% से कम है, जो बिहार में 0.001% से लेकर ओडिशा में 0.56% तक है।
  • अंतर-राज्यीय असमानताएँ: केरल और पश्चिम बंगाल का औसत राजस्व सबसे अधिक है (60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए से अधिक), जबकि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों का राजस्व बहुत कम है ( 6 लाख रुपए से कम)।

PRI वित्तपोषण को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  • वित्त का नियमित हस्तांतरण: 14वें और 15वें वित्त आयोगों ने पंचायतों को पर्याप्त अनुदान देने की सिफारिश की थी, लेकिन स्थायित्व के लिये तदर्थ अनुदान के बजाय नियमित हस्तांतरण की आवश्यकता है।
    • नियमित लेखा-परीक्षण, RTI खुलासे और सुदृढ़ खरीद प्रक्रियाओं के माध्यम से वित्तीय पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये ताकि निधियों का कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
  • क्षमता समानता: पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय हस्तांतरण राज्यों की पंचायतों को वित्तपोषित करने की क्षमता के अनुरूप होना चाहिये, जिससे संतुलित और सतत् स्थानीय शासन विकास सुनिश्चित हो सके।
  • राज्य वित्त आयोग को मज़बूत बनाना: राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट नियमित रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिये, तथा पंचायतों को निरंतर वित्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
  • स्वयं के राजस्व सृजन में वृद्धि: पंचायतों को स्थानीय करों (जैसे, भूमि कर) के माध्यम से राजस्व में वृद्धि करनी चाहिये, साथ ही राज्यों को बेहतर कर संग्रह और प्रशासन के लिये समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।
  • विशेष प्रयोजन अनुदान का सृजन: प्रदर्शन को प्रोत्साहित करने तथा ग्रामीण अवसंरचना और सड़क, जल एवं स्वच्छता जैसी सेवाओं में सुधार लाने के लिये विशेष प्रयोजन अनुदान का सृजन किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

"पंचायतों का विकेंद्रीकरण" रिपोर्ट में स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने में उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाया गया है, जिसमें हस्तांतरण में वृद्धि और मज़बूत बुनियादी ढाँचा शामिल है। हालाँकि, कमज़ोर वित्तीय स्वायत्तता, असंगत हस्तांतरण और जवाबदेही में कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इन कमियों को दूर करके स्थायी स्थानीय शासन और विकास के लिये पीआरआई को और सशक्त बनाया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में पंचायतों के शक्तियों के हस्तांतरण के समक्ष चुनौतियों और प्रगति पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन-भागीदारी
  2.   राजनीतिक जवाबदेही
  3.   लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4.   वित्तीय संग्रहण (फ़ाइनेंशियल मोबिलाइज़ेशन)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018)

प्रश्न 2. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)

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