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जैव विविधता और पर्यावरण

सौर अपशिष्ट प्रबंधन

  • 04 Apr 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सौर ऊर्जा, सर्कुलर इकॉनमी, राष्ट्रीय सौर मिशन, सौर पार्क योजना, सोलर रूफटॉप योजना, महत्त्वपूर्ण खनिज।

मेन्स के लिये:

भारत में सौर ऊर्जा और विकास, सौर अपशिष्ट से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने हेतु सरकारी योजनाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में 'भारत के सौर उद्योग में एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को सक्षम करना - सौर अपशिष्ट क्वांटम का आकलन' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट भारत के बढ़ते सौर अपशिष्ट संकट पर प्रकाश डालती है।

  • यह अध्ययन नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा ऊर्जा, पर्यावरण तथा जल परिषद (एशिया में एक अग्रणी गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थान) के विशेषज्ञों के सहयोग से आयोजित किया गया था।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • सौर अपशिष्ट प्रक्षेपण: वित्त वर्ष 2023 तक भारत की वर्तमान सौर क्षमता द्वारा लगभग 100 किलोटन संचयी अपशिष्ट उत्पन्न किया है, जो वर्ष 2030 तक बढ़कर 340 किलोटन हो जाएगा।
    • यह मात्रा वर्ष 2050 तक 32 गुना बढ़ जाएगी जिसके परिणामस्वरूप लगभग 19000 किलोटन संचयी कचरा निकलेगा।
    • वर्ष 2050 तक उत्पन्न होने वाले संचयी कचरे का 77% नई क्षमताओं के कारण होगा।
  • राज्यवार योगदान: वर्ष 2030 तक अनुमानित कचरे का लगभग 67% पाँच राज्यों द्वारा उत्पादित होने की आशा है: राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश
    • वर्ष 2030 तक उत्पन्न होने वाले कचरे में राजस्थान का हिस्सा 24% होगा, इसके बाद गुजरात का हिस्सा 16% और कर्नाटक का हिस्सा 12% होगा।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज सामग्री: फेंके गए सौर मॉड्यूल में भारत के आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिज शामिल हैं, जिनमें सिलिकॉन, ताँबा, टेल्यूरियम एवं कैडमियम शामिल हैं।
    • वर्ष 2030 तक अनुमानित 340 किलोटन कचरे में 10 किलोटन सिलिकॉन,12-18 टन चाँदी तथा 16 टन कैडमियम एवं टेल्यूरियम शामिल होने का अनुमान है।
  • अनुशंसाएँ:
    • MNRE को संभावित अपशिष्ट उत्पादन केंद्रों की सटीक मैपिंग हेतु स्थापित सौर क्षमता (मॉड्यूल प्रौद्योगिकी, निर्माता, कमीशनिंग तिथि आदि जैसे विवरण शामिल) का एक डेटाबेस बनाए रखना और समय-समय पर अद्यतन भी करना चाहिये।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौर अपशिष्ट एकत्र करने तथा भंडारण के लिये दिशा-निर्देश जारी करने चाहिये। 
      • इसके अलावा इसे संग्रहित अपशिष्ट के सुरक्षित और कुशल प्रसंस्करण को बढ़ावा देना चाहिये।
    • सोलर सेल और मॉड्यूल उत्पादकों को ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 में सौंपी गई ज़िम्मेदारियों के निर्वहन हेतु अपशिष्ट संग्रह तथा भंडारण केंद्र विकसित करना शुरू करना चाहिये।

सौर अपशिष्ट क्या है?

  • परिचय: सौर अपशिष्ट सौर मॉड्यूल के निर्माण के दौरान उत्पन्न कोई भी अपशिष्ट है या विनिर्माण प्रक्रियाओं से छोड़े गए मॉड्यूल और स्क्रैप हैं।
    • मॉड्यूल को उनके कार्यात्मक जीवन के अंत में या परिवहन, हैंडलिंग और स्थापना से क्षति के कारण त्याग दिया जाता है।
    • सौर अपशिष्ट के अनुचित प्रबंधन और भूमिभरण से बचना चाहिये। मूल्यवान खनिजों को पुनः प्राप्त करने तथा सीसा एवं कैडमियम जैसे विषाक्त पदार्थों के निक्षालन को रोकने के लिये उचित उपचार आवश्यक है।
  • सौर अपशिष्ट की संभावित पुनर्चक्रण क्षमता: अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency- IRENA) के अनुसार, ग्लास और मेटल फ्रेम सहित सौर पैनल के लगभग 80% घटक पुनर्चक्रण योग्य हैं।
    • काँच, एल्यूमीनियम, ताँबा, सिलिकॉन और चाँदी जैसी सामग्रियों को पुनर्प्राप्त करने के लिये सौर अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जा सकता है।
    • पुनर्चक्रण को आमतौर पर यांत्रिक, थर्मल और रासायनिक प्रक्रियाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • प्रत्येक प्रक्रिया अलग-अलग शुद्धता ग्रेड के विशिष्ट खनिजों की पुनर्प्राप्ति में मदद करती है।
  • भारत में सौर अपशिष्ट पुनर्चक्रण की चुनौतियाँ:
    • नीति ढाँचे का अभाव:  सौर अपशिष्ट प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले विशिष्ट व्यापक कानूनों की अनुपस्थिति मानकीकृत रीसाइक्लिंग प्रथाओं की स्थापना में बाधा डालती है और असंगत रीसाइक्लिंग प्रयासों में योगदान कर सकती है।
    • जटिल संरचना और पृथक्करण में कठिनाई: सौर पैनलों में सिलिकॉन, काँच, एल्यूमीनियम जैसी विभिन्न सामग्रियाँ और सीसा तथा कैडमियम जैसे ज़हरीले तत्त्व होते हैं।
      • प्रभावी पुनर्चक्रण के लिये इन घटकों को अलग करने हेतु विशेष तकनीक की आवश्यकता होती है, जो अक्सर महँगी होती है और भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र की भागीदारी: सौर अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के पास चला जाता है जिनके पास उचित सुरक्षा उपायों की कमी होती है और वे अक्सर पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक प्रथाओं का सहारा लेते हैं।
    • पुनर्चक्रित सामग्रियों के लिये सीमित बाज़ार: भारत में पुनर्नवीनीकृत पैनलों से सिलिकॉन वेफर्स या ग्लास पुलिया जैसी सामग्रियों की पर्याप्त मांग की कमी, पुनर्चक्रण प्रयासों की आर्थिक व्यवहार्यता को कमज़ोर करती है।

भारत सौर अपशिष्ट का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कैसे कर सकता है?

  • सुदृढ़ विनियामक ढाँचा: भारत सौर अपशिष्ट के संग्रह, पुनर्चक्रण और विशिष्ट-सामग्री की पुनः प्राप्ति लक्ष्यों के संबंध में निर्देशित करने के लिये एक व्यापक विनियामक ढाँचा तैयार कर सकता है।
    • यह ढाँचा पुनर्चक्रण और अपशिष्ट से पुनः खनिज प्राप्त करने को प्रोत्साहित करने के लिये हरित प्रमाण-पत्र जैसे प्रोत्साहनों को भी बढ़ावा दे सकता है।
    • इसमें सौर उद्योग के भीतर सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों को बढ़ावा देने, संसाधन दक्षता, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये व्यापक नीतियों का विकास तथा  कार्यान्वयन भी शामिल किया जाना चाहिये।
  • अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को औपचारिक बनाना: प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को औपचारिक प्रणाली में एकीकृत करना और उन्हें उचित उपकरण प्रदान करना। यह सुरक्षित, पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रथाओं को सुनिश्चित करता है और उन्हें एक सुरक्षित रोज़गार भी प्रदान करता है।
  • सौर पैनल नवीनीकरण और पुनः संचालन: विशेष नवीनीकरण सुविधाओं की स्थापना करके भारत कम क्षतिग्रस्त पैनलों की सफाई, मरम्मत और पुन: परीक्षण कर सकता है तथा उपभोक्ताओं के लिये किफायती विकल्प प्रदान कर सकता है।
  • सौर-अपशिष्ट उद्यमिता: पुनर्चक्रित सौर सामग्रियों का उपयोग करके नए सतत् उत्पादों का डिज़ाइन और प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये हरित नवप्रवर्तकों को प्रोत्साहन प्रदान कर उन्हें बढ़ावा देना जिससे रचनात्मकता तथा प्रभावी उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 क्या हैं?

  • परिचय: भारत में ई-अपशिष्ट का प्रबंधन वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत विनियमित है।
    • इसमें सौर पीवी मॉड्यूल, पैनल और सेल का अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है।
  • प्रयोज्यता: ये नियम ई-अपशिष्ट के जीवनचक्र में शामिल सभी लोगों पर लागू होते हैं जिनमें निर्माता, उत्पादक, रीफर्बिशर्स, डिस्मेंटलर्स और रिसाइक्लर्स शामिल हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): इसके तहत निर्माता स्वयं के द्वारा उत्पन्न किये गए ई-अपशिष्ट के लिये विशिष्ट रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने के लिये बाध्य हैं। यह EPR प्रमाण-पत्रों की एक प्रणाली के माध्यम से हासिल किया जाता है।
    • सौर ई-अपशिष्ट प्रबंधन: उत्पादकों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार सौर PV मॉड्यूल और सेल से उत्पन्न अपशिष्ट को वर्ष 2034-2035 तक संग्रहीत करना अनिवार्य है।
      • ये नियम वर्ष 2034-2035 तक ई-अपशिष्ट प्रबंधन पोर्टल पर वार्षिक रिटर्न दाखिल करना भी अनिवार्य करते हैं।
    • खतरनाक पदार्थ: यह अनिवार्य करता है कि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (EEE) तथा उनके घटकों के प्रत्येक निर्माता को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके उत्पादों में अधिकतम निर्धारित सांद्रता से अधिक सीसा, पारा एवं अन्य खतरनाक पदार्थ नहीं हैं। 
  • अपवाद: ये नियम निम्नलिखित पर लागू नहीं होते:
    • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 द्वारा अपशिष्ट बैटरियों को विनियमित किया जाता है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 द्वारा शासित पैकेजिंग प्लास्टिक
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (वर्ष 2006 का 27) में परिभाषित सूक्ष्म उद्यम
    • रेडियोधर्मी अपशिष्ट परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (1962 का 33) और उसके नियमों के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के नवीकरणीय ऊर्जा उद्देश्यों और सतत् विकास लक्ष्यों पर सीमित रीसाइक्लिंग बुनियादी ढाँचे के परिणामों का, विशेष रूप से सौर अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा को ध्यान में रखते हुए समाकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को वर्ष 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020)

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