भारत में प्राकृतिक रबड़ की कमी | 29 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:प्राकृतिक रबड़ (NR), बांग्लादेश में उथल-पुथल, मानसून, टायर उद्योग, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग, पॉलिमर, लेटेक्स/संक्षीर, प्रोटीन, स्टार्च, एल्कलॉइड, दोमट या लैटेराइट मृदा, प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र का सतत् और समावेशी विकास (SIDNRS), राष्ट्रीय रबड़ नीति- 2019, कार्बन बाज़ार मेन्स के लिये:रबड़ उद्योग और इसकी चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और पहल। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
भारत प्राकृतिक रबड़ (NR) की भारी कमी का सामना कर रहा है, घरेलू उत्पादन मांग से लगभग 5.5 लाख टन कम है।
- मांग-आपूर्ति अंतर: प्राकृतिक रबड़ उत्पादन में वर्ष 2022-23 में 8.39 लाख टन से वर्ष 2023-24 में 8.57 लाख टन तक की वृद्धि के बावजूद, खपत 13.5 लाख टन से बढ़कर 14.16 लाख टन हो गई है।
- वर्तमान में लगभग 70% प्राकृतिक रबड़ की खपत टायर उद्योग द्वारा की जाती है। शेष 30% का उपयोग गैर-टायर कंपनियों, मुख्य रूप से लघु एवं सूक्ष्म उद्योग द्वारा किया जाता है, जिन्हें रबड़ की कमी का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा है।
- आयात निर्भरता: अपर्याप्त घरेलू उत्पादन के कारण भारत ऐतिहासिक रूप से प्राकृतिक रबड़ के आयात पर निर्भर रहा है।
- भारत स्थानीय मांग को पूरा करने के लिये वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे पड़ोसी देशों से प्राकृतिक रबड़ का आयात करता है।
- उच्च आयात शुल्क: प्राकृतिक रबड़ के आयात पर अधिक सीमा शुल्क (25% या 30 रुपए प्रति किलोग्राम जो भी अधिक हो) लगता है। दस्ताने और गुब्बारे बनाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लेटेक्स रबड़ पर 75% शुल्क लगता है।
- हालाँकि लेटेक्स रबड़ की कमी है, लेकिन मेडिकल दस्ताने, गद्दे एवं गुब्बारों के आयात पर बहुत कम शुल्क लगता है, जो कि मात्र 10% है और स्थानीय विनिर्माण के बजाय इन उत्पादों के आयात को बढ़ावा देता है। यह उत्क्रमित शुल्क संरचना का मामला है।
- उत्क्रमित शुल्क संरचना एक ऐसी स्थिति है, जिसमें प्रयुक्त इनपुट पर कर की दर तैयार माल पर कर की दर से अधिक होती है।
- हालाँकि लेटेक्स रबड़ की कमी है, लेकिन मेडिकल दस्ताने, गद्दे एवं गुब्बारों के आयात पर बहुत कम शुल्क लगता है, जो कि मात्र 10% है और स्थानीय विनिर्माण के बजाय इन उत्पादों के आयात को बढ़ावा देता है। यह उत्क्रमित शुल्क संरचना का मामला है।
- भू-राजनीतिक स्थिति: चीन वर्तमान में प्राकृतिक रबड़ का भंडारण कर रहा है और बांग्लादेश, जो कभी एक विश्वसनीय स्रोत था, राजनीतिक विरोध तथा सरकार में बदलाव के कारण उथल-पुथल में है।
- बांग्लादेश में उथल-पुथल ने भारत में प्राकृतिक रबड़ की सुचारू आपूर्ति को बाधित कर दिया है।
- मानसून: भारी मानसून के कारण दोहन गतिविधियों में कमी आने के कारण प्राकृतिक रबड़ की उपलब्धता अनिश्चित है। यह स्थिति विशेष रूप से प्राकृतिक रबड़ पर निर्भर उद्योगों को प्रभावित करती है।
रबड़ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: रबड़ एक लोचदार/प्रत्यास्थ पदार्थ है, जो बाह्य बल लगाने पर विकृत हो जाता है, लेकिन बल हटाने पर अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त कर लेता है।
- यह प्राकृतिक या कृत्रिम हो सकता है। यह अन्य कार्बनिक यौगिकों के साथ-साथ कार्बनिक यौगिक आइसोप्रीन के पॉलिमर/बहुलक से बना होता है।
- प्राकृतिक रबड़: प्राकृतिक रबड़ पौधों से प्राप्त किया जाता है। इसे बहुलक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यह मानव समाज के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण बहुलकों में से एक है।
- प्राकृतिक रबड़ लेटेक्स/संक्षीर से प्राप्त होता है, जो प्रोटीन, स्टार्च, एल्कलॉइड आदि युक्त एक सफेद दूधिया तरल पदार्थ है और अनेक पौधों द्वारा उत्पादित होता है।
- कृत्रिम रबड़: कृत्रिम या मानव निर्मित रबड़ को रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
- भारत में उत्पादन: भारत प्राकृतिक रबड़ का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता और विश्व में प्राकृतिक रबड़ व कृत्रिम रबड़ दोनों का पाँचवाँ सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- केरल भारत में रबड़ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जबकि त्रिपुरा दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
- व्यापार परिदृश्य:
- निर्यात: वर्ष 2022-23 में भारत ने 3,700 टन NR का निर्यात किया।
- अमेरिका, जर्मनी, UAE, UK और बांग्लादेश ऐसे देश हैं, जो भारत के रबड़ निर्यात के लिये सबसे बड़े बाज़ार हैं।
- आयात: वर्ष 2022-23 में भारत ने 5,28,677 टन NR का आयात किया।
- भारत मुख्य रूप से इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से रबड़ का आयात करता है।
- निर्यात: वर्ष 2022-23 में भारत ने 3,700 टन NR का निर्यात किया।
- प्राकृतिक रबड़ की वृद्धि के कारक:
- जलवायु: रबड़ (अमेज़ॅन वर्षावन की मूल वनस्पति) एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है। इसे पूरे वर्ष 20°-35°C या औसत मासिक औसत 27°C के बीच उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
- मृदा: रबड़ को आमतौर पर ढलान वाली या थोड़ी ऊँची समतल भूमि पर दोमट या लैटेराइट मृदा में उगाया जाता है, जहाँ जल निकासी अच्छी हो और जल संग्रहण का कोई खतरा न हो।
- वर्षा: 200 सेमी से अधिक।
- श्रम: इस रोपण फसल के लिये कुशल श्रमिकों की सस्ती और पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- रबड़ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:
रबड़ बोर्ड
- रबड़ बोर्ड देश में रबड़ उद्योग के समग्र विकास के लिये रबड़ अधिनियम, 1947 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
- बोर्ड का मुख्यालय कोट्टायम, केरल में स्थित है।
- रबड़ अनुसंधान संस्थान रबड़ बोर्ड के अधीन है।
राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 क्या है?
- मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने वर्ष 2019 में राष्ट्रीय रबड़ नीति प्रस्तुत की।
- नीति का आधार: यह नीति देश में रबड़ उत्पादकों के समक्ष आने वाली समस्याओं के निवारण के लिये रबड़ क्षेत्र पर गठित टास्क फोर्स द्वारा निर्धारित अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीतियों पर आधारित है।
- प्रमुख प्रावधान: नीति में रबड़ के नए रोपण और पुनः रोपण, उत्पादकों के लिये सहायता, प्राकृतिक रबड़ का प्रसंस्करण और विपणन, श्रमिकों की कमी, उत्पादक मंच, बाह्य व्यापार, केंद्र-राज्य एकीकृत रणनीति, अनुसंधान, प्रशिक्षण, रबड़ उत्पाद विनिर्माण तथा निर्यात, जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताएँ एवं कार्बन बाज़ार को शामिल किया गया है।
- कार्यान्वयन और समर्थन: रबड़ बोर्ड मध्यम अवधि ढाँचे (Medium Term Framework- MTF) (2017-18 से 2019-20) में प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास योजना को कार्यान्वित कर रहा है।
- विकासात्मक गतिविधियों में रोपण के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता, गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री की आपूर्ति, उत्पादक मंचों हेतु समर्थन, प्रशिक्षण तथा कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं।
भारत में रबड़ उत्पादन बढ़ाने के लिये क्या किया जा सकता है?
- राष्ट्रीय रबड़ नीति के अंतर्गत सहायता का विस्तार: नए रबड़ उद्यमियों और पुनर्स्थापित रबड़ उत्पादकों को सब्सिडी और वित्तीय सहायता के माध्यम से सहायता देकर रबड़ के विकास को बढ़ाना।
- कौशल विकास: खेती की तकनीक और उत्पादकता में सुधार के लिये उत्पादकों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाना।
- अनुसंधान में निवेश करना: सरकार समर्थित अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से उच्च उपज एवं रोग प्रतिरोधी रबड़ किस्मों पर अनुसंधान के लिये वित्त पोषण बढ़ाना।
- सहयोगात्मक परियोजनाएँ: रबड़ बागानों और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिये सरकार तथा निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
रबड़ उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह लगातार कमी का सामना कर रहा है, जिससे आयात में वृद्धि औ लागत बढ़ रही है। इस पर ध्यान देने हेतु घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने, आपूर्ति शृंखलाओं में सुधार करने तथा राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 जैसी नीतियों का समर्थन करने की आवश्यकता है। केंद्रित विकास एवं अनुसंधान के साथ भारत आयात-निर्भरता को कम कर सकता है व मांग को पूरा कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न.भारत के रबड़ क्षेत्र में मांग आपूर्ति अंतर के कारणों पर चर्चा कीजिये, जिसमें घरेलू उत्पादन में कमी और वैश्विक आपूर्ति शृंखला के मुद्दे शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार द्वारा क्या उपाय अपनाए गए हैं? |
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