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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का पुनर्मूल्यांकन करने का आदेश

  • 11 Nov 2024
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 30, समाजवादी, मौलिक अधिकार, नीति निदेशक सिद्धांत, अनुच्छेद 14 और 19, प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951, संविधान संशोधन, संसद। 

मुख्य परीक्षा के लिये:

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान, AMU और अल्पसंख्यक संस्थान, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ। 

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 7 न्यायाधीशों की पीठ ने (4:3 बहुमत से) एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 के निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी विधि द्वारा शामिल की गई संस्था अल्पसंख्यक संस्था होने का दावा नहीं कर सकती।

  • संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, इस मुद्दे को अब बहुमत के इस दृष्टिकोण के आधार पर एक नियमित पीठ द्वारा तय किया जाना है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रमुख तथ्य क्या हैं?

न्यायालय द्वारा विचारित मामले के मुख्य पहलू:

  • क्या एक विश्वविद्यालय जो किसी विधि (AMU अधिनियम 1920) द्वारा स्थापित और शासित है, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है।
  • एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1967 के निर्णय की सत्यता, जिसने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया था।
  • AMU अधिनियम 1920 में वर्ष 1981 के संशोधन की प्रकृति और सत्यता, जिसने एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले में निर्णय के बाद विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया था।
  • क्या वर्ष 2006 में AMU बनाम मलय शुक्ला में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ के निर्णय पर भरोसा करना सही था, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि AMU एक गैर-अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण मेडिकल पीजी पाठ्यक्रमों में मुस्लिम उम्मीदवारों के लिये 50% सीटें आरक्षित नहीं कर सकता है। 

हालिया निर्णय के प्रमुख तथ्य:

  • अज़ीज़ बाशा निर्णय को खारिज करना: सर्वोच्च न्यायालय ने एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले में वर्ष 1967 के निर्णय को पलट दिया।  
    • अज़ीज़ बाशा मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने माना था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और इसे यह दर्जा प्राप्त करने के लिये अल्पसंख्यक द्वारा ही स्थापित तथा प्रशासित होना चाहिये।
  • अल्पसंख्यक दर्जे का प्रश्न नियमित पीठ को भेजा गया: न्यायालय ने सीधे तौर पर यह निर्णय नहीं किया कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं  तथा AMU की ऐतिहासिक स्थापना की जाँच करने का निर्णय नियमित पीठ पर छोड़ दिया।  
    • अल्पसंख्यक दर्जा निर्धारित करने के लिये नया परीक्षण:
      • स्थापना: परीक्षण का पहला घटक अल्पसंख्यक संस्था की उत्पत्ति, इसकी स्थापना का उद्देश्य और संस्था के "विचार" को अंततः कैसे क्रियान्वित किया गया, इसकी जाँच करता है।
      • कार्यान्वयन: संस्था के लिये निधि किसने दी? भूमि कैसे प्राप्त की गई या दान की गई? आवश्यक अनुमति किसने प्राप्त की तथा निर्माण और बुनियादी अवसरंचना को किसने संभाला?  
      • प्रशासन: न्यायालय यह निर्धारित करने के लिये प्रशासनिक ढाँचे की जाँच कर सकती हैं कि क्या यह संस्था की अल्पसंख्यक प्रकृति की "पुष्टि" करता है।
        • यदि प्रशासन "अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और संवर्धन" करने में सक्षम नहीं दिखता है, तो यह "उचित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के लाभ के लिये  कोई शैक्षणिक संस्थान स्थापित करना नहीं था।"
  • किसी संस्था का अल्पसंख्यक चरित्र: न्यायालय ने माना कि किसी संस्था की अल्पसंख्यक स्थिति को केवल इसलिये खारिज नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि उसे विधि द्वारा बनाया गया था और न्यायालयों को इसकी स्थापना का निर्धारण करने के लिये विधायी भाषा पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिये। यह अनुच्छेद 30(1) को एक वैधानिक अधिनियम के अधीन एक मौलिक अधिकार बना देगा।
    • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 30(1) में प्रयुक्त शब्द "स्थापित" को संकीर्ण और विधिक अर्थ में नहीं समझा जा सकता तथा न ही समझा जाना चाहिए।
    • अनुच्छेद 30 के खंड 1 में प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या अनुच्छेद के उद्देश्य और प्रयोजन तथा इसके द्वारा प्रदत्त गारंटी एवं संरक्षण को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिये।  
    • अनुच्छेद 30(1) के तहत अधिकार संविधान के लागू होने पर परिभाषित अल्पसंख्यकों को गारंटीकृत है।
    • न्यायालय ने अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक चरित्र के "मुख्य अनिवार्यताओं" को भी सूचीबद्ध किया। 
      • यद्यपि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना का उद्देश्य भाषा और संस्कृति का संरक्षण होना चाहिये, परंतु यह एकमात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिये;
      • किसी अल्पसंख्यक संस्थान द्वारा गैर-अल्पसंख्यक छात्रों को प्रवेश देकर अपना अल्पसंख्यक चरित्र नहीं खोना चाहिये;
      • अल्पसंख्यक चरित्र प्रभावित करने के क्रम में पंथनिरपेक्ष शिक्षा को प्रदान किया जा सकता है;
      • यदि किसी अल्पसंख्यक संस्थान को सरकार द्वारा सहायता प्राप्त होती है, तो किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है;
      • यदि संस्था का पूर्णतः रखरखाव राज्य निधि से किया जाता है तो वह धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं कर सकती है। 
        • हालाँकि इन संस्थाओं को अभी भी अल्पसंख्यक संस्थाएँ ही माना जाना चाहिये।
  • निगमन बनाम स्थापना की प्रकृति: इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि विधि द्वारा निगमन के तहत अल्पसंख्यक दर्जे को अस्वीकार नहीं किया गया है। किसी विश्वविद्यालय को विधि के माध्यम से औपचारिक रूप देने मात्र से इसमें परिवर्तन नहीं होता कि उसे मूल रूप से किसने स्थापित किया था।
    • न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि वर्ष 1920 में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं थे या वे स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते थे। 
    • इसमें कहा गया है कि संविधान लागू होने पर उक्त समूह अल्पसंख्यक होना चाहिये तथा संविधान-पूर्व संस्थाएँ भी अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण की हकदार हैं।
    • अनुच्छेद 30 कमज़ोर होगा यदि इसे केवल उन संस्थाओं पर लागू किया जाए जो संविधान के लागू होने के बाद स्थापित हुई थीं।
    • 'निगमन' और 'स्थापना' शब्दों का परस्पर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग नहीं किया जा सकता है। AMU को शाही कानून द्वारा निगमित किये जाने का यह तात्पर्य नहीं है कि इसे अल्पसंख्यकों द्वारा 'स्थापित' नहीं किया गया था। 
    • इसमें यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि विश्वविद्यालय की स्थापना संसद द्वारा (केवल इसलिये कि इसे संसद द्वारा पारित किया गया था) की गई थी। इस तरह की औपचारिक व्याख्या से अनुच्छेद 30 के उद्देश्य विफल हो जाएंगे।
  • असहमतिपूर्ण राय: तीन न्यायाधीशों ने बहुमत से असहमति जताते हुए, विधि द्वारा स्थापित संस्थाओं पर अनुच्छेद 30 की प्रयोज्यता के बारे में अलग-अलग विचार व्यक्त किये।

इस मामले से संबंधित अन्य पहलू क्या हैं?

  • अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (MEI) की परिभाषा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(1) अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
    • अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम, 2004 के तहत परिभाषित किया गया है।
      • इसमें अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (MEI) को ऐसे कॉलेज या अन्य संस्थान के रूप में परिभाषित किया गया है जो अल्पसंख्यक या अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित या अनुरक्षित है।
  • MEI पर ऐतिहासिक मामले:
    • मदर प्रोविंशियल केस: अनुच्छेद 30(1) में "प्रशासन" को संस्थागत मामलों के प्रबंधन के रूप में परिभाषित किया गया, लेकिन शैक्षिक मानकों में सरकार के हस्तक्षेप की अनुमति दी गई।
    • AP क्रिश्चियन मेडिकल एसोसिएशन केस: योग्यता प्राप्त करने के लिये MEI को अल्पसंख्यक समुदाय के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को लाभ पहुँचाना होगा।
    • योगेन्द्र नाथ सिंह केस: किसी संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान माने जाने के लिये उसकी स्थापना और प्रशासन दोनों का अल्पसंख्यकों द्वारा होना आवश्यक है।
    • MEI स्थिति के लिये अनसुलझे मानदंड: TMA पाई वाद  में यह स्थापित किया गया था कि अल्पसंख्यक स्थिति राज्य स्तर पर निर्धारित की जाती है, लेकिन MEI पदनाम के लिये मानदंड अनिर्णायक छोड़ दिये गए थे।
    • AMU पर अजीज़ बाशा वाद: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा नहीं बल्कि संसद द्वारा पारित AMU अधिनियम, 1920 द्वारा की गई थी। 
  • अल्पसंख्यक स्थिति छूट: अनुच्छेद 15(5) अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को SC/ST के लिये सीटें आरक्षित करने से छूट देता है, जिसका असर AMU पर पड़ता है, जिसमें वर्तमान में SC/ST कोटा नहीं था, क्योंकि इसका अल्पसंख्यक स्थिति न्यायिक समीक्षा के अधीन था।
  • सेंट स्टीफन कॉलेज संदर्भ: वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने सेंट स्टीफन कॉलेज के स्वतंत्र रूप से प्रशासन करने और ईसाइयों के लिये 50% सीटें आरक्षित करने के अधिकार को बरकरार रखा। 

AMU विवाद का घटनाक्रम क्या है? 

  • मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना, 1875: 
    • सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (Muhammadan Anglo Oriental College) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था, जिन्हें सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। यह संस्थान बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
  • AMU का स्वरूप, 1920:
    • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय विधान परिषद द्वारा पारित किया गया, जिसने औपचारिक रूप से MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में परिवर्तित कर दिया।
  • एस. अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ, 1967: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि AMU को अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
    • फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, न कि केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा “स्थापित या प्रशासित”, इसलिये यह अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है। 
  • अल्पसंख्यक स्थिति देने के लिये AMU अधिनियम में संशोधन, 1981: 
    • वर्ष 1967 के फैसले के जवाब में केंद्र सरकार ने वर्ष 1981 में AMU अधिनियम में संशोधन किया, जिसमें घोषणा की गई कि AMU वास्तव में मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिये “भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित” किया गया था।
      • यह संशोधन AMU को अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान करता है। 
  • AMU आरक्षण विवाद, 2005: 
    • AMU ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिये 50% आरक्षण लागू किया।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2006 में आरक्षण नीति को रद्द कर दिया था तथा निर्णय दिया था कि AMU अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि वर्ष 1967 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। 
    • यह इस तर्क पर आधारित है कि AMU मुस्लिम समुदाय द्वारा “स्थापित या प्रशासित” नहीं है, इसलिये यह अनुच्छेद 30 के तहत मानदंडों को पूरा नहीं करता है। 
  • सरकार ने अपील वापस ली, 2016: 
    • सरकार ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपनी अपील वापस ले ली है, यह तर्क देते हुए कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है तथा वर्ष 1967 के फैसले के आधार पर इसकी स्थिति बहाल कर दी गई है। 
    • सरकार का कहना है कि 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापना के समय AMU ने अपना धार्मिक दर्जा त्याग दिया था। 
  • सात न्यायाधीशों की पीठ, 2019: 
    • तीन न्यायाधीशों की पीठ ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े कानूनी सवालों को सुलझाने के लिये इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेज दिया। 
  • नवीनतम निर्णय, 2024: 
    • सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से एस अज़ीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में अल्पसंख्यक दर्जे के मानदंड पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया।
    • इस फैसले से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के लिये अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त करने की संभावना खुल गई है।

AMU का इतिहास क्या है?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: AMU की शुरुआत 1860 के दशक में सर सैयद अहमद खान द्वारा भारत में एक "मुस्लिम" विश्वविद्यालय बनाने के प्रयासों से हुई थी। 1857 के विद्रोह के दौरान उनके अनुभव ने, विशेषकर मुस्लिम समुदाय की दुर्दशा के संबंध में, उन पर गहरा प्रभाव डाला।
  • शैक्षिक दृष्टि: पश्चिमी शिक्षा से प्रेरित होकर, सर सैयद चाहते थे कि AMU "पूर्व के ऑक्सब्रिज" का प्रतीक बने, जिसमें आधुनिक विज्ञान को सांस्कृतिक मूल्यों के साथ मिश्रित किया जाए।
  • MAO कॉलेज की स्थापना: वर्ष 1875 में मदरसातुल उलूम मुसलमानन-ए-हिंद (Madrasatul Uloom Musalmanan-e-Hind) की स्थापना की गई, जो बाद में AMU के पूर्ववर्ती मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज बन गया।
  • मुस्लिम विश्वविद्यालय आंदोलन: सर सैयद की मृत्यु के बाद, मोहसिन-उल-मुल्क और आगा खान जैसे नेताओं ने कॉलेज को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने के लिये अभियान चलाया तथा इसे मुस्लिम समुदाय के लिये एक राजनीतिक एवं शैक्षिक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया।
  • ब्रिटिश शर्तें: ब्रिटिश सरकार ने विश्वविद्यालय की स्थापना को मंज़ूरी दे दी, लेकिन कुछ शर्तें भी लगाई, जिनमें सरकारी नियंत्रण बढ़ाना और अन्य मुस्लिम संस्थानों के साथ संबद्धता सीमित करना शामिल था।
  • जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना: गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर शौकत और मोहम्मद अली ने औपनिवेशिक भारत में एक स्वतंत्र मुस्लिम शैक्षणिक संस्थान के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की, जिससे राष्ट्रवादी शिक्षा और साझा भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिला।

निष्कर्ष:

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार करने के लिये हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने अनुच्छेद 30 पर चल रही कानूनी और संवैधानिक बहस को उजागर किया है, जो अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार देता है।

1967 के अज़ीज बाशा फैसले को पलटकर, न्यायालय ने AMU के लिये अपने अल्पसंख्यक दर्जे को पुनः प्राप्त करने का राह प्रशस्त करता है। चूंकि यह मुद्दा अब नियमित पीठ के पास है, इसलिये अंतिम निर्णय अल्पसंख्यक शैक्षणिक अधिकारों के भविष्य को आकार देगा और पूरे भारत में इसी तरह के संस्थानों के लिये एक मिसाल कायम करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे की समीक्षा करने के सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अल्पसंख्यक अधिकारों के संदर्भ में भारत के संवैधानिक ढाँचे पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिये।

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