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भारतीय राजनीति

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

  • 17 Aug 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का दायित्व और अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को 30 सितंबर, 2021 तक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में सभी रिक्त पदों पर व्यक्तियों को नामित करने का निर्देश दिया।

  • इससे यह सुनिश्चित होगा कि आयोग कुशलतापूर्वक कार्य करे और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCM), 1992 के तहत परिकल्पित आयोग के उद्देश्य को भी पूरी तरह से प्राप्त  किया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय द्वारा पारित एक संकल्प में अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission- MC) की स्थापना की परिकल्पना की गई थी।
  • वर्ष 1984 में अल्पसंख्यक आयोग को गृह मंत्रालय से अलग कर दिया गया और इसे नव-निर्मित कल्याण मंत्रालय (Ministry of Welfare) के अधीन रखा गया, जिसने वर्ष 1988 में भाषायी अल्पसंख्यकों को आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया।
  • वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ ही अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक/वैधानिक (Statutory) निकाय बन गया और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) कर दिया गया।
  • वर्ष 1993 में पहले वैधानिक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया और पाँच धार्मिक समुदायों- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया।
  • वर्ष 2014 में जैन धर्म मानने वालों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया।
  • संरचना:
  • NCM में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं तथा इन सभी का चयन अल्पसंख्यक समुदायों में से किया जाता है। 
  • केंद्र सरकार द्वारा नामित किये जाने वाले इन व्यक्तियों को योग्य, क्षमतावान और सत्यनिष्ठ होना चाहिये।
  • कार्यकाल: प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक होता है।

कार्य:

  • संविधान में संसद तथा राज्य विधानसभाओं द्वारा अधिनियमित कानूनों में अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
  • आयोग अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये प्रधानमंत्री का 15 सूत्री कार्यक्रम लागू करने और अल्पसंख्यक समुदायों के लिये कार्यक्रमों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करता है।
  • केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिये सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सिफारिशें करना।
  • अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित विशिष्ट शिकायतों को देखना और ऐसे मामलों को उपयुक्त प्राधिकारियों के समक्ष रखना।
  • सांप्रदायिक संघर्ष और दंगों के मामलों की जाँच करता है।
    • उदाहरण के लिये 2011 के भरतपुर सांप्रदायिक दंगों के साथ-साथ असम में 2012 के बोडो-मुस्लिम संघर्षों की जाँच आयोग द्वारा की गई और उनके निष्कर्ष सरकार को सौंपे गए।
  • प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है जो 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा "राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की घोषणा" को अपनाने का प्रतीक है।

अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCM Act) अल्पसंख्यकों को "केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एक समुदाय" के रूप में परिभाषित करता है।
    • भारत सरकार द्वारा देश में छह धर्मों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी (पारसी) और जैन को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम' (NCMEIA), 2004: 
    • यह अधिनियम सरकार द्वारा अधिसूचित छह धार्मिक समुदायों के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान में "अल्पसंख्यक" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँँकि संविधान धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
  • अनुच्छेद 15 और 16:
    • ये अनुच्छेद धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव का निषेध करते हैं।
    • राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोज़गार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में नागरिकों को 'अवसर की समानता' का अधिकार है, जिसमें धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव निषेध है।
  • अनुच्छेद 25 (1), 26 और 28:
    • यह लोगों को अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से धर्म का प्रचार, अभ्यास और प्रसार करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • संबंधित अनुच्छेदों में प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या वर्ग को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों हेतु धार्मिक संस्थानों को स्थापित करने का अधिकार तथा अपने स्वयं के धार्मिक मामलों का प्रबंधन, संपत्ति का अधिग्रहण एवं उनके प्रशासन का अधिकार शामिल है।
    • राज्य द्वारा पोषित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेने या अनुदान सहायता प्राप्त करने की स्वतंत्रता होगी।
  • अनुच्छेद 29:
    • यह अनुच्छेद उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
    •  अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त हैं।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 30: 
    • धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा, संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत) तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 350 B: 
    • मूल रूप से भारत के संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसे 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350B के रूप में जोड़ा गया।
    • यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

स्रोत: द हिंदू

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