सामाजिक न्याय
अल्पसंख्यकों का निर्धारण
- 29 Aug 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग, टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामला मेन्स के लिये:अल्पसंख्यकों का निर्धारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 'राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम' (National Commission for Minority Education Institution Act- NCMEIA), 2004 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है।
प्रमुख बिंदु:
- याचिका में तर्क दिया गया है कि ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम’ (NCMEIA) केवल राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करता है, राज्य स्तर पर नहीं, इसलिये यह अधिनियम अल्पसंख्यकों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग
(National Commission for Minority Educational Institutions- NCMEI):
- संरचना:
- NCMEI की स्थापना ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम'- 2004 के माध्यम से की गई थी।
- आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है, जिसे ‘नागरिक न्यायालय’ (Civil Court) की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- आयोग में एक अध्यक्ष (उच्च न्यायालय का न्यायाधीश) और तीन सदस्य होते हैं जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- उद्देश्य:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण किया गया है।
- अनुच्छेद- 30 के अनुसार, सभी अल्पसंख्यकों, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, उन्हें अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
- आयोग इस संबंध में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के कमी या उल्लंघन के बारे में शिकायतों का निपटान करता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण किया गया है।
- भूमिका:
- आयोग को तीन प्रकार; सहायक कार्य, सलाहकार कार्य तथा सिफारिश करने, की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
NCMEIA के तहत अल्पसंख्यक:
- अधिनियम की धारा 2 (f) के अनुसार, अल्पसंख्यक वह है जिसे केंद्र सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिये अल्पसंख्यक से रूप में अधिसूचित किया है।
- केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- यह अधिनियम अल्पसंख्यकों के निर्धारण में राज्य सरकारों को कोई अधिकार नहीं देता है।
राज्य स्तरीय अल्पसंख्यक निर्धारण की आवश्यकता:
टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामला:
- केवल राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करना, ‘टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य’ (2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय की भावना के खिलाफ है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग की पहचान हेतु दो आधार अर्थात राष्ट्रीय व प्रांतीय बताए गए थे।
राज्य स्तर बहुलवादी भी अल्पसंख्यक:
- हिंदू , यहूदी धर्म का पालन करने वाले लोग अनेक राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों यथा- लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर जैसे क्षेत्रों में अल्पसंख्यक के रूप में हैं।
- वे इन राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन नहीं कर सकते हैं।
संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29, 30, 350A तथा 350B में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन इसकी परिभाषा कहीं नहीं दी गई है।
- अनुच्छेद 29 यह उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त है।
- अनुच्छेद-30 के अनुसार, धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार प्राप्त होगा।
- अनुच्छेद-30 के तहत प्रदान किये गए अधिकार केवल अल्पसंख्यकों के लिये हैं, बहुसंख्यकों के लिये नहीं।
- अनुच्छेद- 350 (A) (प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा) और 350(B) (अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी) केवल भाषायी अल्पसंख्यकों से संबंधित हैं।
आगे की राह:
- संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिभाषा कहीं नहीं दी गई है। अत: इस संबंध में 'अल्पसंख्यक' की स्पष्ट परिभाषा को संविधान या किसी संसदीय कानून में शामिल किया जाना चाहिये।
- ऐसे राज्य जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक के रूप में हो, वहाँ अन्य ‘अल्पसंख्यक पहचान’ को मान्यता प्रदान की जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
- एक लोकतांत्रिक, बहुलवादी राजनीति में अल्पसंख्यक अधिकार आवश्यक हैं। अत: राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु प्रादेशिक स्तर पर भी अल्पसंख्यकों को परिभाषित तथा अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिये।