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भारतीय राजव्यवस्था

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद

  • 17 Jan 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद, सर्वोच्च न्यायालय (SC), अनुच्छेद 30(1), अल्पसंख्यक संस्थान, एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ

मेन्स के लिये:

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के संदर्भ में कहा कि किसी शैक्षणिक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा मात्र इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि उसका प्रशासन कानून (Statute) द्वारा विनियमित है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष केंद्र ने कहा था कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को केंद्रीय शैक्षिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 (2012 में संशोधित) की धारा 3 के तहत आरक्षण नीति कार्यान्वित करने की आवश्यकता नहीं है।

विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा कब विवाद में आया?

  • AMU का इतिहास:
    • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की पृष्ठभूमि वास्तव में वर्ष 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (MOA) कॉलेज से शुरू होती है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य उस अवधि के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करना था।
    • वर्ष 1920 में संस्थान को भारतीय विधान परिषद के एक अधिनियम के माध्यम से विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। इस परिवर्तन ने MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में परिवर्तित कर दिया।
    • विश्वविद्यालय को MOA कॉलेज की सभी संपत्तियाँ तथा कार्य विरासत में प्राप्त हुई। AMU अधिनियम का आधिकारिक शीर्षक "अलीगढ़ में एक शिक्षण तथा आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को शामिल करने हेतु अधिनियम" था।
  • विवाद की उत्पत्ति:
    • AMU अधिनियम 1920 के समक्ष कानूनी चुनौतियाँ: 1920 के AMU अधिनियम में वर्ष 1951 तथा वर्ष 1965 के संशोधनों की कानूनी चुनौतियों ने वर्ष 1967 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद को उत्पन्न किया।
      • इसके मुख्य परिवर्तनों में 'लॉर्ड रेक्टर' के पद को 'विज़िटर' से परिवर्तित करना शामिल है, जो भारत का राष्ट्रपति होगा।
    • गैर-मुस्लिम समुदाय के नागरिकों को विश्वविद्यालय न्यायालय का हिस्सा बनने की अनुमति: विश्वविद्यालय न्यायालय में सदस्यता को केवल मुसलमानों तक सीमित करने वाले प्रावधानों को हटा दिया गया, जिससे गैर-मुसलमानों को भाग लेने की अनुमति मिल गई।
      • इसके अतिरिक्त इन संशोधनों ने कार्यकारी परिषद की शक्तियों को बढ़ाते हुए विश्वविद्यालय न्यायालय के अधिकार को कम कर दिया, जिससे न्यायालय अनिवार्य रूप से 'विज़िटर' द्वारा नियुक्त निकाय बन गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी चुनौती मुख्य रूप से इस दावे पर आधारित थी कि मुस्लिम समुदाय ने AMU की स्थापना की थी तथा इसलिए इसे प्रबंधित करने का अधिकार उन्हें दिया जाना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मुस्लिम समुदाय द्वारा वर्ष 1920 में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की पहल की गई किंतु इससे यह सुनिश्चित नहीं होता की भारत सरकार द्वारा इसकी डिग्री की आधिकारिक मान्यता की गारंटी दी जाएगी।
      • एस अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले, 1967 में शीर्ष न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि चूँकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था इसलिये इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
      • न्यायालय के निर्णय में महत्त्वपूर्ण बिंदु यह था कि AMU की स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से की गई थी ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके, यह दर्शाता है कि यह अधिनियम केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का संकलन नहीं था।
      • अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हालाँकि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का परिणाम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 1920 अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय, मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था।
    • अल्पसंख्यक चरित्र: इस कानूनी चुनौती और उसके बाद वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय  के फैसले ने AMU के अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया, यह तर्क देते हुए कि इसकी स्थापना तथा प्रशासन पूरी तरह से मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों में निहित नहीं था जैसा कि शुरू में तर्क दिया गया था।
      • AMU अधिनियम 1981 के माध्यम से भारत की केंद्र सरकार द्वारा AMU को "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" का दर्जा दिया गया था।

विवाद क्यों बना रहता है?

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुसलमानों ने राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया, जिससे वर्ष 1981 में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की पुष्टि करने वाला संशोधन हुआ।
    • जवाब में, केंद्र सरकार ने वर्ष 1981 में AMU अधिनियम में एक संशोधन पेश किया और AMU अधिनियम की धारा 2(l) और उपधारा 5(2)(c) को जोड़कर इसकी अल्पसंख्यक स्थिति की स्पष्ट रूप से पुष्टि की।
  • वर्ष 2005 में, AMU ने मुस्लिम उम्मीदवारों के लिये स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम की 50% सीटें आरक्षित कीं। हालाँकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के अधिनियम को रद्द करते हुए इस आरक्षण को पलट दिया।
    • अदालत ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के एस. अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले के अनुसार, AMU अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है।
  • वर्ष 2006 में, केंद्र सरकार की एक याचिका सहित आठ याचिकाओं ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी।
    • वर्ष 2016 में, केंद्र सरकार ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है।
  • वर्ष 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था।

चल रहे AMU मामले में सर्वोच्च न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ हैं?

  • कानून द्वारा विनियमित होने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खोएगा:
    • अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून द्वारा विनियमन किसी संस्था की अल्पसंख्यक स्थिति को कम नहीं करता है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा विशेष प्रशासन को अनिवार्य नहीं करता है।
  • धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है:
    • एक अल्पसंख्यक संस्थान को विशेष रूप से धार्मिक पाठ्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश देते हुए एक धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है।
      • एक अल्पसंख्यक संस्थान को विशेष रूप से धार्मिक पाठ्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश देते हुए एक धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है।
  • प्रशासन में बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता:
    • शैक्षणिक संस्थानों की कुछ प्रशासनिक शाखाओं में बहुसंख्यक समुदाय के पदाधिकारियों की मौजूदगी ज़रूरी नहीं कि उनके अल्पसंख्यक चरित्र को कमज़ोर कर दे।

अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न मामले क्या हैं?

  • TMA पाई वाद :
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजन के लिये धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्यवार आधार पर किया जाना चाहिये।
  • बाल पाटिल वाद:
    • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'बाल पाटिल' वाद में अपने फैसले में ‘टीएमए पाई’ वाद के निर्णय का उल्लेख किया था।
    • कानूनी स्थिति स्पष्ट करती है कि अब से भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक, दोनों की स्थिति निर्धारित करने की इकाई 'राज्य' होगी।
  • इनामदार मामला:
    • इनामदार मामले, 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार राज्य पेशेवर कॉलेजों सहित अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक गैर-सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों पर अपनी आरक्षण नीति लागू नहीं कर सकता है।
      • न्यायालय ने घोषणा की कि निजी, गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण असंवैधानिक है।

अल्पसंख्यक समुदायों के संबंध में संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 29: 
    • इसमें प्रावधान है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उन्हें संरक्षित करने का अधिकार है।
    • यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषाई अल्पसंख्यकों दोनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
      • हालाँकि SC ने माना कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों का वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 30 (1) सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा प्रशासित करने का अधिकार देता है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30 "अल्पसंख्यक को यहूदी बस्ती में बसाने" के लिये नहीं है।
    • यह प्रावधान यह गारंटी देकर अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है कि यह अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थिति के आधार पर सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 25:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार की रक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 26:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26 प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय (या उसके किसी भी अनुभाग) को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थान स्थापित करने एवं इसे बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 27:
    • यह किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिये करों के भुगतान के संबंध में स्वतंत्रता निर्धारित करता है।
  • अनुच्छेद 28:
    • यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता देता है।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities- NcM)
    • NCM भारत सरकार द्वारा वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
      • संविधान में अल्पसंख्यकों के लिये प्रदान किये गए सभी सुरक्षा उपायों के प्रवर्तन और कार्यान्वयन हेतु गृह मंत्रालय के वर्ष 1978 के संकल्प में आयोग की स्थापना की परिकल्पना की गई थी।
    • यह भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण और विकास से संबंधित मामलों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को सलाह देने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • प्रारंभ में पाँच धार्मिक समुदायों अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था। वर्ष 2014 में, जैनियों को भी एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:  

Q. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन.सी.एस.सी.) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये।  (2018)

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