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द बिग पिक्चर/देश देशांतर/विशेष : आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण

  • 10 Jan 2019
  • 19 min read

संदर्भ


सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्तियों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने वाला 124वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा 8 जनवरी को पारित कर दिया गया। आरक्षण का लाभ हिंदू, मुसलमान और ईसाई समुदाय के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ-साथ सभी अनारक्षित जातियों के गरीबों को मिलेगा। यह नया आरक्षण SC, ST और OBC के आरक्षण को प्रभावित नहीं करेगा।

  • फिलहाल 49.5 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के लिये आरक्षित हैं।
  • जिसमें भारत की कुल जनसंख्या के 20 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले अनुसूचित जातियों के लिये 15%, कुल जनसंख्या के 9% हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले अनुसूचित जनजातियों के लिये 7.5% तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लिये 27% आरक्षण का प्रावधान है।
  • सरकार के नए कदम से आरक्षण का कोटा 49.5 प्रतिशत से 59.5 प्रतिशत हो जाएगा। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में साफ किया था कि किसी भी विशेष श्रेणी में दिये जाने वाले आरक्षण का कुल आँकड़ा 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।

पृष्ठभूमि

  • सरकार ने अनारक्षित वर्ग के नागरिकों को आरक्षण देने का फैसला सिन्हो आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किया है।
  • सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस.आर. सिन्हो की अध्यक्षता में 2006 में एक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने 22 जुलाई, 2010 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
  • रिपोर्ट में सामान्य जातियों के गरीब लोगों को भी सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। हालाँकि इस सिफारिश को तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
  • पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसी तरह के आरक्षण का प्रावधान किया था, लेकिन इंद्रा साहनी (1992) मामले में नौ न्यायाधीशों वाली पीठ ने इसे खारिज कर दिया था।

प्रस्तावित आरक्षण के लिये पात्रता


यह आरक्षण अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये लक्षित है। आरक्षण की पात्रता की शर्तें इस प्रकार होंगी-

  1. सामान्य वर्ग के ऐसे परिवार जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपए या उससे कम हो।
  2. जिनके पास 5 एकड़ या उससे कम कृषि योग्य भूमि है।
  3. ऐसे परिवार जिनके पास 1000 वर्ग फीट या उससे कम क्षेत्रफल का फ्लैट है।
  4. अधिसूचित नगरीय क्षेत्र में जिनके पास 109 गज का प्लाट है।
  5. गैर-अधिसूचित नगरीय क्षेत्र में 209 गज या उससे कम का प्लाट है।
  6. जो लोग अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते थे।
  • SC, ST और OBC जिनकी आबादी लगभग 70 प्रतिशत है, को सरकारी क्षेत्र में 49.5 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • शेष 30 प्रतिशत या 39 करोड़ जनसंख्या जो सामान्य श्रेणी के अंतर्गत आती है, केंद्र द्वारा घोषित 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ लेने के लिये पात्र होगी।
  • महाराष्ट्र में 261 समुदायों के साथ अधिकतम OBCs हैं, जबकि कर्नाटक में सबसे अधिक 101 SCs समुदाय हैं। 62 अलग-अलग अनुसूचित जनजाति समुदायों के साथ ओडिशा में STs की संख्या सर्वाधिक है।

क्या ‘गरीब सवर्णों के लिये आरक्षण’ का यह विचार नया है?

  • 2008 में केरल के मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिये सरकारी कॉलेजों में स्नातक और पीजी पाठ्यक्रमों में 10% सीटें और विश्वविद्यालयों में 7.5% सीटें आरक्षित करने का निर्णय लिया था।इस पर सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित है।
  • 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर उच्च जाति के गरीबों के लिये आरक्षण की मांग की थी।
  • 2008 और 2015 में राजस्थान विधानसभा ने अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (Economically Backward Classes-EBCs) को 14% आरक्षण प्रदान करने के लिये विधेयक पारित किये।

सामाजिक वास्तविकता तथा संवैधानिक प्रावधान

  • यह सही है कि सामाजिक रूप से उन्नत जातियों (Socially Advanced Castes-SACs) में भी SC, ST तथा OBC की तरह गरीब लोग हैं और उन्हें भी मदद की ज़रूरत है।
  • लेकिन मुद्दा यह है कि वे किस विशिष्ट समस्या का सामना कर रहे हैं, और इसके लिये उपयुक्त संवैधानिक रूप से स्थायी समाधान क्या है।
  • भारतीय संविधान में समानता का सिद्धांत (Principle of Equality) है। अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी आधार पर विभेद नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 16 (1) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी।
  • अनुच्छेद 15 (4) में विशेष प्रावधान किया गया है राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार, राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने से निवारित नहीं करेगा।
  • आरक्षण का प्रावधान करने वाले अनुच्छेद 16 (1) व 16 (4) अपवाद नहीं हैं बल्कि एक पहलू है। ऐसे में अनुच्छेद 16 (4) OBC के अलावा अन्य वर्गों को नौकरी में बराबरी का मौका देने का अधिकार नहीं छीनता।
  • "पिछड़े हुए नागरिकों" शब्द को आमतौर पर SCs, STs और SEdBCs (Socially and Educationally Backward Castes) को शामिल करने के लिये मंडल मामले (इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ, 1992) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित किया गया है।
  • शीर्ष अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि केवल आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण अर्थात् जो ऐतिहासिक भेदभाव (Historical Descrimination) के सबूत के बिना है, का संविधान में कोई औचित्य नहीं है। इंद्रा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि आरक्षण ऐतिहासिक भेदभाव और इसके निरंतर दुष्प्रभावों के लिये एक उपाय है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि आरक्षण का उद्देश्य आर्थिक उत्थान (Economic Uplift) या गरीबी उन्मूलन नहीं है। सामाजिक पिछड़ेपन के कारण ही आर्थिक पिछड़ापन है।

करना होगा संविधान में संशोधन

  • सरकार यह आरक्षण आर्थिक आधार पर दे रही है, जिसकी अभी संविधान में व्यवस्था नहीं है।
  • इसके लिये सरकार को 124वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा तथा राज्यसभा से पारित कराना होगा।
  • संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में निर्धारित की गई है और इसके लिये इसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होना ज़रूरी है।
  • इसके लिये सरकार ने आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग हेतु संवैधानिक संशोधन विधेयक, 2018 (Constitution Amendment Bill to Provide Reservation to Economic Weaker Section 2018) के ज़रिये संविधान के अनुच्छेद 15 व 16 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है।
  • अनुच्छेद 15 (4) और 15 (5) में सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है लेकिन यहाँ कहीं भी आर्थिक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसीलिये सवर्णों को आरक्षण देने के लिये सरकार को इस अनुच्छेद में आर्थिक रूप से कमज़ोर शब्द जोड़ने हेतु संविधान संशोधन की ज़रूरत पड़ेगी।
  • अनुच्छेद 16 (4) और 16 (5) में भी आर्थिक शब्द का जिक्र कहीं नहीं है। इसलिये सरकार को गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिये संविधान के इन दो अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा।

प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन के संभावित प्रभाव

  • सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 15 और 16 में प्रस्तावित संशोधन संवैधानिक रूप से टिकाऊ होगा या नहीं। इस बात की पूरी संभावना है कि वर्तमान संशोधन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।
  • इस मुद्दे को भी उठाए जाने की संभावना है कि प्रस्तावित संशोधन संविधान की मूल भावना का उल्लंघन तो नहीं करता है।
  • यह संभावना है कि न्यायालय प्रस्तावित संविधान संशोधन और SAC (Socially Advanced Castes) के व्यक्तियों को दिये जाने वाले 10% के आरक्षण के प्रस्तावित प्रावधान को संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन मान ले।
  • यह भी संभावना है कि न्यायालय आरक्षण के इस आधार को असाधारण परिस्थिति न माने जिसके तहत 50% की सीमा के उल्लंघन की अनुमति दी जा सकती है।
  • SACs गरीबों के लिये प्रस्तावित मानदंडों की उपयुक्तता पर भी सवाल उठ सकते हैं।
  • इसके अलावा नौकरियों में आरक्षण का मानदंड सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व भी है। SACs को सरकारी नौकरियों में लगातार प्रतिनिधित्व मिलता रहा है, जबकि SC, ST तथा OBC के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता है।
  • यदि उच्चतम न्यायालय वास्तव में 50% की सीमा को हटाने के लिये सहमत हो जाता है तो भारत के सभी राज्य आरक्षण की सीमा को बढ़ा सकते हैं और ‘सवर्ण जातियाँ’ राज्य सेवाओं में बाहर होने के कगार पर होंगी।
  • यदि सुप्रीम कोर्ट आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाने से इनकार कर देता है तो आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) जैसे SC, ST और OBC के वर्तमान कोटे में यह 10 प्रतिशत आरक्षण समायोजित करना होगा जिसके गंभीर सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव होंगे।
  • न्यायालय के समक्ष यह भी एक बड़ा प्रश्न होगा कि आरक्षण के लिये क्या संविधान में दो अलग-अलग मापदंड-एक जाति के आधार पर और एक आर्थिक आधार पर तय किये जा सकते हैं।

क्रियान्वयन होगी बड़ी चुनौती

  • सरकार के सामने 10 प्रतिशत आरक्षण के क्रियान्वयन की बड़ी चुनौती होगी। देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या SC, ST तथा OBC समुदाय से आती है जिन्हें 49.5 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, जबकि 30 प्रतिशत जनसंख्या के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण को किस प्रकार लागू किया जाएगा।
  • उदाहरण के लिये आरक्षण की पात्रता के लिये वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम होने की बात कही गई है। आर्थिक स्थिति की बात की जाए तो देश में 8 लाख से कम वार्षिक आय वाले परिवारों की संख्या काफी अधिक है क्या उनके लिये 10 प्रतिशत आरक्षण पर्याप्त होगा?
  • मुद्दा यह भी है कि इतने बड़े आरक्षित वर्ग के लिये क्या हमारे पास पर्याप्त नौकरियाँ मौजूद हैं?
  • ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका परीक्षण इसे लागू किये जाने से पूर्व किया जाना आवश्यक है, साथ ही इस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिये।

सरकार के इस कदम की आलोचना

  • नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में अपनी पारी की शुरुआत एक संवैधानिक संशोधन के साथ की थी जिसमें सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में अहम भूमिका निभाने की बात कही थी।
  • किंतु शीर्ष अदालत ने 2016 में इसे असंवैधानिक करार दिया था क्योंकि संशोधन ने न्यायिक नियुक्तियों में भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय की प्रधानता को कम कर दिया था, जिसे न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना का हिस्सा बताया था।
  • अब सरकार एक और बड़े संवैधानिक संशोधन के साथ अपना कार्यकाल समाप्त कर रही है, जिसको सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किये जाने की संभावना अधिक दिखती है।
  • सरकार की कई अन्य योजनाओं की तरह आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव न तो अनूठा है और न ही प्रगतिशील है।
  • एक पार्टी के रूप में भाजपा आरक्षण के माध्यम से सामाजिक न्याय की समर्थक नहीं रही है। 2015 में आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण नीति की समीक्षा का आह्वान किया था। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक गिरावट का अनुमान लगाते हुए सरकार ने उनकी टिप्पणी को खारिज कर दिया था।
  • सरकार की उदासीनता के चलते विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों की संख्या में भारी कमी कर दी गई है।
  • इसी तरह सरकारी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एससी/एसटी एक्ट का प्रभावी ढंग से बचाव नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट ने इसके दुरुपयोग को लगभग स्वीकार कर लिया, जिससे एक्ट कमज़ोर पड़ गया।

राजनीतिक निहितार्थ

  • कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार के इस कदम का निहितार्थ आसन्न लोकसभा चुनाव है।
  • ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो अधिकांश आरक्षण योजनाओं की घोषणा आम चुनाव या विधानसभा चुनावों के पूर्व की जाती है।
  • राजनीतिक नेतृत्व भारतीय मतदाताओं को नासमझ मानता है और यह भूल जाता है कि अतीत में ऐसे लोकलुभावन कदमों से राजनीतिक दलों को चुनावों में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
  • 1989 में शाह बानो के फैसले को पलटने और बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के बावजूद राजीव गांधी नहीं जीत पाए। समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर और वी.पी. सिंह भी अपनी आरक्षण नीतियों के लिये जनता से अपेक्षित समर्थन पाने में असफल रहे।
  • वर्तमान में देश के सामने आर्थिक और सामजिक मुद्दे हैं जो सरकार के इस कदम के कारण चर्चा से अलग हो गए हैं। इस कदम से राजनीतिक लाभ कितना होगा यह कहना मुश्किल है।

निष्कर्ष


आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन विधेयक सरकार का एक साहसिक कदम है। इसकी मांग लंबे समय से उठती रही है। लगभग सभी राजनीतिक दल इसके पक्ष में रहे हैं। हमें इस बात पर भी गौर करने की ज़रूरत है कि भारत की 95 प्रतिशत आबादी की वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम है, देश की 86 प्रतिशत जनसंख्या कृषि से जुड़ी है और उनके पास 5 एकड़ से कम कृषि योग्य भूमि है। देश के 80 प्रतिशत परिवारों के पास 500 वर्ग फीट से कम क्षेत्रफल का घर है। अतः यह कानून संपूर्ण समाज को संबोधित करता है। केवल राजनीतिक लाभ-हानि के पैमाने पर इतनी बड़ी जनसंख्या की मूल समस्याओं को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।

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