मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा | 20 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त व्यापार समझौता, MSME, व्यापार घाटा, गैर-टैरिफ बाधाएँ, रूल्स ऑफ ओरिजिन, ASEAN, FDI, बौद्धिक संपदा अधिकार, UPOV 1991, पौधों की नई किस्मों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संघ, TRIPS, EU, आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना। मेन्स के लिये:FTA से संबंधित भारत की चिंताएँ और आगे की राह। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि सरकार ने MSME या किसानों के हितों की रक्षा के लिये मुक्त व्यापार समझौतों प्रति सतर्क रुख अपनाया है।
- यह निर्णय पिछले समझौतों के प्रतिकूल परिणामों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है तथा यह सुनिश्चित किया गया है कि FTA से MSME या किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
FTA भारत के लिये किस प्रकार प्रतिकूल साबित हुए?
- व्यापार घाटा असंतुलन: वर्ष 2017 से 2022 के बीच FTA के तहत शामिल देशों को भारत का निर्यात 31% बढ़ा लेकिन इसके आयात में 82% की वृद्धि हुई, जो एक अस्थिर व्यापार घाटे का प्रतीक है।
- भारत बदले में आनुपातिक पहुँच प्राप्त किये बिना अपने बाज़ार खोल रहा है।
- FTA का कम उपयोग: भारत में FTA उपयोग लगभग 25% के साथ काफी कम बना हुआ है, जो विकसित देशों में देखी जाने वाली सामान्य 70-80% उपयोग दर से काफी कम है।
- इससे भारत की अपने द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के लाभों का पूर्ण उपयोग करने में विफलता पर प्रकाश पड़ता है।
- विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी: अनुसंधान, नवाचार, सरकारी सहायता एवं मूल्य शृंखला उन्नयन पर आसियान के फोकस से उत्पादन लागत में कमी आने के साथ इनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिला है।
- दक्षिण कोरिया और आसियान ने इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल एवं वस्त्र जैसे क्षेत्रों में भारत से बेहतर प्रदर्शन किया।
- इससे रिवर्स शुल्क संरचना (Inverted Duty Structure) की स्थिति पैदा हो जाती है, जहाँ कच्चे माल से बने सामानों पर आयात शुल्क तैयार माल की तुलना में अधिक होता है।
- उदाहरण के लिये, आयातित वस्तुओं पर कम आयात शुल्क की तुलना में घरेलू कच्चे माल की खरीद पर अधिक जीएसटी दर का भुगतान किया जाता है।
- हितधारकों के परामर्श का अभाव: वार्ताकार प्रासंगिक उद्योगों, व्यवसायों एवं संघों के प्रतिनिधियों को शामिल करने में विफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप FTA के प्रभाव की सीमित समझ रहने के साथ घरेलू चिंताओं पर विचार किये बिना बाजार पहुँच प्रदान की गई।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ: FTA के कारण टैरिफ दरों में कमी आई है, जिससे साझेदारों को भारतीय बाज़ार सुलभ पहुँच मिली है।
- लेकिन साझेदार देशों द्वारा लगाए गए गैर-टैरिफ अवरोध जैसे कि कड़े मानक, सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी संबंधी उपाय तथा व्यापार में तकनीकी बाधाएँ बनी रहीं, जिससे भारतीय निर्यातकों की बाज़ार पहुँच और निर्यात के अवसर सीमित हो गए।
- जटिल प्रमाणन: FTA के अंतर्गत प्रमाणन आवश्यकताओं और उत्पत्ति के नियमों की जटिलता के कारण निर्यातकों के लिये निर्धारित मानकों को पूरा करना कठिन हो गया है और अनुपालन लागत बढ़ गई है।
- जागरूकता का अभाव: विभिन्न निर्यातकों को FTA के अंतर्गत उपलब्ध प्रोत्साहनों और संभावित लाभों के बारे में जानकारी नहीं है, जिससे FTA के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा आ रही है।
- सीमित सेवा व्यापार: सेवाओं में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त होने के बावज़ूद, सेवा व्यापार में अपेक्षा के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और निवेश संबंधी चुनौतियाँ: FDI के प्रवाह से प्रौद्योगिकी या मूल्य-वर्द्धित संबंधों में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है, जिससे भारत की औद्योगिक क्षमता में वृद्धि हो सके।
मुक्त व्यापार समझौते
- FTA: यह दो देशों (या ब्लॉकों) के बीच व्यापार समझौता है, जिसका उद्देश्य निर्यात और आयात पर सीमा करों और अन्य बाधाओं (जैसे मानकों, प्रक्रियाओं) जैसे सीमा सुरक्षा उपायों को कम करने या हटाने के द्वारा एक-दूसरे को बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करना है।
- कवरेज़: FTA में वस्तुओं के व्यापार (जैसे कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं के व्यापार (जैसे बैंकिंग, विनिर्माण, व्यापार आदि) को शामिल किया जा सकता है।
- एफटीए में बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धा नीति जैसे अन्य क्षेत्र भी शामिल हो सकते हैं।
व्यापार समझौतों के प्रकार:
भारत के प्रमुख व्यापार समझौते:
प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने के लिये निर्यात करों के उपयोग के उदाहरण
- केन्या: केन्या ने कच्चे चमड़े पर 40% निर्यात शुल्क लगाकर अपने चमड़ा उद्योग को पुनः पटरी पर ला दिया।
- इस नीति से देश में चमड़े के कारखानों की संख्या में वृद्धि हुई, सात हज़ार नए रोज़गार सृजित हुए, 40,000 लोगों की आय में वृद्धि हुई तथा इस क्षेत्र से आय में लगभग 8 मिलियन यूरो की वृद्धि हुई, तथा इसमें और भी वृद्धि की संभावना है।
- मलेशिया: मलेशिया का फर्नीचर क्षेत्र निर्यात प्रतिबंधों और कच्ची लकड़ी पर करों पर निर्भर है, जिससे प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये इनकी आगत अपेक्षाकृत सस्ती रहती है।
- इन निर्यात प्रतिबंधों और करों के बगैर, फर्नीचर SME प्रतिस्पर्द्धा करने में असमर्थ हो जाएँगे।
- फर्नीचर SME विनिर्माण क्षेत्र में मलेशियाई SME का 6% हिस्सा हैं।
FTA MSME पर नकारात्मक प्रभाव कैसे डाल सकते हैं?
- सीमित वैश्विक पहुँच: केवल 16% भारतीय SME अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संलग्न हैं, जिनमें से 13% निर्यात में शामिल हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय औसत 19% से काफी कम है।
- बाह्य आघातों के प्रति संवेदनशीलता: भारतीय SME वैश्विक व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हैं, जैसा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान देखा गया, जिसने आपूर्ति शृंखलाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
- तकनीकी बाधाएँ: भारतीय MSME को प्रायः अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन में संघर्ष करना पड़ता है, जिसमें सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय और व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (TBT) शामिल हैं।
- सीमित नेटवर्किंग अवसर: भारत में MSME के पास प्रायः विदेश में संभावित खरीदारों के साथ संपर्क की कमी होती है, जिससे उनकी बाज़ार पहुँच और दृश्यता सीमित हो जाती है।
- घरेलू बाज़ार के हिस्सेदारी में कमी: FTA के अंतर्गत कम टैरिफ के कारण सस्ती आयातित वस्तुएँ बाज़ार में आएँगी, जिससे घरेलू MSME विदेशी प्रतिस्पर्द्धियों के समक्ष बाज़ार हिस्सेदारी खो देंगे, जिससे बिक्री और राजस्व में कमी आएगी।
- मापनीय चुनौतियाँ: पूंजी, प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम तक पहुँच की कमी भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने वाली विदेशी वस्तुओं के विरुद्ध मूल्य, गुणवत्ता और दक्षता पर प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता में बाधा बन सकती है।
FTA किसानों पर नकारात्मक प्रभाव कैसे डाल सकते हैं?
- UPOV 1991 कन्वेंशन: यूरोपीय संघ भारत पर UPOV 1991 (पौधों की नई किस्मों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ) में शामिल होने के लिये दबाव बना रहा है, जो बड़े निगमों को नई पादप किस्मों पर विशेष अधिकार प्रदान करता है।
- यदि भारत UPOV 1991 में शामिल होता है, तो भारत को बीज संप्रभुता पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है, जहाँ टर्मिनेटर सीड्स/बीजों ( पहली फसल के बाद बाँझ होने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित) के उपयोग के कारण किसानों को प्रत्येक मौसम में सीड्स/बीज खरीदने के लिये मज़बूर किया जा सकता है।
- ‘ट्रिप्स-प्लस’ मांगें: यूरोपीय संघ की ट्रिप्स-प्लस मांगों का उद्देश्य कीटनाशकों और उर्वरकों जैसे कृषि रसायनों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) के बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों का विस्तार करना है।
- इससे कृषि रसायन बाज़ार पर बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा और किसानों के लिये आवश्यक आगतों की कीमतें बढ़ जाएंगी।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB): कई कीटनाशकों और खाद्य वस्तुओं के लिये यूरोपीय संघ की कीटनाशक अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) 0.01 भाग प्रति मिलियन (PPM) लागू करने से भारत के कृषि निर्यात को अस्वीकार किया जा सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि: आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) के तहत, ऑस्ट्रेलिया भारत में दाल, मदिरा, भेड़ के मांस, ऊन और बागवानी उत्पादों का निर्यात बढ़ाना चाहता है, जो जीविका आधारित भारतीय छोटे भूमिधारक किसानों के लिये हानिकारक साबित हो सकता है।
- खाद्य असुरक्षा: भारत वर्तमान में सभी कनाडाई मसूर निर्यात पर 30% टैरिफ लागू करता है, जो भारत-कनाडा FTA के बाद समाप्त हो जाएगा।
- इससे पाँच वर्षों में कनाडा के निर्यात में 147% की वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत के घरेलू दाल उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात निर्भरता को कम करने के लक्ष्य को खतरा हो सकता है।
आगे की राह:
- बुनियादी ढाँचे में निवेश से लॉजिस्टिक्स लागत कम होगी तथा बंदरगाहों, रेलमार्गों और सड़कों को जोड़ने और डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके लॉजिस्टिक्स को सुव्यवस्थित करने से दक्षता बढ़ेगी।
- उत्पत्ति के नियम (ROO) में छूट: भारत को FTA उपयोग को बढ़ाने और निर्यातकों के लिये लेनदेन लागत को कम करने हेतु ROO विनियमों को सभी क्षेत्रों में एक समान लागू करने की बजाय अधिक वस्तु-विशिष्ट और अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिये।
- सेवाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करना: भारत को अपने मज़बूत सेवा क्षेत्रों, विशेष रूप से आईटी, बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) और अन्य ज्ञान-आधारित सेवाओं के लिये बाज़ार पहुँच पर अधिक ज़ोर देते हुए FTA डिज़ाइन करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- मौजूदा FTA पर पुनः संवाद करना: पहले से हस्ताक्षरित FTA के लिये, भारत को रसायन, ऑटोमोटिव घटकों और विद्युत उपकरणों जैसे उच्च तकनीक और मूल्यवर्द्धित उत्पादों में विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शर्तों पर पुनः संवाद करना चाहिये।
- अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: निर्यातोन्मुख उद्योगों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना ताकि वैश्विक मांग के अनुरूप उच्च मूल्य वाले उत्पाद तैयार किये जा सकें।
- एकीकृत नीति दृष्टिकोण: भारत की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PIL) योजना, जिसका उद्देश्य चुनिंदा क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देना है, को भविष्य के FTA के साथ जोड़ा जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि PIL योजना से लाभान्वित होने वाले क्षेत्रों को व्यापार समझौतों में भी प्राथमिकता दी जाए।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत के कृषि क्षेत्र और लघु उद्योगों पर मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिकप्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-से आसियान के 'मुक्त-व्यापार साझेदार' हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: C प्रश्न. 'रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016) (a) G20 उत्तर: (b) मेन्सQ. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018) Q. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016) |