विदेश मंत्रालय के सहायता आवंटन में नेबरहुड को प्राथमिकता | 25 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट, विकास सहायता, नेबरहुड फर्स्ट नीति, चाबहार बंदरगाह, मानवीय आवश्यकताएँ, प्रवासन, सीमा सुरक्षा, ऋण रेखा (LOC), संयुक्त सैन्य अभ्यास, समुद्री, भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, सार्क, बिम्सटेक, व्यापार बाधाएँ, सिंधु, तीस्ता। 

मेन्स के लिये:

भारत के पड़ोस में सुरक्षा और स्थिरता में भारत की विकास सहायता की भूमिका।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में घोषित केंद्रीय बजट 2024-25 में, विदेश मंत्रालय (MEA) ने रणनीतिक साझेदारों और पड़ोसी देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी विकास सहायता योजनाओं की रूपरेखा तैयार की है।

  • यह भारत की पड़ोस प्रथम नीति के अनुरूप क्षेत्रीय संपर्क, सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये तैयार की गई है।

देशों के बीच विकास सहायता कैसे वितरित की जाती है?

  • विदेश मंत्रालय के व्यय का एक बड़ा हिस्सा, 4,883 करोड़ रुपए, "देशों को सहायता" के लिये निर्धारित किया गया है। इसे इस प्रकार आवंटित किया गया है:
    • भूटान: इसे सबसे अधिक 2,068.56 करोड़ रुपए की सहायता मिली, हालाँकि यह पिछले वर्ष के 2,400 करोड़ रुपए से थोड़ा कम है।
    • नेपाल: इसे 700 करोड़ रुपए आवंटित किये गए, जो पिछले वर्ष के 550 करोड़ रुपए से अधिक है।
    • मालदीव: इसने पिछले वर्ष के लिये 770.90 करोड़ रुपए की संशोधित राशि के बावजूद 400 करोड़ रुपए का आवंटन बनाए रखा।
    • श्रीलंका: इसे 245 करोड़ रुपए मिले, जो पिछले वर्ष के 150 करोड़ रुपए से अधिक है।
    • अफगानिस्तान: अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपए मिले, जो मौजूदा चुनौतियों के बीच देश की स्थिरता और विकास में सहायता करने में भारत की भूमिका को दर्शाता है।
    • मालदीव: भारत विरोधी प्रदर्शनों और इसके शीर्ष नेतृत्व की टिप्पणियों के बावजूद मालदीव को 400 करोड़ रुपए मिले।
    • ईरान: चाबहार बंदरगाह परियोजना को 100 करोड़ रुपए मिलना जारी है, जो पिछले तीन वर्षों से अपरिवर्तित है। 
    • अफ्रीका: अफ्रीकी देशों को सामूहिक रूप से 200 करोड़ रुपए मिले, जो इस महाद्वीप के साथ भारत के बढ़ते प्रभाव और जुड़ाव को दर्शाता है। 
      • सेशेल्स: इसे 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 40 करोड़ रुपए मिले।

पड़ोसी देशों को दी जाने वाली विकास सहायता के क्या लाभ हैं?

  • राजनयिक संबंधों को मज़बूत बनाना: पड़ोसी देशों को सहायता प्रदान करके, भारत राजनयिक संबंधों को बढ़ाता है, मज़बूत राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना: वित्तीय सहायता पड़ोसी देशों को स्थिर करने में मदद करती है, जिससे एक अधिक सुरक्षित और स्थिर क्षेत्र बन सकता है, जिससे भारत के रणनीतिक हितों को लाभ होगा।
  • आर्थिक विकास का समर्थन करना: सहायता बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, विकास कार्यक्रमों और अन्य पहलों में योगदान देती है जो प्राप्तकर्त्ता देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे एक अधिक समृद्ध क्षेत्र बन सकता है। उदाहरण के लिये, ईरान में चाबहार बंदरगाह।
  • व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करना: पड़ोसी देशों में बेहतर बुनियादी ढाँचे और आर्थिक स्थिति भारत के लिये व्यापार एवं निवेश के अवसरों को बढ़ा सकती है, उदाहरण के लिये, भारत व बांग्लादेश के बीच अगरतला-अखौरा रेलवे परियोजना
  • रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाना: सहायता प्रदान करने से भारत को प्रभाव डालने और गठबंधन बनाने की अनुमति मिलती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पड़ोसी देशों का भारत के साथ सकारात्मक जुड़ाव हो एवं वे इसके हितों के साथ अधिक निकटता से जुड़ें।
    • उदाहरणार्थ, डोकलाम मुद्दे पर भूटान का भारत के प्रति पक्ष लेना।
  • मानवीय आवश्यकताओं को पूरी करना: सहायता अक्सर स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आपदा राहत जैसी तत्काल मानवीय आवश्यकताओं को पूरी करती है, जिससे प्राप्तकर्त्ता देशों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत ने चक्रवात मोचा के दौरान म्याँमार को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिये "ऑपरेशन करुणा" शुरू किया। 
  • सॉफ्ट पावर को मज़बूत करना: पड़ोसी देशों के विकास में निवेश करके, भारत एक ज़िम्मेदार क्षेत्रीय नेता के रूप में अपनी सॉफ्ट पावर और प्रतिष्ठा को मज़बूत करता है। 
    • उदाहरण के लिये, यह भारत के छोटे पड़ोसियों के बीच बिग ब्रदर सिंड्रोम को कम करने में मदद करता है।

भारत की पड़ोस प्रथम नीति 

  • नेबरहुड फर्स्ट नीति अर्थात् पड़ोस प्रथम नीति की अवधारणा वर्ष 2008 में अस्तित्व में आई।
  • भारत की ‘पड़ोस प्रथम नीति’ उसके निकटतम पड़ोसी राष्ट्रों अर्थात् अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ संबंधों के प्रबंधन के प्रति उसके दृष्टिकोण को निर्दिष्ट करती है।
  • पड़ोस प्रथम नीति, अन्य विषयों के साथ-साथ, पूरे क्षेत्र में भौतिक, डिजिटल और जन-जन समन्वयन व संपर्क बढ़ाने के साथ-साथ व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ाने के उद्देश्य से है।
  • यह नीति हमारे पड़ोस के साथ संबंधों और नीतियों का प्रबंधन करने वाली सरकार की सभी प्रासंगिक शाखाओं के लिये एक संस्थागत प्राथमिकता के रूप में विकसित हुई है।
  • अपने पड़ोसी देशों के साथ जुड़ने/समन्वय के लिये भारत का दृष्टिकोण परामर्श, गैर-पारस्परिकता और ठोस/वास्तविक परिणाम प्राप्त करने पर केंद्रित होने की विशेषता है। यह दृष्टिकोण संपर्क, बुनियादी ढाँचे, विकास सहयोग, सुरक्षा को बढ़ाने तथा जन-जन समन्वयन को और भी बढ़ावा देने को प्राथमिकता देता है।

भारत के लिये नेबरहुड फर्स्ट/पड़ोस प्रथम नीति क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • आतंकवाद और अवैध प्रवास: भारत को अपने निकटतम पड़ोसियों से हथियारों और ड्रग्स की तस्करी सहित आतंकवाद एवं अवैध प्रवासन के खतरों का सामना करना पड़ता है।
    • बेहतर संबंध सीमा सुरक्षा अवसंरचना में सुधार कर सकते हैं और अवैध प्रवास के कारण जनसांख्यिकीय/जनांकीकीय परिवर्तनों की निगरानी कर सकते हैं।
  • चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध: चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं, विशेषकर पाकिस्तान से संबद्ध आतंकवाद के कारण।
    • क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय संगठनों में शामिल होने से आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया जा सकता है और पड़ोस प्रथम नीति के तहत आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एक साझा मंच बनाया जा सकता है।
  • सीमा सुरक्षा अवसंरचना में निवेश: सीमा सुरक्षा अवसंरचना में कमी है और सीमा क्षेत्रों को स्थिर एवं विकसित करने की आवश्यकता है।
    • सीमा पार सड़कों, रेलवे और बंदरगाहों जैसे बेहतर कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे तथा ऐसे बुनियादी ढाँचे के लिये एक क्षेत्रीय विकास निधि का पता लगाना।
  • ऋण व्यवस्था (LOC) परियोजनाओं की निगरानी: पड़ोसी देशों के लिये भारत की LOC में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वैश्विक सॉफ्ट लेंडिंग का 50% हिस्सा उन्हें दिया जा रहा है।
    • यह क्षेत्र में भारत के प्रभाव को बढ़ाता है, भारतीय फर्मों की उपस्थिति का विस्तार करता है और प्राप्तकर्त्ता देशों के साथ आर्थिक संबंध बनाता है।
  • रक्षा और समुद्री सुरक्षा: रक्षा सहयोग महत्त्वपूर्ण है, जिसमें विभिन्न पड़ोसी राष्ट्रों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किये जाते हैं।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास: पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास पड़ोस प्रथम और एक्ट ईस्ट पॉलिसी जैसी नीतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • पर्यटन को बढ़ावा: भारत मालदीव और बांग्लादेश के लिये पर्यटकों का एक प्रमुख स्रोत है तथा नेपाली धार्मिक पर्यटन के लिये एक गंतव्य है। 
    • पर्यटन सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, जिससे भारतीय संस्कृति और व्यवसायों में रुचि बढ़ सकती है, जिससे भारतीय सांस्कृतिक उत्पादों एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
  • बहुपक्षीय संगठन: पड़ोसियों के साथ भारत का जुड़ाव SAARC और BIMSTEC जैसे क्षेत्रीय तंत्रों द्वारा संचालित होता है। 
    • दोनों भारत को दक्षिण एशिया में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को स्थापित करने और क्षेत्र में अन्य प्रमुख शक्तियों के प्रभाव को संतुलित करने में मदद करते हैं।

अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सीमा विवाद: सीमाओं पर मतभेद, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ, तनाव एवं संघर्ष का कारण बनते हैं। 
    • दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव और पाकिस्तान के साथ उसके घनिष्ठ संबंध सामरिक चुनौतियों का कारण हैं।
  • आतंकवाद: पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे विभिन्न आतंकवादी समूहों को लगातार समर्थन, सुरक्षित पनाह तथा धन मुहैया कराया है, जिन्होंने भारत में हमले किये हैं।
  • अवैध प्रवास: बांग्लादेश से भारत में अवैध प्रवासियों के आने से जनसांख्यिकीय और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • व्यापार असंतुलन: पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसियों के साथ आर्थिक मुद्दे एवं व्यापार बाधाएँ संबंधों को प्रभावित करती हैं।
    • व्यापार प्रतिबंधों और शुल्कों से संबंधित मुद्दों ने प्रायः कूटनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है।
  • जल विवाद: सिंधु और तीस्ता नदियों जैसे नदी जल संधि पर विवाद क्रमशः पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के साथ संबंधों को खराब करने का कारण रहे हैं।
  • आंतरिक संघर्ष: नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता या विवाद द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते हैं।
  • राजनयिक संबंध: श्रीलंका में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार और म्याँमार सरकार पर भारत के रुख जैसे मुद्दे तनाव उत्पन्न करते हैं। 
  • पर्यावरण संबंधी मुद्दे: प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय समस्याओं (जैसे- बांग्लादेश में बाढ़) के लिये संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता होती है जिससे संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भूटान की BBIN और पर्यटन के कारण उसकी नाज़ुक पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंताएँ।
  • क्षेत्रीय सहयोग: SAARC और BIMSTEC जैसे क्षेत्रीय संगठनों के भीतर मतभेद प्रभावी सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।

पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिये भारत की पहल

आगे की राह

  • राजनयिक जुड़ाव को मज़बूत करना: मुद्दों को संबोधित करने और हल करने के लिये नियमित राजनयिक संवाद तथा उच्च स्तरीय बैठकें स्थापित करना एवं उसे बनाए रखना।
    • विवादों को सुलझाने के लिये संयुक्त समितियों और मध्यस्थता पैनलों जैसे तंत्रों का विकास तथा संस्थागतकरण करना।
  • आर्थिक सहयोग बढ़ाना: निष्पक्ष व्यापार समझौतों पर वार्ता करना और उन्हें लागू करना जो असंतुलनों को दूर करें तथा पारस्परिक लाभ को बढ़ावा दें।
    • कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण में सुधार के लिये सड़क, रेलवे तथा ऊर्जा गलियारों पर सहयोग करना।
  • सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना: आतंकवाद तथा अवैध प्रवास जैसे आम खतरों से निपटने के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों पर समन्वय करना।
    • संयुक्त कार्य बल और खुफिया-साझाकरण तंत्र स्थापित करना।
  • लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा देना: लोगों के बीच आपसी समझ और सद्भावना बनाने के लिये शैक्षिक तथा पर्यटन पहलों को बढ़ाना
  • पर्यावरण और मानवीय मुद्दों को संबोधित करना: संयुक्त प्रयासों तथा क्षेत्रीय योजनाओं का उपयोग करके प्राकृतिक आपदाओं एवं पर्यावरणीय समस्याओं को समन्वित करना। संकट के समय में मानवीय सहायता व समर्थन प्रदान करना, सद्भावना और सहयोग को बढ़ावा देना।
  • संयुक्त प्रयासों और क्षेत्रीय योजनाओं का उपयोग करके प्राकृतिक आपदाओं तथा पर्यावरणीय समस्याओं पर तालमेल बिठाना।
  • क्षेत्रीय संगठनों को मज़बूत बनाना: क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान तथा निर्णय लेने और कार्यान्वयन के लिये उनके तंत्र में सुधार करने हेतु सार्क एवं बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय संगठनों में सक्रिय रूप से भाग लेना।
  • आंतरिक और बाह्य कारकों पर ध्यान देना: सुनिश्चित करना कि घरेलू नीतियों का पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
    • ऐसी संतुलित नीतियों के लिये प्रयास करना जो गुजराल सिद्धांत के अनुरूप घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों के प्रभावों पर विचार करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के पड़ोस में स्थिरता भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये  महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों रखती है? चर्चा कीजिये।

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प्रश्न. "बहु-धार्मिक और बहु-जातीय समाज के रूप में भारत की विविध प्रकृति, पड़ोस में दिख रहे अतिवाद के संघात के प्रति निरापद नहीं है।" ऐसे वातावरण के लिये अपनाई जाने वाली रणनीतियों के साथ विवेचना कीजिये। (2014)