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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पारस्परिकता और गैर-पारस्परिकता

  • 16 Sep 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-पारस्परिकता विधियाँ, पारस्परिकता घटना, रडार सिस्टम, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग।

मेन्स के लिये:

पारस्परिकता से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये गैर-पारस्परिकता तरीके।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों ने ऐसे उपकरण विकसित किये हैं जो पारस्परिकता की घटना से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने हेतु पारस्परिकता के सिद्धांतों को तोड़ते हैं।

पारस्परिकता:

  • परिचय:
    • पारस्परिकता का अर्थ है कि यदि कोई सिग्नल एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक भेजा जाता है, तो उसे दूसरे बिंदु से पहले पर वापस भेज दिया जाता है।
      • उदाहरण के लिये जब आप किसी मित्र की तरफ टॉर्च की रोशनी करते हैं तो उसकी चमक वापस आप पर आ सकती है क्योंकि प्रकाश हवा के माध्यम से दोनों तरफ फैल सकता है।
    • हालाँकि ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ पारस्परिकता अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं करती है।
      • उदाहरण के लिये जैसे कुछ फिल्मों में किसी व्यक्ति से कमरे में पूछताछ के दौरान उस कमरे में बैठा व्यक्ति पुलिस अधिकारी को नहीं देख सकता है, लेकिन पुलिस अधिकारी उसे देख सकता है।
      • इसके अलावा अँधेरे में स्ट्रीटलाइट के नीचे खड़े व्यक्ति को देखा जा सकता है, लेकिन अँधेरे में खड़ा व्यक्ति उसे नहीं देख सकता।
  • अनुप्रयोग:
    • एंटीना परीक्षण: पारस्परिकता एंटीना परीक्षण को सरल बनाती है। विभिन्न दिशाओं में कई सिग्नल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय कोई एक सिग्नल को एंटीना में भेजा जा सकता है और देखा  सकता है कि यह किस तरह से इसे वापस संचारित करता है।
      • यह विभिन्न दिशाओं से सिग्नल प्राप्त करने की एंटीना की क्षमता को निर्धारित करने में सहायता करता है, जिसे इसके दूर-क्षेत्र पैटर्न के रूप में जाना जाता है।
    • रडार सिस्टम: इंजीनियर रडार सिस्टम का परीक्षण और संचालन करने हेतु पारस्परिकता का उपयोग करते हैं। रडार एंटेना सिग्नल कैसे भेजते और प्राप्त करते हैं, इसका अध्ययन करके वे सिस्टम के प्रदर्शन तथा सटीकता में सुधार कर सकते हैं।
      • रडार एक विद्युत चुंबकीय सेंसर है जिसका उपयोग काफी दूरी पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का पता लगाने, ट्रैकिंग और पहचान के लिये किया जाता है।
    • सोनार सिस्टम: सोनार तकनीक, जिसका उपयोग जल के अंदर पता लगाने और नेविगेशन के लिये किया जाता है, में पारस्परिकता सोनार उपकरणों के प्रदर्शन के परीक्षण तथा अनुकूलन में सहायता करती है।
    • भूकंपीय सर्वेक्षण: पारस्परिकता उपसतह संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये भू-विज्ञान और तेल अन्वेषण में उपयोग किये जाने वाले भूकंपीय सर्वेक्षण उपकरणों के परीक्षण तथा संचालन को सरल बनाता है।
    • मेडिकल इमेजिंग (MRI): MRI स्कैनर मानव शरीर की विस्तृत चिकित्सा छवियाँ बनाने के लिये सिग्नल भेजने और प्राप्त करने हेतु पारस्परिकता सिद्धांतों का उपयोग करते हैं।

पारस्परिकता की चुनौतियाँ: 

  • जासूसी और सूचना सुरक्षा:
    • पारस्परिकता का अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति लक्ष्य से सिग्नल प्राप्त कर सकता है, तो उसका अपना उपकरण अनजाने में सिग्नल प्रसारित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से उसके स्थान या उद्देश्य का पता लगाया जा सकता है।
  •  बैकरिफ्लेक्शन : 
    • सिग्नल ट्रांसमिशन के लिये उच्च-शक्ति वाले लेज़रों को डिज़ाइन करते समय ट्रांसमिशन लाइन में खामियाँ हानिकारक बैकरिफ्लेक्शन का कारण बन सकती हैं। पारस्परिकता निर्देश देती है कि ये बैकरिफ्लेक्शन लेज़र में फिर से प्रवेश कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से क्षति या हस्तक्षेप हो सकता है।
    • संचार प्रणालियों में पारस्परिकता के कारण मज़बूत बैक-रिफ्लेक्शन हो सकता है, जिससे हस्तक्षेप और सिग्नल का क्षरण हो सकता है।
      • संचार नेटवर्क की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये इन बैक-रिफ्लेक्शन को प्रबंधित करना आवश्यक है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये सिग्नल प्रवर्द्धन:
    • क्वांटम कंप्यूटर अत्यंत संवेदनशील क्विबिट का उपयोग करते हैं जिन्हें बहुत कम तापमान पर बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
    • उनकी क्वांटम अवस्थाओं को समझने के लिये संकेतों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाना चाहिये।
    • हालाँकि पारस्परिकता, शोर या अवांछित इंटरैक्शन को शुरू किये बिना कुशल और नियंत्रित सिग्नल प्रवर्द्धन प्राप्त करने में चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
  • लघुकरण:
    • जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी नैनोमीटर और माइक्रोमीटर पैमाने पर लघुकरण की ओर बढ़ती है, तेज़ी से सिग्नल दक्षता एवं नियंत्रण सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता जाता है। सेल्फ-ड्राइविंग कारों में जहाँ विभिन्न सिग्नलों की निगरानी सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, पारस्परिक सिग्नल इंटरैक्शन की जटिलताओं को प्रबंधित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।

पारस्परिकता से संबंधित चुनौतियों पर नियंत्रण के तरीके:

  • चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिकता:
    • वैज्ञानिकों ने चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिक उपकरण विकसित किये हैं, जिसमें वेव प्लेट और फैराडे रोटेटर जैसे घटक शामिल हैं।
      • .फैराडे रोटेटर, एक चुंबकीय सामग्री का उपयोग करके तरंगों को एक दिशा में पारित करने की अनुमति देता है लेकिन उन्हें विपरीत दिशा में अवरुद्ध कर देता है, जिससे पारस्परिकता का सिद्धांत टूट जाता है।
  • मॉड्यूलेशन:
    • मॉड्यूलेशन में माध्यम के कुछ मापदंडों को समय या स्थान में निरंतर परिवर्तन शामिल है।
    • माध्यम के गुणों में परिवर्तन करके वैज्ञानिक तरंग संचरण को नियंत्रित कर सकते हैं और सिग्नल रूटिंग, संचार तथा हस्तक्षेप से संबंधित चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
    • यह विधि विभिन्न परिस्थितियों में संकेतों के प्रबंधन में लचीलापन प्रदान करती है।
  • अरैखिकता:
    • अरैखिकता में माध्यम के गुणों को आने वाले सिग्नल की शक्ति पर निर्भर करना शामिल है, जो बदले में, सिग्नल के प्रसार की दिशा पर निर्भर करता है।
    • यह दृष्टिकोण वैज्ञानिकों को माध्यम की अरेखीय प्रतिक्रिया में हेर-फेर करके सिग्नल ट्रांसमिशन को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। यह गैर-पारस्परिकता प्राप्त करने और सिग्नल इंटरैक्शन को नियंत्रित करने का एक तरीका प्रदान करता है।
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