जैव विविधता और पर्यावरण
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024
- 15 Oct 2024
- 16 min read
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF), लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024, ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (ZSL), टिपिंग पॉइंट, ब्राज़ीलियन अटलांटिक फॉरेस्ट, सतत् विकास लक्ष्य, आर्कटिक सर्कल, प्रदूषण। मुख्य परीक्षा के लिये:जैवविविधता के समक्ष खतरे और धारणीय पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने हेतु सुझाव। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, केवल 50 वर्षों (1970-2020) में निगरानी की गई वन्यजीव आबादी के औसत आकार में 73% की गिरावट आई है।
- सबसे अधिक गिरावट मीठे जल के पारिस्थितिकी तंत्रों (85%) में दर्ज की गई, उसके बाद स्थलीय (69%) और समुद्री (56%) पारिस्थितिकी तंत्र का स्थान रहा।
विश्व वन्यजीव प्रकृति कोष
- यह विश्व का अग्रणी संरक्षण संगठन है और 100 से अधिक देशों में कार्यरत है।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विटजरलैंड में है।
- इसका मिशन प्रकृति का संरक्षण करना और पृथ्वी पर जीवन की विविधता के समक्ष खतरों को कम करना है।
- WWF विश्व भर के लोगों के साथ हर स्तर पर सहयोग करता है ताकि ऐसे नवोन्मेषी समाधान विकसित किये जा सकें जिससे समुदायों, वन्यजीवों एवं उनके निवास स्थानों की रक्षा हो सके।
- वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (जिसे सामान्यतः WWF-इंडिया के नाम से जाना जाता है) की स्थापना वर्ष 1969 में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में की गई थी।
- यह एक स्वायत्त संरचना के माध्यम से कार्य करता है जिसका सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है तथा इसके कार्यालय पूरे भारत में फैले हुए हैं।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट क्या है और इसके प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- परिचय:
- WWF द्वारा वन्यजीव आबादी में औसत रुझानों को ट्रैक करने के लिये लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) का उपयोग किया जाता है। इसमें समय के साथ प्रजातियों की आबादी के आकार में होने वाले व्यापक बदलावों पर नज़र रखी जाती है।
- ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (ZSL) द्वारा जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स में वर्ष 1970 से 2020 तक 5,495 प्रजातियों की लगभग 35,000 कशेरुकी आबादी की निगरानी की गई है।
- यह विलुप्त होने के जोखिमों के संदर्भ में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करता है और पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य एवं दक्षता का मूल्यांकन करने में भी मदद करता है।
- WWF द्वारा वन्यजीव आबादी में औसत रुझानों को ट्रैक करने के लिये लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) का उपयोग किया जाता है। इसमें समय के साथ प्रजातियों की आबादी के आकार में होने वाले व्यापक बदलावों पर नज़र रखी जाती है।
- मुख्य निष्कर्ष:
- जनसंख्या में उल्लेखनीय गिरावट: निगरानी किये गये वन्यजीवों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (95%), अफ्रीका (76%) एवं एशिया-प्रशांत (60%) तथा मीठे जल के पारिस्थितिकी तंत्रों (85%) में दर्ज की गई है।
- वन्यजीवों के लिये प्राथमिक खतरे: आवास की हानि और क्षरण को विश्व भर में वन्यजीव आबादी के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया गया है इसके बाद अतिदोहन, आक्रामक प्रजातियों और रोग को शामिल किया गया है।
- पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक: वन्यजीव आबादी में गिरावट, विलुप्त होने के बढ़ते जोखिम और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र की हानि को प्रारंभिक चेतावनी संकेतक के रूप में देखा जा सकता है।
- क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र काफी अधिक संवेदनशील होने के साथ अपरिवर्तनीय परिवर्तन की ओर ले जाते हैं।
- उदाहरण के लिये, ब्राज़ील के अटलांटिक वन में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि बड़े फल खाने वाले जानवरों की कमी के कारण बड़े बीज वाले वृक्षों के बीजों का फैलाव कम हो गया है, जिससे कार्बन भंडारण प्रभावित हुआ है।
- WWF ने चेतावनी दी है कि इस घटना से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के वनों में 2-12% कार्बन भंडारण की हानि हो सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के बीच उनकी कार्बन भंडारण क्षमता कम हो जाएगी।
- क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र की भेद्यता: वर्ष 2030 तक प्रकृति को पुनःस्थापित करने के लिये वैश्विक समझौते और समाधान मौज़ूद हैं, लेकिन अभी तक प्रगति सीमित रही है, तथा तत्परता का अभाव रहा।
- वर्ष 2030 के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों में से आधे से अधिक के अपने लक्ष्य प्राप्त करने की संभावना नहीं है, तथा 30% लक्ष्य पूर्व में ही प्राप्त नहीं कर पाए हैं या उनकी स्थिति वर्ष 2015 की आधार स्तर से भी बदतर है।
- आर्थिक प्रभाव: वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक (55%) भाग मध्यम या अत्यधिक रूप से प्रकृति और उसकी सेवाओं पर निर्भर है।
- रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि भारत के आहार मॉडल को विश्व भर में अपनाया गया तो वर्ष 2050 तक विश्व को खाद्यान्न उत्पादन के लिये पृथ्वी के केवल 0.84 भाग की आवश्यकता होगी।
- जैव विविधता के लिये संकट:
- पर्यावास क्षरण और हानि: वनोन्मूलन, शहरीकरण और कृषि विस्तार आवास विनष्ट के प्रमुख कारण हैं। ये गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को खंडित करती हैं, जिससे प्रजातियों के पास जीवित रहने के लिये न्यूनतम स्थान और संसाधन अधिशेष रहते हैं।
- सैक्रामेंटो नदी में शीतकालीन चिनूक सैल्मन की आबादी वर्ष 1950 और वर्ष 2020 के बीच 88% कम हो गई, जिसका मुख्य कारण बाँधों द्वारा उनके प्रवासी मार्गों को बाधित करना था।
- अत्यधिक दोहन: वाणिज्यिक प्रयोजनों हेतु अत्यधिक शिकार, मत्स्याग्रह और लकड़ी काटना, वन्यजीवों की आबादी को उनकी आपूर्ति से पूर्व ही तेजी से कम कर रहा है, जिससे विभिन्न प्रजातियाँ विलुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं।
- अफ्रीका में, हाथीदाँत के व्यापार के लिये अवैध शिकार के कारण वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक मिन्केबे राष्ट्रीय उद्यान में वन्य हाथियों की आबादी में 78-81% की कमी आई है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: मनुष्यों द्वारा लाई गई गैर-देशी प्रजातियाँ प्रायः संसाधनों के लिये स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र अस्थिर हो जाता है और जैवविविधता कम हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन: तापमान वृद्धि, बदलते जलवायु पैटर्न और चरम मौसमी घटनाएँ पर्यावासों में बदलाव कर रही हैं, जिससे उन प्रजातियों को खतरा हो रहा है जो शीघ्र अनुकूलन नहीं कर सकती हैं।
- वनाग्नि की अवधि लंबी होती जा रही है, तथा अत्यधिक आग की घटनाएँ अधिक देखने को मिल रही हैं, यहाँ तक कि आर्कटिक सर्कल तक भी पहुँच रही हैं।
- प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक प्रदूषण और कृषि अपवाह ने पारिस्थितिक तंत्र को दूषित कर दिया है, वन्य जीवन को विषाक्त कर दिया है और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के संतुलन को बिगाड़ दिया है।
- क्रिटिकल टिपिंग प्वाइंट्स: ये पारिस्थितिक तंत्रों में अपरिवर्तन को संदर्भित करते हैं, जिनके स्तर में एक बार बदलाव होने पर पारिस्थितिक तंत्रों में परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
- प्रवाल भित्तियों का विरंजन: प्रवाल भित्तियों के बड़े पैमाने पर नष्ट होने से मत्स्य पालन और तटीय सुरक्षा नष्ट हो सकती है, जिससे लाखों लोग प्रभावित होंगे।
- अमेज़न वर्षावन: निरंतर वनोन्मूलन से वैश्विक जलवायु पैटर्न बाधित हो सकता है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित हो सकता है तथा जलवायु परिवर्तन तीव्र हो सकता है।
- ग्रीनलैंड एवं अंटार्कटिक की बर्फ का पिघलना: हिम परतों के पिघलने से समुद्र का स्तर काफी बढ़ जाएगा, जिसका वैश्विक स्तर पर तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ेगा।
- महासागरीय परिसंचरण: महासागरीय धाराओं के पतन से यूरोप और उत्तरी अमेरिका की जलवायु में परिवर्तन हो सकता है।
- पर्माफ्रॉस्ट पिघलना: वृहद स्तर पर पिघलने से भारी मात्रा में मीथेन और कार्बन उत्सर्जित हो सकता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में तीव्रता आएगी।
- पर्यावास क्षरण और हानि: वनोन्मूलन, शहरीकरण और कृषि विस्तार आवास विनष्ट के प्रमुख कारण हैं। ये गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को खंडित करती हैं, जिससे प्रजातियों के पास जीवित रहने के लिये न्यूनतम स्थान और संसाधन अधिशेष रहते हैं।
जैवविविधता के संरक्षण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- परस्पर विरोधी प्राथमिकताएँ: आर्थिक विकास के साथ संरक्षण को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से विकासशील देशों में जहाँ अल्पकालिक आर्थिक लाभ दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता पर प्राथमिकता अधिग्रहीत कर लेते हैं।
- संसाधन आवंटन: सीमित वित्तीय संसाधन और प्रतिस्पर्द्धी बज़ट संबंधी प्राथमिकताओं के कारण सरकारों के लिये सामाजिक आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए बड़े पैमाने पर जैवविविधता संरक्षण प्रयासों में निवेश करना कठिन हो जाता है।
- कृषि विस्तार: खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करना पर्यावास संरक्षण के विपरीत हो सकता है, क्योंकि कृषि से जैवविविधता हॉटस्पॉट वाले क्षेत्र में अतिक्रमण हो सकता है।
- ऊर्जा परिवर्तन में समस्या: नवकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव से भूमि-उपयोग में परिवर्तन (जैसे, सौर फार्म, पवन टर्बाइन) के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आवश्यकताओं के बीच संतुलन बिगड़ सकता है।
- नीति और प्रवर्तन में अंतराल: वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कमज़ोर संस्थागत ढाँचे और पर्यावरणीय नियमों का असंगत प्रवर्तन प्रभावी जैवविविधता संरक्षण में बाधा डालता है, जिससे अस्थिर प्रथाओं को अनियंत्रित रूप से जारी रहने का मौका मिलता है।
आगे की राह
- संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना: संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करना, क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना और संरक्षण प्रयासों में स्वदेशी लोगों का समर्थन करके संरक्षण पहलों की प्रभावशीलता को बढ़ाना और उसमें सुधार करना।
- खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन: सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाना, खाद्य अपशिष्ट को कम करना, तथा जैवविविधता पर खाद्य उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये पौध-आधारित आहार को बढ़ावा देना।
- ऊर्जा संक्रमण: पारिस्थितिकी तंत्र की न्यूनतम क्षति सुनिश्चित करते हुए, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करते हुए नवकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बदलाव को तेज करना।
- वित्त प्रणाली में सुधार: वित्तीय निवेश को हानिकारक उद्योगों से हटाकर प्रकृति-सकारात्मक और संधारणीय गतिविधियों की ओर पुनर्निर्देशित करना, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभ सुनिश्चित हो सके।
- वैश्विक सहयोग: वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये जलवायु, प्रकृति और विकास नीतियों को संरेखित करते हुए जैवविविधता संरक्षण पर मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: जैवविविधता के लिये प्रमुख संकटों पर चर्चा कीजिये और भावी पीढ़ियों के लिये सतत् पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिये परिवर्तनकारी समाधान सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मुख्य:प्रश्न. अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के 'हाँ’ या नहीं' की अवधारणा की विवेचना कीजिये। (2013) |