असमानता और धर्मार्थ संगठनों की भूमिका | 11 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:केयर इकोनॉमी, LPG सुधार, विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), सतत् विकास लक्ष्य 10 मेन्स के लिये:भारत में आर्थिक असमानता, असमानता के निवारण में परोपकार की भूमिका, धन पुनर्वितरण में सरकार की भूमिका |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वॉरेन बफेट (वर्तमान में सबसे बड़ा निवेशक) ने 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक दान दिया है और उनका विश्वास है कि धन का उपयोग असमानता को बढ़ावा देने हेतु नहीं बल्कि अवसरों के समकरण हेतु किया जाना चाहिये।
- उनका यह दर्शन भाग्य समतावाद से मेल खाता है और असमानता को दूर करने में धर्मार्थ संगठनों की भूमिका को चर्चा का विषय बनाता है।
नोट: एक धर्मार्थ संगठन एक ऐसा संगठन होता है जिसका प्राथमिक उद्देश्य परोपकार और सामाजिक कल्याण (जैसे लोक हित या लोक कल्याण के लिये शैक्षिक, धार्मिक या अन्य गतिविधियाँ) हैं।
बफेट का दर्शन भाग्य समतावाद से किस प्रकार मेल खाता है?
- भाग्य समतावाद: वॉरेन बफेट का दर्शन भाग्य समतावाद से मेल खाता है, जिसके अनुसार अनपेक्षित परिस्थितियों जैसे- जन्मस्थान या सामाजिक-आर्थिक स्थिति से उत्पन्न असमानताएँ अन्यायपूर्ण हैं और उन्हें कम किया जाना चाहिये।
- बफेट अपनी सफलता का श्रेय व्यक्तिगत प्रयास और संरचनात्मक लाभ, जैसे कि समृद्ध अमेरिकी अर्थव्यवस्था में श्वेत पुरुष के रूप में जन्म लेना, को देते हैं और उनका विश्वास है कि उन्हें ये अवसर "उचित समय पर उचित स्थान" पर होने से प्राप्त हुए।
- शोधकर्त्ता इस मत का समर्थन करते हुए स्पष्ट करते हैं कि जन्मस्थान और राष्ट्रीय आर्थिक स्थितियों से व्यक्ति की धन अर्जन क्षमता महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती है।
- नैतिक उत्तरदायित्व के रूप में परोपकार: परोपकार से, भाग्य समतावाद के व्यावहारिक अनुप्रयोग के रूप में, अवसरों को समान बनाने के हेतु संसाधनों का पुनर्वितरण होता है।
- पीढ़ियों के बीच धन के संचय होने से असमानता बनी रहती है और मेरिटोक्रेसी की उपेक्षा होती है। वंचितों के लिये अवसर सर्जित करने के लिये अधिशेष धन का उपयोग करने से सामाजिक परिस्थितियों में निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।
किन कारकों के कारण असमानता बढ़ती है?
- आर्थिक कारक:
- नवउदारवादी नीतियाँ: 1980 के दशक से विनियमन, निजीकरण और राज्य के हस्तक्षेप में कमी के कारण धन का एक निश्चित अभिजात वर्ग के पास संकेद्रण हुआ, जिससे बहुसंख्यक लोगों का वेतन स्थिर बना रहा।
- हालाँकि भारत में, एल.पी.जी. (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) सुधारों से विकास को बढ़ावा मिला है लेकिन इसके साथ ही धन का संकेद्रण और वेतन में स्थिरता भी आई है।
- 'विश्व असमानता रिपोर्ट 2022' भारत की अत्यधिक असमानता को दर्शाती है, जिसमें शीर्ष 10% और 1% के पास राष्ट्रीय आय का 57% और 22% हिस्सा है, जबकि निम्नतम 50% वर्ग का हिस्सा मात्र 13% है।
- विश्व स्तर पर 71% जनसंख्या ऐसे देशों में रहती है जहाँ असमानता बढ़ती जा रही है।
- हालाँकि भारत में, एल.पी.जी. (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) सुधारों से विकास को बढ़ावा मिला है लेकिन इसके साथ ही धन का संकेद्रण और वेतन में स्थिरता भी आई है।
- एकाधिकार: कुछ निगमों के प्रभुत्व से प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ को अधिक लाभ मिलता है तथा अन्य के लिये अवसर सीमित हो जाते हैं।
- अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों ने लगभग एकाधिकारवादी शक्ति के माध्यम से महत्त्वपूर्ण संपत्ति अर्जित की है, जो प्राय: निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को कमज़ोर करती है।
- वित्तीयकरण: वित्तीय बाज़ारों में वृद्धि से निवेशकों और शेयरधारकों को लाभ होता है, जबकि वेतनभोगियों को दरकिनार कर दिया जाता है।
- वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद से अरबपतियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गयी है।
- सबसे अमीर लोगों की बढ़ती आय असमानता को बढ़ाती है। वर्ष 2018 में 26 सबसे अमीर लोगों के पास सबसे गरीब 3.8 बिलियन (वैश्विक आबादी का आधा हिस्सा) के बराबर संपत्ति थी।
- नवउदारवादी नीतियाँ: 1980 के दशक से विनियमन, निजीकरण और राज्य के हस्तक्षेप में कमी के कारण धन का एक निश्चित अभिजात वर्ग के पास संकेद्रण हुआ, जिससे बहुसंख्यक लोगों का वेतन स्थिर बना रहा।
- तकनीकी कारक: तकनीकी प्रगति से उच्च कुशल श्रमिकों को लाभ होता है तथा कम कुशल श्रमिकों को विस्थापित होना पड़ता है। प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक सीमित पहुँच हाशिए पर पड़े समुदायों के लिये अवसरों को सीमित करती है।
- सामाजिक कारक: महिलाओं को वेतन में अंतर, सीमित नेतृत्व की भूमिका और अवैतनिक देखभाल कार्य के भारी बोझ का सामना करना पड़ता है।
- अल्पसंख्यक समूहों को रोज़गार में नस्लीय और जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- भारत में जाति, धर्म और वर्ग पदानुक्रम हाशिए पर पड़े समूहों के लिये ऊपर की ओर बढ़ने में बाधा डालते हैं। दिव्यांग व्यक्तियों को भेदभाव, सीमित नौकरी के अवसरों और उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागतों का सामना करना पड़ता है।
- स्वास्थ्य असमानताएँ: सीमित स्वास्थ्य देखभाल पहुँच, दीर्घकालिक बीमारी और कुपोषण उत्पादकता और विकास में बाधा डालते हैं, तथा निम्न आय एवं हाशिए पर पड़े समुदायों में गरीबी को कायम रखते हैं।
- शासन: कराधान, कल्याण और बाज़ार विनियमन पर नीतिगत विकल्प धन वितरण को आकार देते हैं। भ्रष्टाचार संसाधनों को अन्यत्र ले जाता है, जिससे असमानता बढ़ती है, जबकि कमजोर श्रम अधिकार मज़दूरी में स्थिरता और खराब कार्य स्थितियों में योगदान करते हैं।
- पर्यावरणीय कारक: जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी गरीब समुदायों को असमान रूप से नुकसान पहुँचाती है, जबकि पर्यावरणीय अन्याय हाशिए पर पड़े समूहों को प्रदूषण तथा खराब स्वास्थ्य परिणामों के प्रति संवेदनशील बना देता है।
असमानता को दूर करने में धर्मार्थ संगठन की क्या भूमिका है?
- तत्काल राहत प्रदान करना: धर्मार्थ संगठन गरीबी और असमानता से प्रभावित लोगों को भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं, अल्पकालिक राहत प्रदान करते हैं और जहाँ सरकारी कार्यक्रम या बाज़ार अपर्याप्त हैं, वहाँ अंतर को कम करने में मदद करते हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों को सहायता प्रदान करते हैं।
- सामाजिक जागरूकता और समर्थन: धर्मार्थ संगठन सामाजिक अन्याय के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, जनता को सूचित करने तथा सुधारों को प्रोत्साहित करने में मदद करके नीतिगत परिवर्तनों का समर्थन करते हैं।
- उदाहरण के लिये वे लैंगिक समानता, श्रमिकों के अधिकार या स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच हेतु अभियान चला सकते हैं तथा जनमत और नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
- धन पुनर्वितरण: धर्मार्थ संगठन गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसे असमानता को दूर करने वाले कार्यक्रमों को वित्तपोषित करके धन के पुनर्वितरण में मदद करते हैं।
- उदाहरणतः के लिये बिल और मेलिंडा गेट्स ने असमानता को कम करने हेतु वैश्विक स्वास्थ्य और शिक्षा पहलों के लिये अरबों डॉलर का दान दिया है।
- दीर्घकालिक विकास का समर्थन: कुछ धर्मार्थ संगठन दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे सतत् कृषि, सूक्ष्म ऋण और स्थानीय उद्यमिता, महिलाओं तथा समुदायों को सशक्त बनाना।
- टाटा ट्रस्ट्स की लखपति किसान पहल आदिवासी किसानों को स्थायी आजीविका बनाने के लिये उन्नत कृषि पद्धतियों से सशक्त बनाती है।
भारत में धर्मार्थ संगठनों को नियंत्रित करने वाले कानून
- आयकर अधिनियम, 1961: इसके तहत धर्मार्थ दान के लिये कर छूट प्रदान करने के साथ "धर्मार्थ उद्देश्यों" को परिभाषित किया गया है।
- भारतीय संविधान (अनुच्छेद 19(1)(c)): इसके तहत नागरिकों को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनीतिक संगठन या समूह बनाने की स्वतंत्रता दी गई है।
- भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882: इसके तहत निजी धर्मार्थ ट्रस्टों को नियंत्रित किया जाता है।
- सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860: इसके तहत धर्मार्थ सोसायटियों को विनियमित किया जाता है।
- कंपनी अधिनियम, 1956 (धारा 25): इसमें गैर-लाभकारी कंपनियों को धर्मार्थ संस्था के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010: इसके तहत धर्मार्थ संगठन विदेशी धन प्राप्त कर सकते हैं लेकिन उन्हें विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (FCRA) के तहत पंजीकृत होना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दान का उपयोग वैध एवं गैर-राजनीतिक उद्देश्यों के लिये किया जाए।
असमानता को दूर करने में धर्मार्थ संगठन की क्या सीमाएँ हैं?
- अस्थायी समाधान: धर्मार्थ संगठन तात्कालिक चुनौतियों को तो कम करते हैं लेकिन ये विनियमन एवं एकाधिकार प्रथाओं जैसे धन असमानता के मूल कारणों का समाधान नहीं कर पाते हैं।
- धनी लोगों द्वारा धन का संचय प्राय: प्रणालीगत नीतियों का परिणाम होता है। दान से स्थिर वेतन एवं निम्न कार्य स्थितियों जैसे मुद्दों को चुनौती नहीं मिलती है।
- व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भरता: धर्मार्थ संगठन धनी लोगों की स्वैच्छिकता पर निर्भर होते हैं, जिससे व्यापक असमानता को दूर करने में यह असंगत एवं अपर्याप्त हो जाता है।
- यथास्थिति बनी रहना: धर्मार्थ संगठन से असमानता के मूल कारणों का समाधान हुए बिना धनी लोगों को सामाजिक वैधता प्रदान करके यथास्थिति बनी रह सकती है। इससे संरचनात्मक सुधारों के लिये दबाव में कमी आने के साथ धनी लोगों के हितों को महत्त्व मिल सकता है जिससे मौजूदा शक्ति गतिशीलता बनी रहने से आवश्यक प्रणालीगत परिवर्तनों में देरी हो सकती है।
- जवाबदेहिता का अभाव: धर्मार्थ संगठनों को उनके कार्यक्रमों की प्रभावशीलता या असमानता को कम करने में उनकी पहल के दीर्घकालिक प्रभाव हेतु जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।
- धर्मार्थ दान का दुरुपयोग: कुछ व्यक्ति और संगठन करों से बचने के लिये ट्रस्टों को दिये गए दान का उपयोग करते हैं।
- धर्मार्थ ट्रस्टों को बड़ी मात्रा में दान देकर, ऐसे लोग इच्छित धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये धनराशि का प्रभावी ढंग से उपयोग किये बिना भी कर कटौती का दावा कर सकते हैं।
असमानता दूर करने के लिये भारत की पहल
आगे की राह
- राज्य-प्रेरित पुनर्वितरण: यह स्वीकार करते हुए कि धर्मार्थ संगठन प्रणालीगत परिवर्तन का स्थान नहीं ले सकते हैं, राज्य-प्रेरित पुनर्वितरण का समर्थन करना चाहिये।
- असमानता को कम करने के लिये कल्याणकारी कार्यक्रमों, सामाजिक सुरक्षा संजाल एवं सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले राज्य के नेतृत्व वाले प्रयासों (जो सतत् विकास लक्ष्य संख्या 10 (असमानताओं को कम करना) के अनुरूप हो) को महत्त्व देना चाहिये। एक कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत को इन पहलों का नेतृत्व करना चाहिये।
- आर्थिक नीतियों में सुधार: धन के पुनर्वितरण एवं सार्वजनिक वस्तुओं के वित्तपोषण हेतु प्रगतिशील कराधान प्रणाली लागू करनी चाहिये। एकाधिकार को रोकने तथा निष्पक्ष बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिये संबंधित कानूनों को मज़बूत करना चाहिये।
- धन असमानता के मूल कारणों (जैसे डीरेगुलेशन एवं नवउदारवादी आर्थिक नीतियों) पर ध्यान देना चाहिये।
- समानता एवं अवसर: संसाधनों, प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करने से इसमें मौजूद अंतराल को कम किया जा सकता है।
- कॉर्पोरेट प्रथाओं पर पुनर्विचार करना: श्रमिकों के लिये उच्च वेतन, बेहतर कार्य स्थितियाँ तथा उचित लाभ-साझाकरण को लागू किया जाना चाहिये।
- वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुधारों तथा गरीब देशों के लिये ऋण राहत के माध्यम से वैश्विक असमानता को दूर करने पर ध्यान देना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: असमानता को दूर करने में दान की सीमाओं पर चर्चा करते हुए बताइये कि क्या सरकारी नीतियों के माध्यम से धन पुनर्वितरण को धर्मार्थ दान पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये। |