डीरेगुलेशन एवं संवृद्धि हेतु भारत की रणनीति | 10 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:GDP, मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी, कोविड-19 महामारी, विश्व बैंक, चालू खाता घाटा, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विनिवेश, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, बौद्धिक संपदा अधिकार। मेन्स के लिये:सतत् आर्थिक विकास हेतु प्रमुख क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित अवसर एवं चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) डॉ. वी. अनंथा नागेश्वरन ने घोषणा की है कि वर्ष 2024-25 के आर्थिक सर्वेक्षण में डीरेगुलेशन प्रमुख विषय होगा।
- यह घोषणा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) की उत्पादकता बढ़ाने के क्रम में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित प्रतिबंधात्मक नियमों को आसान बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
नोट: डीरेगुलेशन का आशय उद्योगों या संबंधित क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है ताकि इसमें नए हितधारकों के प्रवेश को प्रोत्साहित करके प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के साथ बाज़ार की दक्षता में वृद्धि की जा सके।
- यह वर्ष 1991 के बाद शुरू किये गए आर्थिक सुधारों (LPG सुधार) का एक प्रमुख पहलू रहा है, जिससे देश अत्यधिक विनियमित एवं राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अधिक उदार तथा वैश्विक रूप से एकीकृत अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हुआ है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 1978 में भारत ने एयरलाइन विनियमन अधिनियम पारित किया, जिसके तहत एयरलाइन कंपनियों को अधिक नियंत्रण प्रदान किया गया जिससे इस उद्योग के परिदृश्य में बदलाव आया।
भारत की आर्थिक संवृद्धि हेतु प्रमुख लक्षित क्षेत्र कौन से हैं?
- संवृद्धि के उत्प्रेरक के रूप में डीरेगुलेशन: वर्ष 2024-25 के आर्थिक सर्वेक्षण में राज्य एवं स्थानीय स्तर पर डीरेगुलेशन को संवृद्धि के प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में रेखांकित किया गया है।
- महिलाओं के लिये "जोखिमपूर्ण" माने जाने वाले 118 व्यवसायों पर लगे पुराने प्रतिबंधों का हवाला देते हुए महिला श्रम शक्ति भागीदारी में सुधार लाने तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के क्रम में अधिक आर्थिक संभावनाओं के अवसर खोलने का आह्वान किया गया है।
- वेतन वृद्धि एवं उपभोग: CEA द्वारा वेतन स्थिरता पर प्रकाश डाला गया। इसमें विशेष रूप से संविदा कर्मचारियों पर बल दिया गया, जिनकी मुद्रास्फीति के साथ तालमेल रखने में विफलता के कारण क्रय शक्ति सीमित हो रही है। इसके साथ ही इस बात पर बल दिया गया कि कॉर्पोरेट मुनाफे में वृद्धि के बावजूद, वेतन असमानता बनी हुई है।
- आय को जीवन-यापन लागत के अनुरूप करने तथा मांग एवं आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के क्रम में कॉर्पोरेट वेतन संरचना में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- कार्यबल का अनौपचारिकीकरण: कोविड-19 महामारी ने नियमित रोज़गार से अनौपचारिक रोज़गार की ओर बदलाव को तेज कर दिया है, जिससे रोज़गार की सुरक्षा और लाभ कमज़ोर हो गए हैं। कंपनियों के लिये फायदेमंद होने के बावज़ूद, यह प्रवृत्ति श्रमिकों की बचत और निवेश करने की क्षमता को सीमित करके उपभोग एवं आर्थिक विकास को बाधित करती है।
- लघु एवं मध्यम उद्यम (SME): भारत का लघु एवं मध्यम उद्यम (SME) क्षेत्र आर्थिक वृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, मूलतः विनिर्माण क्षेत्र में। हालाँकि इसे "सूक्ष्म" श्रेणी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे संसाधनों और सहायता तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड से सबक लेते हुए भारत को SME में वृद्धि करनी चाहिये। एक जीवंत SME क्षेत्र भारत के विनिर्माण से सकल घरेलू उत्पाद में 25% भागीदारी के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
- रोज़गार सृजन और श्रम शक्ति भागीदारी: भारत को अपने बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिये वार्षिक रूप से लगभग 8 मिलियन रोज़गार सृजन की आवश्यकता है। CEA ने पूंजी और श्रम-गहन विकास के बीच संतुलन बनाने पर बल दिया, जिसमें निज़ी क्षेत्र की अहम भूमिका होगी।
- पहली बार नौकरी पर रखे गए लोगों के लिये नकद प्रोत्साहन और भविष्य निधि योगदान जैसी नीतियों का उद्देश्य रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये डीरेगुलेशन के क्या निहितार्थ हैं?
- निज़ी क्षेत्र के विकास को बढ़ावा: डीरेगुलेशन में सुस्तता से व्यवसायों को अधिक स्वायत्तता के साथ कार्य करने, नौकरशाही में विलंब को कम करने और तेज़ी से निर्णय लेने में सहायता मिलती है। इससे दूरसंचार, विमानन और आईटी जैसे उद्योगों का विकास हुआ है।
- नवप्रवर्तन और उद्यमिता: डीरेगुलेशन में सुस्तता से अनुपालन बोझ में कमी आई है, व्यवसाय को आसान बनाने में सहायता मिली है, जिससे स्टार्टअप और नवप्रवर्तन के लिये अनुकूल वातावरण तैयार हुआ है।
- डीरेगुलेशन के कारण उद्योगों के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में भी वृद्धि हुई है, जिससे आर्थिक सशक्तीकरण में योगदान मिला है।
- विदेशी निवेश का आकर्षण: विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर प्रतिबंध हटाकर, डीरेगुलेशन में ढील देने से भारत को वैश्विक निवेशकों के लिये एक पसंदीदा गंतव्य बनने में सहायता मिली है, जिससे पूंजी प्रवाह और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में वृद्धि हुई है।
- दक्षता वृद्धि और प्रतिस्पर्द्धा: एक विनियमन-मुक्त बाज़ार स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है, प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों पर बेहतर गुणवत्ता वाली वस्तुओं एवं सेवाओं को सुनिश्चित करता है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ मिलता है और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
LPG (उदारीकरण, निज़ीकरण, वैश्वीकरण) सुधार
- प्रधानमंत्री राव ने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर LPG सुधारों (उदारीकरण, निज़ीकरण और वैश्वीकरण) की शुरुआत की, जिन्हें संकट से उबरने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत की आर्थिक रणनीति की आधारशिला के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- उदारीकरण:
- नवीन व्यापार नीति: लाइसेंसिंग प्रक्रिया में सुधार करके और गैर-आवश्यक आयातों को निर्यात से जोड़कर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये आरंभ की गई।
- एक्जिम स्क्रिप्स (Exim Scrips): सरकार ने निर्यात सब्सिडी हटा दी और इसके बजाय निर्यातकों के लिये निर्यात के मूल्य के आधार पर व्यापार योग्य एक्जिम स्क्रिप्स की शुरुआत की। इस नीति ने आयात पर सरकारी स्वामित्व वाली फर्मों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया, जिससे निज़ी क्षेत्र को स्वतंत्र रूप से माल आयात करने में सक्षम बनाया गया।
- लाइसेंस राज का अंत: नवीन औद्योगिक नीति ने लाइसेंस राज को समाप्त कर दिया, एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम के प्रावधानों में ढील प्रदान की ताकि व्यापार पुनर्गठन और विलय को सुविधाजनक बनाया जा सके। इस नीति ने निवेश के स्तर की परवाह किये बगैर 18 उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी के लिये औद्योगिक लाइसेंसिंग को समाप्त कर दिया।
- निज़ीकरण:
- FDI संबंधी सुधार: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये 51% तक की स्वचालित स्वीकृति आरंभ की गई, जबकि पहले यह सीमा 40% थी।
- सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार पर प्रतिबंध: सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों तक सीमित किया गया।
- बाज़ार खोलना: इन परिवर्तनों से भारत में व्यापार करना आसान हो गया, जिससे बाद के वर्षों में विदेशी वस्तुओं और निवेशों में वृद्धि हुई।
- उदारीकरण:
- वैश्वीकरण:
- आर्थिक नीतियाँ: इन सुधारों का उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकृत करना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करना था।
- निर्यात का अभिवर्द्धन: भारतीय रुपए के विस्तृत अवमूल्यन और नई व्यापार नीतियों के फलस्वरूप भारतीय निर्यात वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो गया।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये डीरेगुलेशन का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक विकास का पुनरुत्थान:
- कोविड-19 महामारी से 2020 में भारत की अर्थव्यवस्था का गंभीर संकुचन शुरू हुआ। हालाँकि 2021 में GDP में 9% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई किंतु यह जुलाई-सितंबर वित्त वर्ष 25 में घटकर 5.4% हो गई है, जो RBI के 7% अनुमान से नीचे है।
- नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम कर और बाज़ार की शक्तियों को सशक्त बनाकर, डीरेगुलेशन से उद्यमशीलता, निवेश और नवाचार को बढ़ावा मिलता है, जिससे संधारणीय आर्थिक सुधार एवं विकास को बढ़ावा मिलता है।
- बेरोज़गारी और अल्परोज़गार की समस्या का समाधान:
- अप्रैल से जुलाई 2020 की अवधि में 1.8 करोड़ से अधिक वेतनभोगी रोज़गार का ह्रास हुआ जिससे महामारी के कारण बेरोज़गारी की स्थिति और गंभीर हो गई।
- व्यावसाय को सुकर बनाकर और निजी क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देकर डीरेगुलेशन से रोज़गार के अवसर सर्जित होते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।
- कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों का पुनरुत्थान:
- हाल में हुई नगण्य वृद्धि के बावजूद, कृषि क्षेत्र का, जिससे 50% से अधिक कार्यबल के रोज़गार का स्रोत, समग्र आर्थिक विकास के साथ तालमेल नहीं बन पाया है।
- सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान 1990-91 में 35% था जो वित्त वर्ष 23 में घटकर 15% हो गया है और इसकी वृद्धि दर 2022-23 में 4.7% से घटकर 2023-24 में 1.4% हो गई है।
- बुनियादी ढाँचे के अभाव की पूर्ति:
- विश्व बैंक के अनुसार, परिवहन, ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा में बुनियादी ढाँचे के गंभीर अभाव के साथ भारत में बुनियादी ढाँचे के अभाव का अनुमान 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- निजी निवेश भी कम बना हुआ है, जो 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 19.6% रहा और वित्त वर्ष 2020-21 में सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) में 14.5% की गिरावट आई।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि और भू-राजनीतिक तनाव:
- रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक तनावों से वैश्विक व्यापार बाधित हुआ है, जिसका प्रभाव वस्त्र और जूते जैसे क्षेत्रों पर पड़ा है, जहाँ निर्यात में कमी आई है।
- इसके अतिरिक्त, विश्वव्यापी उद्योग बनने की अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बावजूद, भारत का फार्मास्युटिकल क्षेत्र बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थता के कारण वैश्विक वृद्धि में पिछड़ गया है।
MSME क्षेत्र
- परिचय:
- MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) वे व्यवसाय हैं जो वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, प्रसंस्करण और संरक्षण में शामिल हैं।
- वर्गीकरण:
- इन्हें विनिर्माण हेतु संयंत्र और मशीनरी या सेवा उद्यमों के लिये उपकरणों में निवेश के साथ-साथ उनके वार्षिक आवर्त के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:
- भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान:
- रोज़गार, नवाचार, निर्यात और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के साथ MSME क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 45%, निर्यात में 40% तथा भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 37.54% है।
- MSME के अंतर्गत विनिर्माण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में 7.09% का योगदान है, जबकि सेवा क्षेत्र में इसका योगदान 30.50% है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तेज़ी लाने के लिये प्रमुख पहल क्या हैं?
डीरेगुलेशन को प्रभावी बनाने हेतु भारत क्या रणनीति अपना सकता है?
- PPP और प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना:
- डीरेगुलेशन को सफल एवं प्रभावी बनाने हेतु सरकार एवं निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि संबंधित सुधारों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किये जाने के साथ एकाधिकार को समाप्त करने एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित किया जा सके।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के साथ अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना:
- शासन में पारदर्शिता बढ़ाने, अनुपालन बोझ को कम करने तथा अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के क्रम में डिजिटल प्लेटफाॅर्म का उपयोग करना चाहिये। डिजिटल इंडिया पहल एवं व्यवसाय करने में सुलभता के तहत सिंगल-विंडो अनुमोदन प्रणाली को लागू किया जाना चाहिये।
- वित्तीय समावेशन को बढ़ावा तथा SME को समर्थन देना:
- बैंकिंग एवं ऋण सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाकर हाशिये पर स्थित समुदायों पर ध्यान दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही SME को बाज़ार की गतिशीलता के अनुकूल बनाना चाहिये। उदाहरण: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और स्टार्टअप इंडिया पहल।
- वैश्विक उदाहरणों से सीखना:
- स्थानीय संदर्भों के अनुसार वैश्विक स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने एवं विश्वास निर्माण के क्रम में सहभागी निर्णय प्रक्रियाओं में हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता है।
- सिंगापुर में डीरेगुलेशन से न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है बल्कि वित्तीय क्षेत्र, दूरसंचार, परिवहन एवं विद्युत क्षेत्र में सुधार होने से जीवन स्तर उन्नत हुआ है।
- क्षेत्र-विशिष्ट सुधार: क्षेत्र-विशिष्ट सुधारों के तहत वित्त, पर्यावरण एवं रक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में मज़बूत नियामक निगरानी सुनिश्चित करते हुए अद्वितीय चुनौतियों के समाधान पर बल देना चाहिये।
- उदाहरण के लिये रक्षा क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति देना, आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने के अनुरूप है लेकिन इसमें सुरक्षा हेतु कड़े नियमों की भी आवश्यकता है जबकि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) जवाबदेहिता बनाए रखने के साथ जोखिमों को कम करते हुए वित्तीय समाधान को सुव्यवस्थित करने पर केंद्रित है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत की उभरती अर्थव्यवस्था से संबंधित चुनौतियों एवं अवसरों पर चर्चा करते हुए सतत् एवं समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु प्रमुख क्षेत्रों की भूमिका पर प्रकाश डालिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्नः निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्य अर्थ होता है, कि (2013) (a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं। उत्तर: (c) मेन्स:Q. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |