भारत समुद्री विरासत सम्मेलन, 2024 | 21 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, सिंधु घाटी सभ्यता, रॉयल इंडियन नेवी, नौसेना दिवस, सागर माला कार्यक्रम मेन्स के लिये:भारत का समुद्री इतिहास एवं वैश्विक व्यापार में इसका योगदान, भारत के समुद्री क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत की समुद्री पहल |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रथम भारत समुद्री विरासत सम्मेलन (IMHC 2024) का आयोजन किया गया, जिसमें भारत की समुद्री विरासत और वैश्विक व्यापार में इसके योगदान पर प्रकाश डालने के साथ भविष्य के नवाचारों पर चर्चा की गई।
IMHC 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- विषय: "वैश्विक समुद्री इतिहास में भारत की स्थिति को समझना।"
- यह वैश्विक समुद्री व्यापार, संस्कृति और नवाचार में भारत के ऐतिहासिक तथा समकालीन योगदान पर केंद्रित है।
- मुख्य आकर्षण: इस सम्मेलन में भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित किया गया, जिसमें प्राचीन पोत निर्माण तकनीकों तथा नौवहन उपकरणों का प्रदर्शन किया गया, जो वैश्विक व्यापार नेटवर्क के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध को दर्शाता है।
- ग्रीस, इटली और यूनाइटेड किंगडम जैसे अग्रणी समुद्री राष्ट्रों ने इसमें भाग लिया तथा भारत की समुद्री विरासत के वैश्विक महत्त्व पर बल दिया।
- मुख्य आकर्षण केंद्र लोथल में बनने वाला राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) रहा, जिसमें पोत निर्माण तथा मनका निर्माण जैसी भारत की प्राचीन समुद्री तकनीकों का प्रदर्शन किया गया।
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC)
- NMHC का निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत ऐतिहासिक सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) स्थल लोथल, गुजरात में किया जा रहा है।
- इस परियोजना का लक्ष्य NMHC को विश्व के सबसे बड़े समुद्री परिसरों में से एक बनाना है जो अतीत, वर्तमान तथा भविष्य की समुद्री गतिविधियों को एक विश्व स्तरीय सुविधा में एकीकृत करेगा।
- NMHC परियोजना में 14 गैलरी वाला एक संग्रहालय, लोथल टाउन, एक ओपन एक्वेटिक गैलरी, लाइटहाउस संग्रहालय, कोस्टल स्टेट पवेलियन, इको रिसॉर्ट, थीम पार्क तथा एक समुद्री अनुसंधान संस्थान आदि शामिल होंगे।
भारत का समुद्री इतिहास क्या है?
- प्राचीन भारत:
- सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) (3300-1300 ई.पू.): भारत की समुद्री गतिविधियों को IVC से देखा जा सकता है।
- लोथल का ड्राई-डॉक (2400 ई.पू.) विश्व का पहला ज्ञात ड्राई-डॉक है, जो समुद्री क्षेत्र से संबंधित उन्नत ज्ञान का प्रतीक है।
- यहाँ से मिले साक्ष्य सिंधु घाटी एवं मेसोपोटामिया के बीच मज़बूत व्यापार का संकेत देते हैं।
- मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुहरों तथा आभूषणों की खोज, इन दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच व्यापक आदान-प्रदान पर प्रकाश डालती है।
- वैदिक काल (1500- 600 ई.पू.): ऋग्वेद सहित वैदिक साहित्य में नौकाओं तथा समुद्री यात्राओं का उल्लेख है, जिसमें समुद्र के देवता वरुण को समुद्री मार्गों का मार्गदर्शन करने के रूप में संदर्भित किया गया है।
- रामायण और महाभारत में पोत निर्माण तथा समुद्री यात्रा का वर्णन मिलता है।
- नंद और मौर्य (500 - 200 ईसा पूर्व): मगध साम्राज्य की नौसेना विश्व स्तर पर नौसेना का पहला दर्ज उदाहरण है।
- प्रथम मौर्य सम्राट, चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में एक नवाध्यक्ष (जहाजों के अधीक्षक) के नेतृत्व वाले जलमार्ग विभाग का उल्लेख किया है।
- सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका तक फैलाने के लिये समुद्री मार्गों का उपयोग किया, जिससे भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक प्रभाव और समृद्ध हुआ।
- सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) (3300-1300 ई.पू.): भारत की समुद्री गतिविधियों को IVC से देखा जा सकता है।
- सातवाहन राजवंश (200 ई.पू.-220 ई.): सातवाहनों ने रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार करके भारत के पूर्वी तट पर नियंत्रण किया।
- वे जहाज़ों के चित्र वाले सिक्के जारी करने वाले पहले भारतीय शासक थे।
- गुप्त साम्राज्य (320-550 ई.): गुप्त राजवंश ने भारत के स्वर्ण युग को चिह्नित किया, जिसमें समृद्धि, सांस्कृतिक विकास और खगोल विज्ञान तथा नेविगेशन में उन्नति हुई, जैसा कि चीनी यात्री फा-हियान एवं ह्वेन त्सांग ने उल्लेख किया है।
- आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा की गई खगोलीय प्रगति ने समुद्री नौवहन को बेहतर बनाया, जिससे सटीक यात्राएँ संभव हुईं। विभिन्न बंदरगाहों के खुलने से यूरोप तथा अफ्रीका के साथ समुद्री व्यापार पुनः आरंभ हो गया।
- दक्षिणी राजवंश:
- चोल (तीसरी शताब्दी - 13वीं शताब्दी): सुमात्रा, जावा, थाईलैंड, चीन के साथ व्यापक समुद्री व्यापार। बंदरगाह, शिपयार्ड, लाइटहाउस बनवाए।
- पांड्य: ये मोती की खेती पर नियंत्रण रखते थे तथा रोम एवं मिस्र के साथ व्यापार करते थे।
- चेर (12 वीं शताब्दी): ये यूनानियों और रोमनों के साथ व्यापार करते थे तथा मानसूनी पवनों का उपयोग करके टिंडिस (कोच्चि के पास) और मुजिरिस (कोच्चि के पास) से अरब बंदरगाहों तक यात्रा करते थे।
- मध्यकालीन भारत:
- अरब: 8वीं शताब्दी तक अरब प्रमुख समुद्री व्यापारियों के रूप में उभरे, जो भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते थे।
- इनके प्रभाव से हिंद महासागर के व्यापार मार्गों पर नियंत्रण में बदलाव आया।
- पुर्तगाली: 16 वीं शताब्दी में वास्को-डी-गामा (1460-1524) ने पुर्तगाल से भारत तक एक समुद्री मार्ग की खोज की; इन्होंने अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप का चक्कर लगाते हुए मई 1498 में केरल के कालीकट तक का सफर तय किया।
- इनके आगमन ने भारत के समुद्री इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया, जिससे पूर्वी अफ्रीका से लेकर मलेशिया और इंडोनेशियाई द्वीपों तक के तटीय और समुद्री समुदायों के बीच शांतिपूर्ण व्यापार बाधित हो गया।
- कालीकट, जो एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह था, के.ज़ेमोरिन का भूमि और समुद्री मार्ग व्यापार बहुत फल-फूल रहा था।
- पुर्तगालियों ने गोवा और कोचीन में गढ़ स्थापित करके व्यापार पर एकाधिकार करने की कोशिश की।
- भारतीय जल में यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा: 17वीं शताब्दी में भारतीय समुद्री व्यापार पर प्रभुत्व के लिये पुर्तगाली, डच, फ्राँसीसी और ब्रिटिश समेत यूरोपीय शक्तियों के बीच भयंकर प्रतिस्पर्द्धा देखी गई।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक विशेषाधिकार प्राप्त करके तथा भारतीय जल पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिये नौसैनिक शक्ति का लाभ उठाकर धीरे-धीरे प्रभुत्व प्राप्त कर लिया।
- अरब: 8वीं शताब्दी तक अरब प्रमुख समुद्री व्यापारियों के रूप में उभरे, जो भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते थे।
- स्वतंत्रता पूर्व:
- मराठा नौसेना प्रतिरोध: शिवाजी महाराज ने पश्चिमी तट पर यूरोपीय और मुगलों का सामना करने के लिये एक मज़बूत नौसेना का निर्माण किया। सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग जैसे तटीय किलों ने समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ किया।
- ब्रिटिश राज के अधीन समुद्री भारत: रॉयल इंडियन मरीन (RIM) का गठन वर्ष 1892 में किया गया था, बाद में वर्ष 1934 में इसका नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी (RIN) कर दिया गया।
- प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, RIN ने मध्य पूर्व, बर्मा और भूमध्य सागर में अनुरक्षण मिशन, गश्त और संयुक्त अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- ब्रिटिश राज ने वर्ष 1934 में औपचारिक रूप से नौसेना बल का नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी कर दिया, जिससे स्वतंत्रता के बाद इसके परिवर्तन की नींव रखी गई।
- स्वातंत्र्योत्तर काल (वर्ष 1947 - वर्तमान): स्वतंत्रता के साथ रॉयल इंडियन नेवी भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित हो गई। वर्ष 1950 में उपसर्ग "रॉयल" हटा दिया गया, और भारतीय नौसेना की स्थापना अशोक के चिह्न के साथ की गई।
- नौसेना का आदर्श वाक्य शं नो वरुणः (अर्थात् जल के देवता वरुण हमारे लिये मंगलकारी रहें) इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर करता है।
- वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी वर्ष 1958 में पहले भारतीय नौसेना प्रमुख बने।
- नौसेना ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1972 से 4 दिसंबर को ऑपरेशन ट्राइडेंट (1971 भारत-पाक युद्ध) की सफलता की स्मृति में नौसेना दिवस मनाया जाता है।
- भारतीय नौसेना में तीन कमान हैं, जिनमें से प्रत्येक एक फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के नियंत्रण में है, अर्थात् पश्चिमी (मुख्यालय- मुंबई), पूर्वी (विशाखापत्तनम) और दक्षिणी नौसेना कमान (कोच्चि)।
- आधुनिकीकरण के प्रयासों से भारतीय नौसेना एक ऐसे समुद्री बल में परिणत हुआ है, जिसकी क्षमताएँ हिंद महासागर क्षेत्र से आगे विस्तृत हैं।
भारत के समुद्री क्षेत्र का महत्त्व क्या है?
- भारत के समुद्री क्षेत्र की स्थिति:
- भारत विश्व में 16वाँ सबसे बड़ा समुद्री देश है।
- भारत टन भार की दृष्टि से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जहाज़ पुनर्चक्रणकर्ता है तथा शिपब्रेकिंग के क्षेत्र में वैश्विक बाज़ार में इसका योगदान 30% है एवं विश्व की सबसे बड़ी शिपब्रेकिंग की सुविधा गुजरात के अलंग में स्थित है।
- आर्थिक महत्त्व: भारत का समुद्री क्षेत्र इसके व्यापार और वाणिज्य का आधार है, जहाँ से मात्रा की दृष्टि से देश का लगभग 95% व्यापार और मूल्य की दृष्टि से 70% व्यापार संपन्न होता है।
- भारतीय बंदरगाहों से प्रतिवर्ष लगभग 1200 मिलियन टन माल का संचालन किया जाता है, जो इस क्षेत्र के आर्थिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
- विश्व बैंक की वर्ष 2023 की लॉजिस्टिक परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) रिपोर्ट के अनुसार, भारत "अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट" श्रेणी में वैश्विक स्तर पर 22 वें स्थान पर है, जो वर्ष 2014 के 44वें स्थान में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
- यह सुधार भारतीय बंदरगाहों के निष्पादन को रेखांकित करता है, जिनका कंटेनर टर्नअराउंड समय और ड्वेल समय जैसे परिचालन मापदंडों पर विश्व के अन्य प्रतिस्पर्द्धियों से बेहतर प्रदर्शन रहा।
- बंदरगाह से निर्यात-आयात, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, तटीय शिपिंग और क्रूज़ शिपिंग संपन्न होता है।
- वर्ष 2030 तक ग्लोबल ब्लू इकोनॉमी के 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की संभावना के साथ, भारत का समुद्री क्षेत्र विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में देश के उदय में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की ओर अग्रसर है।
भारत के समुद्री क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- पत्तन की क्षमता: भारत के बंदरगाहों की माल की बढ़ती मात्रा का वहन करने की क्षमता सीमित है।
- पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अनुसार 13 प्रमुख पत्तन और 200 से अधिक अप्रमुख पत्तन होने के बावजूद, इनमें से कई पोत की परिचालन क्षमता पूरी या उसके निकट है, जिसके कारण संकुलन और देरी की समस्या हो रही है।
- जटिल विनियमन: समुद्री क्षेत्र को नौवहन महानिदेशालय, समुद्री राज्य विकास परिषद और संयुक्त राष्ट्र समुद्री विधि अभिसमय (UNCLOS) जैसे निकायों द्वारा क्रियान्वित किये गए विनियमनों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे परिचालन दक्षता में बाधा उत्पन्न होती है।
- इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों में अवैध मत्स्यन, संसाधनों का असंतुलित दोहन, तथा समुद्री आवासों और जैवविविधता की रक्षा के लिये बेहतर विनियामक कार्यान्वयन की आवश्यकता शामिल है।
- नौसेना विस्तार और स्वदेशीकरण: हालाँकि भारत का लक्ष्य वर्ष 2035 तक नौसेना में 175 जहाज़ शामिल करने का है किंतु इसके निर्माण की गति, विशेष रूप से चीन के तेजी से जहाज निर्माण की तुलना में, और सीमित बजट रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
- प्रोजेक्ट 75-I जैसी परियोजनाओं में देरी तथा स्वदेशी परमाणु हमलावर पनडुब्बियों की आवश्यकता के साथ भारत में पनडुब्बियों की कमी है।
- तटीय सुरक्षा: भारत की विशाल तटरेखा आतंकवादी संगठन विस्फोटक हथियारों के आवागमन और मादक पदार्थों की तस्करी प्रति संवेदनशील है।
- उल्लेखनीय मामलों में वर्ष 1993 के मुंबई विस्फोट और 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले शामिल हैं, जो महत्त्वपूर्ण सुरक्षा खामियों को उजागर करते हैं।
समुद्री क्षेत्र से संबंधित भारत की पहल:
- जहाज़़ मरम्मत और पुनर्चक्रण मिशन
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री विवाद समाधान केंद्र
- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (सागर)
- सागर माला कार्यक्रम
- मैरीटाइम इंडिया विज़न, 2030
- समुद्री अमृतकाल विज़न 2047
आगे की राह:
- समुद्री पर्यटन को बढ़ावा देना: पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत तटीय सर्किटों के विकास जैसी तटीय पर्यटन पहलों को विकसित करने से सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाया जा सकता है।
- भारत आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये सतत् समुद्री संसाधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करके अपनी नीली अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहा है।
- कौशल विकास को बढ़ावा देना: समुद्री कौशल में प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करने से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है तथा रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संस्थाओं के साथ सहयोग करने से ज्ञान हस्तांतरण और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- हरित नौवहन प्रथाएँ: भारत सतत् समुद्री परिचालन के लिये समर्पित है, जिसका उदाहरण ग्रीन टग ट्रांज़िशन प्रोग्राम और प्रमुख बंदरगाहों पर ग्रीन हाइड्रोजन हब हैं।
- स्मार्ट बंदरगाहों और पर्यावरण अनुकूल टगबोटों का विकास भारत के समुद्री दृष्टिकोण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिससे दक्षता बढ़ेगी और उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: क्षमता एवं दक्षता को बढ़ाने के लिये बंदरगाहों और शिपिंग बुनियादी ढाँचे को उन्नत बनाने हेतु निवेश करना, साथ ही व्यापार को बढ़ाने के लिये तटीय क्षेत्रों और अंतर्देशीय बाज़ारों के बीच संपर्क में सुधार करना चाहिये।
- दूरदर्शी सागरमाला कार्यक्रम बंदरगाहों को औद्योगिक समूहों के साथ एकीकृत कर रसद नेटवर्क को अनुकूलित करता है, तथा व्यापक तटीय विकास को बढ़ावा देता है।
- नीतिगत रूपरेखा: एकीकृत नीतियाँ तैयार करना जो समुद्री विरासत के संरक्षण को आर्थिक विकास उद्देश्यों के साथ जोड़ती हैं, साथ ही वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों और समझौतों का अनुपालन सुनिश्चित करती हैं।
- तटीय नौवहन विधेयक 2024 नियामक ढाँचे तथा बहु-मॉडल व्यापार संपर्क को सुव्यवस्थित करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत समुद्री विरासत सम्मेलन, 2024 में उजागर की गई भारत की समुद्री विरासत के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:Q.1 निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन शहर बांधों की एक शृंखला बनाकर और उससे जुड़े जलाशयों में पानी को प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली के लिये जाना जाता है? (वर्ष 2021) (A) धोलावीरा उत्तर: (A) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सिंधु सभ्यता के लोगों की विशेषता/विशेषताएँ है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही विकल्प चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा हड़प्पा स्थल नहीं है? (2019) (a) चन्हुदड़ो उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: दक्षिण चीन सागर के मामले 'में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करतें हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014) |