भारत-यूरोपीय संघ संबंध | 20 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संघ, हिंद-प्रशांत, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, गिनी की खाड़ी, बौद्धिक संपदा अधिकार, शेंगेन क्षेत्र, यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद 

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति, यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध, हिंद-प्रशांत क्षेत्र

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

चूँकि लोकतांत्रिक देशों के रूप में, भारत और यूरोपीय संघ पर सत्तावादी शासनों का दबाव बढ़ता जा रहा है इसलिये भारत तथा संघ का एक दूसरे को सहयोग किया जाना महत्त्वपूर्ण हो गया है। यूरोपीय संघ और भारत की सहभागिता यूरोप और भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है एवं इसमें अपार संभावनाएँ तो हैं किंतु इसके निरंतर कार्यान्वन के समक्ष अनेक समस्याएँ हैं।

भारत-यूरोपीय संघ संबंध को कौन-से कारक परिभाषित करते है?

  • साझा मूल्य: भारत और यूरोपीय संघ दोनों लोकतंत्र, बहुपक्षवाद और समृद्धि पर ज़ोर देते हैं।
  • आर्थिक तालमेल: भारत यूरोपीय संघ को बढ़ते बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार की भूमिका निभाता है जबकि यूरोपीय संघ भारत के आर्थिक विकास में सहायता करते हुए निवेश, प्रौद्योगिकी और बाज़ार पहुँच में योगदान देता है। 
    • इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र और हरित प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों में यूरोपीय संघ के निवेश और सहयोग करता है।
  • व्यापार और आर्थिक संबंध:
    • द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2023-24 में, यूरोपीय संघ के साथ भारत का माल व्यापार 137.41 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिससे यूरोपीय संघ भारत का माल व्यापार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना। वर्ष 2023 में सेवा क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार 51.45 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): यूरोपीय संघ भारत में एक प्रमुख निवेशक है, जिसका कुल FDI अंतर्वाह में 17% हिस्सा है तथा इससे रोज़गार के महत्त्वपूर्ण अवसर सर्जित होते हैं।
  • समुद्री सुरक्षा: यूरोपीय संघ की एशिया सुरक्षा सहयोग वर्द्धन (Enhancing Security Cooperation in and with Asia- ESIWA) पहल से, समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने हेतु भारत सहित एशिया के साथ सुरक्षा सहयोग सुदृढ़ होता है, क्योंकि हिंद महासागर यूरोपीय संघ के लिये एक महत्त्वपूर्ण मार्ग है।
  • सैन्य अभ्यास: वर्ष 2023 में गिनी की खाड़ी में पहला भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आयोजित किया गया।

यूरोपीय संघ 

  • स्थापना: द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद वर्ष 1951 में छह देशों (बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड) द्वारा इसकी स्थापना की गई।
  • वर्तमान सदस्य देश: वर्तमान में इसमें 27 देश (ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस गणराज्य, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन और स्वीडन) शामिल हैं।
    • ब्रिटेन 1973 में यूरोपीय संघ में शामिल हुआ और वर्ष 2020 में इससे अलग हो गया (ब्रेक्सिट)।
  • जनसांख्यिकी: यूरोपीय संघ में, जर्मनी की जनसंख्या सबसे अधिक है और फ्राँस क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा है जबकि सबसे छोटा देश माल्टा है।
  • खुली सीमाएँ: साइप्रस और आयरलैंड के अतिरिक्त शेंगेन क्षेत्र में यूरोपीय संघ के अधिकांश सदस्यों के मुक्त आवागमन की अनुमति है। 
    • चार गैर-यूरोपीय संघ देश (आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन) भी शेंगेन का हिस्सा हैं।
  • एकल बाज़ार: यूरोपीय संघ के भीतर माल, सेवाओं, पूंजी और लोगों का स्वतंत्र आवागमन होता है।
  • जलवायु लक्ष्य: इसने वर्ष 2050 तक जलवायु-तटस्थ होने और वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 55% की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

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भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक मतभेद: यूरोपीय संघ व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकार सहयोग सहित एक व्यापक साझेदारी की परिकल्पना करता है, जबकि भारत रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है और गहरे गठबंधन से बचता है।
    • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के संबंध में भारत का तटस्थ रुख यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण के विपरीत है, जिसने रूस के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए हैं तथा यूक्रेन पर रूस के हमलों तथा लोकतंत्र पर हमलों के कारण कठिन संबंधों का सामना किया है।
      • इससे विश्वास की कमी उत्पन्न होती है और भारत तथा यूरोपीय संघ के बीच नीति-स्तरीय समन्वय में जटिलता आ जाती है।
    • भारत सीमा विवादों और आर्थिक प्रतिद्वंद्विता के कारण चीन को एक रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखता है, जबकि यूरोप चीन के मानवाधिकारों और आर्थिक प्रथाओं पर चिंताओं के बावजूद उसके साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार जारी रखता है।
      • यह विरोधाभास हिंद-प्रशांत नीतियों पर एकीकृत दृष्टिकोण में बाधा डालता है।
  • आर्थिक एवं व्यापार बाधाएँ: भारत और यूरोपीय संघ के बीच वर्ष 2007 में शुरू हुई FTA वार्ता में मतभेदों के कारण देरी हुई है। 
    • सख्त यूरोपीय संघ के बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) मानदंड किफायती जेनेरिक फार्मास्यूटिकल्स पर भारत के फोकस के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे कठोर श्रम और पर्यावरण मानकों पर यूरोपीय संघ का ज़ोर भारत के घरेलू उद्योगों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
  • रक्षा एवं सामरिक मतभेद: रूसी रक्षा प्रणालियों पर भारत की निर्भरता उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी पर यूरोप के साथ गहन सहयोग को सीमित करती है।
    • फ्राँस फ्रांस के साथ पनडुब्बी सहयोग और स्पेन के साथ C-295 विमान जैसी परियोजनाओं के बावजूद, यूरोपीय संघ-भारत रक्षा संबंध अमेरिका या रूस के साथ संबंधों से पीछे हैं। 
    • समर्पित रणनीतिक वार्ता का अभाव तथा ज्ञान साझा करने के प्रति यूरोपीय संघ का प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण सहयोग में और बाधा डालता है, जबकि रूस भारत के साथ संयुक्त विनिर्माण का समर्थन करता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार अंतराल: भारत किफायती प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देता है, जबकि यूरोप स्थिरता और उन्नत विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। 
  • संरचनात्मक बाधाएँ: यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच मतभेद भारत के प्रति एकीकृत विदेश नीति दृष्टिकोण को जटिल बनाते हैं। यह विखंडन प्रभावी सहयोग में बाधा डालता है।

भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को मज़बूत करने की क्या आवश्यकता है? 

  • सत्तावाद का मुकाबला: लोकतंत्र के रूप में, भारत और यूरोपीय संघ को विशेष रूप से भारत के लिये चीन और यूरोपीय संघ के लिये रूस जैसे सत्तावादी शासनों से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • संबंधों को मज़बूत करने से दोनों पक्षों को लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और निरंकुश विस्तारवाद का विरोध करने में एकजुट मोर्चा बनाने में मदद मिलेगी।
  • आर्थिक विकास: भारत और यूरोपीय संघ के बीच सफल FTA से व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। यूरोपीय संघ सबसे बड़ा आर्थिक समूह है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 
    • वे एक-दूसरे को बाज़ार पहुँच, तकनीकी आदान-प्रदान, आर्थिक विकास प्रदान करते हैं तथा चीन पर निर्भरता कम करने के लिये वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाएँ बनाते हैं।
  • तकनीकी सहयोग: तकनीकी नवाचार में भारत का उदय और यूरोपीय संघ की अनुसंधान एवं विकास क्षमताएँ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष में संयुक्त पहल को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे चीन के प्रभुत्व का मुकाबला किया जा सकता है। 
    • यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के माध्यम से सहयोग को मज़बूत करने से उभरती प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा, हरित प्रौद्योगिकी और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने संबंधी रणनीतियों को संरेखित किया जा सकता है।
      • भारत के उभरते क्षेत्र यूरोप में विनिर्माण को पुनर्जीवित करने में सहायता कर सकते हैं, जिससे दोनों क्षेत्रों को लाभ होगा।
  • पर्यावरणीय कार्रवाई: भारत और यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा, कार्बन न्यूनीकरण और सतत् विकास पर संयुक्त पहल के माध्यम से वैश्विक जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ा सकते हैं, तथा भारत की नवीकरणीय क्षमता और यूरोपीय संघ के पर्यावरणीय नेतृत्व का लाभ उठा सकते हैं।
    • भारत और यूरोपीय संघ संयुक्त रूप से सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और सतत् कृषि जैसी हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्थिरता में योगदान मिलेगा।

आगे की राह

  • सत्तावाद के विरुद्ध एकता: लोकतंत्रों के लिये खतरे के रूप में बढ़ते सत्तावाद की एक साझा समझ भारत, यूरोप और अमेरिका को एकजुट कर सकती है।
    • यह संरेखण समिट फॉर डेमोक्रेसी जैसी पहलों के माध्यम से अटलांटिक और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा दे सकता है ।
  • TTC का लाभ उठाना: यूरोपीय संघ-भारत TTC, महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल के समान, प्रौद्योगिकी एजेंडों को संरेखित करने का अवसर प्रस्तुत करता है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों में नवाचार और उन्नति को बढ़ावा देने के लिये उच्च स्तरीय सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
  • सामरिक आर्थिक साझेदारी: FTA से आगे, भारत और यूरोपीय संघ फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण कच्चे माल जैसे क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों की संभावना तलाश सकते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) के समान, यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत के साथ एक समान समझौते पर हस्ताक्षर कर सकता है।
  • रक्षा: अमेरिका, रूस और क्वाड सदस्यता के साथ भारत की रक्षा साझेदारी को भारत के रक्षा क्षेत्र में यूरोपीय संघ के निवेश और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों द्वारा पूरित किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  वैश्विक सत्तावाद से निपटने में यूरोपीय संघ-भारत साझेदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिये और विश्लेषण कीजिये कि उनके व्यापार संबंधों को कैसे मज़बूत किया जा सकता है।

भारत और यूरोपीय संघ

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

यूरोपीय संघ का 'स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी ऐंड ग्रोथ पैक्ट)' ऐसी संधि है, जो

  1. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है
  2. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है
  3. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है

उपर्युक्त में से कितने कथन सही है?

(a) केवल एक
(b) केवल दो 
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

व्याख्या: (a)

  • स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता एक राजनीतिक समझौता है जो यूरोपीय मौद्रिक संघ (EMU) के सदस्य राज्यों के राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण पर सीमाएँ निर्धारित करता है। अतः कथन 1 सही है।
  • इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य EMU के भीतर सार्वजनिक वित्त का सुदृढ़ प्रबंधन सुनिश्चित करना है, ताकि किसी एक सदस्य देश की गैर-ज़िम्मेदार बजटीय नीतियों का प्रभाव पूरे यूरो क्षेत्र पर न पड़े और पूरे यूरो क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता को नुकसान न पहुँचे।
  • यूरोपीय संघ स्थिरता और व्यापार समझौता में बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी के साझाकरण से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है।
  • अतः कथन 2 और 3 सही नहीं हैं।