किशोरों पर स्मार्टफोन के इस्तेमाल का प्रभाव | 29 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

चिंता, प्रज्ञाता दिशानिर्देश, ई-पीजी पाठशाला, मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, चाइल्डलाइन 1098, ज्ञान साझा करने हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन

मेन्स के लिये:

डिजिटल प्लेटफॉर्म और बच्चों पर इसका प्रभाव, साइबर सुरक्षा और गोपनीयता, प्रौद्योगिकी और समाज।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

सैपियन लैब्स द्वारा "द यूथ माइंड: राइजिंग अग्रेसन एंड एंगर" शीर्षक से एक अध्ययन, भारत और अमेरिका में 13-17 वर्ष की आयु के किशोरों में कम उम्र में स्मार्टफोन के उपयोग और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के बीच चिंताजनक संबंध पर प्रकाश डालता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • स्मार्टफोन का उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य: किशोरों के माइंड हेल्थ कोशेंट (Mind Health Quotient- MHQ) पर आधारित अध्ययन से पता चलता है कि स्मार्टफोन के शुरुआती उपयोग और किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है, जिसमें आक्रामकता, क्रोध, चिड़चिड़ापन और मतिभ्रम जैसे लक्षणों में वृद्धि हो रही है।
    • जो किशोर छोटी उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग करना शुरू करते हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ अधिक गंभीर होती हैं।
    • अवसाद और चिंता के अलावा, अंतर्वेधी विचार (Intrusive Thoughts) और वास्तविकता से अलगाव जैसे नए लक्षण भी देखे गए, जो एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का संकेत देते हैं।
  • ऑनलाइन जोखिम: स्मार्टफोन तक कम उम्र में पहुँच से युवा अनुपयुक्त सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं, नींद में व्यवधान पड़ता है, तथा वैयक्तिक संपर्क में कमी आती है, जो सामाजिक कौशल विकसित करने और संघर्षों से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • लैंगिक भेदभाव: अध्ययन से पता चलता है कि महिलाएँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं, तथा लड़कियों में आक्रामकता और क्रोध अधिक देखा जा रहा है।
    • उल्लेखनीय रूप से 65% किशोरियों ने संकट की बात कही, जो लड़कों की तुलना में काफी अधिक है।
  • सांस्कृतिक अंतर: अमेरिका की तुलना में भारत में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट मंद है।
    • अमेरिका में पुरुषों और महिलाओं दोनों में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट स्पष्ट है, लेकिन भारत में केवल महिलाओं में ही गिरावट देखी गई है, जबकि पुरुषों में कुछ पहलुओं में सुधार हुआ है।
  • समाधान के रूप में शैक्षिक प्रौद्योगिकी: अध्ययन में मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के संभावित समाधान के रूप में शैक्षिक प्रौद्योगिकी और अभिभावकों के नियंत्रण के साथ स्मार्टफोन तक सीमित पहुँच का सुझाव दिया गया है।

Mind_Health_Quotient

माइंड हेल्थ कोशेंट (Mind Health Quotient- MHQ)

  • परिचय: MHQ मानसिक कार्य के 47 पहलुओं का एक व्यापक मूल्यांकन है, जिसे छह आयामों (मनोदशा और दृष्टिकोण, अनुकूलनशीलता और लचीलापन, सामाजिक आत्म, ड्राइव और अभिप्रेरणा, अनुभूति और मन-शरीर संबंध) में मापा जाता है। 
    • समग्र MHQ स्कोर कार्यात्मक उत्पादकता से संबंधित है, जिसमें उच्च स्कोर अधिक उत्पादक दिनों से जुड़ा हुआ है। 
    • "मानसिक कल्याण" के विपरीत, जो भावनात्मक अवस्थाओं पर केंद्रित है, "मानसिक स्वास्थ्य" भावनात्मक और कार्यात्मक दोनों पहलुओं को शामिल करता है, तथा जीवन की चुनौतियों का सामना करने और उत्पादकता बनाए रखने की क्षमता पर ज़ोर देता है।
  • MHQ बनाम IQ और EQ: माइंड हेल्थ कोशेंट (MHQ) बुद्धि लब्धि (IQ) (संज्ञानात्मक क्षमताओं को मापता है) और भावनात्मक लब्धि (EQ) (भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) को मापता है) से भिन्न है।
    • MHQ मानसिक कार्यों की एक व्यापक शृंखला को समाहित करता है, जिसमें मनोदशा, लचीलापन और मन-शरीर संबंध शामिल हैं।

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बच्चों तक शीघ्र डिजिटल पहुँच का क्या प्रभाव होगा?

  • इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रसार बच्चों के लिये दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ इसने लाखों लोगों के लिये शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ इसने बच्चों को हानिकारक और विषाक्त व्यवहारों के संपर्क में ला दिया है।
  • सकारात्मक प्रभाव: 
    • उन्नत शिक्षण अवसर: डिजिटल पहुँच से शैक्षिक संसाधनों विविध स्रोत उपलब्ध होते है तथा भारत की पहलें जैसे कि शैक्षिक सामग्री से पूर्व-लोड किये गए टैबलेट सेट और PRAGYATA दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि विद्यार्थी विचलित करने वाली सामग्री को सीमित करते हुए अधिगम पर ध्यान केंद्रित करें।
      • E-PG पाठशाला विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों के छात्रों के लिये ऑनलाइन पाठ्यक्रम और सहयोगात्मक शिक्षण तक पहुँच प्रदान करती है।
    • व्यक्तिगत शिक्षण: आवश्यकता तैयार की गई शैक्षिक सामग्री के साथ मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता- आधारित प्लेटफॉर्म छात्रों की सीखने की शैली के अनुसार अनुकूलित होते हैं
      • गेम, सिमुलेशन और इंटरैक्टिव प्लेटफॉर्म जैसे डिजिटल उपकरण अधिगम को अधिक आकर्षक बना सकते हैं, जिससे बच्चों को गणित, भाषा तथा विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों में कौशल विकसित करने में मदद मिल सकती है।
    • कौशल विकास: डिजिटल प्रौद्योगिकी के संपर्क से बच्चों को समस्या-समाधान, कोडिंग और डिजिटल साक्षरता जैसे महत्त्वपूर्ण कौशल विकसित करने में मदद मिल सकती है, जो वर्तमान की प्रौद्योगिकी-संचालित विश्व में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
      • हाल के वर्षों में, "किडफ्लूएंसर्स" ने सोशल मीडिया विज्ञापन उद्योग को तेज़ी से आगे बढ़ाया है, जिसमें प्रायोजित सामग्री के माध्यम से बच्चे अच्छी मात्रा में धन अर्जित कर रहे हैं।
  • सामाजिक संपर्क: बच्चों को परिवार और मित्रों से योजित रखते हुए एकाकीपन को कम करने में मदद करता है।
  • सहायता का अभिगम: यह मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों और सामना करने की रणनीतियों तक आसान पहुँच प्रदान करता है।
  • नकारात्मक प्रभाव: 
    • शारीरिक निष्क्रियता: किशोरावस्था भावात्मक प्रवृत्तियों के विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जिसमें निंद्रा, शारीरिक गतिविधि, मुकाबला करने के कौशल और समर्थ संबंध जैसे कारक कल्याण को बढ़ावा देते हैं। 
      • हालाँकि, डिजिटल माध्यमों तक बच्चों की समय से पहले पहुँच के कारण निष्क्रिय व्यवहार की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है, जिससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
      • स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल से चिंता, अवसाद, नींद की समस्याएँ और ब्रेन रॉट हो सकता है, जिससे मानसिक स्थिरता और संज्ञानात्मक प्रकार्य प्रभावित हो सकता है।
  • निजता: तकनीकी कंपनियों, हैकर्स या विज्ञापनदाताओं द्वारा किये गए उल्लंघन से पहचान की चोरी, धोखाधड़ी, हेरफेर और हानिकारक सामग्री के संपर्क में आने की संभावना हो सकती है।
    • साइबर-धमकी: अल्प आयु में ही स्मार्टफोन के उपयोग से बच्चों की ऑनलाइन उत्पीड़न के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है, जिससे उनके आत्म-सम्मान पर प्रभाव पड़ता है।
      • इस दशा में बच्चे उन दुर्जन द्वारा जबरन वसूली या ऑनलाइन शोषण का शिकार हो सकते हैं जो व्यक्तिगत जानकारी या एक्सप्लिसिट सामग्री का उपयोग कर उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं या उन्हें धमकाते हैं।
      • चूँकि बिना फिल्टर की गई सामग्री के कारण आकस्मिक संपर्क या लक्षित शोषण हो सकता है इसलिये इंटरनेट के कारण बच्चों का पोर्नोग्राफी के संपर्क में आने का जोखिम रहता है, जिससे गंभीर विधिक, मनोवैज्ञानिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
      • मेटावर्स और वर्चुअल रियलिटी के क्षेत्र में, वर्चुअल प्रिडेटर धोखाधड़ी, उत्पीड़न और भेदभाव के माध्यम से बच्चों का शोषण करते हैं, जिससे साइबरबुलिंग के लिये अनुकूल परिवेश तैयार होता है।
    • FOMO: सोशल मीडिया पर प्रायः एक आदर्श जीवन दर्शाया जाता है, जिसके कारण युवा वर्ग को ऐसा अनुभव होता है कि वे कुछ खो रहे हैं (सुअवसर खो जाने का भय- FOMO), जिसके कारण चिंता, तनाव और अपूर्णता का भाव उत्पन्न होता है।
    • सामाजिक संपर्क में कमी: फोन के अत्यधिक उपयोग से प्रत्यक्ष संवाद में कमी आ सकती है, जिससे सामाजिक कौशल में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • हिंसा: हिंसक खेलों और ग्राफिक सामग्री सहित ऑनलाइन हिंसा के संपर्क में आने से बच्चे असंवेदनशील हो सकते हैं जिससे उनके लिये आक्रामकता सामान्य हो सकती है तथा वह भयभीत हो सकते हैं और उनकी संवेगात्मक व्यथा बढ़ सकती है।

ऑनलाइन बाल सुरक्षा सांख्यिकी

  • मानसिक स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 7 में से 1 किशोर मानसिक विकार का सामना करता है, जो इस वर्ग में वैश्विक रोग भार का 15% है, जिसमें अवसाद, चिंता और व्यवहार संबंधी विकार प्रमुख कारण हैं और अल्प आयु में डिजिटल माध्यमों तक बच्चों की पहुँच इसका प्रमुख कारक है।
    • किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करने से स्थायी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे संतुष्ट वयस्क जीवन के अवसर सीमित हो सकते हैं।
  • साइबर धमकी: 30 देशों में एक तिहाई से अधिक युवा साइबर धमकी का शिकार होते हैं, जिनमें से 5 में से 1 इसके कारण स्कूल छोड़ देता है।
  • ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार या शोषण: 25 देशों में 80% बच्चे ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार या शोषण के खतरे को महसूस करते हैं।
    • इंटरनेट के उपयोग में तेज़ी से वृद्धि और हानिकारक सामग्री की उपलब्धता के कारण भारत में बच्चों को बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) के संपर्क में आने का उच्च जोखिम है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्तर पर 32 मिलियन CSAM में से भारत में 5.6 मिलियन रिपोर्टें दर्ज की गईं है, जो एक महत्त्वपूर्ण समस्या को उजागर करता है।

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और डिजिटल पहुँच के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • ऑनलाइन अपराधों से बच्चों का संरक्षण: 
    • POSCO अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम), 2012: POSCO अधिनियम में बच्चों को ऑनलाइन यौन अपराधों से बचाने के प्रावधान हैं, जिनमें अनिवार्य रिपोर्टिंग और बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
    • चाइल्डलाइन 1098: यह देखभाल और संरक्षण की आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिये एक राष्ट्रीय, 24 घंटे की आपातकालीन टोल फ्री फोन सेवा है। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक परियोजना है।
    • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम : शिक्षा मंत्रालय और सीबीएसई ने बच्चों को सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के बारे में शिक्षित करने के लिये स्कूल पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा को शामिल किया है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: IT अधिनियम की धारा 67B, CSAM को ऑनलाइन प्रकाशित करने या देखने पर कठोर दंड का प्रावधान करती है।
  • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध रोकथाम (CCPWC): CCPWC एक निर्भया फंड पहल है, जो साइबर फोरेंसिक क्षमताओं में सुधार करती है, जागरूकता बढ़ाती है तथा कानून प्रवर्तन क्षमताओं को मज़बूत करती है।
  • डिजिटल पहुँच: 

आगे की राह

  • बाल ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट: बच्चों से संबंधित उपकरणों में बाल ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट स्थापित हो जिससे युवा उपयोगकर्त्ताओं को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने के क्रम में एक व्यवहारिक तथा व्यापक दृष्टिकोण मिल सके। 
    • यह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (UNCRC) जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे के अनुरूप है तथा साइबर-धमकी, भावनात्मक बुद्धिमत्ता एवं मानसिक स्वास्थ्य जैसे प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित है।
  • स्मार्टफोन के स्वामित्व को विलंबित करने (कम से कम 8 वीं कक्षा तक) से किशोरों में आक्रामकता, चिंता और आत्महत्या की दर को कम करने में मदद मिल सकती है जिसके लिये माता-पिता, स्कूलों तथा सरकारों से कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।
  • कड़े नियमन: ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों ने पहले ही 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर बच्चों की सुरक्षा के लिये कदम उठाए हैं।
    • डेटा संरक्षण नियम, 2025 के मसौदे को लागू करना चाहिये जिसके माध्यम से भारत ने 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये सोशल मीडिया तक पहुँच के क्रम में आयु सत्यापन एवं माता-पिता की सहमति की आवश्यकताएँ निर्धारित की हैं।
  • जागरूकता: डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे बच्चों को ऑनलाइन स्थानों के संभावित खतरों के बारे में जागरूक करने के साथ उन्हें हानिकारक सामग्री एवं साइबर धमकी की पहचान करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता: बच्चों और किशोरों हेतु राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, किरण हेल्पलाइन और मानस मोबाइल ऐप जैसे सुलभ मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों में निवेश करना चाहिये, जो ऑनलाइन शोषण से प्रभावित लोगों के लिये परामर्श प्रदान करने की रणनीति पर केंद्रित हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: कम उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह प्रभाव डाल सकता है? इन प्रभावों को कम करने से संबंधित निहितार्थों और संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने हेतु, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस एवं पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022)