उच्च न्यायालय ने बिहार के 65% आरक्षण नियम को किया खारिज | 24 Jun 2024
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग (Backward Classes- BC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (Extremely Backward Classes- EBC), अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) तथा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) के लिये आरक्षण कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने के बिहार सरकार के फैसले को रद्द कर दिया।
- बिहार सरकार के इस कदम ने भारत में आरक्षण नीतियों की कानूनी सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिये हैं।
उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- नवंबर 2023 में बिहार सरकार ने वंचित जातियों के लिये कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने हेतु राजपत्र अधिसूचना जारी की।
- यह निर्णय एक जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद लिया गया, जिसमें पिछड़ी जातियों, अति पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि की आवश्यकता बताई गई थी।
- इस 65% कोटा को लागू करने के लिये बिहार विधानसभा ने नवंबर 2023 में बिहार आरक्षण संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया।
- न्यायालय के फैसले में प्रमुख तर्क:
- बिहार सरकार द्वारा आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाने के निर्णय को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation- PIL) दायर की गई।
- पटना उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि 65% कोटा इंदिरा साहनी मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने तर्क दिया कि राज्य सरकार का निर्णय सरकारी नौकरियों में "पर्याप्त प्रतिनिधित्व" पर आधारित नहीं था, बल्कि इन समुदायों की आनुपातिक आबादी पर आधारित था।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि 10% आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Sections- EWS) कोटा के साथ, विधेयक ने कुल आरक्षण को 75% तक बढ़ा दिया है, जो असंवैधानिक है।
- बिहार में आरक्षण बढ़ाने की आवश्यकता:
- राज्य का सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन:
- बिहार में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है (800 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष से कम), जो राष्ट्रीय औसत का 30% है।
- इसकी प्रजनन दर सबसे अधिक है और केवल 12% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है, जबकि राष्ट्रीय औसत 35% है।
- राज्य में देश में सबसे कम कॉलेज घनत्व है तथा 30% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है।
- पिछड़े वर्गों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व:
- बिहार की जनसंख्या में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग का हिस्सा 84.46% है, लेकिन सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व आनुपातिक नहीं है।
- राज्य का सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन:
- आरक्षण सीमा बढ़ाने के अन्य विकल्प:
- एक मज़बूत नींव का निर्माण:
- प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ICDS केंद्रों) में सुधार लाने, शिक्षक प्रशिक्षण को बढ़ाने तथा इंटरैक्टिव और प्रौद्योगिकी-एकीकृत शिक्षण विधियों की ओर रुख करने के लिये शिक्षा का अधिकार (Right to Education- RTE) फोरम की सिफारिशों को लागू करना।
- भविष्य के लिये बिहार के युवाओं को कौशल प्रदान करना:
- व्यवसायों को आकर्षित करने और एक नौकरी बाज़ार बनाने के लिये SIPB (सिंगल विंडो इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ बढ़ते उद्योगों के साथ कौशल निर्माण कार्यक्रम विकसित करना।
- समावेशी विकास के लिये बुनियादी ढाँचा:
- बाढ़ और सूखे से निपटने के लिये उन्नत सिंचाई प्रणालियों में निवेश करना तथा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों को जोड़ने वाला एक मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना।
- राज्यों के सभी निवासियों को सशक्त बनाना:
- कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाने और अधिक सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिये महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना। सामाजिक वर्गीकरण से निपटने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये कानूनों को और अधिक सख्ती से लागू करना।
- एक मज़बूत नींव का निर्माण:
नोट:
- 50% सीमा से अधिक आरक्षण वाले अन्य राज्य छत्तीसगढ़ (72%), तमिलनाडु (69%) हैं।
- अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड सहित पूर्वोत्तर राज्य (प्रत्येक 80%)।
- लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजातियों के लिये 100% आरक्षण है।
आरक्षण क्या है?
- परिचय:
- आरक्षण सकारात्मक भेदभाव का एक रूप है, जो हाशिये पर रह रहे वर्गों के बीच समानता को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से बचाने के लिये बनाया गया है।
- यह समाज के हाशिये पर रह रहे वर्गों को रोज़गार और शिक्षा तक पहुँच में प्राथमिकता देता है।
- इसे मूलतः वर्षों से चले आ रहे भेदभाव को दूर करने तथा वंचित समूहों को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया था।
आरक्षण के लाभ और हानि:
पहलू |
लाभ |
हानि |
सामाजिक न्याय |
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प्रतिभा |
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प्रतिनिधित्व |
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क्रीमी लेयर |
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आर्थिक उत्थान |
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भारत में आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- भारतीय संविधान का भाग XVI केंद्रीय और राज्य विधानमंडलों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण से संबंधित है।
- संविधान का अनुच्छेद 15 राज्य को निम्नलिखित प्रावधान करने का अधिकार देता है:
- अनुच्छेद 15(3) महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 15(5) सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों के किसी भी वर्ग अथवा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जिसमें निजी संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में उनका प्रवेश भी शामिल है।
- अनुच्छेद 15(6), खंड (4) और (5) में उल्लिखित वर्गों के अतिरिक्त आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में निश्चयात्मक विभेद (Positive Discrimination) अथवा आरक्षण के आधार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 16(4) पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों अथवा पदों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 16(4A) अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के नागरिकों के लिये पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करता है।
- संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में संशोधन किया गया और अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) शामिल किया गया जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करना था।
- तत्पश्चात् आरक्षण देकर पदोन्नत किये गए SC और ST वर्ग के उम्मीदवारों को पारिणामिक वरिष्ठता प्रदान करने के लिये संविधान (85वाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा 16(4A) को संशोधित किया गया।
- अनुच्छेद 16 (4B) राज्यों को SC और ST वर्ग के नागरिकों के लिये विगत वर्ष की रिक्त आरक्षित रिक्तियों पर विचार करने की अनुमति देता है।
- इसे 81वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा शामिल किया गया था।
- अनुच्छेद 16(6) किसी भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के पक्ष में नियुक्तियों अथवा पदों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के नागरिकों के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के नागरिकों के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 335 के अनुसार प्रशासन की दक्षता बनाए रखने के साथ-साथ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों का भी ध्यान रखा जाएगा।
- अनुच्छेद 330 और 332 क्रमशः संसद तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के नागरिकों के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।
भारत में आरक्षण से संबंधित विकास का क्रम क्या है?
- इंदिरा साहनी निर्णय, 1992:
- न्यायालय ने OBC के लिये 27% आरक्षण की सांविधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय कर दी, जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ उल्लंघन का कारण न बनें, ताकि अनुच्छेद 14 के तहत संविधान द्वारा प्रदत्त समता का अधिकार सुरक्षित रहे।
- इस 9 न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय में कहा गया कि संविधान का अनुच्छेद 16(4), जो नियुक्तियों में आरक्षण की अनुमति देता है, पदोन्नति तक विस्तारित नहीं होता है।
- इसमें विस्तार करने का नियम वैध है लेकिन यह 50% के अधीन है। निर्णय के अनुसार पदोन्नति में कोई आरक्षण नहीं होना चाहिये।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 16(4) कोई अलग नियम नहीं है और यह अनुच्छेद 16(1) को रद्द नहीं करता है। अनुच्छेद 16(1) एक मौलिक अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 16(4) एक सक्षम प्रावधान है।
- अनुच्छेद 16(1): इसमें कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोज़गार अथवा नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी।
- इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमी लेयर (आर्थिक रूप से संपन्न) को आरक्षण लाभ से बाहर रखने का निर्देश दिया।
- हालाँकि, इसने विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को इस अवधारणा से बाहर रखा।
85वाँ संशोधन अधिनियम, (2001)
- इस अधिनियम के द्वारा आरक्षण के माध्यम से पदोन्नत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये परिणामी वरिष्ठता की अवधारणा प्रारंभ की। यह जून 1995 से पूर्व प्रभाव से लागू हुआ।
- "परिणामी वरिष्ठता" से तात्पर्य आरक्षण नियमों के माध्यम से पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से संबंधित सरकारी कर्मचारियों को वरिष्ठता प्रदान करने की अवधारणा से है।
- एम. नागराज निर्णय, 2006:
- इस निर्णय द्वारा आंशिक रूप से इंद्रा साहनी के फैसले को उलट दिया।
- इसने सरकारी नौकरियों में पदोन्नति चाहने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिये "क्रीमी लेयर" अवधारणा का सशर्त विस्तार का प्रस्तुतीकरण किया।
- यह अवधारणा पहले केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर लागू थी।
- निर्णय में राज्यों को अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देने के लिये तीन शर्तें निर्धारित की गईं।
- प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता: राज्य को यह प्रदर्शित करना होगा कि पदोन्नति में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।
- क्रीमी लेयर बहिष्करण: आरक्षण का लाभ SC/ST के "क्रीमी लेयर" तक नहीं बढ़ाया जाना चाहिये।
- दक्षता बनाए रखना: आरक्षण से समग्र प्रशासनिक दक्षता प्रभावित नहीं होनी चाहिये।
- जरनैल सिंह बनाम भारत संघ, 2018:
- इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने डेटा संग्रहण पर अपना रुख बदल दिया।
- राज्यों को अब मात्रात्मक डेटा की आवश्यकता नहीं है: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्यों को पदोन्नति के लिये आरक्षण कोटा लागू करते समय SC/ST समुदाय के पिछड़ेपन को साबित करने के लिये मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
- इसने सरकार को SC/ST सदस्यों के लिये "परिणामी वरिष्ठता के साथ त्वरित पदोन्नति" को अधिक आसानी से लागू करने की अनुमति प्रदान की।
103वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019:
- इसमें केन्द्र सरकार की नौकरियों के साथ-साथ सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण का प्रावधान है।
- इसे अनुच्छेद 15 तथा 16 में संशोधन करके पेश किया गया तथा अनुच्छेद 15(6) एवं अनुच्छेद 16(6) को सम्मिलित किया गया।
- इसे अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) तथा सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिये 50% आरक्षण नीति के अंतर्गत न आने वाले गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये अधिनियमित किया गया था।
जनहित अभियान बनाम भारत संघ, 2022:
- इसमें 103वें संविधान संशोधन को चुनौती दी गई। 3-2 के बहुमत से निर्णय में न्यायालय ने संशोधन को बरकरार रखा।
- इसने सरकार को वंचित सामाजिक समूहों के लिये मौजूदा आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण लाभ प्रदान करने की अनुमति प्रदान की।
आगे की राह
- आराम के साथ योग्यता पर ध्यान देना: एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देना जो पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिये अर्हता अंकों में कुछ छूट देते हुए योग्यता पर ज़ोर देती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इन समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को स्वीकार्य योग्यता स्तर बनाए रखते हुए बेहतर अवसर मिले।
- डेटा-संचालित दृष्टिकोण: विभिन्न स्तरों और विभागों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के वर्तमान प्रतिनिधित्व का आकलन करना आवश्यक है। इस डेटा का उपयोग आरक्षण कोटा भरने के लिये ठोस लक्ष्य निर्धारित करने में किया जा सकता है।
- चिंताओं का समाधान: आरक्षण के कारण अयोग्य उम्मीदवारों को पदोन्नति मिलने की चिंताओं को स्वीकार करें।
- पदोन्नत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग कर्मचारियों के लिये कठोर प्रशिक्षण और मार्गदर्शन कार्यक्रम जैसे समाधान प्रस्तावित करें, ताकि कौशल संबंधी किसी भी अंतर को पाटा जा सके तथा यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपनी नई भूमिकाओं में उत्कृष्टता हासिल कर सकें।
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण: इस बात पर ज़ोर दें कि आरक्षण दीर्घकालिक सामाजिक न्याय और पदोन्नति में समान अवसर प्राप्त करने के लिये एक अस्थायी उपाय है।
- ऐसे समानांतर पहलों की वकालत करें जो इन समुदायों के लिये शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में सुधार करें, जिससे अंततः ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जहाँ आरक्षण की आवश्यकता न हो।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने में आरक्षण नीति की भूमिका, साथ ही इसकी चुनौतियों तथा सीमाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। व्यवस्था को अधिक प्रभावी तथा न्यायसंगत बनाने के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से किसे "कानून का शासन" की मुख्य विशेषताएँ माना जाता है? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: c मेन्सप्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |