EWS आरक्षण की संविधान पीठ में सुनवाई

प्रीलिम्स के लिये

103वाँ संविधान संशोधन, अनुच्छेद 15 (6), अनुच्छेद 16 (6)

मेन्स के लिये 

आरक्षण संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section-EWS) के लिये नौकरियों और दाखिले में 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने वाले संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास हस्तांतरित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह भी आदेश दिया कि इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित याचिकाओं को भी पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को हस्तांतरित की जाए।

विवाद

  • इस संबंध में दायर याचिकाओं में 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैद्यता को चुनौती दी है, ध्यातव्य है कि इसी संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में खंड (6) शामिल किया गया था।
  • इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 31 जुलाई, 2019 को अपना निर्णय सुरक्षित रखा था।
  • सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना था कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण की वैद्यता से संबंधित इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाए अथवा नहीं।

याचिकाकर्त्ताओं के तर्क

  • याचिकाकर्त्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि 103वाँ संविधान संशोधन स्पष्ट तौर पर अधिकातीत (Ultra Vires) है, क्योंकि यह संविधान के मूल ढाँचे में बदलाव करता है।
  • याचिका में कहा गया था कि यह संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के विपरीत है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है।’
  • याचिकाकर्त्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये लागू किये गए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करते हैं , ध्यातव्य है कि SC, ST और OBC वर्ग को पहले से ही क्रमशः 15 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत और 27 प्रतिशत की दर से आरक्षण दिया जा चुका है।

सरकार का पक्ष

  • इस संबंध में केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के सामाजिक उत्थान के लिये आरक्षण की व्यवस्था करना आवश्यक है, क्योंकि इस वर्ग मौजूद आरक्षण प्रावधानों का लाभ नहीं मिलता है।
  • सरकार ने कहा था कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) श्रेणी में देश का एक बड़ा वर्ग शामिल है, जिसका उत्थान भी आवश्यक है।
  • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण का उद्देश्य लगभग 200 मिलियन लोगों का उत्थान करना है जो अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश 

  • मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कहा कि संविधान पीठ मुख्य तौर पर इस प्रश्न पर विचार करेगी कि ‘आर्थिक पिछड़ापन’ सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिये एकमात्र मानदंड हो सकता है अथवा नहीं।
  • साथ ही संविधान पीठ यह भी तय करेगी क्या आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकती है।
  • गौरतलब है कि इस खंडपीठ ने 103वें संविधान संशोधन के कार्यान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
  • तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कहा कि ‘संविधान के अनुच्छेद 145(3) और सर्वोच्च न्यायालय नियम, 2013 के आदेश XXXVIII नियम 1(1) से स्पष्ट है, जिन मामलों में कानून की व्याख्या संबंधी प्रश्न शामिल हैं, उन्हें संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के लिये संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिये। 
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संविधान पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।

EWS आरक्षण और 103वाँ संविधान संशोधन

  • वर्ष 2019 में 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया। संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया, ताकि अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ प्रदान किया सके।
  • संविधान का अनुच्छेद 15 (6) राज्य को खंड (4) और खंड (5) में उल्लेखित लोगों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लोगों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान बनाने और शिक्षण संस्थानों (अनुदानित तथा गैर-अनुदानित) में उनके प्रवेश हेतु एक विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है, हालाँकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 30 के खंड (1) में संदर्भित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शामिल नहीं किया गया है।
  • संविधान का अनुच्छेद 16 (6) राज्य को यह अधिकार देता है कि वह खंड (4) में उल्लेखित वर्गों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लोगों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का कोई प्रावधान करें, यहाँ आरक्षण की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत है, जो कि मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस