पंचायतों को अधिकार | 13 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs), 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992, ग्राम सभाएँ, पंचायत समितियाँ, जिला परिषदें, अनुच्छेद 243G, अनुच्छेद 243H, अनुच्छेद 243-I। मेन्स के लिये:पंचायती राज संस्थाओं का वित्तीय सशक्तीकरण, राजकोषीय विकेंद्रीकरण, अंतर-राज्यीय असमानताएँ, महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) की भूमिका |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक के एक कार्यपत्र, ‘टू हंड्रेड एंड फिफ्टी-थाउजेंड्स डेमोक्रेसीज़: अ रिव्यु ऑफ विलेज गवर्नमेंट इन इंडिया’ में प्रभावी स्थानीय शासन सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय राजकोषीय क्षमता को मज़बूत करते हुए पंचायतों को विशेष अधिकार प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।
पंचायती राज संस्थाएँ (PRI) क्या हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत में ग्राम शासन का इतिहास बहुत लंबा, विविधतापूर्ण और गतिशील रहा है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शासन पर लिखित एक ग्रंथ है जो लगभग 200 ईसा पूर्व का है, इसमें शासन की एक विकेंद्रीकृत प्रणाली का वर्णन किया गया है, जहाँ गाँवों पर गाँव के मुखिया का शासन होता था, जिन्हें ग्रामिक, ग्रामकूट या अध्यक्ष जैसे विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता था।
- ऋग्वेद, एक वैदिक ग्रंथ है जोकि 3,000 वर्ष से अधिक पुराना है, यह तीन प्रकार के संस्थानों अर्थात् विधाता, सभा और समिति को संदर्भित करता है, जो सभी वयस्कों की सभाएँ थीं जो अपने विचारों को आवाज़ देने तथा निर्णय लेने में भाग लेने के लिये एकत्रित होती हैं।
- PRI पर गांधीवादी और आंबेडकरवादी विचार:
- डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने भारतीय संविधान सभा में पंचायती राज के विरुद्ध प्रसिद्ध तर्क दिया। उनका कहना था कि गाँव कुछ भी नहीं हैं, बल्कि स्थानीयता का एक सिंक, अज्ञानता, संकीर्ण मानसिकता और सांप्रदायिकता का केंद्र हैं।
- हालाँकि, गांधी के लिये गाँव ही स्वतंत्र भारत के उनके विचार का आधार थे। उन्होंने प्रसिद्ध रूप से घोषणा की थी कि "भारत अपने शहरों में नहीं बल्कि इसके 700,000 गाँवों में बसता है।"
- गांधी ने तीन प्रमुख सिद्धांतों अर्थात् आत्मनिर्भरता एवं मितव्ययिता, विचारशील और प्रतिनिधि लोकतंत्र तथा सामुदायिक भावना के इर्द-गिर्द केंद्रित एक गाँव जीवन की कल्पना की।
- स्वतंत्रता के बाद:
- गाँवों के नेतृत्व वाले स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के गांधीवादी विचार को स्वतंत्रता के बाद के भारत के प्रमुख निर्माताओं ने अस्वीकार कर दिया था।
- डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा को पंचायती राज संस्थाओं को निर्देशक सिद्धांतों में गैर-अनिवार्य दिशा-निर्देशों के रूप में शामिल करने के लिये राज़ी किया, जिसमें क्षेत्रीय सरकारों द्वारा उनके निर्माण का सुझाव दिया गया था, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं थी।
- 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने के साथ ही पंचायतों को औपचारिक शक्ति का हस्तांतरण शुरू हुआ।
- 73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992:
- 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्ज़ा दिया और एक समान संरचना, चुनाव, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण व पंचायती राज संस्थाओं को निधि, कार्य एवं पदाधिकारियों के हस्तांतरण की व्यवस्था स्थापित की।
- संशोधन ने राज्यों में स्थानीय सरकार की तीन स्तरीय प्रणाली को अनिवार्य बना दिया, जिसमें गाँव (ग्राम पंचायत), मध्यवर्ती (ब्लॉक पंचायत) और ज़िला (ज़िला पंचायत) स्तर शामिल हैं।
- प्रावधान:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 243G राज्य विधानसभाओं के लिये पंचायतों को स्व-शासी संस्थानों के रूप में कार्य करने का अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है।
- पंचायतों के वित्तीय सशक्तीकरण के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243H और अनुच्छेद 243-I में प्रावधान किये गए हैं।
- अनुच्छेद 243H, राज्य विधानमंडलों को करों, शुल्कों एवं टोल के संग्रहण के संदर्भ में पंचायतों को अधिकृत करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 243-I में राज्यपाल द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोग के गठन का प्रावधान शामिल है।
- पंचायती राज और पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित सभी मामले पंचायती राज मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। इसका गठन मई 2004 में हुआ था।
संबंधित पहल:
- SVAMITVA योजना: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के स्वामी को संपत्ति के ‘स्वामित्व का रिकॉर्ड’ प्रदान कर ग्रामीण भारत की आर्थिक प्रगति को सक्षम करने के लिये राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (2020) के अवसर पर ग्रामों का सर्वेक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी से मानचित्रण (Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas- SVAMITVA) योजना, अर्थात SVAMITVA योजना की शुरुआत की गई।
- ई-ग्राम स्वराज ई-वित्तीय प्रबंधन प्रणाली: ई-ग्राम स्वराज, पंचायती राज संस्थाओं के लिये एक सरलीकृत कार्य आधारित लेखांकन ऐप (Simplified Work Based Accounting Application) है।
- परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग: पंचायती राज मंत्रालय ने ‘mActionSoft’ विकसित किया है, जो उन कार्यों के लिये जियो-टैग (Geo-Tags, i.e. GPS Coordinates) के साथ फोटो खींचने में सहायता करने के लिये एक मोबाइल-बेस्ड उपागम है, जिसमें आउटपुट के रूप में परिसंपत्ति प्राप्त होती है।
- सिटीज़न चार्टर: सेवाओं के मानकों के संबंध में अपने नागरिकों के प्रति PRIs की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये पंचायती राज मंत्रालय ने ‘मेरी पंचायत मेरा अधिकार - जन सेवाएँ हमारे द्वार’ के नारे के साथ सिटीज़न चार्टर दस्तावेज़ों को अपलोड करने के लिये एक मंच प्रदान किया है।
पंचायतों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
- राजकोषीय विकेंद्रीकरण: सरकार के उच्च स्तर द्वारा पंचायतों को वित्तीय शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण, स्वतंत्र रूप से संसाधन जुटाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है।
- सीमित राजकोषीय विकेंद्रीकरण स्थानीय शासन तथा सामुदायिक सशक्तीकरण को कमज़ोर बनाता है।
- राजस्व संग्रहण की सीमित क्षमता और उपयोग: PRI के पास शुल्क एवं टोल आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से राजस्व एकत्र करने की सीमित क्षमता, इस दिशा में एक अन्य समस्या मानी जा सकती है।
- अव्यवस्थित नियोजन, अनुवीक्षण और जवाबदेही तंत्र के कारण इन्हें धन के कुशलतापूर्वक तथा प्रभावी प्रयोग को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- टॉप-डाउन एप्रोच: बाहरी स्रोतों से वित्तीयन पर निर्भरता के कारण पंचायती राज संस्थाओं में सरकार के उच्च स्तरों का हस्तक्षेप अधिक होता है।
- वित्तपोषण में विलंब: कुछ क्षेत्रों से संबंधित प्रमुख योजनाओं को पर्याप्त धन न मिलने के कारण इनकी प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
- मार्च, 2023 में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति के अनुसार 34 में से 19 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त वर्ष 2023 में राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना के तहत कोई धनराशि प्राप्त नहीं हुई।
पंचायती राज संस्थाओं के वित्त की वर्तमान स्थिति:
- भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की वित्तीय गतिशीलता पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट:
- राजस्व के स्रोत: पंचायतें करों के माध्यम से राजस्व का केवल 1% अर्जित करती हैं।
- इनके राजस्व में अधिकांश हिस्सेदारी केंद्र एवं राज्यों द्वारा दिये गए अनुदान की होती है।
- आँकड़ों से पता चलता है कि कुल राजस्व में 80% हिस्सेदारी केंद्र सरकार की तथा 15% राज्य सरकार की होती है।
- राजस्व प्रति पंचायत: औसतन प्रत्येक पंचायत द्वारा अपने स्वयं के कर राजस्व से केवल 21,000 रुपए तथा गैर-कर राजस्व से 73,000 रुपए अर्जित किये जाते हैं।
- इसके विपरीत केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान प्रति पंचायत लगभग 17 लाख रुपए जबकि राज्य सरकार का अनुदान प्रति पंचायत 3.25 लाख रुपए है।
- राज्य के राजस्व में हिस्सेदारी और अंतर-राज्य असमानताएँ: पंचायतों की हिस्सेदारी अपने राज्य के राजस्व में न्यूनतम बनी हुई है। विभिन्न राज्यों के बीच प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व में व्यापक भिन्नताएँ हैं।
- केरल और पश्चिम बंगाल क्रमशः 60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ सबसे आगे हैं। जबकि आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में औसत राजस्व काफी कम है, जो प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम है।
PRI के सुदृढ़ीकरण के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?
- विकेंद्रीकरण के स्तरों का पुनर्मूल्यांकन: तीन महत्त्वपूर्ण ‘F’ अर्थात् कार्य, वित्त और कार्यकर्त्ता (Functions, Finance, and Functionaries) पर अधिक ध्यान देने के साथ पंचायतों की शक्तियाँ कम करने के स्थान पर उन्हें अधिक अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये।
- राजकोषीय क्षमता में वृद्धि: शासन में सुधार के लिये, पंचायतों की राजकोषीय क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये अतिरिक्त निधि प्राप्त करने के लिये सोशल स्टॉक एक्सचेंज का उपयोग किये जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त उन्हें वित्त संबंधी निर्णय लेने के अधिक अधिकार प्रदान करने से उच्च-स्तर के नौकरशाहों का कार्य का भार कम होगा।
- वार्ड सदस्यों का सशक्तीकरण: वार्ड सदस्यों (WM) के पास वित्तीय संसाधनों की कमी होती है और वे प्रायः केवल निर्णयों का समर्थन करते हैं किंतु वे ग्राम पंचायत प्रमुखों की देखरेख में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
- निधि प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाने से पंचायत की प्रभावशीलता बढ़ सकती है क्योंकि लघु राजनीतिक इकाइयों से बेहतर विकास होता है।
- ग्राम सभाओं का सुदृढ़ीकरण: ग्राम के प्रभावी शासन में ग्राम सभाओं की भूमिका केंद्रीय होती है। उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये, उन्हें अधिक से अधिक बार आयोजित किये जाने और उनकी शक्तियों का विस्तार करने की अनुशंसा की जाती है जिससे ग्राम का नियोजन तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिये लाभार्थियों के चयन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को सुलभ किया जा सके।
- प्रशासनिक डेटा की गुणवत्ता में सुधार: प्रशासनिक डेटा की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है और इसे सरल प्रारूप में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिये। विज़ुअलाइज़ेशन और इंटरैक्टिव डैशबोर्ड सभी समुदाय के सदस्यों द्वारा डेटा को समझने और उसका विश्लेषण करने को सुविधाजनक बना सकते हैं।
- प्रदर्शन प्रोत्साहन और जवाबदेहिता: पंचायत के प्रदर्शन को स्कोर करने के लिये एक स्वतंत्र और विश्वसनीय प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये। प्रदर्शन के आधार पर पंचायत के निर्वाचित अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने से कार्यों के प्रति उनकी जवाबदेहिता में सुधार हो सकता है।
- शिकायत निवारण प्रणाली: पंचायतों को उत्तरदायी बनाए रखने के लिये औपचारिक और प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। इससे सभी नागरिक उच्च अधिकारियों को अपनी समस्याओं की रिपोर्ट करने में सक्षम हो सकते हैं।
- महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) का एकीकरण: SHG को पंचायतों के साथ एकीकृत करना ग्राम के शासन को बेहतर बनाने और महिलाओं के हितों के अनुरूप निर्णय लेने में संतुलन बनाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में देखा जाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को सुदृढ़ करने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022) प्रश्न. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018) प्रश्न. सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2015) |