विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन हेतु वैश्विक सहयोग
- 03 Dec 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतरिक्ष मलबा, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, केसलर सिंड्रोम, अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति। मेन्स के लिये:अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ तथा आगे की राह। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO) में उपग्रहों तथा अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा से वैश्विक चिंताएँ बढ़ी हैं तथा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बिना यह अंतरिक्ष क्षेत्र अनुपयोगी हो सकता है।
- अक्टूबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र अंतरिक्ष यातायात समन्वय पैनल ने इस चुनौती से निपटने के क्रम में तत्काल उपाय अपनाने का आह्वान किया।
निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) क्या है?
- परिचय:
- निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) पृथ्वी के ऊपर 180 किमी से 2,000 किमी तक की ऊँचाई पर स्थित कक्षा है।
- यह क्षेत्र पृथ्वी की सतह के सबसे निकट होने के साथ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) सहित उपग्रहों हेतु सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला कक्षीय क्षेत्र है।
- LEO की कक्षीय यांत्रिकी:
- किसी उपग्रह को LEO में बने रहने के लिये लगभग 7.8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से परिक्रमण करना होता है।
- इस गति पर उपग्रह की गति से उत्पन्न अपकेंद्रीय बल से पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होने से उपग्रह अपनी कक्षा बनाए रखने में सक्षम होता है।
- परिणामस्वरूप LEO में स्थित उपग्रहों को पृथ्वी की एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग 90 मिनट का समय लगता है।
- उपकक्षीय ऑब्जेक्ट के विपरीत (जो पृथ्वी पर वापस लौट आते हैं या पलायन वेग (25,000 मील प्रति घंटे) से अधिक की गति वाले पिंड) LEO में स्थित ऑब्जेक्ट अनिश्चित काल तक कक्षा में बने रहते (जब तक कि यह वायुमंडलीय आकर्षण या कक्षीय क्षरण जैसे बाहरी बलों से प्रभावित न हों) हैं।
- किसी उपग्रह को LEO में बने रहने के लिये लगभग 7.8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से परिक्रमण करना होता है।
- LEO का महत्त्व:
- उपग्रह अनुप्रयोग: LEO, पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों हेतु उपयुक्त है क्योंकि पृथ्वी की सतह से निकटता के कारण इनसे उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ एवं डेटा मिलते हैं।
- कई संचार उपग्रह एवं वैज्ञानिक मिशन में भी बेहतर संचरण गति तथा कम विलंबता के लिये LEO का उपयोग होता है।
- LEO उपग्रह ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS): LEO में परिक्रमा करने के कारण यह मानव अंतरिक्ष अन्वेषण तथा वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु सुलभ है।
- इसकी स्थिति से नियमित पुनःआपूर्ति मिशनों के साथ चालक दल के आवागमन में सुलभता आती है।
- लागत प्रभावशीलता एवं पहुँच: भूस्थिर कक्षा (GEO) जैसी उच्च कक्षाओं की तुलना में LEO में उपग्रहों को लॉन्च करना आसान और सस्ता है।
- कम ऊँचाई का अर्थ है कक्षा तक पहुँचने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता।
- उपग्रह अनुप्रयोग: LEO, पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों हेतु उपयुक्त है क्योंकि पृथ्वी की सतह से निकटता के कारण इनसे उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ एवं डेटा मिलते हैं।
LEO से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- LEO में अंतरिक्ष मलबा: LEO में उपग्रहों की बढ़ती संख्या के कारण अंतरिक्ष मलबे के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- इस कक्षा में निष्क्रिय उपग्रह, इनके टूटे हुए हिस्से तथा बेकार हो चुके रॉकेट होने से सक्रिय उपग्रहों एवं अंतरिक्ष यान के बीच टकराव का खतरा पैदा होता है।
- LEO में 14,000 से अधिक उपग्रह (जिनमें 3,500 निष्क्रिय उपग्रह भी शामिल हैं) हैं साथ ही लगभग 120 मिलियन मलबे के टुकड़े भी हैं।
- हाल की घटनाओं (जैसे कि चीन के रॉकेट एवं एक निष्क्रिय रूसी उपग्रह के विस्फोट) के कारण अंतरिक्ष में मलबा बढ़ जाने से ISS पर मौजूद उपग्रहों एवं अंतरिक्ष यात्रियों के समक्ष खतरा उत्पन्न हुआ है।
- टकराव का खतरा:
- LEO में उपग्रहों की संख्या बढ़ने से वर्ष 2024-29 के बीच 556 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होने का खतरा है।
- विगत वर्ष प्रति उपग्रह क्लोज़ एनकाउंटर में भी 17% की वृद्धि हुई है।
- LEO में उपग्रहों की संख्या बढ़ने से वर्ष 2024-29 के बीच 556 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होने का खतरा है।
- कक्षीय सेचुरेशन:
- स्पेसएक्स की स्टारलिंक (6,764 उपग्रह) जैसी कंपनियों द्वारा संचालित उपग्रहों के कारण इनकी बढ़ती संख्या से इनके प्रभावी विनियमन के साथ इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण हो गया है।
- प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ:
- व्यावसायिक हित: स्पेसएक्स की स्टारलिंक जैसी निजी कंपनियाँ प्रायः मालिकाना उपग्रह डेटा की सुरक्षा करती हैं, जिससे पारदर्शिता और डेटा साझाकरण में बाधा आती है। इससे उपग्रहों और अंतरिक्ष मलबे को प्रभावी ढंग से ट्रैक करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- मानकीकरण का अभाव: वर्तमान टकराव से बचने के तरीके अनौपचारिक हैं, जो असंगत डेटा प्रारूपों और प्रोटोकॉल पर निर्भर हैं।
- इस खंडित दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप जवाबदेही संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तथा उपग्रह प्रचालन के लिये सार्वभौमिक मानकों का विकास जटिल हो जाता है।
- रणनीतिक चिंताएँ:
- भू-राजनीतिक तनाव: देश प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण उपग्रह डेटा साझा करने में अनिच्छुक रहते हैं, विशेष रूप से नागरिक और सैन्य दोनों कार्यों वाले दोहरे उपयोग वाले उपग्रहों के संबंध में।
- यह अनिच्छा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और केंद्रीकृत अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन प्रणाली के निर्माण को जटिल बनाती है।
- LEO का सशस्त्रीकरण: चीन, अमेरिका, भारत (2019, मिशन शक्ति) और रूस (2021, कॉसमॉस 1408 का विनाश) जैसे देशों द्वारा एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल परीक्षणों ने अंतरिक्ष मलबे में काफी वृद्धि की है, जिससे LEO संचालन के लिये दीर्घकालिक जोखिम उत्पन्न हो गया है।
- चीन के SC-19 परीक्षण से 3,000 से अधिक ट्रैक करने योग्य टुकड़े उत्पन्न हुए।
- भू-राजनीतिक तनाव: देश प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण उपग्रह डेटा साझा करने में अनिच्छुक रहते हैं, विशेष रूप से नागरिक और सैन्य दोनों कार्यों वाले दोहरे उपयोग वाले उपग्रहों के संबंध में।
अंतरिक्ष मलबा: अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में खंडित प्राकृतिक वस्तुओं को संदर्भित करता है, जो अब किसी भी कार्यात्मक उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते हैं।
- इसमें निष्क्रिय उपग्रह, समाप्त हो चुके रॉकेट के चरण, तथा टकराव या अन्य घटनाओं से उत्पन्न टुकड़े शामिल हैं।
अंतरिक्ष मलबे से क्या खतरे हैं?
- परिचालन उपग्रहों के लिये खतरा: अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है, क्योंकि टकराव के कारण वे गैर-कार्यात्मक हो सकते हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण सेवाएँ बाधित हो सकती हैं।
- कक्षीय स्लॉटों में कमी: विशिष्ट कक्षीय क्षेत्रों में मलबे का संचय भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिये प्रमुख कक्षीय स्लॉटों की उपलब्धता को सीमित कर देता है।
- अंतरिक्ष स्थिति संबंधी जागरूकता में चुनौतियाँ: अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा अंतरिक्ष में वस्तुओं की गतिविधियों को ट्रैक करने और भविष्यवाणी करने के प्रयासों को जटिल बनाती है, जिससे उपग्रह ऑपरेटरों और अंतरिक्ष एजेंसियों के लिये स्थिति संबंधी जागरूकता बनाए रखना कठिन हो जाता है।
- केसलर सिंड्रोम: अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की बढ़ती संख्या से केसलर सिंड्रोम उत्पन्न हो सकता है, जिसमें कक्षा में मलबे का घनत्व बढ़ जाता है, जिससे टकराव तथा मलबे के और अधिक निर्माण की संभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2009 में एक निष्क्रिय रूसी उपग्रह एक अमेरिकी जलवायु उपग्रह से टकरा गया, जिससे हज़ारों मलबे के टुकड़े उत्पन्न हुए।
- केसलर सिंड्रोम नासा द्वारा प्रस्तावित बिग स्काई थ्योरी (वर्ष 1978) का खंडन करता है, जिसमें सुझाव दिया गया था कि अंतरिक्ष की विशालता के कारण अंतरिक्ष मलबा दीर्घकालिक समस्या उत्पन्न नहीं करेगा।
अंतरिक्ष मलबे की चुनौतियों से निपटने के लिये क्या पहलें हैं?
- भारतीय पहलें:
- इसरो की सुरक्षित एवं सतत् परिचालन प्रबंधन प्रणाली (IS4OM): इसे वर्ष 2022 में टकराव का जोखिम उत्पन्न करने वाली वस्तुओं की निरंतर निगरानी के लिये स्थापित किया गया था।
- यह अंतरिक्ष मलबे के विकास की भविष्यवाणी करता है, तथा इससे संबंधित खतरों को कम करने के लिये रणनीति विकसित करता है।
- टकराव से बचाव के उपाय: वर्ष 2022 में इसरो ने भारतीय परिचालन अंतरिक्ष परिसंपत्तियों और अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं के बीच संभावित प्रभावों को रोकने या टकराव से बचने के लिये 21 सफलतापूर्वक परीक्षण किये।
- अंतरिक्ष मलबा अनुसंधान केंद्र: इसकी स्थापना इसरो द्वारा अंतरिक्ष मलबे की निगरानी और शमन रणनीति विकसित करने के लिये एक समर्पित केंद्र के रूप में की गई थी।
- प्रोजेक्ट नेत्र: प्रोजेक्ट नेत्र अंतरिक्ष मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये एक पूर्व चेतावनी प्रणाली है। इसका उद्देश्य भारतीय उपग्रहों को टकराव से बचाना है।
- इसरो की सुरक्षित एवं सतत् परिचालन प्रबंधन प्रणाली (IS4OM): इसे वर्ष 2022 में टकराव का जोखिम उत्पन्न करने वाली वस्तुओं की निरंतर निगरानी के लिये स्थापित किया गया था।
- वैश्विक पहल:
- अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (IADC): अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (IADC) की स्थापना वर्ष 1993 में एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में की गई थी, जो अंतरिक्ष मलबे के बढ़ते मुद्दे के समाधान के लिये अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के बीच प्रयासों का समन्वय करती है।
- बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS): COPUOS बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये दिशानिर्देश विकसित करती है, जिसमें अंतरिक्ष मलबे के शमन के उपाय भी शामिल हैं।
- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की स्वच्छ अंतरिक्ष पहल: ESA की स्वच्छ अंतरिक्ष पहल का उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे को कम करना और मलबे के निर्माण से बचने के लिये प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करके तथा मौजूदा मलबे को हटाकर सतत् अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
अंतरिक्ष गतिविधियों पर संयुक्त राष्ट्र की पाँच संधियाँ
- बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि (1967)
- अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव, अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं की वापसी पर समझौता (1968)
- अंतरिक्ष वस्तुओं से होने वाली क्षति के लिये दायित्व पर अभिसमय (1972)
- बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के पंजीकरण पर अभिसमय (1976)
- चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता (1979)
- भारत ने सभी पाँच संधियों पर हस्ताक्षर कर दिये हैं, लेकिन मून एग्रीमेंट का अनुसमर्थन नहीं किया है।
आगे की राह
- बेहतर निगरानी: ट्रैकिंग प्रौद्योगिकियों को उन्नत करना और कक्षा मॉडल में सुधार करना मलबे का सटीक पता लगाने और प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- बेहतर समन्वय: जैसे-जैसे अंतरिक्ष यातायात बढ़ता है, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अंतरिक्ष में स्वचालित प्रणालियों या "राइट ऑफ वे" के निर्माण से भीड़भाड़ को कम करने और टकरावों को रोकने में मदद मिल सकती है।
- मलबे के उत्पादन को कम करना: एकल-उपयोग प्रक्षेपण वाहनों के स्थान पर पुन: प्रयोज्य रॉकेटों का उपयोग करने तथा अंतर्राष्ट्रीय नियमों को लागू करने से नए मलबे के उत्पादन को सीमित किया जा सकता है।
- भारत ने हाल ही में अपना पहला पुन: प्रयोज्य हाइब्रिड रॉकेट, RHUMI-1 लॉन्च किया, जिसे तमिलनाडु स्थित स्टार्ट-अप स्पेस ज़ोन इंडिया द्वारा विकसित किया गया है।
- सक्रिय मलबा हटाना: निष्क्रिय अंतरिक्ष मलबे को एकत्रित और हटाने के लिये हार्पून, चुंबक और लेजर जैसी प्रौद्योगिकियों की खोज की जा रही है।
- उदाहरण के लिये, इसरो ने वर्ष 2023 में मेघा ट्रॉपिक्स-1 को सफलतापूर्वक कक्षा से बाहर कर दिया था।
- हार्पून विशेष उपकरण हैं जिनका उपयोग अंतरिक्ष मलबे का संग्रहण और उसे कक्षा से बाहर निकालने के लिये किया जाता है।
- अंतरिक्ष यान को शक्तिशाली चुंबकों से सुसज्जित किया गया है ताकि चुंबकीय घटकों के साथ मलबे को आकर्षित किया जा सके और स्थानांतरित किया जा सके।
- निर्देशित लेजर किरणें अंतरिक्ष मलबे के प्रक्षेप पथ को बदलने के लिये छोटा बल प्रदान करती हैं, जिससे नियंत्रित गति संभव होती है।
- उदाहरण के लिये, इसरो ने वर्ष 2023 में मेघा ट्रॉपिक्स-1 को सफलतापूर्वक कक्षा से बाहर कर दिया था।
- ग्रेवयार्ड ऑर्बिट: भूस्थिर कक्षा (GSO) में अपने जीवनकाल के अंत के करीब पहुँच चुके उपग्रहों को अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये उनके अंतिम ईंधन का उपयोग करते हुए 36,000 किमी से आगे ग्रेवयार्ड ऑर्बिट में ले जाया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का अनुपालन: अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन और स्थायी अंतरिक्ष गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सुरक्षा उन्नयन संघ (IADC) जैसे दिशा-निर्देशों का सख्त पालन आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: अंतरिक्ष मलबा क्या है और इससे क्या चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं? इन चुनौतियों से निपटने के क्या उपाय हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाइये। (2014) |