भारत में विचाराधीन कैदी मताधिकार से वंचित | 22 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:लोकसभा चुनाव, मताधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, मौलिक अधिकार, भारत का निर्वाचन आयोग मेन्स के लिये:भारत में विचाराधीन कैदियों को मताधिकार से वंचित रखने के कानून, विचाराधीन कैदियों का मताधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चल रहे 18वीं लोकसभा के चुनाव के मद्देनज़र, देश भर की जेलों में बंद चार लाख से अधिक विचाराधीन कैदी व्यापक कानूनी प्रतिबंध के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग करने में असमर्थ हैं।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951- RPA) जेल में बंद व्यक्तियों के लिये मतदान पर प्रतिबंध लगाता है, भले ही वे दोषी ठहराए गए हों या मुकदमे की प्रतीक्षा में हों।
नोट:
- विचाराधीन कैदी वह व्यक्ति होता है जिस पर वर्तमान में मुकदमा चल रहा होता है या जो मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए रिमांड में कैद होता है या वह व्यक्ति जिस पर न्यायालय में मुकदमा चल रहा होता है।
- विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में 'विचाराधीन कैदी' की परिभाषा में उस व्यक्ति को भी शामिल किया गया है जो जाँच के दौरान न्यायिक अभिरक्षा में होता है।
- भारत में अपराध, 2022 रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि लगभग 500,000 से अधिक व्यक्ति,अपने कारावास के कारण वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने में असमर्थ होंगे।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत की जेलों में 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे, जो जेल में बंद कुल कैदियों की संख्या 5,73,220 का 76% थे।
विचाराधीन कैदियों को मतदान से रोका क्यों जाता है?
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5):
- कारावास या निर्वासन की सज़ा के तहत या पुलिस की वैध अभिरक्षा में जेल में बंद किसी व्यक्ति को किसी भी चुनाव में मतदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- मतदान से प्रतिबंधित होने के बावजूद, जिस व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है, वह मतदान करेगा।
- मतदान पर प्रतिबंध किसी मौजूदा कानून के तहत निवारक निरोध में रखे गए व्यक्ति पर लागू नहीं होता है।
- इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, जिसमें संसाधनों की कमी और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनावी परिदृश्य से दूर रखने की आवश्यकता जैसे कारणों का उल्लेख किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को संविधान की 'आधारभूत संरचना' के भाग के रूप में मान्यता देता है, लेकिन यह मतदान के अधिकार (अनुच्छेद 326) और निर्वाचित होने को मौलिक अधिकारों के बजाय वैधानिक अधिकार में अंतर स्पष्ट करता है, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैसे कानूनों द्वारा लगाए गए नियमों के अधीन है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 वयस्क मताधिकार का प्रावधान करता है। इसके अनुसार, 18 वर्ष से अधिक की आयु वाले प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार है, जब तक कि उसे अनिवासी, मानसिक अस्वस्थता, अपराध या भ्रष्ट आचरण के आधार पर अयोग्य न ठहराया जाए।
- कारावास या निर्वासन की सज़ा के तहत या पुलिस की वैध अभिरक्षा में जेल में बंद किसी व्यक्ति को किसी भी चुनाव में मतदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- दोषसिद्धि के बाद ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध:
- RPA, 1951 की धारा 8 किसी व्यक्ति को केवल कुछ अपराधों के लिये दोषी ठहराए जाने पर ही चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करती है, न कि केवल आरोप लगाए जाने पर।
- सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक आरोपों वाले या झूठे शपथ-पत्र दाखिल करने वालों को अयोग्य ठहराने की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें कहा गया है कि केवल विधायिका ही RPA, 1951 में परिवर्तन कर सकती है।
- अयोग्यता के अपवाद:
- भारत निर्वाचन आयोग कुछ परिस्थितियों में अयोग्यता की अवधि को परिवर्तित कर सकता है।
- एक अयोग्य सांसद या विधायक तब भी चुनाव लड़ सकता है यदि उच्च न्यायालय में अपील पर उसकी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी जाती है।
कैदियों को मताधिकार से वंचित करने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- अंग्रेज़ी ज़ब्ती अधिनियम, 1870: इसने राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी व्यक्तियों को अयोग्य घोषित कर दिया।
- इसके पीछे तर्क यह था कि एक बार जब किसी को ऐसे गंभीर अपराधों के लिये दोषी ठहराया जाता है, तो वह मताधिकार सहित अपने अन्य अधिकारों से भी वंचित हो जाता है।
- भारत सरकार अधिनियम, 1935: परिवहन, दंडात्मक दासता या कारावास की सज़ा काट रहे व्यक्तियों को मतदान करने से रोक दिया गया था।
- हालाँकि, RPA, 1951 ने इस तरह की मताधिकार से वंचितता को परिभाषित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। इसमें निर्दिष्ट किया गया है कि जेल में बंद व्यक्ति, कारावास या आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं या अन्यथा विधिपूर्ण पुलिस अभिरक्षा (कस्टडी) में निरोधित हैं, मतदान के लिये अयोग्य हैं। यह प्रावधान केवल निवारक हिरासत में रखे गए लोगों को निष्काषित करता है।
क्या विचाराधीन कैदियों के पास मताधिकार होना चाहिये?
विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति देने के पक्ष में तर्क |
विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति देने के विपक्ष में तर्क |
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भारत में मतदान के अधिकार के संबंध में कानूनी पूर्वाधिकार:
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आगे की राह
- जैसे-जैसे चुनावी प्रणालियाँ बदलती हैं और समावेशिता बढ़ती है वैसे-वैसे जेल में बंद कैदियों के बीच राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये वैकल्पिक रणनीतियों, जैसे मोबाइल वोटिंग इकाइयाँ या अनुपस्थित मतपत्र (Absentee Ballots), को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- कैदियों के लिये मतदान के अधिकार के महत्त्व एवं पुनर्वास तथा पुनः एकीकरण के लक्ष्य को देखते हुए, कैदियों को अत्यधिक हाशिये पर धकेलने के बजाय निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सार्थक रूप से भाग लेने के अवसर देने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- मतदान के अधिकार के संदर्भ में दोषी ठहराए गए कैदियों और मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे कैदियों के बीच अंतर किया जाना चाहिये।
- भारतीय संविधान में मतदान को एक मौलिक कर्त्तव्य (Fundamental Duty-FD) बनाने और बदले में मतदान को एक मौलिक अधिकार बनाने के लिये स्वर्ण सिंह समिति, 1976 की सिफारिश को शामिल किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में कैदियों को मताधिकार से वंचित करने के कानूनों के ऐतिहासिक संदर्भ और विकास की जाँच करें। इन कानूनों ने विचाराधीन कैदियों और दोषियों की लोकतांत्रिक भागीदारी को कैसे प्रभावित किया है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |