खेतों में लगी आग के बारे में उपग्रह डेटा में विसंगतियाँ | 27 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:वायु गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, INSAT-3DR, INSAT-3DS, पार्टिकुलेट मैटर मेन्स के लिये:पर्यावरण निगरानी में उपग्रह प्रौद्योगिकी, वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सरकारी पहल, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) और इसकी प्रभावशीलता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने उपग्रहों द्वारा एकत्र किये गए खेतों में आग के आँकड़ों में विसंगतियों को उज़ागर किया, जो वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा प्रदान किया जाता है। यह डेटा दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसके जवाब में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मौजूदा उपग्रह डेटा में अंतराल को स्वीकार किया और खेतों में आग से संबंधित डेटा का अधिक सटीक विश्लेषण करने के लिये आंतरिक एल्गोरिदम विकसित करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की।
खेतों में आग लगने की घटनाओं पर वर्तमान उपग्रह डेटा में क्या समस्याएँ हैं?
- आँकड़ों की सटीकता: राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) के ध्रुवीय-कक्षा उपग्रहों से प्राप्त आँकड़े, खेतों में आग लगने की घटनाओं की सटीक गणना करने के लिये अपर्याप्त हैं।
- इसका मुख्य कारण हरियाणा और पंजाब के क्षेत्रों में उनकी सीमित अवलोकन अवधि है।
- भारत के INSAT-3DR सहित वर्तमान उपग्रह कम रिज़ोल्यूशन वाली छवियाँ प्रदान करते हैं, जो खेतों में लगी आग की सटीक गणना करने के लिये अपर्याप्त हैं।
- यह समस्या विशेष रूप से भारत में इन डेटा सेटों के मापांकन और सत्यापन की कमी के कारण और भी जटिल हो गई है।
- जलवायु परिस्थितियाँ, विशेषकर बादल और जलवाष्प, उपग्रह सेंसरों को बाधित कर सकते हैं, जिससे सटीक रीडिंग और डेटा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, मौसमी परिवर्तन और दिन के समय की विसंगतियाँ अग्नि पहचान सीमा की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं, जिससे लगातार निगरानी में बाधा उत्पन्न होती है।
- किसानों द्वारा पराली जलाने में बदलाव: किसान कथित तौर पर उपग्रहों की निगरानी से बचने के लिये पराली जलाने की अपनी गतिविधियों का समय तय कर रहे हैं। वे अक्सर पराली जलाने में उपग्रहों की गतिविधियों से बचने का प्रयास करते हैं।
- इसका नतीजा यह होता है कि सरकारी आँकड़ों में खेतों में आग लगने की घटनाओं की संख्या कम रहती है। इससे खेतों में आग लगने की घटनाओं की निगरानी के लिये सरकारी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले आँकड़ों की सटीकता के संबंध में चिंताएँ पैदा होती हैं।
- असंगत रिपोर्टिंग: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जताई गई चिंताओं के बावजूद, CAQM द्वारा अभी तक आवश्यक डेटा समायोजन सार्वजनिक नहीं किया गया है जिससे पारदर्शिता एवं पराली जलाने के मुद्दे के वास्तविक परिदृश्य पर सवाल उठ रहे हैं।
भारत में खेतों में लगी आग के सटीक आँकड़ों की आवश्यकता क्यों है?
- वायु गुणवत्ता पर प्रभाव: विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में खेतों में लगाई जाने वाली आग से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के क्षेत्रों में गंभीर वायु प्रदूषण को बढ़ावा (विशेष रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान) मिलता है।
- बेहतर नीति नियोजन: खेतों में लगने वाली आग के बारे में सटीक आँकड़े सरकारी एजेंसियों को प्रदूषण कम करने, कृषि पद्धतियों को विनियमित करने एवं फसल अवशेष प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने के लिये समय पर कार्यवाही करने में मदद कर सकते हैं।
- खेतों में आग लगने के सटीक आँकड़े, फसल जलने की अधिक घटनाओं वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक हो सकते हैं, जिससे ऐसे क्षेत्रों में पराली जलाने के विकल्प को बढ़ावा देने या धारणीय कृषि पद्धतियों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने जैसे हस्तक्षेपों को बढ़ावा मिल सकता है।
- स्वास्थ्य जोखिम: खेतों में लगी आग से निकलने वाले सूक्ष्म कण (PM 2.5) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं। इससे उच्च प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को श्वसन संबंधी समस्याएँ, हृदय संबंधी बीमारियाँ एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं।
- विश्वसनीय डेटा स्वास्थ्य अधिकारियों को विभिन्न क्षेत्रों में कार्यों का समन्वय करके इन जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने एवं उन्हें कम करने में सहायक होता है।
- उपग्रह निगरानी में सुधार हेतु ISRO के प्रयास: ISRO ने स्वीकार किया है कि वर्तमान डेटा प्रसंस्करण एल्गोरिदम पंजाब एवं हरियाणा जैसे क्षेत्रों की आग की घटनाओं का सटीक पता लगाने के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
- यह विदेशी उपग्रह डेटा का अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण करने के लिये आंतरिक एल्गोरिदम विकसित करने पर कार्यरत है।
- ISRO का लक्ष्य अपने उपग्रह INSAT-3DS को फरवरी 2025 तक उन्नत करना है ताकि खेतों में लगी आग का अधिक सटीकता से पता लगाने की इसकी क्षमता में सुधार हो सके।
- ISRO आगामी GISAT-1 के साथ उपग्रह क्षमताओं में सुधार करने पर कार्य कर रहा है लेकिन उपग्रह प्रक्षेपण से संबंधित समस्याओं के कारण प्रगति में देरी हो रही है।
- उच्च रिजोल्यूशन इमेजिंग वाले RESOURCESAT-2A जैसे उपग्रहों के उपयोग से खेतों में लगने वाली आग एवं वायु गुणवत्ता पर उसके प्रभाव की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।
खेतों में लगी आग क्या है?
- परिचय: खेतों में लगने वाली आग से तात्पर्य आमतौर पर कृषि क्षेत्रों में जानबूझकर लगाई जाने वाली आग से है, मुख्य रूप से फसल कटाई के मौसम के बाद फसल अवशेषों को साफ करने के लिये, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ पराली जलाई जाती है।
- इन आगों में अक्सर बचे हुए पुआल, अवशेष/ठूंठ या फसल अवशेषों को जलाया जाता है ताकि अगले रोपण सीजन के लिये खेतों को शीघ्रता से तैयार किया जा सके।
- हालाँकि मशीनरी की खराबी या अन्य अनपेक्षित कारणों से भी खेतों में आग लग सकती है।
- खेतों में आग लगाने से संबंधित चिंताएँ: खेतों में आग लगाना किसानों के लिये लागत प्रभावी और समय बचाने वाला तरीका हो सकता है, लेकिन यह वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि इससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में धुआँ, कण पदार्थ और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।
- फसल अवशेषों को जलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर जैसे आवश्यक पोषक तत्त्वों की हानि होती है, जो मृदा उर्वरता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- फसल अवशेष प्रबंधन (CRM): CRM विकल्पों को स्व-स्थानिक (In-Situ) और बाह्य-स्थानिक (Ex-Situ) प्रबंधन विकल्पों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
स्व-स्थानिक फसल अवशेष प्रबंधन (अवशेषों को सीधे खेत में ही निपटाया जाता है) |
बाह्य-स्थानिक फसल अवशेष प्रबंधन (खेत से अवशेषों को हटाना और उनका अन्य प्रयोजनों के लिये उपयोग करना) |
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग क्या है?
- परिचय: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के क्षेत्रों में CAQM की स्थापना वर्ष 2020 में एक अध्यादेश के माध्यम से की गई थी, जिसे बाद में NCRऔर आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।
- इसका मुख्य उद्देश्य बेहतर समन्वय, अनुसंधान और प्रदूषण संबंधी समस्याओं के समाधान के माध्यम से, विशेष रूप से दिल्ली और आसपास के राज्यों में वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान करना है।
- CAQM ने EPCA (पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण) का स्थान लिया, जिसका गठन वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया था।
- CAQM की शक्तियाँ: वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये निर्देश जारी करना तथा आवश्यक उपाय करना है। वायु गुणवत्ता और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित शिकायतों की जाँच करना।
- CAQM अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिकारियों द्वारा गैर-अनुपालन के खिलाफ कार्यवाही करना। वायु गुणवत्ता और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित शिकायतों की जाँच करना।
- यह वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों और कृषि अपशिष्ट जलाने जैसे प्रमुख प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करने के लिये कार्य योजनाएँ तैयार करता है।
- इसकी प्रमुख पहलों में से एक ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRP) है, जो प्रदूषण की गंभीरता के आधार पर प्रतिबंधों को लागू करता है।
- यह वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों और कृषि अपशिष्ट जलाने जैसे प्रमुख प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करने के लिये कार्य योजनाएँ तैयार करता है।
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान: यह दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये एक सक्रिय रणनीति है। इसमें वायु गुणवत्ता के स्तर के आधार पर चरणबद्ध कार्यवाही शामिल है, जो उच्च प्रदूषण अवधि के दौरान स्वास्थ्य जोखिम एवं पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये समय पर प्रबंधन सुनिश्चित करती है।
- चरण I (AQI 201-300): "खराब" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहन संबंधी नियमों का सख्ती से पालन जैसे कदम उठाए जाते हैं।
- चरण II (AQI 301-400): "बहुत खराब" वायु गुणवत्ता, क्षेत्र में चिह्नित हॉटस्पॉट पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये लक्षित कार्यवाही और सभी क्षेत्रों में डीज़ल जेनरेटर का विनियमित संचालन निर्धारित किया गया है।
- चरण III (AQI 401-450): "गंभीर" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहन प्रतिबंध और संभावित स्कूल बंद होने की संभावना शामिल है।
- चरण IV (AQI > 450): "गंभीर+" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहनों के प्रवेश पर कड़े प्रतिबंध तथा गैर-आवश्यक व्यवसायों एवं शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने की संभावना होती है।
भारत की फसल अवशेष प्रबंधन पहल
- बेलर मशीन
- जैव अपघटक
- फसल अवशेष प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय नीति (NPMSR): वर्ष 2014 में, कृषि मंत्रालय ने अवशेष जलाने पर रोक लगाने के लिये NPMSR की शुरुआत की। इसके मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं:
- फसल अवशेषों के इष्टतम उपयोग और इन-सीटू प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना। खेती के लिये उपयुक्त मशीनरी का समर्थन करना।
- नवीन परियोजनाओं के लिये बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से निगरानी और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये उपग्रह-आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
आगे की राह:
- किसानों को पराली जलाने के विकल्पों के बारे में शिक्षित तथा स्थायी प्रथाओं के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना, खेतों में आग लगने की घटनाओं को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- इन-सीटू और एक्स-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा देने से पराली जलाने की आवश्यकता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- पुरानी हो चुकी सैटेलाइट तकनीक और आग लगने के आँकड़ों के तरीकों पर निर्भरता पर फिर से ध्यान देना आवश्यक है। GIO इमेज़िंग सैटेलाइट से डेटा एकत्र करना और अधिक उन्नत तकनीकों को शामिल करना, जैसे कि उच्च-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेज़री, और जले हुए क्षेत्रों की सीमा को ट्रैक करने के लिये मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, खेत में लगने वाली आग की अधिक सटीक जानकारी प्रदान करेगा।
- बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये, सभी प्रभावित राज्यों में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिये एक अखिल-क्षेत्रीय नीति, सुसंगत दिशा-निर्देशों एवं समन्वित प्रवर्तन के साथ आवश्यक है।
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