शासन व्यवस्था
दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला
- 26 Mar 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, प्रवर्तन निदेशालय (ED), कोविड-19 महामारी, संविधान का अनुच्छेद 361, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951। मेन्स के लिये:दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, प्रवर्तन निदेशक, इसके कार्य और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली की एक मजिस्ट्रेट न्यायालय ने उत्पाद शुल्क नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की हिरासत में भेज दिया है।
- ED ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पर दिल्ली उत्पाद शुल्क घोटाले का "मुख्य साजिशकर्त्ता" होने का आरोप लगाया है।
क्या है दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला?
- परिचय:
- दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22 के निर्माण और कार्यान्वयन से जुड़े मामले को संदर्भित करता है।
- यह नीति, जो नवंबर 2021 में लागू हुई, बाद में प्रक्रियात्मक खामियों, भ्रष्टाचार और सरकारी कोष को वित्तीय नुकसान के आरोपों के कारण जुलाई 2022 में रद्द कर दी गई।
- प्रमुख आरोप:
- मनमाने निर्णय: दिल्ली के मुख्य सचिव की रिपोर्ट में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और उत्पाद शुल्क मंत्री द्वारा किये गए मनमाने एवं एकतरफा निर्णयों को उजागर किया गया, जिसके कारण कथित तौर पर 580 करोड़ रुपए से अधिक का वित्तीय नुकसान हुआ।
- साजिश और रिश्वत: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोप लगाया है कि शराब कारोबार में कुछ निजी कंपनियों को 12% लाभ मार्जिन प्रदान करने की साजिश के तहत नई उत्पाद शुल्क नीति लागू की गई थी।
- यह आरोप लगाया गया है कि इस व्यवस्था में 6% की रिश्वत शामिल थी।
- किकबैक (Kickback) एक प्रकार की रिश्वतखोरी या भ्रष्ट भुगतान को संदर्भित करता है, जो किकबैक प्रदान करने वाले व्यक्ति के पक्ष में लेनदेन या निर्णय को सुविधाजनक बनाने या प्रभावित करने के बदले में किसी को, आमतौर पर एक सार्वजनिक अधिकारी या व्यवसायी को दिया जाता है।
- कार्टेल गठन और पक्षपातपूर्ण/अधिमान्य व्यवहार: ED का आरोप है कि नीति को कार्टेल गठन को बढ़ावा देने और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं को लाभ पहुँचाने के लिये जानबूझकर कमियों के साथ तैयार किया गया था।
- शराब व्यवसाय मालिकों और ऑपरेटरों को रिश्वत के बदले में छूट, लाइसेंस शुल्क में विस्तार, जुर्माने में छूट और कोविड-19 महामारी के कारण हुए व्यवधानों के कारण राहत जैसे अधिमान्य उपचार प्रदान किये गए।
- चुनावों पर प्रभाव: आरोप है कि इस योजना के माध्यम से प्राप्त रिश्वत का इस्तेमाल वर्ष 2022 की शुरुआत में पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिये किया गया था।
- नई दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, जिसमें राज्य सरकार के लिये अधिकतम राजस्व सुनिश्चित करने और नकली या अवैध शराब की बिक्री का विरोध करने की मांग की गई थी, पर "प्रक्रियात्मक कमियों" के व्यापक आरोप लगे। इसने सरकार को 1 अगस्त, 2022 से इसे समाप्त करने के लिये मजबूर कर दिया है।
- नई नीति के तहत, दिल्ली में शराब की सभी निजी स्वामित्व वाली और संचालित दुकानों की संख्या लगभग 630 से बढ़कर 850 हो जानी थी। कोई व्यक्ति एकाधिक शराब खुदरा लाइसेंस रख सकता था और व्यापार के लिये "भारी विनियमित" उत्पाद शुल्क व्यवस्था को आसान बनाया जाना था।
- संशोधित उत्पाद शुल्क नीति विवादों में आ गई क्योंकि राजधानी में निजी शराब की दुकानें खुल रही थीं। इनमें से कई दुकानों को गैर-अनुरूप क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न उल्लंघनों के लिये MCD द्वारा सील कर दिया गया था, जहाँ शराब खुदरा जैसे कुछ व्यवसायों की अनुमति नहीं है।
क्या कोई निवर्तमान मुख्यमंत्री जेल से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन चला सकता है?
- संवैधानिक नैतिकता और सुशासन:
- भारतीय संविधान इस मुद्दे का स्पष्ट रूप से निराकरण नहीं करता है कि क्या कोई मुख्यमंत्री (CM) जेल में रहकर सरकार चला सकता है।
- हालाँकि, विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों ने सार्वजनिक पद धारण करने में संवैधानिक नैतिकता, सुशासन एवं सार्वजनिक विश्वास के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
- राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के रूप में मुख्यमंत्री प्रतिरक्षित नहीं:
- भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल ही एकमात्र ऐसे संवैधानिक पदधारक हैं, जिन्हें कानून के अनुसार अपना कार्यकाल समाप्त होने तक नागरिक तथा आपराधिक कार्यवाही से छूट प्राप्त है।
- संविधान के अनुच्छेद 361 में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपाल "अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के निर्वहन में किये गए किसी भी कार्य" के लिये किसी भी न्यायालयो के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
- अनुच्छेद 361, राज्यपाल तथा राष्ट्रपति के विपरीत, किसी केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक या उपराज्यपाल (LG) को छूट नहीं देता है।
- लेकिन यह छूट उन प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्रियों को नहीं प्राप्त है जिन्हें संविधान के अंर्तगत समान माना जाता है जो कानून के समक्ष समानता के अधिकार की वकालत करता है।
- फिर भी, केवल गिरफ्तारी के लिये वे अयोग्य नहीं हो जाते।
- कानूनी ढाँचा:
- कानून के अनुसार, किसी मुख्यमंत्री को केवल तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है अथवा पद से हटाया जा सकता है, जब वह किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है।
- अरविंद केजरीवाल के मामले में उन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में कुछ अपराधों के लिये अयोग्यता के प्रावधान हैं, लेकिन पद संभालने वाले किसी भी व्यक्ति को दोषी पाया जाना अनिवार्य है।
- मुख्यमंत्री केवल दो स्थितियों में शीर्ष पद से हटाया जा सकता है- विधानसभा में बहुमत का समर्थन खो देने पर अथवा सरकार के विरुद्ध एक सफल अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करते हैं।
- कानून के अनुसार, किसी मुख्यमंत्री को केवल तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है अथवा पद से हटाया जा सकता है, जब वह किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है।
- सार्वजनिक पद धारण करने हेतु बुनियादी मानदंड:
- जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मनोज नरूला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला, वर्ष 2014 में उल्लेख किया है, सार्वजनिक पद संभालने के बुनियादी मानदंडों में संवैधानिक नैतिकता, सुशासन तथा संवैधानिक विश्वास शामिल हैं।
- सार्वजनिक अधिकारियों से इन सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
- न्यायालय ने माना है कि नागरिक सत्ता में बैठे व्यक्तियों से नैतिक आचरण के उच्च मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा करते हैं।
- यह अपेक्षा विशेषकर मुख्यमंत्री जैसे पदों के लिये बहुत अधिक है, जिन्हें जनता के विश्वस्त के रूप में देखा जाता है।
- जेल से कार्य करने की व्यावहारिक कठिनाइयाँ:
- जेल से सरकार चलाने वाले एक मुख्यमंत्री की व्यावहारिक चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण के लिये, उन्हें आधिकारिक दस्तावेज़ों तक पहुँचने अथवा सरकारी अधिकारियों के साथ संचार करने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
- इस बारे में भी प्रश्न उठ सकता है कि क्या हिरासत में रहते हुए वे प्रभावी ढंग से अपने कर्त्तव्यों को पूर्ण कर सकते हैं।
- जेल से सरकार चलाने वाले एक मुख्यमंत्री की व्यावहारिक चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण तथा कानूनी मामले:
- एस.रामचंद्रन बनाम वी. सेंथिल बालाजी केस, 2023 में मद्रास उच्च न्यायालय ने वित्तीय घोटाले के आरोपी मंत्री द्वारा पद धारण करने के अपने अधिकार की समाप्ति के संबंध में विचार किया।
- मद्रास HC के निर्णय ने हिरासत में रहते हुए मंत्री का पद धारण करने की व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रकाश डाला।
- न्यायालय के निर्णय के अनुसार किसी मुख्यमंत्री के लिये कारावास से सरकार का संचालन करना तकनीकी रूप से संभव हो सकता है, किंतु ऐसी परिस्थितियों में उसके नेतृत्व की वैधता और प्रभावशीलता एक चिंता का विषय है।
- उच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति द्वारा अपने संबंधित कर्त्तव्यों का अनुपालन किये बिना सार्वजनिक पद पर रहते हुए सरकारी खज़ाने से वेतन प्राप्त करने के संबंध में प्रश्न किया।
- राष्ट्रपति शासन:
- चूँकि किसी भी मुख्यमंत्री के लिये कारावास से सरकार का संचालन करना अव्यावहारिक है इसलिये उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239AB के तहत दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिये 'राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता' का हवाला दे सकते हैं, जिसमें मुख्यमंत्री के इस्तीफे की प्रक्रिया शामिल होती है।
- राष्ट्रपति शासन के तहत संबद्ध राष्ट्रीय राजधानी पर केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण हो जाएगा।
- चूँकि किसी भी मुख्यमंत्री के लिये कारावास से सरकार का संचालन करना अव्यावहारिक है इसलिये उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239AB के तहत दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिये 'राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता' का हवाला दे सकते हैं, जिसमें मुख्यमंत्री के इस्तीफे की प्रक्रिया शामिल होती है।
ED क्या है?
- परिचय:
- प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक बहुअनुशासनिक संगठन है जो धन शोधन के अपराध और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जाँच के लिये अधिदेशित है।
- यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।
- भारत सरकार की एक प्रमुख वित्तीय जाँच एजेंसी के रूप में ED भारत के संविधान और कानूनों के सख्ती से अनुपालन हेतु कार्य करती है।
- संरचना:
- मुख्यालय: ED का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है जिसकी अध्यक्षता प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।
- मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में ED के पाँच क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं जिनकी अध्यक्षता विशेष प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।
- भर्ती: इसमें अधिकारियों की भर्ती प्रत्यक्ष रूप से और अन्य अन्वेषण एजेंसियों में कार्यरत अधिकारियों में से की जाती है।
- इसमें IRS (भारतीय राजस्व सेवा), IPS (भारतीय पुलिस सेवा) और IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) जैसे आयकर अधिकारी, उत्पाद शुल्क अधिकारी, सीमा शुल्क अधिकारी तथा पुलिस के अधिकारी शामिल हैं।
- कार्यकाल: इसका कार्यकाल दो वर्ष का होता है, किंतु निदेशकों का कार्यकाल तीन वार्षिक विस्तार के साथ दो से पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 (ED के लिये) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम, 2003 (CV आयुक्तों के लिये) में संशोधन किया गया, जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा दोनों प्रमुखों के दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें उनके पद पर एक वर्ष के लिये बनाए रखने की शक्ति प्रदान करना था।
- मुख्यालय: ED का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है जिसकी अध्यक्षता प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।
- कार्य:
- COFEPOSA: विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम (Conservation of Foreign Exchange and Prevention of Smuggling Activities Act- COFEPOSA), 1974 के तहत, निदेशालय को FEMA के उल्लंघन के संबंध में निवारक निरोध के मामलों को प्रायोजित करने का अधिकार है।
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा): यह बाहरी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाने तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार के व्यवस्थित विकास एवं रखरखाव को बढ़ावा देने से संबंधित कानूनों को समेकित व संशोधित करने हेतु अधिनियमित एक नागरिक कानून है।
- ED को विदेशी मुद्रा कानूनों और विनियमों के संदिग्ध उल्लंघनों की जाँच करने, कानून का उल्लंघन करने वालों पर निर्णय लेने तथा ज़ुर्माना लगाने की ज़िम्मेदारी दी गई है।
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA): वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की सिफारिशों के बाद भारत ने PMLA लागू किया।
- ED को अपराध की आय से प्राप्त संपत्ति का पता लगाने, संपत्ति को अस्थायी रूप से संलग्न करने तथा विशेष न्यायालय द्वारा अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और संपत्ति की ज़ब्ती सुनिश्चित करने के लिये जाँच करके PMLA के प्रावधानों को क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA): विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ, भारत सरकार ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA) पेश किया और ED को इसके प्रवर्तन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
- यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिये बनाया गया था।
- इस कानून के तहत, ED को उन भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को कुर्क करने और केंद्र सरकार को उनकी संपत्तियों को ज़ब्त करने का प्रावधान करने का आदेश दिया गया है, जो गिरफ्तारी के डर से भारत से भाग गए हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मद समूह सम्मिलित है? (2013) (a)विदेशी मुद्रा संपत्ति, विशेष आहरण अधिकार और विदेशों से ऋण उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइए। (2021) |