C.B.I और राज्यों की सहमति
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो मेन्स के लिये:C.B.I. और राज्यों की सहमति का मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार की सहमति उसके अधिकार क्षेत्र में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) द्वारा जाँच के लिये अनिवार्य है और इसके बिना सीबीआई जाँच नहीं कर सकती है। न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एक पीठ ने कहा कि यह प्रावधान संविधान के संघीय ढाँचे के अनुरूप है।
प्रमुख बिंदु:
- पृष्ठभूमि:
- उत्तर प्रदेश सरकार के दो अधिकारियों ने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सामान्य सहमति पर्याप्त नहीं थी और उनकी जाँच किये जाने से पहले अलग सहमति प्राप्त की जानी चाहिये थी।
- उत्तर प्रदेश राज्य ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत अपराधों की जाँच के लिये DSPE के सदस्यों की शक्तियों एवं अधिकार क्षेत्र के विस्तार के लिये एक सामान्य सहमति प्रदान की है।
- हालाँकि राज्य सरकारों के तहत लोक सेवकों के मामले में जाँच के लिये राज्य द्वारा दी गई सामान्य सहमति के बाद भी संबंधित राज्य से पूर्व सहमति की आवश्यकता होती है।
- उत्तर प्रदेश सरकार के दो अधिकारियों ने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सामान्य सहमति पर्याप्त नहीं थी और उनकी जाँच किये जाने से पहले अलग सहमति प्राप्त की जानी चाहिये थी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दो लोक सेवकों के खिलाफ ‘पोस्ट फैक्टो’ (Post Facto) की सहमति दी थी। गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय का पक्ष:
- यह माना जाता है कि यदि राज्य ने भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जाँच के लिये सामान्य सहमति दी और न्यायालय द्वारा संज्ञान लिया गया तो केस को तब तक अलग नहीं रखा सकता जब तक कि लोक सेवक यह निवेदन नहीं करते कि पक्षपात का कारण पूर्व सहमति न लेना है।
- इसके अलावा न्यायाधीशों ने कहा कि केस को तब तक अलग नहीं रखा जा सकता जब तक कि जाँच में अवैधता को न्याय की विफलता के संदर्भ में न दिखाया जा सके।
राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली ‘सहमति’ के प्रकार:
- सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। यद्यपि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, किंतु राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह एजेंसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
- दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) की धारा 6 के मुताबिक, दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कोई भी सदस्य किसी भी राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करेगा।
- जब एक सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार से जाँच के लिये केस के आधार पर प्रत्येक बार सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
- यह सीबीआई द्वारा निर्बाध जाँच में बाधा डालती है। ‘सामान्य सहमति’ सामान्यतः CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है, ताकि CBI की जाँच सुचारु रूप से चले सके और उसे बार-बार राज्य सरकार के समक्ष आवेदन न करना पड़े। लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई हो तो CBI को प्रत्येक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होता है।
राज्यों द्वारा सामान्य सहमति की वापसी का मुद्दा:
- हाल ही में यह देखा गया है कि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल आदि विभिन्न राज्यों ने केंद्र एवं राज्यों के बीच झगड़े के परिणामस्वरूप अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है।
- सहमति की वापसी का प्रभाव: किसी भी राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने का अर्थ है कि अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा उस राज्य में नियुक्त किसी भी केंद्रीय कर्मचारी अथवा किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध तब तक नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा, जब तक कि केंद्रीय एजेंसी को राज्य सरकार से उस मामले के संबंध में केस-विशिष्ट सहमति नहीं मिल जाती।
- इस प्रकार सहमति वापस लेने का सीधा मतलब है कि जब तक राज्य सरकार उन्हें केस-विशिष्ट सहमति नहीं दे देती, तब तक उस राज्य में CBI अधिकारियों के पास कोई शक्ति नहीं है।
- सीबीआई के पास पहले से ही दर्ज मामलों की जाँच पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि पुराने मामले तब दर्ज हुए थे जब सामान्य सहमति प्रदान की गई थी।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम
(Delhi Special Police Establishment- DSPE Act):
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया गया था ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके।
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment- DSPE Act), 1946 को लागू करके भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों के अन्वेषण हेतु एक एजेंसी के रूप में इसकी औपचारिक शुरुआत की गई।
- CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 द्वारा अन्वेषण करने की शक्ति प्राप्त है।