शासन व्यवस्था
भ्रष्टाचार रोकथाम संशोधन विधेयक को लोकसभा की मंज़ूरी
- 25 Jul 2018
- 5 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) विधेयक, 2018 पारित कर दिया है जो रिश्वत देने वालों और रिश्वत लेने वालों को दंडित करने का प्रावधान करता है। यह विधेयक लोक सेवकों के रिश्वत देने या लेने का दोषी पाए जाने पर ज़ुर्माना के अलावा तीन से सात साल तक के जेल की सज़ा का प्रावधान करता है|
प्रमुख बिंदु
- यह विधेयक सरकारी कर्मचारियों का दायरा भी बढ़ाता है जिन्हें अभियोजन पक्ष के लिये पूर्व सरकारी मंज़ूरी के प्रावधान से संरक्षित किया जाएगा।
- जाँच शुरू करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति पाने के प्रावधान ने कई लोगों को यह कहने को प्रेरित किया है कि कानून अपने मूल मसौदे से "कमज़ोर" हो गया है।
- संशोधन विधेयक में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को दो साल के अंदर ही निपटाना होगा| राज्यसभा में एक सप्ताह पहले ही इस बिल को मंज़ूरी मिल गई थी| विधेयक में सरकारी कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार का मामला शुरू करने से पहले लोकपाल और राज्य के लोकायुक्त की अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है|
सुरक्षा उपायों को शामिल किया जाना
- विधेयक में यह सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षा प्रदान की गई है कि ईमानदार अधिकारी को झूठी शिकायतों से धमकाया न जा सके।
- पहले का भ्रष्टाचार विरोधी कानून और वर्तमान कानून "कपटपूर्ण रिश्वत देने वालों" और जो “मजबूर(coerced)” हैं, के बीच एक अंतर बताता है। ऐसे मामलों में विधेयक उन लोगों की रक्षा करता है जो इस मामले की रिपोर्ट सात दिनों के भीतर करते हैं।
सरकार पर आरोप
- बहस में भाग लेने वाले कई सदस्यों ने चुनाव व्यय को रोकने और राजनीति में भ्रष्टाचार को रोकने के लिये चुनावों में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल दिया।
- एक संसद सदस्य ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त शासन के दावे के बावजूद मल्टी-करोड़ राफेल सौदा, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या द्वारा बैंक धोखाधड़ी सहित कई घटनाओं को अंजाम दिया गया है। सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात करती है लेकिन वास्तविकता विल्कुल विपरीत है। देश में अधिकतम भ्रष्टाचार और न्यूनतम रोकथाम है| लोकपाल की नियुक्ति में देरी पर भी सवाल उठाया गया।
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम,1988
- भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 भारतीय संसद द्वारा पारित केंद्रीय कानून है जो सरकारी तंत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भ्रष्टाचार को कम करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
- इसके पश्चात् भारत ने यूएनसीएसी की पुष्टि, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार आदि अपराधों से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई जैसे घटनाक्रमों की भी अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों में समीक्षा की जानी आवश्यक हो गई ताकि इसे भी अंतर्राष्ट्रीय कार्यप्रणाली के अनुरूप लाया जा सके और यूएनसीएसी के अंतर्गत देश के दायित्वों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके।
- भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2013 को इसी उद्देश्य के अंतर्गत 19 अगस्त, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया। इस विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने राज्यसभा को 6 फरवरी, 2014 को इस विधेयक पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी लेकिन विधेयक पारित नहीं हो सका।
- विधेयक में रिश्वतखोरी से संबंधित अपराधों को परिभाषित करने के एक महत्त्वपूर्ण बदलाव के विचार को देखते हुए प्रस्तावित संशोधनों पर भारतीय विधि आयोग के विचार मांगे गए थे। भारतीय विधि आयोग की 254वीं रिपोर्ट के द्वारा की गई सिफारिशों के अऩुरूप इस विधेयक में संशोधन किये गए हैं।