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केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो और सामान्य सहमति का मुद्दा

  • 24 Oct 2020
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (TRP), राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA)

मेन्स के लिये 

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की कार्यप्रणाली और इससे संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में मामलों की जाँच के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) को दी गई ‘सामान्य सहमति’ (General Consent) वापस ले ली है। महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय का अर्थ है कि अब राज्य में पंजीकृत होने वाले किसी भी मामले की जाँच करने के लिये केंद्रीय एजेंसी को अलग से सहमति लेनी होगी। 

प्रमुख बिंदु

  • महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय उन मामलों को प्रभावित नहीं करेगा, जिनकी जाँच पहले से ही केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा की जा रही हैं।

कारण

  • महाराष्ट्र सरकार द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को दी गई सामान्य सहमति को वापस लेने का निर्णय इस संदेह से प्रेरित लगता है कि कथित टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (TRP) घोटाले की जाँच का मामला केंद्रीय एजेंसी को हस्तांतरित किया जा सकता है, जबकि अभी इसकी जाँच मुंबई पुलिस द्वारा की जा रही है।
    • महाराष्ट्र सरकार को डर है कि यदि यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पास जाता है तो इसकी जाँच सही ढंग से नहीं की जाएगी।
    • इससे पूर्व केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उत्तर प्रदेश में एक मामले की जाँच को अपने अधीन कर लिया था, जबकि उसकी जाँच उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही थी।
    • वहीं कुछ माह पहले महाराष्ट्र में भी CBI ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले की जाँच को बिहार सरकार की अपील पर अपने अधीन कर लिया था, जिसकी जाँच पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की जा रही थी।

निहितार्थ

  • महाराष्ट्र, CBI से अपनी सामान्य सहमति लेने वाला पहला राज्य नहीं है, इससे पूर्व आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली पर अविश्वास जताते हुए अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
  • बीते कुछ वर्षों में ऐसे कई अवसर देखने को मिले हैं, जब राज्य सरकार ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) पर केंद्र सरकार के इशारों पर कार्य करने का संदेह व्यक्त किया था।

प्रभाव

  • महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और राज्य सरकार दोनों पर ही काम के बोझ को बढ़ाएगा। 
  • ‘सामान्य सहमति’ न होने की स्थिति में जब भी CBI केंद्र सरकार के कर्मचारी पर कार्यवाही शुरू करेगी, तो उसे इस संबंध में मामला दर्ज करने से पूर्व महाराष्ट्र सरकार से मंज़ूरी लेनी होगी।
  • इसी तरह महाराष्ट्र सरकार के विभागों को भी मामलों के आधार पर बार-बार जाँच का अनुमोदन करना होगा, जिससे विभागों पर काम का अनावश्यक बोझ बढ़ेगा।
  • हालाँकि केंद्रीय एजेंसी द्वारा इस संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय का सहारा लिया जा सकता है। रमेश चंद्र सिंह बनाम CBI वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा अपने स्वयं के अधिकारियों की जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने की शक्ति किसी भी तरह से राज्य सरकार द्वारा बाधित नहीं की जा सकती है, भले ही अपराध राज्य के अधिकार क्षेत्र में किया गया हो।

क्या है ‘सामान्य सहमति’?

  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के विपरीत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)  दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) द्वारा शासित है, जो केंद्रीय एजेंसी के लिये किसी भी मामले की जाँच करने हेतु राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य बनाता है।
    • विदित हो कि NIA को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 द्वारा शासित किया जाता है और पूरा देश इसका अधिकार क्षेत्र है।
  • दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) की धारा 6 के मुताबिक, दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कोई भी सदस्य किसी भी राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करेगा।
  • सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। यद्यपि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, किंतु राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह एजेंसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
  • ‘सामान्य सहमति’ सामान्यतः CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है, ताकि CBI की जाँच सुचारु रूप से चले सके और उसे बार-बार राज्य सरकार के समक्ष आवेदन न करना पड़े। लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई है तो CBI को प्रत्येक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होगा। 
    • उदाहरण के लिये यदि CBI मुंबई में पश्चिमी रेलवे के किसी क्लर्क के विरुद्ध रिश्वत के मामले की जाँच करना चाहती है, तो उस क्लर्क पर मामला दर्ज करने से पूर्व CBI को महाराष्ट्र सरकार के पास सहमति के लिये आवेदन करना होगा।

सामान्य सहमति वापस लेने का अर्थ

  • किसी भी राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने का अर्थ है कि अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा उस राज्य में नियुक्त किसी भी केंद्रीय कर्मचारी अथवा किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध तब तक नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा, जब तक कि केंद्रीय एजेंसी को राज्य सरकार से उस मामले के संबंध में केस-विशिष्ट सहमति नहीं मिल जाती।
  • इस प्रकार सहमति वापस लेने का सीधा मतलब है कि जब तक राज्य सरकार उन्हें केस-विशिष्ट सहमति नहीं दे देती, तब तक उस राज्य में CBI अधिकारियों के पास कोई शक्ति नहीं है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) 

  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक विभाग [जो कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अंतर्गत आता है] के अधीन भारत की एक प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है।
  • हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अपराधों के अन्वेषण के मामले में इसका अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के पास है।
  • यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल की ओर से इसके सदस्य देशों में अन्वेषण संबंधी समन्वय करती है।
  • पृष्ठभूमि
    • द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के लिये किये गए खर्च में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही प्रकार के लोगों को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों का दोषी पाया। 
    • इसी के मद्देनज़र वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) का गठन किया गया, ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके।
    • इसके पश्चात् वर्ष 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPEA) के माध्यम से विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) को औपचारिक तौर पर एक एजेंसी का रूप दिया गया ताकि भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच हो सके।
    • वर्ष 1963 में भारत सरकार द्वारा देश की रक्षा से संबंधित गंभीर अपराधों, उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, गंभीर धोखाधड़ी, ठगी व गबन और सामाजिक अपराधों की जाँच हेतु केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का गठन किया गया, जिसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPEA) के माध्यम से शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • CBI की कार्यप्रणाली
    • किसी भी मामले की जाँच को लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। ये तीन श्रेणियाँ हैं-
      1. भ्रष्टाचार-रोधी विभाग
      2. आर्थिक अपराध विभाग
      3. विशेष अपराध विभाग
    • भ्रष्टाचार-रोधी विभाग: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का भ्रष्टाचार-रोधी विभाग केंद्र सरकार के कर्मचारियों और सार्वजानिक क्षेत्र के उपकरणों में कार्यरत लोगों के विरुद्ध भ्रष्टाचार और जमाखोरी आदि संबंधी मामलों की जाँच करती है। इसके अलावा इस विभाग द्वारा राज्य सरकार के उन कर्मचारियों से संबंधित मामलों की भी जाँच की जाती है, जो विभाग को सौंपे जाते हैं।
    • आर्थिक अपराध विभाग: CBI का यह विभाग देश में वित्तीय अपराधों, बैंक धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
    • विशेष अपराध विभाग: CBI का विशेष अपराध विभाग आंतरिक सुरक्षा, जासूसी, तोड़-फोड़, नशीले पदार्शों की तस्करी, हत्या और डकैती जैसे पारंपरिक प्रकृति के मामलों की जाँच करता है।

आगे की राह

  • ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी राज्य सरकार ने CBI को दी गई अपनी ‘सामान्य सहमति’ वापस ली है, विगत कुछ वर्षों में कई राज्यों ने ऐसा कदम उठाया है। इस प्रकार के निर्णय से केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली पर तो प्रश्न उठता ही है, साथ ही भारत के संघीय ढाँचे पर भी सवाल खड़ा होता है।
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पास अभी भी कई विकल्प मौजूद हैं जिनका उपयोग समय आने पर किया जा सकता है।
  • इसके बावजूद यह आवश्यक है कि बार-बार केंद्रीय एजेंसी की कार्यप्रणाली और इसकी साख पर उठने वाले सवालों को संबोधित किया जाए और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली एक संस्था के रूप में विकसित किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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