भारतीय विनिर्माण हेतु चीनी तकनीशियन | 13 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, आत्मनिर्भर भारत, गलवान संघर्ष 2020, प्रेस नोट 3 (PN 3) के तहत FDI नीति, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, चाइना प्लस वन रणनीति, गिग इकोनॉमी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD)

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में तकनीकी रूप से उन्नत और विश्व स्तर पर सक्षम औद्योगिक श्रमिकों की भूमिका तथा आवश्यकता।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में चीनी तकनीशियनों के लिये अल्पकालिक व्यावसायिक वीज़ा की मंजूरी की सुविधा हेतु एक पोर्टल ने कार्य करना शुरू कर दिया है।

भारत को चीनी तकनीशियनों की आवश्यकता क्यों है?

  • मशीनों के परिचालन में विलंब: घरेलू विनिर्माण कंपनियाँ मशीनों को इनस्टॉल करने, मरम्मत और भारतीय श्रमिकों के प्रशिक्षण जैसे कार्यों हेतु आवश्यक चीनी तकनीशियनों के लिये वीज़ा प्राप्ति में विलंब के विषय में चिंता जता रही हैं।
  • भारतीय निर्माता चीनी तकनीशियनों की मांग करते हैं, क्योंकि वे अन्य पश्चिमी या यहाँ तक ​​कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के तकनीशियनों की तुलना में अधिक वहनीय होते हैं।
  • वैश्विक ऑर्डरों को पूरा करने में विलंब: चीन के साथ बढ़ते तनाव के कारण भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को वर्ष 2020 से अब तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उत्पादन घाटा और 1,00,000 नौकरियों का नुकसान हुआ है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत ने 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात अवसर भी खो दिया है तथा मूल्य संवर्धन में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि हुई है।
  • आत्मनिर्भर भारत की उपलब्धि: आवश्यक विशेषज्ञता की उपलब्धता सुनिश्चित करने से घरेलू विनिर्माण इकाइयों को उत्पादन क्षमता बढ़ाने, आयात पर निर्भरता कम करने और वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने में सहायता मिलेगी।
  • उत्पादन शुरू होने में देरी: धीमी वीज़ा अनुमोदन प्रक्रिया के कारण कई उद्योगों में उत्पादन शुरू होने में देरी हुई है।
    • कपड़ा और चमड़ा जैसे क्षेत्रों में जहाँ  महत्त्वपूर्ण क्षमता है, मशीनरी महीनों से अप्रयुक्त रही है क्योंकि चीनी विक्रेताओं की मांग है कि केवल उनके कर्मचारी ही उन्हें शुरू करें।

भारत चीनी तकनीशियनों को वीज़ा देने में संशय क्यों कर रहा था?

  • वर्ष 2020 में गलवान में हुई झड़प के बाद सीमा पर गतिरोध के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर चीनी प्रभाव को सीमित करने के उद्देश्य से कई सरकारी कदम उठाए गए।
    • वर्ष 2019 में चीनी नागरिकों को 2,00,000 वीज़ा प्राप्त हुए, लेकिन 2023 में, चीनी कर्मियों को दिये जाने वाले वीज़ा की संख्या घटकर 2000 रह गई।
  • सरकार ने प्रेस नोट 3 (PN3), 2020 के तहत FDI नीति में भी संशोधन किया, जिससे भूमि-सीमावर्ती देशों से निवेश को सरकारी मार्ग के तहत लाया गया।
    • प्रेस नोट 3 में संशोधन के बाद से भारत ने जून 2023 तक चीन से प्राप्त कुल 435 FDI आवेदनों में से केवल एक चौथाई को ही मंज़ूरी दी है।
  • भारतीय नीति निर्माताओं में सुरक्षा-संचालित मानसिकता उभरी है। 2024 में, चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स पेशेवरों के लिये मात्र 1000 वीज़ा भी “पाइपलाइन” में रुके हुए हैं, जो “गहन जाँच” से गुज़र रहे हैं।

भारत अपने लाभ हेतु चीन की विशेषज्ञता का उपयोग कैसे कर सकता है?

  • चीनी FDI प्रवाह में वृद्धि: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में निर्यात को बढ़ावा देने के लिये चीनी कंपनियों से निवेश को आकर्षित करने का समर्थन किया गया है।
    • वर्तमान में चीन अप्रैल 2000 से दिसंबर 2021 तक भारत में दर्ज कुल FDI इक्विटी प्रवाह में केवल 0.43% हिस्सेदारी या 2.45 बिलियन अमरीकी डॉलर के साथ 20वें स्थान पर है।
  • चाइना+1 रणनीति: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि मैक्सिको, वियतनाम, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश पश्चिमी फर्मों द्वारा अपनाई गई चाइना+1 रणनीति से लाभान्वित हो रहे हैं।
    • भारत अपने विशाल घरेलू बाज़ार, प्रतिस्पर्द्धी श्रम लागत और सहायक सरकारी नीतियों के कारण चाइना+1 रणनीति से काफी लाभ उठा सकता है।
  • वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकरण: चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, एक विनिर्माण दिग्गज और एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक एवं तकनीकी अभिकर्त्ता है।
    • भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये यह आवश्यक है कि भारत स्वयं को चीन की तरह वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एकीकृत करे।

भारतीय औद्योगिक श्रमिकों से जुड़ा मुद्दा क्या है?

  • कम उत्पादकता: चीनी पेशेवर "अत्यधिक उत्पादक" हैं। भारतीय उद्योग जगत के नेताओं के अनुसार, चीनी लोग उन्हीं संसाधनों से 150 वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं, जिनसे भारतीय 100 वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
  • कौशल अंतर: चीनी और भारतीय कारखाना पर्यवेक्षकों और श्रमिकों के बीच “एक महत्त्वपूर्ण कौशल अंतर” मौजूद है।
    • भारतीय व्यवसायों ने चीन से मशीनें खरीदी हैं, लेकिन चीनी तकनीशियनों की सहायता के बिना उन्हें प्रभावी ढंग से उपयोग करने में उन्हें कठिनाई होती है, क्योंकि स्थानीय कार्यबल में उन्हें चलाने के लिये आवश्यक कौशल का अभाव है।
  • खराब औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम: औद्योगिक संगठन अपने कर्मचारियों को वर्तमान औद्योगिक कौशल मांग को पूरा करने के लिये ज्ञान प्राप्त करने में मदद करने पर केंद्रित अपने कर्मचारियों को ऑन-जॉब प्रशिक्षण प्रदान करने में विफल रहते हैं। 
  • अप्रासंगिक पाठ्यक्रम: शैक्षिक और कौशल कार्यक्रम प्रायः वर्तमान उद्योग की जरूरतों के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे छात्रों द्वारा सीखी गई बातों और नियोक्ताओं की जरूरतों के बीच अंतर उत्पन्न होता है।
    • जब तक स्थानीय शिक्षा में व्यापक रूप से सुधार नहीं किया जाता, तब तक बहुत सारी नौकरियों के साथ समृद्धि एक दुखद कल्पना बनी रहेगी।

भारत औद्योगिक क्षेत्र में कौशल विकास को कैसे बेहतर बना सकता है?

  • उत्प्रेरक के रूप में विदेशी ज्ञान: पूर्वी एशियाई विकास की कहानी दर्शाती है कि आर्थिक विकास के लिये विदेशी ज्ञान महत्त्वपूर्ण है। 1980 के दशक में, कोरियाई व्यवसायों ने उन्हें नष्ट करने और रिवर्स इंजीनियर करने के लिये विदेशी मशीनें खरीदीं।
  • निरंतर प्रशिक्षण: किसी संगठन के भीतर निरंतर प्रशिक्षण प्रदान करने से वर्तमान कर्मचारियों को अपने कौशल और क्षमताओं को विकसित करने का अवसर मिलता है। यह नई तकनीकों और विधियों को अधिक सुव्यवस्थित रूप से अपनाने में मदद करता है।
  • कॉलेजों के साथ साझेदारी: इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप के अवसरों के माध्यम से कॉलेज के छात्रों तक पहुँचना उन्हें मांग में प्रासंगिक कौशल का एक विचार देता है।
  • औद्योगिक दौरा: यह श्रमिकों को अन्य उद्योगों में प्रक्रियाओं, कार्य वातावरण और प्रबंधन प्रथाओं को समझने के साथ-साथ नवीनतम तकनीकों के बारे में जानने का अवसर देता है।
  • शैक्षणिक आधार: चीन में 1980 के दशक की शुरुआत में जनसँख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई। कम्युनिस्ट युग के दौरान चीन में स्थापित प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता ने देश को तेज़ी से विकास के लिये तैयार किया।
  • विश्व स्तरीय अधिगम स्तर: वर्ष 2018 से, चीनी स्कूली छात्रों ने आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (PISA) में विश्व के सर्वश्रेष्ठ से बेहतर प्रदर्शन किया है।
    • भारत को अपने शिक्षा प्रणाली को उन्नत करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बच्चे विश्व स्तरीय अधिगम के मानक को प्राप्त कर सकें।  

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना(PLI)

  • PLI योजना की परिकल्पना घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने, आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन को बढ़ाने के लिये की गई थी। 
  • मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने शुरुआत में तीन उद्योगों को लक्षित किया: 
    • मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण 
    • विद्युत घटक विनिर्माण और 
    • चिकित्सा उपकरण।
  • बाद में इसे 14 क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया। 
    • PLI योजना में घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिये वित्तीय पुरस्कार मिलते हैं, जो पाँच वर्ष तक के लिये उनके राजस्व के प्रतिशत के आधार पर होता है।
  • लक्षित क्षेत्र: यह 14 क्षेत्र हैं मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक, फार्मास्यूटिकल्स, ड्रग्स, विशेष इस्पात, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, वाइट गुड्स (एसी और एलईडी), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल (एसीसी) बैटरी, तथा ड्रोन व ड्रोन घटक।
  • योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • दिये जाने वाले प्रोत्साहनों की गणना वृद्धिशील बिक्री के आधार पर की जाती है।
    • उन्नत रसायन सेल बैटरी, कपड़ा उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में, दिये जाने वाले प्रोत्साहन की गणना पाँच वर्षों की अवधि में की गई बिक्री, प्रदर्शन एवं स्थानीय मूल्य संवर्धन के आधार पर की जाएगी।

निष्कर्ष

भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के पूर्वानुमान के बावजूद, इसकी असफल शिक्षा प्रणाली और सम्मानजनक रोज़गार प्रदान करने में असमर्थता के कारण इसकी संभावनाएँ धूमिल हैं। जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है, एक संतुलित दृष्टिकोण जो विदेशी विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करता है और साथ ही साथ घरेलू शिक्षा और तकनीकी कौशल को बढ़ाता है, आवश्यक है।

तेज़ी से बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने हेतु, भारत को अपनी मानव पूंजी की कमियों और यथार्थवादी आर्थिक रणनीतियों को तत्काल हल करना चाहिये ताकि बढ़ती बेरोज़गारी और अविकसितता से बचा जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय विनिर्माण उद्योग के विकास में विदेशी विशेषज्ञता और ज्ञान के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में प्रवासी भारतीयों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवासी भारतीयों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिये ।(2017)

प्रश्न. श्रम-प्रधान निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्र की विफलता का कारण बताइए। पूंजी-प्रधान निर्यात के बजाय अधिक श्रम-प्रधान निर्यात के लिये उपाय सुझाइए।(2017)

प्रश्न. “भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक,कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती। सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016)