वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 | 03 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा:

उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण , सकल मूल्य वर्धित , सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) , शुद्ध मूल्य वर्धित, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ)

मुख्य परीक्षा:

सकल मूल्य वर्द्धन और आर्थिक विकास के आकलन में इसका महत्त्व, उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI), संवृद्धि एवं विकास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने वर्ष 2022-23 के लिये उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) जारी किया, जो भारत में विनिर्माण क्षेत्र की रिकवरी और विकास पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है।

  • ASI वर्ष 2022-23 के लिये सर्वेक्षण फील्डवर्क नवंबर 2023 से जून 2024 तक आयोजित किया गया था।

ASI रिपोर्ट 2022-23 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार वृद्धि: 
    • ASI के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार वर्ष 2021-22 में 1.72 करोड़ से 7.5% बढ़कर वर्ष 2022-23 में 1.84 करोड़ हो गया, जो विगत 12 वर्षों में वृद्धि की उच्चतम दर है।
    • वर्ष 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र ने 13 लाख नौकरियाँ सृजित कीं, जो वित्त वर्ष 2022 की तुलना में 11 लाख से अधिक है।

  • सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) और उत्पादन वृद्धि: 
    • विनिर्माण जीवीए में 7.3% की मज़बूत वृद्धि हुई, जो वर्ष 2022-23 में 21.97 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गई, यह वर्ष 2021-22 में 20.47 लाख करोड़ रुपए थी। 
    • कुल औद्योगिक इनपुट में 24.4% की वृद्धि हुई, जबकि वर्ष 2021-22 की तुलना में 2022-23 में इस क्षेत्र में उत्पादन में 21.5% की वृद्धि हुई, जो विनिर्माण गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण उछाल को दर्शाता है।

  • विनिर्माण वृद्धि के मुख्य चालक:
    • वर्ष 2022-23 में विनिर्माण वृद्धि के प्राथमिक चालक मूल धातु, कोक और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्य उत्पाद, रसायन और मोटर वाहन थे। 
      • इन उद्योगों का संयुक्त योगदान कुल उत्पादन का लगभग 58% था।
  • क्षेत्रीय प्रदर्शन:
    • रोज़गार के मामले में शीर्ष 5 राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक थे।
  • कारखानों की संख्या में वृद्धि: 
    • कारखानों की संख्या वर्ष 2021-22 में 2.49 लाख से बढ़कर 2022-23 में 2.53 लाख हो गई, जो कोविड-19 व्यवधानों के बाद पहली पूर्ण रिकवरी अवस्था को चिह्नित करती है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र में गिरावट: 
  • औसत वेतन:
    • प्रति व्यक्ति औसत पारिश्रमिक वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 में 6.3% बढ़कर 3.46 लाख रुपये हो गया।
  • पूंजी निवेश में उछाल: 
    • सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) वर्ष 2022-23 में 77% से अधिक बढ़कर 5.85 लाख करोड़ रुपए हो गया, जबकि शुद्ध स्थायी पूंजी निर्माण 781.6% बढ़कर 2.68 लाख करोड़ रुपए हो गया, जिससे विनिर्माण क्षेत्र की निरंतर वृद्धि देखने को मिली।
      • सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF), या "निवेश", से तात्पर्य उत्पादित परिसंपत्तियों के अधिग्रहण से है, जिसमें सेकेंड-हैंड खरीद भी शामिल है, साथ ही निपटान घटाने के बाद उत्पादकों द्वारा अपने स्वयं के उपयोग के लिये परिसंपत्तियों का उत्पादन, शामिल है।
      • शुद्ध स्थायी पूंजी निर्माण, सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) में से स्थायी पूंजी की खपत की राशि को घटाकर प्राप्त राशि होती है।
    • विनिर्माण क्षेत्र में मुनाफा 2.7% बढ़कर 9.76 लाख करोड़ रुपए हो गया। 

टिप्पणी:

  • श्रमिकों में प्रत्यक्ष रूप से या किसी एजेंसी के माध्यम से नियोजित सभी व्यक्ति शामिल हैं, जिनमें विनिर्माण प्रक्रियाओं या मशीनरी और परिसर की सफाई में शामिल वेतनभोगी और अवैतनिक कर्मचारी भी शामिल हैं।
  • कर्मचारियों में वेतन पाने वाले सभी कर्मचारी, साथ ही लिपिक, पर्यवेक्षी या प्रबंधकीय भूमिका में कार्यरत कर्मचारी तथा कच्चा माल या अचल सम्पत्ति खरीदने में शामिल कर्मचारी, तथा निगरानी एवं रखवाली करने वाले कर्मचारी शामिल हैं।

सकल मूल्य वर्द्धन (GVA)

  • GVA उस मूल्य को दर्शाता है, जो उत्पादक उत्पादन प्रक्रिया के दौरान वस्तुओं और सेवाओं में जोड़ते हैं।
  • इसकी गणना कुल उत्पादन से इनपुट (मध्यवर्ती खपत) की लागत घटाकर की जाती है ।
  • यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक प्रमुख घटक है, जो आर्थिक संवृद्धि को दर्शाता है। GVA विकास दर क्षेत्रीय प्रदर्शन में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जिससे आर्थिक विश्लेषण और नीति निर्धारण में सहायता मिलती है।
    • GVA= GDP+ उत्पादों पर सब्सिडी - उत्पादों पर कर।
    • शुद्ध मूल्य वर्द्धन (NVA) की गणना सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) से मूल्यह्रास को घटाकर की जाती है। 
  • यह मध्यवर्ती उपभोग और स्थायी पूंजी के उपभोग दोनों को घटाने के बाद उत्पादन के मूल्य को दर्शाता है।

वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) क्या है?

  • परिचय:
    • वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) भारत में  औद्योगिक आँकड़ों का प्राथमिक स्रोत है ।
    • 1953 के सांख्यिकी संग्रह अधिनियम के अनुसार इसकी शुरुआत वर्ष 1960 में हुई थी, वर्ष 1959 को आधार वर्ष मानकर, वर्ष 1972 को छोड़कर, यह प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
    • ASI वर्ष 2010-11 से यह सर्वेक्षण सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 के तहत आयोजित किया गया है, जिसे अखिल भारतीय स्तर पर विस्तारित करने के लिये वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था। 
  • क्रियान्वयन एजेंसी:
    • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) का एक हिस्सा, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ASI का संचालन करता है। 
      • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी किये गए आँकड़ों की कवरेज़ और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • ASI का दायरा और कवरेज़:
    • ASI का विस्तार संपूर्ण देश में है। इसमें कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 2(एम)(आई) और 2(एम)(आईआई) के तहत पंजीकृत सभी कारखाने शामिल हैं
    • बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोज़गार की शर्तें) अधिनियम, 1966 के अंतर्गत पंजीकृत बीड़ी और सिगार निर्माण प्रतिष्ठान।
    • विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण में लगे विद्युत उपक्रम केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के पास पंजीकृत नहीं हैं।
    • राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए प्रतिष्ठानों के व्यवसाय रजिस्टर (BRE) में पंजीकृत 100 या अधिक कर्मचारियों वाली इकाइयाँ, जैसा कि संबंधित राज्यों द्वारा साझा किया गया है।
  • डेटा संग्रहण तंत्र:

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के लिये अवसर और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अवसर:
    • व्यापक घरेलू बाज़ार और मांग: भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ग्राहकों की ओर से अपने उत्पादों की मज़बूत मांग देखी गई है।
      • मई 2024 में क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) 58.8 दर्ज किया गया, जो भारत के विनिर्माण परिदृश्य में विस्तार का संकेत देता है।
    • क्षेत्रीय लाभ: रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी और वस्त्र सहित प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है। 
      • भारत में औषधि निर्माण लागत अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग 30%-35% कम है।
    • वैश्विक दक्षिणी बाज़ार तक पहुँच: भारतीय विनिर्माण यूरोपीय से एशियाई वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) की ओर स्थानांतरित हो रहा है, वैश्विक दक्षिणी भागीदारों से विदेशी मूल्य वर्द्धित (FVA) वर्ष 2005-2015 में 27% से बढ़कर 45% हो गया है।
      • इससे भारतीय कम्पनियों को अपना स्वयं का जी.वी.सी. स्थापित करने तथा भारत को एक क्षेत्रीय विकास केंद्र के रूप में स्थापित करने का अवसर मिलता है।
    • MSME का उदय: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान करते हैं और आर्थिक विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, देश के कुल निर्यात में इनका योगदान लगभग 45% है।
      • मार्च 2024 तक, उद्यम पोर्टल पर 4 करोड़ से अधिक MSME पंजीकृत थे, जिनमें से 67% की पहचान विनिर्माण MSME के रूप में की गई थी।
    • विकास की संभावना: भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है, जो अर्थव्यवस्था में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • चुनौतियाँ:
    • पुरानी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचा: पुरानी प्रौद्योगिकी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता, भारतीय निर्माताओं की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने और अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करने की क्षमता में बाधा डालती है।
    • कुशल कार्यबल की कमी: विश्व बैंक के अनुसार भारत के केवल 24% कार्यबल के पास जटिल विनिर्माण नौकरियों के लिये आवश्यक कौशल है, जबकि अमेरिका में यह 52% और दक्षिण कोरिया में 96% है।
    • उच्च इनपुट लागत: भारतीय रिज़र्व बैंक ( 2022) के अनुसार भारत में लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक औसत से 14% अधिक है, जो विनिर्माण क्षेत्र की समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर रही है।
      • इसके अलावा भारत में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी जटिल है।
    • चीन से प्रतिस्पर्द्धा और आयात निर्भरता: वर्ष 2023-24 में, भारत के वस्त्र और परिधान आयात में चीन का हिस्सा लगभग 42% , मशीनरी का 40% और इलेक्ट्रॉनिक्स आयात का 38.4% होगा।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र में सरकार की क्या पहल हैं?

आगे की राह

  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता और पहुँच को बढ़ाने के साथ-साथ रसद लागत को कम करने से विनिर्माण में अधिक निवेश आकर्षित हो सकता है।
  • उद्योग 4.0 की आवश्यकता: उद्योग 4.0 को अपनाने से विनिर्माण क्षेत्र को वित्त वर्ष 26 तक सकल घरेलू उत्पाद में 25% योगदान करने में मदद मिल सकती है। भारतीय निर्माता अपने परिचालन बजट का 35% डिजिटल परिवर्तन में निवेश कर रहे हैं, इस राशि को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • निर्यातोन्मुख विनिर्माण को बढ़ावा देना: निर्यातोन्मुख विनिर्माण के विकास को समर्थन देने से भारतीय व्यवसायों को नए बाज़ारों में प्रवेश करने और लक्षित नीतियों के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने में सहायता मिल सकती है।
  • वित्तीय सहायता: कई MSME को निर्यात के लिये ऋण प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे SME के विकास के लिये वित्तीय सहायता बढ़ाना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • सक्षम विनियमन: विनियमनों को सुव्यवस्थित करने से व्यवसायों पर बोझ कम हो सकता है तथा विनिर्माण में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कौशल विकास: प्रशिक्षण कार्यक्रमों में वृद्धि से कुशल श्रमिकों की कमी दूर हो सकती है तथा क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है, जैसा कि वियतनाम द्वारा वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने में सफलता से प्रदर्शित होता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष प्रमुख अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा वैश्विक बाज़ार में इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न 1 ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? 

(a) कोयला उत्पादन 
(b) विद्युत उत्पादन 
(c) उर्वरक उत्पादन 
(d) इस्पात उत्पादन 

उत्तर: (b) 


Q2. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. पिछले दशक में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में लगातार वृद्धि हुई है। 
  2. बाज़ार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद (रुपए में) पिछले एक दशक में लगातार बढ़ा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न 1. “सुधारोत्तर अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है” कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल ही में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न 2: आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं में अंतरित होते हैं, पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)