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भारत की सांख्यिकी प्रणाली

  • 18 Jul 2024
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 12/07/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Official Statistical System in India” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की सांख्यिकीय डेटा गुणवत्ता संवीक्षा कार्यप्रणाली और अंतर्राष्ट्रीय मानकों की प्रयोज्यता का समालोचनात्मक मूल्यांकन किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग, सातवीं अनुसूची, जनगणना अधिनियम, 1948, जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969, सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, तेंदुलकर समिति, रंगराजन समिति, आर्थिक जनगणना। 

मेन्स के लिये:

भारत की सांख्यिकी प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

भारत की आधिकारिक सांख्यिकी, विशेष रूप से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) से प्राप्त आँकड़े या डेटा, की गुणवत्ता के बारे में हाल ही में शुरू हुई बहस ने देश की सांख्यिकीय प्रणाली से संबद्ध महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया है। नमूना या सैम्पल डिज़ाइन और डेटा गुणवत्ता के बारे में उठाई गई चिंताएँ, हालाँकि सांख्यिकीय रूप से वैध साबित नहीं हुई हैं, लेकिन ये भारत के सांख्यिकीय दृष्टिकोण को आधुनिक बनाने के महत्त्व को रेखांकित करती हैं।

इन बहसों से उजागर होने वाला मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि भारत के सांख्यिकीय आँकड़े मूलतः त्रुटिपूर्ण हैं, बल्कि यह है कि देश की सांख्यिकीय प्रणाली डेटा विज्ञान एवं एकीकरण में वैश्विक प्रगति के साथ तालमेल नहीं रख पाई है।

अपने आधिकारिक आँकड़ों की विश्वसनीयता एवं प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिये, भारत को अपनी सांख्यिकीय कार्यप्रणाली (statistical methodologies) को आधुनिक बनाने, डेटा जारी करने की आवृत्ति एवं समयबद्धता में सुधार करने और डेटा संग्रहण एवं विश्लेषण के लिये अभिनव दृष्टिकोणों की खोज करने में निवेश करने की आवश्यकता है। यह नीति निर्माताओं को तेज़ी से बदलते आर्थिक एवं सामाजिक परिदृश्य में सूचना-संपन्न निर्णय लेने के लिये आवश्यक सटीक एवं अद्यतन सूचना प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

भारत में वर्तमान सांख्यिकीय ढाँचा क्या है?

  • केंद्र सरकार:
    • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) देश की आधिकारिक सांख्यिकी प्रणाली के लिये केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
      • MoSPI के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली के एकीकृत विकास की निगरानी करता है।
      • NSO के अलावा, विभिन्न संबंधित मंत्रालय/विभाग डेटा संग्रहण, प्रसारण और समन्वयन के लिये NSO के साथ अपने सांख्यिकीय प्रतिष्ठान का संचालन करते हैं।
  • राज्य सरकार:
    • राज्यों में आधिकारिक सांख्यिकीय प्रणाली आमतौर पर राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के बीच विकेंद्रीकृत होती है।
      • शीर्ष स्तर पर आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय (Directorates of Economics & Statistics- DES डीईएस) राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के भीतर सांख्यिकीय गतिविधियों का समन्वय करते हैं।
    • अधिकांश क्षेत्रों के लिये डेटा संग्रहण, संकलन, प्रसंस्करण और परिणाम तैयार करने की ज़िम्मेदारी राज्यों की है तथा राज्यवार आँकड़े केंद्र द्वारा उपयोग किये जाने वाले राष्ट्रीय स्तर के आँकडों में योगदान देते हैं।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC):
    • सी. रंगराजन आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर वर्ष 2006 में स्थापित NSC सांख्यिकीय मामलों पर सर्वोच्च सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • सातवीं अनुसूची में शामिल:
    • ‘सांख्यिकी’ विषय को भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ और समवर्ती दोनों सूचियों में शामिल किया गया है, जिसे विशेष रूप से प्रविष्टि 94 (संघ सूची) और प्रविष्टि 45 (समवर्ती सूची) के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
  • विधायी ढाँचा:

भारत की सांख्यिकी प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • जनगणना में देरी और इसके निहितार्थ: भारत की वर्ष 2021 की जनगणना को बार-बार स्थगित किया जाना देश की सांख्यिकीय प्रणाली में एक गंभीर व्यवधान का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका शासन, नीति-निर्माण और संसाधन आवंटन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। प्रमुख उदाहरणों में शामिल हैं:
    • नीति विकृतियाँ: पुराने पड़ चुके जनसांख्यिकीय आँकड़े के कारण असंगत नीतियों का निर्माण होता है।
      • उदाहरण के लिये, स्कूल अवसंरचना और शिक्षक भर्ती के लिये शिक्षा संबंधी योजना वर्ष 2011 की जनसंख्या के आँकड़ों पर आधारित है, जो तेज़ी से बढ़ते शहरी क्षेत्रों की वर्तमान आवश्यकताओं को संभावित रूप से कम करके आँकती है।
    • त्रुटिपूर्ण आर्थिक गणना: इस देरी से राज्यवार गरीबी अनुपात और केंद्र-राज्य कर बँटवारे के संशोधन पर असर पड़ता है।
      • संभव है कि बिहार या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों, जिनकी जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है, को एक दशक पुराने आँकड़ों के आधार पर अपर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त हो रहा है।
  • GDP आकलन कार्यप्रणाली से जुड़ी चिंताएँ: भारत की GDP आकलन विधियों को संभावित अति-आकलन के लिये संवीक्षा का सामना करना पड़ा है, जिससे आर्थिक विकास के आँकड़ों की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है। उदाहरण के लिये, भारत की GDP सीरीज़ के वर्ष 2015 के संशोधन ने गंभीर विवाद को जन्म दिया।
    • इसने वर्ष 2013-14 के लिये सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को 4.7% से बढ़ाकर 6.9% कर दिया, जिससे इसकी सटीकता पर संदेह पैदा हुआ।
    • पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने मत दिया कि वर्ष 2015 में जारी 2011-12 GDP सीरीज़ में वृद्धि का अनुमान बढ़ा-चढ़ाकर लगाया गया है। इससे भारत वर्ष 2015 में चीन को पीछे छोड़कर सबसे तेज़ी से विकास करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया।
  • रोज़गार संबंधी आँकड़ों की विश्वसनीयता और आवृत्ति: NSSO के व्यापक रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षणों को बंद करने से आँकड़ों में महत्त्वपूर्ण अंतराल पैदा हो गया।
    • वर्ष 2017-18 में शुरू किये गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) को कार्यप्रणाली संबंधी परिवर्तनों (जिससे पिछले सर्वेक्षणों के साथ तुलना करना कठिन हो गया) के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा।
    • यह मुद्दा सुसंगत, तुलनीय और बारंबार श्रम बाज़ार आँकड़े की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • गरीबी आकलन संबंधी चुनौतियाँ: सरकार ने वर्ष 2011-12 के बाद से गरीबी का आधिकारिक अनुमान जारी नहीं किया है, जिसका आंशिक कारण कार्यप्रणाली को लेकर जारी बहस है।
    • तेंदुलकर समिति की कार्यप्रणाली—जिसने वर्ष 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिये गरीबी रेखा को 27 रुपए प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों के लिये 33 रुपए प्रतिदिन के आधार पर निर्धारित किया था—की आलोचना की गई कि इसने आधार को अत्यंत निम्न रखा है।
      • रंगराजन समिति ने उच्चतर सीमा का सुझाव दिया था, लेकिन इसकी सिफ़ारिशों को आधिकारिक तौर पर नहीं अपनाया गया।
    • आम सहमति और अद्यतन आँकड़ों के अभाव के कारण गरीबी के अनौपचारिक अनुमानों में व्यापक भिन्नताएँ सामने आई हैं, जिससे प्रभावी नीति निर्माण में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • कोविड-19 के दौरान मृत्यु दर के आँकड़ों में विसंगतियाँ: कोविड महामारी ने भारत की मृत्यु पंजीकरण प्रणाली में गंभीर अंतराल को उजागर किया।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2020 और 2021 में भारत में कोविड-19 के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 4.7 मिलियन मौतें होने की संभावना है।
      • भारत ने आधिकारिक तौर पर दिसंबर 2021 तक कोविड-19 से जुड़ी केवल 4.8 लाख संचयी मौतों का अनुमान लगाया , जिसका अर्थ है कि WHO का अनुमान सरकारी गणना से लगभग 10 गुना अधिक है।
    • यह भारी विसंगति मृत्यु पंजीकरण और मृत्यु-कारण (cause-of-death) रिपोर्टिंग के बारे में संदेह पैदा करती है, जबकि स्वास्थ्य नीति और जनसांख्यिकीय अनुमानों के लिये इनकी सही रिपोर्टिंग महत्त्वपूर्ण है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र मापन से संबद्ध चुनौतियाँ: भारत का विशाल अनौपचारिक क्षेत्र, जिसमें अनुमानतः 80% से अधिक कार्यबल कार्यरत है, मापन संबंधी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • आर्थिक जनगणना (6ठी) के आँकड़े पिछली बार वर्ष 2013-14 में जारी किये गए थे और 7वीं आर्थिक जनगणना के आँकड़े अभी तक जारी नहीं किये गए हैं।
      • छठी आर्थिक जनगणना में 58.5 मिलियन प्रतिष्ठानों की रिपोर्टिंग की गई थी, लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि इसमें संभवतः गृह-आधारित और अत्यधिक गतिशील आर्थिक गतिविधियों की गणना कम की गई है।
      • इस क्षेत्र के बारे में ठोस आँकड़ों का अभाव अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिये नीति निर्माण को प्रभावित करता है।
  • आँकड़ों को दबाना और विलंबित प्रकाशन: प्रतिकूल सांख्यिकीय रिपोर्टों को रोके रखने के कई उदाहरण सामने आए हैं।
    • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण NSSO का वर्ष 2017-18 का उपभोग व्यय सर्वेक्षण (consumption expenditure survey) है, जिसमें कथित तौर पर ग्रामीण उपभोग में गिरावट देखी गई।
    • इस सर्वेक्षण को डेटा गुणवत्ता संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए जारी होने से रोक दिया गया। इस तरह की कार्रवाइयाँ सांख्यिकीय संस्थानों की स्वतंत्रता और सांख्यिकीय प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल उठाती हैं।
  • प्रौद्योगिकीय एकीकरण और बिग डेटा के उपयोग का अभाव: ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों के बावजूद, आधिकारिक आँकड़ों में बिग डेटा और उन्नत विश्लेषण का एकीकरण सीमित बना हुआ है।
    • उदाहरण के लिये, जबकि एस्टोनिया जैसे देश रियल-टाइम आर्थिक संकेतकों के लिये डिजिटल फुटप्रिंट का उपयोग कर रहे हैं, भारत की सांख्यिकीय प्रणाली अभी भी पारंपरिक सर्वेक्षण विधियों पर अत्यधिक निर्भर करती है।
    • आर्थिक और कृषि सांख्यिकी को उन्नत बनाने के लिये GST डेटा और डिजिटल लेनदेन की क्षमता का अभी तक बड़े पैमाने पर दोहन नहीं हुआ है।
  • पर्यावरण संबंधी आँकडों का अभाव: भारत में व्यापक एवं नियमित रूप से अद्यतन किये जाते पर्यावरण संबंधी आँकड़ों का अभाव पाया जाता है।
    • उदाहरण के लिये, देश में अंतिम व्यापक वन सर्वेक्षण, जिसमें भू-सत्यापन का उपयोग किया गया था, 1980 के दशक में किया गया था और उसके बाद के सर्वेक्षण मुख्यतः उपग्रह डेटा पर निर्भर बने रहे।
    • इससे जलवायु नीति और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के लिये महत्त्वपूर्ण वन क्षेत्र अनुमान और कार्बन पृथक्करण गणना की परिशुद्धता प्रभावित होती है।

भारत में सांख्यिकी प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • व्यापक कानूनी और संस्थागत सुधार: पुराने सांख्यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008 (2017 में संशोधित) के स्थान पर एक नया सांख्यिकी अधिनियम लागू किया जाए।
    • विधायी सुधारों के माध्यम से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय जैसी सांख्यिकीय एजेंसियों की स्वायत्तता को सशक्त किया जाए, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि उनके पास राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना आँकड़े जारी करने का अधिकार हो।
    • सभी सरकारी विभागों में सांख्यिकीविदों की भर्ती और करियर प्रगति को सुचारू बनाने के लिये राष्ट्रीय सांख्यिकी सेवा को सुव्यवस्थित किया जाए।
    • सरकार के सभी आधिकारिक सांख्यिकीय उत्पादों में डेटा की गुणवत्ता और कार्यप्रणाली मानकों की निगरानी के लिये एक स्वतंत्र नियामक निकाय की स्थापना की जाए।
  • डेटा संग्रहण और प्रसंस्करण अवसंरचना का आधुनिकीकरण: काग़ज़-आधारित सर्वेक्षणों के स्थान पर टैबलेट या स्मार्टफोन-आधारित डेटा प्रविष्टि के साथ एक राष्ट्रव्यापी डिजिटल डेटा संग्रहण प्रणाली को लागू किया जाए।
    • सुदृढ़ सुरक्षा उपायों के साथ एक केंद्रीकृत, क्लाउड-आधारित डेटा भंडारण और प्रसंस्करण अवसंरचना का विकास किया जाए।
    • अधिक व्यापक और बारंबार डेटा अपडेट के लिये विभिन्न प्रशासनिक डेटाबेस (जैसे GST, आयकर, भूमि रिकॉर्ड) को सांख्यिकीय प्रणाली के साथ एकीकृत किया जाए।
    • समयबद्ध आर्थिक निगरानी के लिये प्रमुख आर्थिक संकेतकों (जैसे बिजली की खपत, ई-वे बिल जैसे उच्च आवृत्ति संकेतक) से रियल-टाइम डेटा पाइपलाइनों की स्थापना की जाए।
  • क्षमता निर्माण और कौशल संवर्द्धन: सभी स्तरों पर सरकारी सांख्यिकीविदों के निरंतर कौशल उन्नयन के लिये एक समर्पित सांख्यिकी प्रशिक्षण संस्थान का गठन किया जाए।
    • ज्ञान के आदान-प्रदान और सर्वोत्तम अभ्यास के अंगीकरण के लिये अग्रणी वैश्विक सांख्यिकीय संगठनों और विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी विकसित की जाए।
  • नीति-निर्माण में संलग्न सभी संबंधित सरकारी अधिकारियों के लिये अनिवार्य सांख्यिकीय साक्षरता कार्यक्रम लागू करें।
  • उन्नत डेटा पारदर्शिता और अभिगम्यता: मेटाडेटा और कार्यप्रणाली सहित सभी आधिकारिक आँकड़ों तक पहुँच  प्रदान करने के लिये एक उपयोगकर्ता-अनुकूल राष्ट्रीय डेटा पोर्टल विकसित किया जाए।
    • पूर्वानुमान सुनिश्चित करने और अटकलों को कम करने के लिये सभी प्रमुख सांख्यिकीय विज्ञप्तियों के लिये पूर्व-घोषित कैलेंडर लागू करें।
    • प्रमुख सांख्यिकीय उत्पादों में प्रमुख कार्यप्रणाली संबंधी परिवर्तनों के लिये सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया स्थापित की जाए।
  • उप-राष्ट्रीय सांख्यिकीय क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना: राज्य स्तरीय सांख्यिकीय प्रणालियों के आधुनिकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये राज्य सांख्यिकीय नवाचार निधि (State Statistical Innovation Funds) का निर्माण किया जाए।
    • स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा और सुधार को बढ़ावा देने हेतु राज्य सांख्यिकीय क्षमताओं के लिये एक रैंकिंग प्रणाली लागू किया जाए।
    • छोटे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सहायता के लिये क्षेत्रीय डाटा प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किये जाएँ।
  • ब्लॉकचेन और डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर (Distributed Ledger) प्रौद्योगिकी: आधिकारिक आँकड़ों में सभी परिवर्तनों का अपरिवर्तनीय ऑडिट ट्रेल बनाए रखने के लिये ब्लॉकचेन को लागू किया जाए।
    • विभिन्न सरकारी विभागों के बीच स्वचालित डेटा साझाकरण समझौतों के लिये स्मार्ट अनुबंधों का उपयोग करें।
    • सुरक्षित एवं पारदर्शी घरेलू सर्वेक्षण के लिये एक ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली का सृजन किय जाए, ताकि संग्रहण से प्रकाशन तक आँकड़े की अखंडता सुनिश्चित हो सके।
  • बिग डेटा एनालिटिक्स और वैकल्पिक डेटा स्रोत: बड़े डेटा स्रोतों (जैसे मोबाइल फोन गैर-व्यक्तिगत डेटा, सोशल मीडिया, वेब स्क्रैपिंग) को आधिकारिक आँकड़ों में शामिल करने के लिये कार्यप्रणालियाँ विकसित की जाएँ।
  • जनगणना और नमूना सर्वेक्षण प्रणालियों में सुधार लाना: एक रोलिंग जनगणना मॉडल को लागू किया जाए, जहाँ एकल दशकीय अभ्यास के बजाय 5 वर्ष की अवधि में लगातार सर्वेक्षण आयोजित किये जाएँ।
    • सभी घरेलू सर्वेक्षणों के लिये वार्षिक रूप से अद्यतन किया जाने वाला मास्टर सैम्पल फ्रेम विकसित किया जाए।
    • ऐसे अनुकूली सर्वेक्षण डिज़ाइन प्रस्तुत किये जाएँ जो रियल-टाइम डेटा गुणवत्ता संकेतकों के आधार पर नमूना आकार को समायोजित करते हों।

अभ्यास प्रश्न: गरीबी और रोज़गार जैसे प्रमुख सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के परिशुद्ध मापन में भारत की सांख्यिकीय प्रणाली के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये। भारत के सांख्यिकीय आँकड़ों की साख एवं विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. भारत की जनसंख्या का घनत्व वर्ष 1951 की जनगणना और वर्ष 2001 की जनगणना के बीच तीन गुना से अधिक बढ़ गया है। 
  2. भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर (घातीय) वर्ष 1951 की जनगणना और वर्ष 2001 की जनगणना के बीच दोगुनी हो गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 

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